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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

मानव और मृत्‍यु–

 
मृत्‍यु मनुष्‍य के जीवन में इतनी बड़ी घटना है कि बाकी जीवन में जो भी घटता है वो उसके सामन तुच्‍छ हो जाता है, बोना हो जाता है। फिर भी क्‍यों मनुष्‍य मृत्‍यु की इस घटना को जान नहीं पाता,समझ नहीं पाता, उसमें खड़ा हो नहीं पाता। क्‍या कारण है मनुष्‍य पूरे जीवन में सब प्रकार की तैयारी करता है पर उस महत्‍वपूर्ण घटना से साक्षात्‍कार नहीं कर पाता उसे ग्रहण नहीं कर पाता उससे आँख चुराता है। अभी कुछ दिनों पहले किरलियान फोटोग्राफी ने मनुष्‍य के सामने कुछ वैज्ञानिक तथ्‍य उजागर किये है। किरलियान ने मरते हुए आदमी के फोटो लिए, उसके शरीर से ऊर्जा के छल्‍ले बहार लगातार विसर्जित हो रहे थे, और वो मरने के तीन दिन बाद तक भी होते रहे। मरने के तीन दिन बाद जिसे हिन्‍दू तीसरा मनाता है। अब तो वह जलाने के बाद औपचारिक तौर पर उसकी हड्डियाँ उठाना ही तीसरा हो गया। यानि अभी जिसे हम मरा समझते है वो मरा नहीं है। आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते है तीन दिन बाद भी मनुष्‍य को जीवित कर सकेगें। और एक मजेदार घटना ओर किरलियान के फोटो में देखने को मिली। की जब आप क्रोध की अवस्‍था में होते हो तो तब वह ऊर्जा के छल्‍ले आपके शरीर से निकल रहे होत है। यानि क्रोध भी एक छोटी मृत्‍यु तुल्‍य है।
      एक बात और किरलियान ने अपनी फोटो से सिद्ध कि की मरने से ठीक छह महीने पहले ऊर्जा के छल्‍ले मनुष्‍य के शरीर से निकलने लग जाते है। यानि मरने की प्रक्रिया छ: माह पहले शुरू हो जाती है, जैसे मनुष्‍य का शरीर मां के पेट में नौ महीने विकसित होने में लेता है वैसे ही उसे मिटने के लिए छ: माह का समय चाहिए। फिर तो दुर्घटना जैसी कोई चीज के लिए कोई स्‍थान नहीं रह जाता,हां घटना के लिए जरूर स्‍थान है। भारत में हजारों साल से योगी मरने के छ:माह पहले आनी तिथि बता देते थे। ये छ: महा कोई संयोगिक बात नहीं है। इस में जरूर कोई रहस्‍य होना चाहिए। कुछ और तथ्‍य किरलियान ने मनुष्‍य के जीवन के सामने रखे, एक फोटो में उसने दिखाया है, छ:महा पहले जब उसने जिस मनुष्‍य को फोटो लिया तो उसके दायें हाथ में ऊर्जा प्रवाहित नहीं हो रही। यानि दाया हाथ उर्जा को नहीं दर्श रहा। जबकि दांया हाथ ठीक ठाक था,पर ठीक छ: माह बाद अचानक एक ऐक्सिडेन्ट के कारण उस आदमी का वह हाथ काटना पडा। यानि हाथ की ऊर्जा छ: महा पहले ही अपना स्‍थान छोड़ चुकी थी।
      भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्‍य के स्थूल शरीर कोई भी बिमारी आने से पहले आपके सूक्ष्‍म शरीर में छ: महा पहले आ जाती है। यानि छ: महा पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाये तो बहुत सी बिमारियों पर विजय पाई जा सकती है। इसी प्रकार भारतीय योग कहता है कि मृत्‍यु की घटना भी अचानक नहीं घटती वह भी शरीर पर छ: माह पहले से तैयारी शुरू कर देती है। पर इस बात का एहसास हम क्‍यों नहीं होता। पहली बात तो मनुष्‍य मृत्‍यु के नाम से इतना भयभीत है कि वह इसका नाम लेने से भी डरता है। दूसरा वह भौतिक वस्तुओं के साथ रहते-रहते इतना