कुल पेज दृश्य

सोमवार, 28 मई 2012

तंत्र-सूत्र—विधि-12

शिथिल होने की तीसरी विधि:
     जब किसी बिस्‍तर या आसमान पर हो तो अपने को वजनशून्‍य हो जाने दो—मन के पार।
     तुम यहां बैठे हो; बस भाव करो कि तुम वजनशून्‍य हो गए हो। तुम्‍हारा वज़न न रहा। तुम्‍हें पहले लगेगा कि कहीं यहां वज़न है। वजनशून्‍य होने का भाव जारी रखो। वह आता है। एक क्षण आता है। जब तुम समझोगे कि तुम वज़न शून्‍य हो। वज़न नहीं है। और जब वज़न शून्‍य नहीं रहा तो तुम शरीर नहीं रहे। क्‍योंकि वज़न शरीर का है; तुम्‍हारा नहीं, तुम तो वज़न शून्‍य हो।
      इस संबंध में बहुत प्रयोग किए गये है। कोई मरता है तो संसार भर में अनेक वैज्ञानिकों ने मरते हुए व्‍यक्‍ति का वज़न लेने की कोशिश की है। अगर कुछ फर्क हुआ, अगर कुछ चीज शरीर के बहार निकली है, कोई आत्‍मा या कुछ अब वहां नहीं है। क्‍योंकि विज्ञान के लिए कुछ भी बिना वज़न के नहीं है।
      सब पदार्थ के लिए वज़न बुनियादी है। सूर्य की किरणों का भी वज़न है। वह अत्‍यंत कम है, न्‍यून है, उसको मापना भी कठिन है; लेकिन वैज्ञानिकों ने उसे भी मापा है। अगर तुम पाँच वर्ग मील के क्षेत्र पर फैली सब सूर्य किरणों को इकट्ठा कर सको तो उनका वज़न एक बाल के वज़न के बराबर होगा। सूर्य किरणों का भी वज़न है। वे तौली जा सकती है। विज्ञान के लिए कुछ भी वज़न के बिना नहीं है। और अगर कोई चीज वज़न के बिना है तो वह पदार्थ नहीं, उप पदार्थ। और विज्ञान पिछले बीस पच्‍चीस वर्षो तक विश्‍वास करता था कि पदार्थ के अतिरिक्‍त कुछ नहीं है। इसलिए जब कोई मरता है और कोई चीज शरीर से निकलती है तो वज़न में फर्क पड़ना चाहिए।
      लेकिन यह फर्क कभी न पडा, वज़न वही का वही रहा। कभी-कभी थोड़ा बढ़ा ही है। और वह समस्‍या है। जिंदा आदमी का वज़न कम हुआ, मुर्दा का ज्‍यादा। उसमे उलझने बढ़ी, क्‍योंकि वैज्ञानिक तो यह पता लेने चले थे कि मरने पर वज़न घटता है। तभी तो वे कह सकते है कि कुछ चीज बाहर गई। लेकिन वहां तो लगता है। कि कुछ चीज अंदर ही आई। आखिर हुआ क्‍या।
      वज़न पदार्थ का है, लेकिन तुम पदार्थ नहीं हो। अगर वजन शून्यता की हम विधि का प्रयोग करना है तो तुम्‍हें सोचना चाहिए। सोचना ही नहीं, भाव करना चाहिए कि तुम्‍हारा शरीर वजनशून्य हो गया है। अगर तुम भाव करते ही गए। भाव करते ही गए। तो तुम वजनशून्य हो, तो एक क्षण आता है कि तुम अचानक अनुभव करते हो कि तुम वज़न शुन्‍य हो गये। तुम वजनशून्य ही हो। इसलिए तुम किसी समय भी अनुभव कर सकते हो। सिर्फ एक स्‍थिति पैदा करनी है। जिसमें तुम फिर अनुभव करो कि तुम वजनशून्‍य हो। तुम्‍हें अपने को सम्‍मोहन मुक्‍त करना है।
      तुम्‍हारा सम्‍मोहन क्‍या है? सम्मोह न यह है कि तुमने विश्‍वास किया है कि मैं शरीर हूं, और इसलिए वज़न अनुभव करते हो। अगर तुम फिर से भाव करों, विश्‍वास करो कि मैं शरीर नहीं हूं, तो तुम वज़न अनुभव नहीं करोगे। यही सम्‍मोहन मुक्‍ति है कि जब तुम वज़न अनुभव नहीं करते तो तुम मन के पार चले गए।
