आत्म-स्मरण
की पहली विधि--
‘’हे
कमलाक्षी, हे,
सुभगे, गाते
हुए, देखते
हुए, स्वाद
लेते हुए यह
बोध बना रहे
कि मैं हूं, और
शाश्वत
आविर्भूत
होता है।‘’
हम है,
लेकिन हमें
बोध नहीं है
कि हम है।
हमें आत्म-स्मरण
नहीं है। तुम
खा रहे हो, या
तुम स्नान कर
रहे हो, या टहल
रहे हो। लेकिन
टहलते हुए तुम्हें
इका बोध नहीं
है कि मैं
हूं। सजग नहीं
हो कि मैं हूं
सब कुछ है,
केवल तुम नहीं
हो। झाड़ है,
मकान है, चलते
रास्ते है,
सब कुछ है; तुम
अपने चारों और
की चीजों के प्रति
सजग हो, लेकिन
सिर्फ अपने
होने के प्रति
कि मैं हूं,
सजग नहीं हो।
लेकिन अगर तुम
सारे संसार के
प्रति भी सजग
हो और अपने
प्रति सजग नहीं
हो तो सब
सजगता झूठी
है। क्यों? क्योंकि
तुम्हारा मन
सबको
प्रतिबिंबित
कर सकता है।
लेकिन वह तुम्हें
प्रतिबिंबित
नहीं कर सकता।
और अगर तुम्हें
अपना बोध है
तो तुम मन के
पार चले गए।