संवेदन हीन हो गया है कि उसने लगभग अपनी अतीद्रिय शक्‍तियों से नाता तोड़ लिया है। वरन और कोई कारण नहीं है। पृथ्‍वी को श्रेष्‍ठ प्राणी इतना दीन हीन। पशु पक्षी भी उससे अतीद्रिय ज्ञान में उससे कहीं आगे है। साइबेरिया में आज भी कुछ ऐसे पक्षि है जो बर्फ गिरने के ठीक 14 दिन पहले वहां से उड़ पड़ते है। न एक दिन पहले न एक दिन बाद। जापन में आज भी ऐसी चिडिया पाई जाती है। जो भुकम्‍पके12घन्‍टे पहले वहाँ  से गाय हो जाती है। और भी ने जाने कितने पशु पक्षि है जो अपनी अतीन्द्रिय शक्‍ति के कारण ही आज जीवित है।
      भारत में हजारों योगी मरने की तिथि पहले ही घोषित कर देते है। अभी ताजा घटना विनोबा भावे जी की है। जिन्‍होंने महीनों  पहले कह दिया था कि में शरत पूर्णिमा के दिन अपनी देह का त्‍याग करूंगा। ठीक महाभारत काल में भी भीष्‍म पितामह ने भी उसी शरद पूर्णिमा को अपने देह त्‍याग के लिए चुना था। कुछ तो हमारे स्थूल शरीर के उपर ऐसा घटता है। जिससे योगी जान जाते है कि अब हमारी मृत्‍यु के दिन करीब आ गया है। आम आदमी उस बदलाव को क्‍यों नहीं कर  पाता। क्‍योंकि वह अपने दैनिक कार्यो के प्रति सोया हुआ है। योगी थोड़ा सजग हुआ है। वह जागने का प्रयोग कर रहा है। इसी से उस परिर्वतन को वह देख पाता है महसूस कर पता है। एक उदाहरण। जब आप रात बिस्तरे पर सोने के लिए जाते है। सोते ओर निंद्रा के बीच में एक संध्या काल आता है, एक नियूटल गीयर, पर वह पल के हज़ारवें हिस्‍से के समान होता है। उसे देखने के लिए बहुत होश चाहिए। आपको पता ही नहीं चल पाता कि कब तक जागे ओर कब नींद में चले गये। पर योगी सालों उस पर मेहनत करता है। जब वह उस संध्‍या काल की अवस्था से परिचित हो जाता है। मरने के ठीक छ: महीने पहले मनुष्‍य के चित की वही अवस्‍था सारा दिन हो जाती है। तब योगी समझ जाता है अब मेरी बड़ी संध्‍या का समय आ गया। पर पहले उस छोटी संध्‍या के प्रति सजग होना पड़ेगा। तब महासंध्या के प्रति आप जान पायेंगे। और हमार पूरे शरीर का स्नायु तंत्र प्राण ऊर्जा का वर्तुल उल्‍टा कर देता है। यानि आप साँसे तो लेंगे पर उसमें प्राण तत्‍व नहीं ले रहे होगें। शरीर प्राण तत्‍व छोड़ना शुरू कर देता है।
      एक और बदलाव होता है। स्थूल तोर पर प्रत्‍येक मनुष्‍य उसे देख सकता है। मनुष्‍य की नाक की टिप्पस से ऊर्जा सबसे पहले गायब हो जाती है। यानि आप अपनी एक आँख पर हाथ रख कर जब नाक की चोंच देखेंगे तो वह गायब दिखाई देगी। नाक हमारी बड़ी संवेदन शील है। साधक इस का उपयोग अपनी अंतिम समय की तैयार के लिए करते है। वह जान जाते है मृत्‍यु अब जल्‍द आने वाली है। और वह अपनी शरीर से तादम्‍यता तोड़ना शुरू कर देते है। एक खास दूरी बनाना शुरू कर देते है। पर ये एक दम से नहीं हो सकता इसके लिए आपको पहले यह महसूस होना जरूरी चाहिए की मैं शरीर नहीं हूं। वरना तो आम आदमी तो मृत्‍यु का नाम सुन कर पहले ही अधमरा हो जाता है। तैयारी क्‍या खाक करेगा। जीवन वही जी सकता जो मृत्‍यु के लिए तैयार है। आपने नींद का सुख जाना है, देखा है नींद का सुख एक रस है तो मृत्‍यु  उसके आगे महारास है।
--स्‍वामी आनंद प्रसाद ‘’मनसा’’

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