      शिव कहते है: ‘’जब किसी बिस्‍तर या आसन पर हो तो अपने को वजनशून्‍य हो जाने दो—मन के पार।‘’ तब बात घटती है।
      मन का भी वज़न है। प्रत्‍येक आदमी के मन का वज़न है। एक समय कहा जाता था कि जितना वज़नी मस्‍तिष्‍क हो उतना बुद्धिमान होता है। और आमतौर से यह बात सही है। लेकिन हमेशा सही नहीं है। क्‍योंकि कभी-कभी छोटे मस्‍तिष्‍क के भी महान व्‍यक्‍ति हुए है। और महा मूर्ख मस्‍तिष्‍क भी वज़नी होते है।
      कुछ बातें। कभी-कभी मुर्दो का वज़न क्‍यों बढ़ जाता है। ज्‍यों ही चेतना शरीर को छोड़ती है कि शरीर असुरक्षित हो जाता है। बहुत सी चीजें उसमें प्रवेश कर जा सकती है। तुम्‍हारे कारण वे प्रवेश नहीं कर सकती है। एक शिव में उनके तरंगें प्रवेश कर सकती है। तुममें नहीं कर सकती है। तुम यहां थे, शरीर जीवित था। वह अनेक चीजों से बचाव कर सकता था। यही कारण है कि तुम एक बार बीमार पड़े कि यह एक लंबा सिलसिला हो जाता है। एक के बाद दूसरी बीमारी आती चली जाती है। एक बार बीमार होकर तुम असुरक्षित हो जाते हो। हमले के प्रति खुल जाते हो। प्रतिरोध जाता रहता है। तब कुछ भी प्रवेश कर सकता है। तुम्‍हारी उपस्‍थिति शरीर की रक्षा करती है। इसलिए कभी-कभी मृत शरीर का वज़न बढ़ सकता है। क्‍योंकि जिस क्षण तुम उससे हटते हो, उसमे कुछ भी प्रवेश कर सकता है।
      दूसरी बात है कि जब तुम सुखी होते हो तो तुम वजनशून्‍य अनुभव करते हो। और दुःखी होते हो तो वज़न अनुभव करते हो। लगता है कि कुछ तुम्‍हें नीचे को खींच रहा है। तब गुरुत्वाकर्षण बहुत बढ़ जाता है। दुःख की हालत में वज़न बढ़ जाता है। जब तुम सुखी होते हो तो हलके होते हो, तुम ऐसा अनुभव करते हो। क्‍यों? क्‍योंकि जब तुम सुखी हो, जब तुम आनंद का क्षण अनुभव करते हो। तो तुम शरीर को बिलकुल भूल जाते हो। और जब उदास होते हो, दुःखी होते हो तब, शरीर के अति निकट आ जाते हो। उसे भूल नहीं पाते। उससे जूड़ जाते हो। तब तुम भार अनुभव करते हो। ये भार तुम्‍हारा नहीं है, तुम्‍हारे शरीर से चिपकने का है, शरीर का है। वह तुम्‍हें नीचे की और खींच रहा है। जमीन की तरफ खींचता है, मानों तुम जमीन में गड़े जा रहे हो।  सुख में तुम निर्भार होते हो। शोक में, विषाद में वज़नी हो जाते हो।
      इसलिए गहरे ध्‍यान में, जब तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल जाते हो, तुम जमीन से ऊपर हवा में उठ सकते हो। तुम्‍हारे साथ तुम्‍हारा शरीर भी ऊपर उठ सकता है। कई बार ऐसा होता है।
      बोलिविया में वैज्ञानिक एक स्‍त्री का निरीक्षण कर रहे है। ध्‍यान करते हुए वह जमीन से चार फीट ऊपर उठ जाती है। अब तो यह वैज्ञानिक निरीक्षण की बात है। उसके अनेक फोटो और फिल्‍म लिए जा चुके हे। हजारों दर्शकों के सामने वह स्‍त्री अचानक ऊपर उठ जाती है। उसके लिए गुरुत्वाकर्षण व्‍यर्थ हो जाता है। अब तक इस बात की सही व्‍याख्‍या नहीं की जा सकी है कि क्‍यों होता है। लेकिन वह स्‍त्री गैर-ध्‍यान की अवस्‍था में ऊपर नहीं उठ सकती। या अगर उसके ध्‍यान में बाधा हो जाए तो भी वह ऊपर से झट नीचे आ जाती है। क्‍या होता है?
            ध्‍यान की गहराई में तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल जाते हो। तादात्‍म्‍य टूट जाता है। शरीर बहुत छोटी चीज है और तुम बहुत बड़े हो। तुम्‍हारी शक्‍ति अपरिसीम है। तुम्‍हारे मुकाबले में शरीर तो कुछ भी नहीं है। यह तो ऐसा ही है कि जैसे एक सम्राट ने अपने गुलाम के साथ तादात्‍म्‍य स्‍थापित कर लिया है। इसलिए जैसे गुलाम भीख मांगता है। वैसे ही सम्राट भी भीख मांगता है। जैसे गुलाम रोता है। वैसे ही सम्राट भी रोता है। और जब गुलाम कहता है कि मैं ना कुछ हूं तो सम्राट भी कहता है। मैं ना कुछ हूं लेकिन एक बार सम्राट अपने अस्‍तित्‍व को पहचान ले, पहचान ले कि वह सम्राट है और गुलाम बस गुलाम है, से कुछ बदल जाएगा। अचानक बदल जाएगा।
      तुम वह अपरिसीम शक्‍ति हो जो क्षुद्र शरीर से एकात्‍म हो गई है। एक बार यह पहचान हो जाए, तुम अपने स्‍व को जान लो, तो तुम्‍हारी वजन शून्यता बढ़ेगी। और शरीर का वज़न घटेगा। तब तुम हवा मैं उठ सकते हो, शरीर ऊपर जा सकता है।
      ऐसी अनेक घटनाएं है जो अभी साबित नहीं की जा सकती। लेकिन वे साबित होंगी। क्‍योंकि जब एक स्‍त्री चार फीट ऊपर उठ सकती है। तो फिर बाधा नहीं। दूसरा हजार फीट ऊपर उठ सकता है। तीसरा अनंत अंतरिक्ष में पूरी तरह जा सकता है। सैद्धांतिक रूप से यह काई समस्‍या नहीं है। चार फीट ऊपर उठे कि चार सौ फीट कि चार हजार फीट, इससे क्‍या फर्क पड़ता है।
      राम तथा कई अन्‍य के बारे में कथाएं है कि वे शरीर विलीन हो गए थे। अनेक मृत शरीर इस धरती पर कहीं नहीं पाए गए। मोहम्‍मद बिलकुल विलीन हो गए थे। शरीर ही नहीं आपने घोड़ के साथ। वे कहानियां असंभव मालूम पड़ती है। पौराणिक मालूम पड़ती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि वे मिथक ही हों। एक बार तुम वज़न शून्‍य शक्‍ति को जान जाओ। तो तुम गुरुत्वाकर्षण के मालिक हो गए। तुम उसका  उपयोग भी कर सकते हो, यह तुम पर निर्भर करता हे। तुम सशरीर अंतरिक्ष में विलीन हो सकत हो।
      लेकिन हमारे लिए वज़न शून्‍यता समस्‍या रहेगी। सिद्घासन की विधि है। जिस में बुद्ध बैठते है, वजनशून्‍य होने की सर्वोतम विधि है। जमीन पर  बैठो, किसी कुर्सी या अन्‍य आसन पर नहीं। मात्र जमीन पर बैठो। अच्‍छा हो कि उस पर सीमेंट या कोई कृत्रिमता नहीं हो। जमीन पर बैठो कि तुम प्रकृति के निकटतम रहो। और अच्‍छा हो कि तुम नंगे बैठो। जमीन पर नंगे बैठो—बुद्धासन में, सिद्घासन में।
      वज़न शून्‍य होने के लिए सिद्घासन सर्वश्रेष्‍ठ आसन है। क्यों? क्‍योंकि जब तुम्‍हारा शरीर इधर-उधर झुका होता है तो तुम ज्‍यादा वज़न अनुभव करते हो। तब तुम्‍हारे शरीर को गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होने के लिए ज्‍यादा क्षेत्र है। यदि मैं इस कुर्सी पर बैठा हूं तो मेरे शरीर का बड़ा क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होता है। जब तुम खड़े हो तो प्रभावित क्षेत्र कम हो जाता है। लेकिन बहुत देर तक खड़ा नहीं रहा जा सकता है। महावीर सदा खड़े-खड़े ध्‍यान करते थे, क्‍योंकि उस हालत में गुरुत्वाकर्षण का न्‍यूनतम क्षेत्र घेरता है। तुम्‍हारे पैर भर जमीन को छूते है। जब पाँव पर खड़े हो तो गुरुत्वाकर्षण तुम पर न्‍यूनतम प्रभाव करता है। और गुरुत्वाकर्षण की वज़न है।
      पाँवों और हाथों को बांधकर सिद्घासन में बैठना ज्‍यादा कारगर होता है। क्‍योंकि तब तुम्‍हारी आंतरिक विद्युत एक वर्तुल बन जाती है। रीढ़ सीधी रखो। अब तुम समझ सकते हो कि सीधी रीढ़ रखने पर इतना जोर क्‍या दिया जाता है। क्‍योंकि सीधी रीढ़ से कम से कम जगह घेरी जाती है। तब गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम रहता है। आंखे बंद रखते हुए अपने को पूरी तरह संतुलित कर लो, अपने को केंद्रित कर लो। पहले दाई और झुककर गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करो। फिर बाई और झुककर गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करो। तब उस केंद्र को खोजों जहां गुरुत्वाकर्षण या वज़न कम से कम अनुभव होता है। और उस स्‍थिति में थिर हो जाओ।
      और तब शरीर को भूल जाओ और भाव करो कि तुम वज़न नहीं हो। तुम वज़न शून्‍य हो। फिर इस वज़न शून्‍यता का अनुभव करते रहो। अचानक तुम वज़न शून्‍य हो जाते हो। अचानक तुम शरीर नहीं रह जाते हो, अचानक तुम शरीर शून्‍यता के एक दूसरे ही संसार में होते हो।
      वज़न शून्‍यता शरीर शून्‍यता है। तब तुम मन का भी अतिक्रमण कर जाते हो। मन भी शरीर का हिस्‍सा है, पदार्थ का हिस्‍सा है। पदार्थ का वज़न होता है। तुम्‍हारा कोई वज़न नहीं है। इस विधि का यही आधार है।
      किसी भी एक विधि को प्रयोग में लाओ। लेकिन कुछ दिनों तक उसमे लगे रहो। ताकि तुम्‍हें पता हो क वह तुम्‍हारे लिए कारगर है या नहीं।
 ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र
(तंत्र-सूत्र—भाग-1)
प्रवचन-7

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें