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शनिवार, 23 जुलाई 2016

फिर अमरित की बूंद पड़ी--(प्रवचन--01)

मैं स्वतंत्र आदमी हूं—(पहला—प्रवचन)

31 जुलाई 1986 प्रातः सुमिला, जुहू बंबई

ड़े दुख भरे हृदय से मुझे आपको बताना है कि आज हमारे पास जो आदमी है, वह इस योग्य नहीं है कि उसके लिए लड़ा जाए।

टूटे हुए सपनों, ध्वस्त कल्पनाओं और बिखरी हुई आशाओं के साथ मैं वापस लौटा हूं। जो मैंने देखा वह एक वास्तविकता है, और अपने पूरे जीवन भर जो कुछ मैं मनुष्य के विषय में सोचता रहा, वह केवल उसका मुखौटा था। मैं आपको थोड़े से उदाहरण दूंगा, क्योंकि यदि मैं अपनी पूरी विश्व यात्रा का वर्णन सुनाने लगूं तो इसमें करीब-करीब एक माह लग जाएगा। इसलिए कुछ महत्वपूर्ण बातें ही आपसे कहूंगा, जो कुछ संकेत दे सकें।

मुझसे पहले, पूरब से विवेकानंद, रामतीर्थ, कृष्णमूर्ति तथा सैकड़ों अन्य लोग दुनिया भर में गए हैं लेकिन उनमें से एक भी व्यक्ति पूरे विश्व द्वारा इस भांति निंदित नहीं किया गया जिस भांति मैं निंदित किया गया हूं; क्योंकि उन सभी ने राजनीतिज्ञों जैसा व्यवहार किया। जब वे किसी ईसाई देश में होते तो ईसाइयत की प्रशंसा करते और मुस्लिम देश में वे इस्लाम की प्रशंसा करते। स्वभावतः किसी ईसाई देश में यदि पूरब का कोई आदमी, जो कि ईसाई नहीं है, ईसा मसीह की गौतम बुद्ध की तरह प्रशंसा करता है तो ईसाई प्रसन्न होते हैं, अत्यंत प्रसन्न होते हैं। और इनमें से एक भी व्यक्ति ने पश्चिम के एक भी ईसाई को पूरब के जीवन दर्शन में, पूरब की जीवन-शैली में नहीं बदला। इसी दौरान पश्चिम से ईसाई मिशनरी यहां आते रहे और लाखों लोगों को ईसाई बनाते रहे।
शायद मैं पहला अकेला व्यक्ति हूं जिसने हजारों युवा शिक्षित, बुद्धिमान पश्चिमी लोगों को पूर्वी चिंतन और शैली में दीक्षित किया। और इससे पश्चिमी धार्मिक व राजनीतिक न्यस्त स्वार्थों को इस कदर धक्का लगा जो अविश्वसनीय है। यदि मैंने स्वयं इसका अनुभव न किया होता तो मैंने भी इस बात पर भरोसा नहीं किया होता।
सभी यूरोपीय देशों की एक संसद है, उस संसद ने यह निर्णय लिया है कि मेरा वायुयान यूरोप के किसी हवाई अड्डे पर नहीं उतर सकता। उनके देशों में मेरे प्रवेश का तो अब प्रश्न ही नहीं उठता। यहां तक कि उनके हवाई अड्डों पर ईंधन के लिए भी मेरा वायुयान नहीं उतर सकता और इसका कारण यह बताया गया कि मैं एक खतरनाक आदमी हूं। मुझे यह तर्क समझ में नहीं आता कि वायुयान के लिए ईंधन लेने के 15 मिनट के भीतर मैं किसी को क्या खतरा पहुंचा सकता हूं।
मैं रात के 11 बजे इंग्लैंण्ड पहुंचा, पायलट के काम का समय पूरा हो चुका था, और उसे 12 घण्टे के लिए विश्राम करना था। फिर भी वे मुझे हवाई अड्डे पर विश्राम करने की भी अनुमति नहीं दे रहे थे। मैंने उन्हें बताया कि हवाई अड्डे पर आगे जाने वाले यात्रियों के विश्राम के लिए विशेष सुविधाएं रहती हैं जहां वे कुछ घण्टे विश्राम कर सकते हैं और फिर अपनी यात्रा पर निकल जाते हैं। और मैं इंग्लैंण्ड में प्रवेश नहीं करने वाला हूं। लेकिन उन्होंने कहा कि हमें खेद है, ऊपर से ये आदेश दिए गए हैं कि यह व्यक्ति खतरनाक है। यह व्यक्ति तुम्हारे धर्म को नष्ट कर सकता है। यह व्यक्ति तुम्हारी नैतिकता को मिटा सकता है। इस व्यक्ति को देश में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए।
मैंने कहा भी कि मैं तुम्हारे देश में प्रवेश नहीं कर रहा हूं, हवाई अड्डा तो देश नहीं है। और मेरी समझ में नहीं आता कि हवाई अड्डे पर पांच-छह घंटे सोने से मैं किस तरह तुम्हारी नैतिकता को, तुम्हारे धर्म को, तुम्हारी परंपरा को नष्ट कर सकता हूं। और यदि यह संभव है कि एक आदमी हवाई अड्डे पर प्रथम श्रेणी के विश्राम कक्ष में छह घंटे की नींद से ही एक ऐसे धर्म और नैतिकता को नष्ट कर दे जिसका तुम पिछले दो हजार वर्षों से प्रचार करते आ रहे हो तो वह धर्म और नैतिकता इस योग्य है कि उसे नष्ट कर दिया जाए।
और दूसरे दिन ही ब्रिटेन की संसद में जब यह प्रश्न पूछा गया कि मुझे क्यों रोका गया तो वही उत्तर मिला कि मैं नैतिकता के लिए, धर्म के लिए, परंपरा के लिए खतरा हूं और आश्चर्य की बात तो यह है कि पूरी संसद में एक आदमी ने भी यह नहीं पूछा कि किस प्रकार आधी रात थक कर सोया हुआ व्यक्ति जो सुबह छह बजे आगे यात्रा पर निकल जाने वाला है, तुम्हारी ईसाइयत को नष्ट कर सकता है, जिसकी शिक्षा तुम पिछले 2000 वर्षों से हर बच्चे को बचपन से ही देते आ रहे हो, उसमें संस्कारित करते आ रहे हो। यदि 2000 वर्षों की शिक्षा छह घंटे में ही नष्ट की जा सकती हो तो फिर तुम्हारी उस शिक्षा में जरूर कुछ दोष होगा।
यहां तक कि उन देशों की संसदों ने भी जहां मुझे जाना ही नहीं था यह निर्णय लिया कि मुझे उन देशों में प्रवेश की अनुमति न दी जाए।
दक्षिणी अमरीका के एक छोटे-से देश उरुग्वे ने मुझे अनुमति दी, क्योंकि उस देश के राष्ट्रपति मेरी पुस्तकों को पढ़ते रहे हैं, मेरे टेप सुनते रहे हैं। वे एक युवा बुद्धिमान व्यक्ति हैं। उन्होंने मुझे रहने के लिए छह महीने का वीसा दिया। वह मुझसे मिलना चाहते थे। लेकिन जैसे ही मैंने उरुग्वे में प्रवेश किया कि उरुग्वे पर अमरीकी दबाव एकदम बढ़ गया।
अमरीकी राष्ट्रपति ने उरुग्वे के राष्ट्रपति को कहा कि यदि मुझे 36 घंटे के अंदर देश के बाहर नहीं निकाला गया तो उन्हें उरूग्वे को अतीत में दिया गया ऋण जो कि करोड़ों डालर है तुरंत चुकाना पड़ेगा। और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उस पर ब्याज की दर कल से ही दोगुनी हो जाएगी।
और दूसरी बात यह कि उरुग्वे के साथ करोड़ों डालर के आगामी पांच वर्षों के लिए सहायतार्थ जो समझौते किए गए हैं वे भी रद्द कर दिए जाएंगे। अब आप ही चुनाव करें। आप चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। आपको हमारे सहयोग और इस व्यक्ति के बीच चुनाव करना होगा।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा, मुझे बताया गया कि आंसू-भरी आंखों से उरुग्वे के राष्ट्रपति ने यह कहा कि भगवान के उरुग्वे आगमन से हमें अंतर्दृष्टि मिली है, कम से कम इससे एक बात तो साफ हो गई कि हम स्वतंत्र नहीं हैं। मुझे 36 घंटों के भीतर ही उरुग्वे छोड़ना पड़ा। क्योंकि उरुग्वे जैसे एक छोटे से देश के लिए यह संभव नहीं है कि वह लाखों डालर का ऋण भुगतान कर सके और भविष्य में मिलने वाले ऋणों के बिना काम चला सके। मैंने स्वयं ही उरुग्वे के राष्ट्रपति को का कि आप चिंतित न हों, मुझे आपकी स्थिति का एहसास है। यदि आप मुझे यहां से वापस भेजते हैं तो आपको ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए मैं खुद ही जा रहा हूं ताकि आपको कुछ खराब न लगे।
और जैसे ही मैंने उरुग्वे छोड़ा उरुग्वे के राष्ट्रपति को वाशिंग्टन से अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की मुलाकात करने के लिए निमंत्रण दिया गया। अमरीका पहुंचने पर उरुग्वे के राष्ट्रपति का शानदार स्वागत हुआ, और 36 करोड़ डालर का उन्हें शीघ्र ऋण दिया गया जिसके लिए पहले से कोई समझौता नहीं था। यह पुरस्कार था।
ऐसा लगाता है कि पुराने ढंग की गुलामी तो मिट चुक है। मानवता राजनैतिक रूप से अब गुलाम नहीं है, लेकिन एक और बड़ी गुलामी, आर्थिक गुलामी प्रवेश कर चुकी है।
मैं करीब-करीब पूरी दुनिया में घूमा हूं। हर बार हर देश में एक ही कहानी दोहराई गई...जब तक मैं किसी देश में पहुंचूं कि मेरे पहले ही वहां पहुंच जाता ताकि वे उस देश के राष्ट्रपति से, प्रधान मंत्री से संपर्क कर सकें और उनका खतरे से आगाह कर सकें।
उरुग्वे के राष्ट्रपति ने मुझे सूचना दी है कि यह बेहतर होगा कि मैं अपनी विश्व यात्रा रोक दूं, क्योंकि वे मेरे जीवन के विषय में चिंतित हैं। राष्ट्रपति ने बताया कि व्हाइट हाउस में उन्होंने यह सुना कि 5 लाख डालर पर एक हत्यारे को मुझे जान से मारने लिए भाड़े पर लिया गया है। मैं एक अकेला निहत्था आदमी हूं। और पूरे विश्व इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी शक्ति रखने वाला देश एक अकेले निहत्थे आदमी से इतना डरा हुआ है।
अमरीकी के एटार्नी जनरल ने समाचार पत्र प्रतिनिधियों से कहा कि वे मेरा नाम भी सुनना नहीं चाहते, वह किसी भी समाचार पत्र व पत्रिका में मेरा चित्र नहीं देखना चाहते हैं, वह यह भी नहीं जानना चाहते कि मैं जीवित हूं या नहीं। मेरा नामोनिशां पूरी तरह मिटा दिया जाना चाहिए। और मैंने अपराध क्या किया है? नहीं, केवल सोच-विचार करना सबसे बड़ा अपराध है, और लोगों को यह दिखाना कि तुम गलत हो सबसे बड़ा अपराध है।
ग्रीस के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर मैं ग्रीस में था। मैंने यह निमंत्रण इसलिए स्वीकार किया कि मैं देखना चाहता था कि आखिर वे लोग कौन हैं जिन्होंने सुकरात जैसे व्यक्ति की हत्या कर दी। हमने तो यहां गौतम बुद्ध की पूजा की। और ये दोनों महापुरुष समसामयिक थे। दोनों में एक जैसी प्रखर मेधा थी। दोनों के पास वह चेतना थी जो मनुष्य के अस्तित्व के तल को ऊंचा उठा सके। हमने तो गौतम बुद्ध की पूजा की और ग्रीस ने सुकरात को जहर दे दिया। मैं देखना चाहता था कि ये लोग कैसे हैं।
मैं एक माह का वीसा मिला था। और 15 दिन के भीतर ही ग्रीस में आर्चरशिप ने यह घोषणा कर दी कि यदि मुझे ग्रीस से तत्काल बाहर नहीं निकाला गया तो वे, जिस घर में मैं मेहमान था उस घर में मुझे मेरे सभी मित्रों के साथ जीवित जला देंगे।
जिस समय पुलिस पहुंची मैं सो रहा था। दो सप्ताह बीत चुके थे और मुझे केवल दो सप्ताह और वहां रहना था। ग्रीस में जो मेरी सचिव थी उसने पुलिस को कहा कि आप प्रतीक्षा कक्ष में बैठें, मैं उन्हें जगा देती हूं। जरा उन्हें मुंह हाथ धो लेने दें, कपड़े बदल लेने दें। लेकिन उन्होंने पांच मिनिट भी इंतजार करने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि वे घर को आग लगा देंगे और यह कि हम अपने साथ डायनामाइट लाए हैं और हम घर को डायनामाइट से उड़ा देंगे। उन्होंने डायनामाइट भी दिखाया। और उन्होंने मेरी सचिव को एक ऊंचे स्थान से पथरीली सड़क पर धक्का देकर गिरा दिया। वे उसे पुलिस की गाड़ी तक बिना किसी गिरफ्तारी के वारंट के, बिना किसी कारण घसीटते हुए ले गए। उसका अपराध सिर्फ इतना था कि उसने उनसे यह कहा था कि कृपया पांच मिनट प्रतीक्षा करें, जरा मैं उनका जगा दूं।
मैं अचानक उठा और जो कुछ मैंने देखा उस पर मैं भरोसा नहीं कर सका क्योंकि मैं कभी दुस्वप्न नहीं दुखता हूं। ऐसा लगा कि कि बम विस्फोट हो रहा है, पुलिस ने घर के दरवाजों पर खिड़कियों पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए थे। घर में पत्थर आ रहे थे।
मैं भागकर नीचे पहुंचा और पूछा कि आखिर बात क्या है। उन्होंने मुझसे कहा कि आपको इसी क्षण यहां से जाना होगा, क्योंकि आर्थोडाक्स क्रिश्चियन चर्च के आर्चबिशप यह नहीं चाहते कि आप यहां रहें। मैंने कहा, ठीक है। मैं अपनी मर्जी से यहां नहीं आया हूं। मुझे यहां आने का निमंत्रण दिया गया था। यह ग्रीस के राष्ट्रपति का अपमान है और मेरा भी। मुझे तो इस बात का प्रमाण मिल गया है कि तुम ही वे लोग हो, जिन्होंने निश्चय ही सुकरात को जान से मार दिया होगा। क्योंकि मैं यहां केवल अभी दो सप्ताह से ही हूं और मैं कभी इस घर से बाहर नहीं निकला। सुकरात तो पूरे जीवन भर यहां रहा। इन पच्चीस शताब्दियों मैं तुम जरा भी नहीं बदले हो, तुम अभी भी जंगली, दुष्ट हो।
मैं पूरी दुनिया में घूमता रहा, एक के बाद एक इसी तरह के अनुभव हुए। सारा लोकतंत्र नकली है। सभी स्वतंत्रता के सिद्धांत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत झूठे हैं। यह आशा कि किसी दिन मनुष्य मानव बनेगा, एक बहुत दूर का तारा मालूम पड़ती है।
मैंने हमेशा ही अहिंसा में विश्वास किया है, शांति में विश्वास किया है। लेकिन इस विश्व यात्रा के बाद मुझे यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि अब शांति और अहिंसा में मेरा भरोसा नहीं रहा। मैं तृतीय विश्व युद्ध के खिलाफ था, लेकिन बड़ी ही पीड़ा के साथ मुझे आपसे यह कहना पड़ रहा है कि शायद तृतीय महायुद्ध की जरूरत है। यह मानवता इतनी सड़ी गली है कि इसे नष्ट ही हो जाना चाहिए। कम-से-कम दुनिया का कुरूप आदमियों से तो मुक्त हो जाना चाहिए। मानव-चेतना के विकास के लिए अस्तित्व को कोई और ढंग खोजना होगा।
और वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्मांड में कम-से-कम 50,000 ग्रह हैं, जहां जीवन है। अतः यदि इस कि सी धरती पर से जीवन विदा हो जाए तो कोई हर्ज नहीं है।
इस प्रकार का जीवन मनुष्य जीवन नहीं है। और डारविन बिलकुल गलत है, जब वह कहता है कि आदमी बंदर से विकसित हुआ है। आदमी अभी भी बंदर ही है। शायद वह पेड़ से गिर गया है। उसका विकास नहीं हुआ है, पतन हुआ है।
आज से मेरा कार्य कुछ थोड़े से उन व्यक्तियों के लिए होगा, जो ध्यान में, शांति में, मौन में गति करना चाहते हैं। और मैं इस मानवता के लिए और इस ग्रह के लिए सभी आशाएं छोड़ता हूं। यह पृथ्वी गंदे हाथों में है, और इस को बदलना असंभव है, क्योंकि सारी सत्ता इनके पास है।
मेरे अपने ही देश में, कल ही जब मैंने हवाई अड्डे में प्रवेश किया तो वहां लिखा था, भारत में आपका स्वागत है। मेरे पास कोई सामान नहीं था। मेरे पास अधिकारियों के सामने घोषित करने योग्य वस्तु नहीं थी। और फिर भी मुझे वहां तीन घंटों तक रुकना पड़ा। और मैंने यह बार-बार यह पूछा भी कि एक भारतीय का यह कैसा स्वागत है। मैं कोई टूरिस्ट नहीं हूं।
इस गंदी नौकरशाही ने, इन गंदी सरकारों ने, इन गंदे धर्मों ने एक सुंदर ग्रह को भ्रष्ट कर दिया है।
मैंने आपको सिर्फ यह कहने के लिए बुलाया है कि मैंने पूरी तरह निराश हो चुका हूं, मेरे सारे भ्रम टूट गए हैं। अब मैं केवल उन व्यक्तियों के लिए जीऊंगा, जो व्यक्तिगत रूप से विकास करना चाहते हैं, क्योंकि पूरी मानवता के लिए अब कोई भी आशा नहीं है। मैं एक ही आशा करता हूं कि तृतीय महायुद्ध जितनी जल्दी हो उतना अच्छा। हम लोग इस कूड़े-करकट से हाथ धो लें।
अब आप अपने प्रश्न पूछ सकते हैं।

आप भारत आकर प्रसन्न हैं?
हां

क्या हमेशा के लिए? पहली बात यह है कि आप यहां से गए ही क्यों थे?
तुम्हारे कारण।
पिछले तीस वर्षों से मैं भारत में कार्य करता रहा हूं। इस दौरान पश्चिम से हजारों लोग मुझे सुनने के लिए भारत आने लगे। उन्होंने मुझे उनके देश में आने का निमंत्रण दिया। मैंने सोचा कि पूर्व के लिए यह एक अच्छा अवसर है...क्योंकि पश्चिम का पूर्व पर प्रभुत्व रहा है। सैकड़ों वर्षों से पश्चिम ने भौतिक रूप से, राजनैतिक रूप से गुलाम बना कर रखा है। पूर्व की ओर से इसका एक ही उत्तर हो सकता है कि वह पश्चिम पर आध्यात्मिक विजय पाए। इसलिए मैं वहां गया था।
वे हमें रोटी दे सकते हैं हम उन्हें आत्मा दे सकते हैं। वे हमें रहने के लिए आश्रय दे सकते हैं, लेकिन हम उन्हें जीवन दे सकते हैं। वे खोखले हैं, उनके भीतर कुछ भी नहीं है। हम भले ही गरीब हों लेकिन आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हैं। लेकिन पश्चिम इस प्रयास में लगा है कि हम निर्धन से निर्धनता होते चले जाएं, क्योंकि सिर्फ गरीब लोगों को ही ईसाई बनाया जा सकता है।
और वे सब के सब मेरे दुश्मन बन गए। क्योंकि मेरी बातें गरीबों को, अनाथों को, भिखारियों को नहीं, बल्कि प्राफेसरों, चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, कलाकारों, संगीतज्ञों को, जो वहां के श्रेष्ठतम प्रतिभाशाली लोग हैं, उनको प्रभावित कर रही थीं। उनके लिए यह एक गंभीर अपमानजनक बात थी। अन्यथा पूरी दुनिया में इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि एक व्यक्ति के खिलाफ पूरी दुनिया खड़ी हो। इन अर्थों में मैं सौभाग्यशाली हूं।
(सुना नहीं जा सका)
इसका कारण बहुत सीधा है। हरे कृष्ण आंदोलन ने क्राइस्ट के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। इसके विपरीत हरे कृष्ण आंदोलन ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि क्राइस्ट सिर्फ कृष्ण का ही दूसरा नाम है। बंगला भाषा में बहुत से लोगों के नाम हैं कृष्टो, जो कृष्ण का ही एक रूप है। हरे कृष्ण आंदोलन के लोग पश्चिम को यही समझाते रहे हैं कि क्राइस्ट सिर्फ कृष्ण का ही दूसरा नाम है। स्वभावतः लोग खुश हुए। उन्हें कोई कठिनाई न थी।
कृष्णमूर्ति ने कभी किसी धर्म का नाम लेकर न तो निंदा की, न आलोचना की। यह शुद्ध राजनीति है। विवेकानंद ने ईसाइयत की उतनी ही प्रशंसा की है, जितनी अन्य किसी बात की। फिर वे लोग क्यों इनके खिलाफ होते? मैं सिर्फ सत्य कहता हूं। मैं वह नहीं कहता हूं, जो तुम सुनना चाहते हो, मैं तो जो वास्तविकता है, उसे ही कह रहा हूं।
मैं यह नहीं कह सकता कि जीसस पानी पर चले। यह बकवास है। यदि यह सच है तो पोप को कम से कम स्वीमिंग पूल पर तो चल कर दिखाना ही चाहिए। जीसस क्राइस्ट के प्रतिनिधि होने के नाते उन्हें म से कम एक छोटा सा उदाहरण तो देना चाहिए। जीसस का जन्म एक कुंआरी कन्या के गर्भ से हुआ। इसे वे नैतिकता कहते हैं।
अभी कल ही मैं एक मजाक पढ़ रहा था। एक सत्रह वर्षीय युवती गर्भवती हो गई। इस से उसकी मां को भारी धक्का लगा। वह उसे डाक्टर के पास ले गई। डाक्टर ने उसकी जांच की। लड़की ने डाक्टर को बताया कि आज तक मैं किसी पुरूष से नहीं मिली हूं, किसी पुरुष ने कभी मुझे स्पर्श तक नहीं किया, न कभी चूमा, फिर गर्भवती कैसे हो सकती हूं? डाक्टर खिड़की के पास गया, उसने खिड़की खोली, और वह तारों की ओर देखने लगा। ऐसे कुछ क्षण बीत गए। लड़की की मां ने पूछा कि आखिर बात क्या है? आप वहां कर क्या रहे हैं।
डाक्टर ने उत्तर दिया कि ऐसा केवल एक बार हुआ है--जब जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था। लेकिन उस समय एक विशेष सितारा आकाश में दिखाई दिया था। मैं देख रहा हूं कि वही सितारा फिर से आकाश पर चमक रहा है या नहीं। कैसे बिना किसी पुरुष के संपर्क के यह लड़की गर्भवती हो सकती है? लेकिन न तो मुझे कोई सितारा दिखाई पड़ता है न मैं यही देखता हूं कि पूरब से तीन ज्ञानवान लोग जीसस की पूजा के लिए आए हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह बिलकुल अनर्गल बात है। मैंने पोप को चुनौती दी है, मैं वैटिकन में आकर उनके ही लोगों के बीच उनसे विवाद करने के लिए तैयार हूं। आप जीसस के विषय में एक भी बात सिद्ध नहीं कर सकते, और आपका सारा धर्म अंधविश्वास पर खड़ा है। जीसस लोगों को स्पर्श करते हैं और वे रोग मुक्त हो जाते हैं। वे मुर्दों को जीवित कर देते हैं। स्पर्श से ही कोई लोगों को रोग मुक्त करे, पानी पर चले, क्या यह सबसे बड़े समाचार का विषय नहीं होगा। न, लेकिन उस समय के यहूदी साहित्य में उनके नाम का भी उल्लेख नहीं मिलता है। ईसाइयों की बाइबिल के अलावा किसी भी शास्त्र में उनके नाम का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा आदमी जो पानी को शराब में बदल देता है, उसके नाम का उल्लेख न हो यद्यपि पानी को शराब बनाना कोई चमत्कार नहीं है, यह एक जुर्म है।
कृष्णमूर्ति या महेश योगी या योगानंद या विवेकानंद, इनमें से एक ने भी इन दुखती हुई रगों पर हाथ नहीं रखा। इसलिए उनकी निंदा नहीं हुई ।और ईसाइयत कुल जमा इतनी ही है।
हमने धर्म की ऊंचाइयों को जाना है। हम यह स्वीकार नहीं करते कि जीसस को धार्मिक होने के लिए पानी पर चलना होगा। अन्यथा गौतम बुद्ध का क्या होगा? वे तो कभी पानी पर नहीं चले। कृष्ण का क्या होगा? वे कभी पानी पर नहीं चले। इन लोगों ने मृत लोगों को कभी पुनर्जीवित नहीं किया।
यदि जीसस धर्म की कसौटी हैं तो सभी धर्म निरर्थक हैं। लेकिन जीसस कसौटी नहीं हैं। और उनका दावा है कि केवल वह परमात्मा के इकलौते पुत्र हैं। जहां तक मेरा संबंध है, मैंने हमेशा पश्चिमी लोगों को यह कहा कि जीसस सनकी हैं। स्वाभाविक है कि उन्हें बुरा लगे। परमात्मा केवल एक ही पुत्र पैदा क्यों करेगा? अनंत काल से वह प्रयास करता रहा है और वह केवल एक ही पुत्र पैदा कर सका। और यहां भारत में भिखारी हर वर्ष और बड़े-बड़े परमात्मा पैदा किए चले जा रहा हैं।
और जिस ढंग से ईश्वर ने अपने पुत्र को रचा, वह नैतिक नहीं है। यह बिलकुल अनैतिक है। तुम जरा किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी को गर्भवती करने का प्रयास करो तो तुम्हें तुरंत पता चल जाएगा कि यह नैतिकता है या अनैतिकता। ईसाइयों की त्रिमूर्ति में स्त्री के लिए कोई स्थान नहीं है। वहां परमात्मा है पिता के रूप में,फिर परमात्मा है पुत्र के रूप में, और होली घोस्ट के रूप में। यह होली घोस्ट कौन है? स्त्री या पुरुष? ऐसा लगता है कि वह दोनों ढंग से कार्य करता है। संभवतः उभयलिंगी।
चीजों को वैसा ही देखना, जैसी कि वे हैं, एक अलग ही बात है। मेरा किसी से भी बात को मनवाने में कोई रस नहीं है। मैं सिर्फ लोगों तक सत्य को पहुंचा देना चाहता हूं और सत्य पीड़ादायक है। झूठ बहुत ही मीठा होता है उसे और भी मीठा बनाया जा सकता है, क्योंकि झूठ गड़ने वाले तुम खुद हो।
वे तीन ज्ञानी कौन थे, जो पूरब से जेरूसलम के लिए जीसस का उत्सव मनाने गए थे। उनके नामों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। क्योंकि आज भी कोई ज्ञानवान पुरुष ईसाइयत को धर्म नहीं स्वीकार करेगा। मैंने एक प्रसिद्ध जापानी फकीर रिंझाई के विषय में सुना है। ईसाइयों का एक बड़ा पादरी रिंझाई को ईसाई बनाने के लिए बाइबिल लेकर उसके पास गया। उसने "सरमन आफद माउंट' अध्याय खोला। पूरी बाइबिल में यही एक मात्र सुंदर अध्याय है। अन्यथा पूरी दुनिया में बाइबिल सर्वाधिक अश्लील पुस्तक है। अश्लीलता पूरे 500 पृष्ठ। और इसे पवित्र बाइबिल कहा जाता है। फिर अपवित्र क्या है उसने "सरमन आन द माउंट' अध्याय खोला और दो ही पंक्तियां पढ़ीं थीं कि रिंझाई ने कहा, रुको! भविष्य में कभी यह व्यक्ति बुद्ध बनेगा, लेकिन अभी नहीं।
क्योंकि पहली दो पंक्तियां थीं: धन्य हैं वे जो गरीब हैं, क्योंकि वे ही प्रभु के राज्य के अधिकारी होंगे। और दूसरी पंक्ति थी कि सुई के छेद से होकर एक ऊंट गुजर सकता है, लेकिन एक धनी व्यक्ति स्वर्ग के द्वार में प्रवेश नहीं कर सकता है। इसी कथन पर रिंझाई ने का कि रुक जाओ।
यदि गरीबी धन्यता है तो फिर हमें गरीबी को और फैलाना चाहिए। फिर दुनिया में जितने अधिक गरीब होंगे, दुनिया उतनी ही अधिक धन्य होगी। फिर अधिक लोग स्वर्ग में होंगे। यदि धनवान होना इतना बड़ा पाप है कि सुई के छेद से होकर ऊंट निकल सकता है, लेकिन धनवान व्यक्ति स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता है तब तो सभी धनवानों को अपनी संपत्ति गरीबों में बांट देनी चाहिए, और गरीब और भिखारी बन जाना चाहिए।
यह धर्म नहीं है। यह शुद्ध राजनीति है। यह सिर्फ गरीबों के लिए एक सांत्वना है कि तुम चिंता न करो, यह कुछ वर्षों की ही बात है, और तुम प्रभु की सन्निधि में होगे। और यह दूसरी ओर क्रांति को रोकने का प्रयास है कि धनवानों पर क्रोध न करो, वे शाश्वत नरक में यातना भोगने ही वाले हैं।
यह शब्द याद रखो शाश्वत नरक। विश्व का कोई भी धर्म शाश्वत नरक में विश्वास नहीं करता है। तुम एक जीवन में कितने पाप कर सकते हो, ईसाइयत केवल एक ही जन्म में विश्वास करती है। आखिर तुम एक ही जीवनकाल में कितने पाप कर सकते हो? जिस क्षण तुम्हारा जन्म हुआ था, उस क्षण से लेकर अंतिम श्वास तक यदि तुम एक के बाद एक पाप ही करते ही चले जाओ, न खाओ, कुछ भी न करो, केवल पाप ही करते चले जाओ, तो भी शाश्वत दंड उचित निर्णय नहीं होगा।
इस युग के महान दार्शनिक बर्ट्रेण्ड रसेल ने इस बात को एकदम अस्वीकार किया है। वह जन्म से ईसाई थे। उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है: व्हाई आइ एम नाट ए क्रिश्चियन' (मैं ईसाई क्यों नहीं हूं)। पुस्तक में जो उन्होंने बहुत से कारण दिए हैं, उनमें से यह भी एक है।
कहते हैं कि मैंने जो पाप किए हैं और वे पाप जो मैंने सपनों में किए हैं, यदि इन दोनों का मिला दिया जाए तो भी एक कठोर से कठोर न्यायाधीश भी मुझे साढ़े चार वर्ष की जेल से अधिक कोई सजा नहीं दे सकता।
लेकिन अनंतकाल के लिए नरक बाहर आने का कोई उपाय ही नहीं। एक बार तुम नरक चले जाओ, फिर तुम हमेशा वहीं रहोगे। ये मूढ़तापूर्ण बातें हैं, जिनके पीछे कोई तर्क नहीं है।
मेरी निंदा की गई है। क्योंकि मैं मानता हूं कि दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक तो वे जो चाहते हैं कि सत्य सदा उनके पीछे हो और दूसरे वे लोग जो चाहते हैं कि वे सदा सत्य के पीछे हों। मैं दूसरी कोटि में आता हूं। और तुमने जो नाम गिनाए हैं, वे पहली कोटि में आते हैं। और एक राजनेता तथा रहस्यदर्शी में यही फर्क है।
यह बात इसलिए दुखदायी है, क्योंकि तुमको शुरू से ही, बचपन से ही एक निश्चित ढंग से सोचने विचारने के लिए संस्कारित किया गया है।
जीसस को सूली लगी। जरा एक ऐसे व्यक्ति के विषय में सोचो, जो लोगों को उनकी मृत्यु के चार दिन बाद पुनर्जीवित कर देता है। और ये उसी के निजी व्यक्ति हैं, क्योंकि जीसस यहूदी थे। याद रखो, जीसस कभी ईसाई नहीं थे। उन्होंने ईसाई शब्द भी नहीं सुना था। अपने जीवन-काल में वह क्राइस्ट नाम से कभी नहीं जाने गए। क्योंकि क्राइस्ट शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है। हिब्रू भाषा में क्राइस्ट या क्रिश्चियन, ऐसा कोई शब्द नहीं है। और जीसस पूरी तरह से अशिक्षित थे। यहां तक कि उन्हें हिब्रू भाषा का कोई ज्ञान न था। वह एक स्थानीय ग्रामीण भाषा अरेमैक बोलते थे। वे जन्म से यहूदी थे। एक यहूदी की तरह ही वे जीए। और एक यहूदी की तरह ही उनकी मृत्यु हुई। उस समय उनकी उम्र केवल 33 वर्ष थी।
यदि वे मुर्दों को जिलाते थे तो यहूदियों ने उनका ईश्वर की तरह स्वागत किया होता। अगर तुम सत्य साई बाबा की इसलिए प्रशंसा कर सकते हो कि वह व्यर्थ की वस्तुएं निकाल सकते हैं, जैसे कि स्विस घड़ियां या पवित्र राख और तुम उनकी ईश्वर की भांति पूजा कर सकते हो, तो इस तुलना में जीसस ने सच में ही चमत्कार किए हैं, यदि उन्होंने सच में ही ऐसा किया है तो। यहूदियों ने उन्हें हमेशा हमेशा के लिए आदर दिया होता। लेकिन उन्होंने जीसस को सूली दी।
उन दिन तीन लोगों को सूली दी जाने वाली थी। यहूदी परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष यहूदी त्योहार सबाथ के शुरू होने के पहले सूली दी जाने वाली थी। और यहूदियों को एक मौका दिया गया था कि वे एक व्यक्ति को क्षमा कर सकते हैं। उन दिनों जूडिया रोम शासन का गुलाम था। जूडिया का वायसराय एक रोमन व्यक्ति पान्टियस पायलट था। उसको यह उम्मीद थी कि लोग जीसस को क्षमादान देंगे, क्योंकि वे निर्दोष थे। उन्होंने कभी किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाई थी। हालांकि वे निरर्थक बात करते थे। वे एक मसखरे जैसे दिखते थे। वे पागलों की भांति बातें करते थे कि केवल वह ही परमात्मा के इकलौते पुत्र हैं। लेकिन इन बातों से किसी का कुछ बुरा नहीं हो पाता। और यह अपराध नहीं था। अधिक से अधिक उन्हें मनोचिकित्सा की आवश्यकता थी, लेकिन सूली की नहीं।
पायलट सोचता था कि यहूदी जीसस को क्षमादान देंगे क्योंकि यह पुष्ट हो चुका था कि अन्य दोनों व्यक्ति निस्संदिग्ध रूप से अपराधी थे। लेकिन यहूदियों ने मांग की कि बाराबास को छोड़ दिया जाए। बाराबास ने सात व्यक्तियों की हत्या की थी। उसने वे सारे अपराध किए थे, जो किसी भी मनुष्य के लिए कर सकना संभव था। पाटिन्यस पायलट भरोसा नहीं कर सका कि वे लोग बाराबास के लिए क्षमादान मांग सकते हैं, जीसस के लिए नहीं।
क्या तुम भरोसा कर सकते हो कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने सिर्फ शुभ ही कार्य किए हों, लोगों को रोगमुक्त किया हो, मुर्दों को जीवित कर दिया हो, जहां तक कि जिस पर तेज गति से भी चलने का अपराध न हो, क्योंकि पूरे जीवन भर वे एक गधे पर ही सवारी करते रहे, उसे...!
मैं सोच ही नहीं सकता कि जीसस के विषय में जिन चमत्कारों की बातें की जाती हैं, वे सही हैं। वे सब के सब झूठ हैं, कोरी कहानियां हैं और मनगढंत हैं। यहां तक कि अब तो ईसाइयत के जो बड़े-बड़े ईसाई धर्मशास्त्री हैं, वे दुनिया भर की गोष्ठियां कर रहे हैं कि यदि हम इन चमत्कारों से छुटकारा पा पा सकें तो अच्छा होगा। क्योंकि भविष्य में बुद्धिमान लोगों के लिए यह चमत्कारों की गाथा बाधा बनेगी। अतीत में इन्होंने जीसस को परमात्मा सिद्ध किया था, भविष्य में यह उन्हें अधिक से अधिक एक जादूगर साबित करेंगी। लेकिन यदि तुम जीसस के सभी चमत्कार हटा लो तो फिर कुछ नहीं बच रहेगा।
हमने गौतम बुद्ध के जाना है। हमने महावीर को जाना है। हमने उपनिषदों के ऋषियों को जाना है, जिन्होंने उड़ानें भरीं मानव चेतना के आकाश में, परम उड़ानें भरीं। लेकिन तुम जिनके नामों की बातें करते हो, उन्होंने तो उपनिषद के ऋषियों को, गौतम बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य को उसी श्रेणी में रखा है, जिसमें जीसस हैं। जीसस तो सत्य साईं बाबा की श्रेणी के हैं। उससे अधिक नहीं। और वे दोनों ही झूठे हैं। और जीसस के जीवन में रिसरेक्शन या पुनर्जीवन जैसी कोई घटना नहीं हुई। कारण?
मैंने कश्मीर में जीसस की कब्र देखी है। वे सूली पर नहीं मरे थे। यह एक षड़यंत्र था, जिसमें जानबूझकर देर की गई। जीसस को शुक्रवार के दिन सूली दी गई थी। शुक्रवार के बाद तीन दिन तक यहूदी कोई कार्य नहीं करते थे, इसलिए पान्टियस पायलट ने शुक्रवार का दिन चुना था और जीसस को सूली देने में जितना विलंब किया जा सकता था, उतना विलंब किया गया। और तुमको पता होना चाहिए कि यहूदियों का सूली देने का ढंग ऐसा है कि इसमें किसी भी व्यक्ति को मरने में 48 घंटे का समय लगता है। क्योंकि जिस व्यक्ति को सूली दी जाती है, उसे वे गरदन से नहीं लटकाते हैं। व्यक्ति के हाथों व पैरों पर कीलें ठोंक दी जाती हैं, जिस कारण बूंद-बूंद कर खून टपकता रहता है। इस प्रकार एक स्वस्थ व्यक्ति को मरने में 48 घंटे का समय लग जाता है। और जीसस की आयु मात्र 33 वर्ष थी...पूर्णतया स्वस्थ। वे छह घंटों में नहीं मर सकते थे। कभी कोई छह घंटों में नहीं मरा।
लेकिन शुक्रवार का सूरज डूबने लगा था, अतः उनके शरीर को नीचे उतारा गया। क्योंकि नियमानुसार 3 दिन तक कोई कार्य नहीं होना था। और यही षड़यंत्र था। उन्हें एक गुफा में रखा गया, जहां से उन्हें चुरा लिया गया और वह बच निकले। इसके पश्चात जीसस काश्मीर (भारत) में ही रहे। यह कोई खास बात नहीं है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की नाक, इंदिरा गांधी की नाक यहूदियों जैसी है। हजरत मूसा की मृत्यु काश्मीर में हुई। और जीसस भी काश्मीर में मरे। जीसस बहुत लंबे समय तक जीए। 112 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर छोड़ा।
मैं उनकी कब्र पर गया हूं। आज भी इस कब्र की देखभाल एक यहूदी परिवार करता है। काश्मीर में यही एकमात्र ऐसी कब्र है, जो मक्का की दिया में पड़ती है। अन्य सभी कब्रें वहां मुसलमानों की हैं। मुसलमान मृतकों के लिए कब्र इस तरह बनाते हैं कि कब्र में मृतक का सिर मक्का की दिया में हो। काश्मीर में केवल दो कब्रें ऐसी हैं, एक जीसस की और दूसरी मूसा की, जिनका सिरहाना मक्का की ओर नहीं। और कब्र पर जो लिखा है वह स्पष्ट है। यह हिब्रू भाषा में है। और जिस "जीसस' नाम के तुम अभ्यस्त हो गए हो, वह उनका नाम नहीं था। यह नाम ग्रीक भाषा से रूपांतरित होकर आया है। उसका नाम जोसुआ था। और अभी भी उस कब्र पर यह सुस्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि महान धर्म शिक्षक जोसुआ जूडिया से यात्रा कर यहां आए। वे वहां 112 वर्ष की आयु में मरे, तथा दफनाए गए।
लेकिन यह अजीब बात है कि सारे पश्चिमी जगत को मैंने यह बताया है, फिर भी पश्चिम से एक भी ईसाई यहां आकर इस कब्र को नहीं देखना चाहता है। क्योंकि यह उनके पुनर्जीविन के सिद्धांत को बिलकुल गलत सिद्ध कर देगा और मैंने उनसे पूछा कि यदि वे फिर से जीवित हो उठे थे तो वे कब मरे? तुम साबित करो, तुम्हें साबित करना होगा। निश्चय ही बात में उनकी मृत्यु हुई होगी, अन्यथा वे अभी भी यहीं कहीं घूमते होते। उनके पास जीसस की मृत्यु का कोई विवरण नहीं है।
मेरी निंदा की गई क्योंकि जो मैं कह रहा था, वह पूर्णतया तर्कसम्मत वैज्ञानिक व बुद्धिपूर्ण बात थी। और तुम जिन लोगों के विषय में बात कर रहे हो, उनकी रुचि सत्य में नहीं थी। उनकी रुचि उन्हीं बातों में थी, जिन्हें तुम पसंद करते हो। राजनीति और मेरे देखे राजनेता का मन इसी तरह कात करता है। और यह राजनीति एकदम आरंभ से ही आरंभ हो जाती है। बच्चा जन्म के साथ ही राजनेता बन जाता है। वह मां को देखकर मुस्कराना चाहता नहीं है, लेकिन वह मुस्कराता है। उसके हृदय में कोई मुस्कराहट नहीं है, फिर भी वह जानता है मुस्कराहट से कुछ मिलेगा। वह पिता को देख कर मुस्कराता है। यद्यपि उसके पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि वही उसके पिता हैं। आदमी उसी क्षण से राजनीति सीखना आरंभ कर देता है: वही करो, जो लोगों को अच्छा लगे।
यह एक बड़ी विचित्र दुनिया है। यहां नेता अपने अनुयायियों के पीछे चलते हैं। मैं नेता नहीं हूं। मैं केवल एक विचारक हूं। और अपने जीवन के अंतिम क्षण तक मैं एक विचारक की तरह ही जीऊंगा। मैंने रोनाल्ड रीगन को संदेश भेजा है कि मुझे जान से मारने के लिए 5 लाख डालर व्यर्थ न गंवाओ। बस वे 5 लाख डालर आप मेरे कार्य के लिए दे दें और मैं अपना शरीर खुद ही छोड़ दूंगा। क्योंकि अपने शरीर के लिए तो मैंने एक पैसा भी कीमत नहीं चुकाई है। और एक दिन मैं मरूंगा, तब भी कोई इसके लिए एक पैसा भी कीमत नहीं देगा। 5 लाख डालर इसका समुचित मूल्य है। लेकिन क्यों इसे किसी दूसरे व्यक्ति को दिया जाए और उसका दिक्कत में डाला जाए। मैं मरने के लिए तैयार हूं। बस 5 लाख डालर मेरे कार्य के लिए दे दें। और इस बात पर सौदा हो सकता है।
कोई दूसरा प्रश्न?

पिछली बार जब आप दिल्ली और कुल्लू में थे, तब भारत सरकार नहीं चाहती थी कि आपका भारत में आश्रम हो। क्या इस रिपोर्ट में कोई सचाई थी? क्या आपकी किसी के साथ कोई झंझटें हैं।
मेरी किसी के साथ कोई झंझट नहीं है, परंतु हर किसी को मेरे साथ झंझट है। एक तो यह कि अमरीकी सरकार भारत सरकार पर दबाव डालती है कि मुझे भारत में ही रखा जाए और भारत से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाए। दूसरे, कोई विदेशी, विशेषकर समाचार-माध्यमों को मुझसे मिलने नहीं दिया जाए,। ये दो शर्तें थीं, जिन्हें मैं स्वीकार नहीं कर सकता। मैं कभी कोई शर्तें स्वीकार नहीं करता। मैं एक स्वतंत्र व्यक्ति हूं और एक स्वतंत्र व्यक्ति की भांति जीना और मरना चाहूंगा, चाहे गोली ही मार दी जाए, कोई हर्जा नहीं। परंतु मैं इन शर्तों का गुलाम नहीं बन सकता। ऐसे जीने में भी क्या सार है, अगर मुझे इन शर्तों के आधीन जीना पड़ता है कि मैं भारत में रहूं और मेरे विदेशी शिष्यों को मुझसे मिलने की अनुमति न दी जाए? यह लगभग मुझे मार देने जैसा है। वह जीते जी मृत्यु होगी।
मैंने इसलिए भारत छोड़ा था कि इसके पहले वे मेरा पासपोर्ट न लें। क्योंकि मैं ईसाई देशों में घूमकर उन्हें यह जताना चाहता था कि वे मुझे मार सकते हैं, परंतु वे मेरी आत्मा को नहीं मार सकते। अब फिर मैं भारत हूं और यदि मुझ पर कोई शर्तें थोपी जाती हैं तो मैं भारत सरकार से लडूंगा। विदेशी शिष्य भी मेरे पास आते रहेंगे और मैं भी भारत के बाहर जाता रहूंगा; भारत सरकार की शर्तों के बावजूद मैंने अपने इंतजाम कर लिए हैं।
और यह बोगस सरकार क्या आप सोचते हैं, मुझे रोक सकती है? उन्हें अपने दिन गिनने चाहिए। बस अगला चुनाव होगा, और वे जा चुके होंगे। राजनेताओं का जीवन लंबा नहीं होता। और ये राजनेता, जिन्होंने अपनी मां की हत्या का शोषण किया है। अगले चुनाव में इन्हें वास्तिविकता का सामना करना पड़ेगा। उन्हें कुछ पता नहीं। क्योंकि मां की हत्या कर दी गई, इसलिए बेटा देश का प्रधान मंत्री बन गया, अन्यथा न कोई योग्यता है, न ईमानदारी, न कोई प्रेरणा और उत्साह ही है। वह आदमी पायलट से ज्यादा कुछ भी नहीं है और उसे कुछ और के लिए प्रयास भी नहीं करना चाहिए। वही उसका प्रशिक्षण है, और उसे अपनी ही लाइन पर जाना चाहिए और वह देश को उन लोगों के हाथ में छोड़ दे, जो अधिक बुद्धिमान हैं, और जो देश को बदलकर वापस स्वर्णयुग में ला सकते हैं। उसने क्या किया है?
केवल तीस वर्ष पहले, जब मैंने बोलना शुरू किया था, मैं जनसंख्या वृद्धि के खिलाफ बोल रहा था। मुझ पर पथराव हुआ, मुझे विष दिया गया। मुझ पर मुकदमे चले, एक चाकू तक फेंका गया; मेरे जीवन पर भी हमले हुए उन लोगों द्वारा जो सोचते थे कि मैं हिंदूधर्म के विकास में बाधा डाल रहा हूं। उस समय देश की आबादी चालीस करोड़ थी। उन्होंने मेरी बात सुनी होती तो हमारा देश आज दुनिया के बहुत सुखी देशों में होता। और अब जनसंख्या नब्बे करोड़ है। केवल तीस वर्षों में प्रचार करोड़ लोग बढ़ गए हैं। और तुम्हारे राजनेताओं में यह साहस नहीं कि वे सब लोगों से कहें, कि बंद करें, और बच्चे नहीं। अन्यथा इस शताब्दी के पूरे होते-होते हम अरब से ज्यादा हो गए होंगे। इतिहास में पहली बार हम चीन से भी आगे होंगे। अब तक चीन आगे रहा है। और हम दुनिया में सर्वाधिक गरीब देश होंगे। और पचास प्रतिशत लोग आपके आसपास मर रहे होंगे। जरा सोचो, अगर इस कमरे में सौ लोग हों, प्रचार मर जाएं, तो उन पचास व्यक्तियों का क्या होगा, जो पचास भूतों के साथ जी रहे होंगे? उनका जीवन कुछ जीवन जैसा न होगा।
तुम्हारे पास कोई सरकार नहीं है, तुम्हारे पास कोई राजनेता नहीं हैं, तुम्हारे पास बुद्धिमान लोग नहीं हैं, जो देश का भाग्य बदल दें। और देश को सख्त जरूरत है, क्योंकि देश के पास सर्वाधिक लंबी विरासत है। और महानतम विरासत। हमारे पास संसार को देने के लिए कुछ है। और वे मुझे बाहर जाने से रोकना चाहते हैं। कोई मुझे बाहर जाने से रोक नहीं सकता। और लोगों को मुझसे मिलने से भी कोई रोक नहीं सकता।

महाशय, क्या यह भारत के लोगों को, जो वर्तमान सरकार की परवाह करते हैं, एक अप्रत्यक्ष संदेश है?
निश्चित ही। यह एक बोगस सरकार है और उसे निकाल बाहर करना होगा। केवल अपरिपक्व लोगों से तुम्हारी सरकार बनी हुई है। और जरा सोचो कि जब चालीस वर्ष तक परिपक्व राजनेता कुछ न कर सके, तो ये जो अपरिपक्व लोग हैं, सिवाय नुकसान के ये और कुछ नहीं कर सकते। तुम्हें गुणवान लोगों को ढूंढना शुरू कर देना चाहिए और गुणवान लोग देश में हैं। यह एक बड़ा देश है। परंतु समस्या यह है कि गुणवान व्यक्ति, वह व्यक्ति जो बुद्धिमान है, और जो सहायता कर सकता है, वह वोट की भीख नहीं मांगेगा। आपको उस व्यक्ति से याचना करनी होगी कि कृपया आएं और देश की मदद करें। ये राजनेता तो वोट के भिखारी है, और भिखारी तुम पर शासन कर रहे हैं। और मैं इस बात में सहयोग नहीं देता।

मा शीला के विषय में कुछ कहना चाहेंगे क्या?
हीं। जो बीत गया सो बीत गया, और जो खत्म हो गया वह खत्म हो गया और मेरा भूतों से कोई लेना-देना नहीं है।

क्या उनका धार्मिक उत्पीड़न हुआ,या क्या अमरीकी सरकार ने उन्हें सताया? और आपका मतलब है कि आपको कुछ...
न्होंने मुझे सताया और तुम अमरीकी राजनेताओं तथा सरकार की मूढ़ता देख सकते हो। अभी जब अन्य लोगों को जेल में भेद दिया गया तो पत्रकारों ने अमरीकी एटार्नी जनरल से पूछा कि भगवान को जेल क्यों नहीं हुई? और उन्होंने उत्तर में तीन बातें कहीं, जो ध्यान देन योग्य हैं। पहली तो बात उन्होंने यह कही कि हमारा पूरा ध्यान, हमारा पहला कार्य भगवान के कम्यून को नष्ट करना था। क्योंकि अमरीका के एक मरुस्थल में 126 वर्ग मील में, कम्यून खड़ा किया था, जिस पर पिछले सैकड़ों वर्षों से खेती नहीं की गई थी। हमने कम्यून को आत्म-निर्भर बनाया था। हमने इसको एक सुंदर मरुद्यान बना दिया था। 5000 संन्यासी वहां रहते थे। हमने अपने घर बनाए, सड़कें और बांध बनाए। हम सभी क्षेत्रों में आत्म-निर्भर थे।
और अमरीकी जनता का ध्यान इस ओर आकृष्ट होने लगा कि यह एक चमत्कार है। यह कैसा हुआ कि बाहर से आए हुए इन लोगों ने मरुस्थल को उद्यान में, गीत, ध्यान और उत्सव के क्षेत्र में बदल दिया। हम ऐसा क्यों नहीं कर सके। उन्होंने ये प्रश्न पूछने आरंभ कर दिए थे। कम्यून राजनेताओं के हृदय में छुरे की भांति घुस गया था। तो उत्तर में एटार्नी जनरल ने पहली बात कही कि हमारा सर्वप्रथम कार्य कम्यून को नष्ट करना था।
दूसरी बात उन्होंने यह कही कि दो वर्षों तक हम भगवान को गिरफ्तार नहीं कर सके। वे दो वर्षों से मुझे बिना किसी कारण के गिरफ्तार करने का प्रयास कर रहे थे। वे मुझे इसलिए गिरफ्तार नहीं कर सके, क्योंकि वे जानते थे कि मुझे गिरफ्तार करने के पूर्व उन्हें पांच हजार संन्यासियों को जान से मारना होगा। इसके पहले वे मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकते थे। उन्होंने कभी कम्यून में प्रवेश करने तक का साहस नहीं किया था। वे यह प्रतीक्षा कर रहे थे कि यदि वे मुझे कम्यून के बाहर पा सकें तो वे मुझे तुरंत गिरफ्तार कर लें। और ठीक यही हुआ।
मैं नार्थ कैरोलिना में एक मित्र को मिलने जा रहा था, जहां उन्होंने मुझे बिना किसी गिरफ्तारी के वारंट के, बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने मुझे नार्थ कैरोलिना में अपने एटर्नियों को भी खबर देने की अनुमति नहीं दी। नार्थ कैरोलिना से ओरेगॉन में मेरे कम्यून तक वायुयान से पहुंचने में केवल छह घंटे का समय लगता है, जबकि मुझे ओरेगॉन लाने में उन्होंने 12 दिन निकाल दिए।
इस दौरान मुझे पांच जेलों की यात्रा करनी पड़ी। और वे मुझसे लगातार झूठ बोलते रहे कि हम तुमको ओरेगॉन ले जा रहे हैं। जबकि जहां भी मैं पहुंचता तो पाता कि मैं किसी दूसरी जेल में हूं। मैंने कहा, यह बड़ी अजीब बात है। यदि तुम्हें मुझको एक जेल से दूसरी जेल में ही ले जाना तो कोई हर्ज नहीं। मैं तो इसका मजा ले रहा हूं। मुझे तुम्हारे दूसरे पक्ष का पता चल रहा है। क्योंकि तुम्हारी जेलें सिर्फ काले लोगों से भरी हैं। एक श्वेत व्यक्ति उनमें नहीं है। अजीब बात है। मैंने कहा कि ऐसा लगता है कि कोई गोरा आदमी यहां अपराध नहीं करता है, केवल अश्वेत व्यक्ति ही अपराध करते हैं। मैंने उन अश्वेत व्यक्तियों से पूछा कि तुम्हारा अपराध क्या है?
उन्होंने कहा कि यह हमें नहीं बताया जाता है कि हमारे अपराध क्या हैं। वे हमें यह कहते हैं कि हमें न्यायालय में उपस्थित किया जाएगा और उन्हीं में से कोई-कोई तो पिछले नौ महीनों से मुकदमे के पूर्व जेल में बंद हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि न्यायालय उन्हें छोड़ देगा, उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। और यह प्रजातंत्र है। और ये सभी लोग युवा हैं। प्रत्येक जेल में पांच सौ, छह सौ, यहां तक कि सात सौ युवा उम्र के काले लोग बंद हैं। उनमें एक भी बूढ़ा व्यक्ति नहीं। मैंने कहा, यह मात्र संयोग नहीं प्रतीत होता है। केवल युवक ही क्यों? तुम लोग डरते हो कि कहीं ये लोग अमरीका में काली क्रांति न कर दें। और उनका यही अपराध है कि ये युवक हैं, कि इनका खून गरम है।
दूसरी बात उसने यह कही कि हम नहीं चाहते हैं कि भगवान एक शहीद बन जाएं। अमेरिका के एटार्नी जनरल राष्ट्रपति रीगन के निकट के मित्र हैं, शायद उनके मनुष्य प्रवक्ता भी इसलिए, उनके इस वक्तव्य का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाना चाहिए। उनका भय यह था कि यदि मैं शहीद हो जाता हूं तो दुनिया भर में फैले मेरे संन्यासियों की एकता और मतबूत हो जाएगी। वे एक दूसरा धर्म खड़ा कर देंगे। ठीक उसी तरह जैसे कि जीसस की सूली की कहानी ने एक धर्म खड़ा कर दिया। वे डर गए हैं।
और तीसरी बात जो उसने कही, उसको सुनकर तुम्हें आश्चर्य होगा। उसने कहा कि भगवान ने कोई अपराध नहीं किया है, और हमारे पास उनके खिलाफ कोई प्रमाण नहीं है। इसलिए उन्हें रिहा करने के सिवा और कोई रास्ता न था।
ये तुम्हारे महान लोकतांत्रिक देश हैं। अब उस देश का एटार्नी जनरल इस बात को स्वीकार कर रहा है कि मैंने कोई अपराध नहीं किया। फिर भी मुझे गिरफ्तार किया गया, एक जेल से दूसरी जेल ले जाकर परेशान किया गया। और चूंकि मैंने कोई अपराध नहीं किया था इसलिए मेरे ऊपर 60 लाख रुपए जुर्माना चढ़ाया गया। मैंने एक सीख ली कि अपराध नहीं करना खतरनाक है।
मुझे अमरीका से बाहर जाने को कहा गया था, लेकिन जब मैं न्यायालय से बाहर निकल रहा था तो मैंने एटार्नी ने मुझे कहा, सावधान हो जाइए, न्यायालय से हवाई अड्डे तक ये पंद्रह मिनट बड़े खतरनाक हैं। सबसे पहले वे आपको आपके कपड़े व अन्य चीजें लौटाने के लिए जेल ले जाएंगे। मैंने यह सुना है कि वहां कुछ खतरा है।
और वहां खतरा था।
जब मैं जेल के भीतर पहुंचा तो मुझे आश्चर्य हुआ। वहां निचली मंजिल बिलकुल खाली थी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। बहुत से अधिकारियों और लोगों की चहल पहल की गूंज से वातावरण भरा रहता था। मैंने पूछा, आखिर बात क्या है? क्या आज कोई छुट्टी का दिन है? क्या लोग मेरी रिहाई का जश्न मना रहे हैं? या और कोई बात है? उन्होंने उत्तर दिया कि हमें कुछ नहीं मालूम है? फिर उन दो लोगों ने जो मुझे वहां ले गए थे मुझे वहीं एक कमरे में छोड़ दिया और खुद गायब हो गए। उस कमरे में एक ही व्यक्ति था। उसने मुझसे कहा कि इसके पूर्व कि मैं आपको आपकी चीजें वापस करूं मुझे अपने अधिकारी के हस्ताक्षर चाहिए। बाद में पता चला कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि चीजें मेरी थीं, उसके अधिकारी का उनसे कुछ लेना देना नहीं था। मुझे हस्ताक्षर करना था कि मेरी चीजें वापस मिल गई हैं। वह कमरे से बाहर निकल गया और उसने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।
पंद्रह मिनट तक मैं उस कमरे में बंद था।
बाद में मेरी कुर्सी के नीचे से बम बरामद हुआ। बस एक छोटी भूल हो गई थी। उन्हें यह नहीं पता था कि न्यायालय से मैं किस समय छूटूंगा। वह एक टाइम बम था। अतः वे चूक गए। अन्यथा उन्होंने 15 मिनट में मुझे समाप्त कर देने का आयोजन कर लिया था। और जेल में कोई भी बाहर का व्यक्ति आकर बम नहीं रख सकता है। निश्चित ही यह सरकार की तरफ से रखा गया है। और इसलिए निचली मंजिल पूरी तरह से खाली थी और जो व्यक्ति मुझे मेरी चीजें लौटाने वाला था, वह खुद भी थोड़ी देर के लिए गायब हो गया था। मैं उस बम की कृपा से यहां हूं।

यह किस जेल में हुआ था?
पोर्टलैंड, ओरेगॉन में।

और अन्य पांच जेलें?
हूं?

अन्य पांच कौन-सी जेलें थीं?
वे पांच जेलें ये थीं। पहले मैं उत्तरी कैरोलिना में अमरीकी मार्शल की जेल में था। फिर उत्तरी कैरोलिना की दूसरी जेल में। इसके बाद वे मुझे ओकलाहोमा जेल ले गए। वहां भी कुछ हुआ, वह मैं आपको बताना चाहूंगा।
मैं वहां रात के 12 बजे पहुंचा था। वहां अमरीकी मार्शल स्वयं मौजूद था, जिसके कोट पर लिखा था डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस(न्याय विभाग)। उसने मुझे कहा कि मुझे जेल रजिस्टर पर अपना नाम नहीं लिखना है। मैंने पूछा क्यों? उसका उत्तर था, क्यों का कोई प्रश्न नहीं है। ऊपर का आदेश; आपको अपने नाम के स्थान पर डेविड वाशिंगटन लिखना है। मैंने कहा कि कृपया पहले तुम अपना यह कोट उतार दो। तुम मुझे यह अपराध करने के लिए विवश कर रहे हो। यह मेरा नाम नहीं है। और क्या तुम सोचते हो कि मैं तुम्हारे जैसा मूढ़ हूं? तुम मुझे कह रहे हो कि मैं अपना नाम डेविड वाशिंगटन लिखूं, ताकि तुम मुझे जान से मार दो और दुनिया को यह भी पता नहीं चलेगा कि मेरी हत्या कर दी गई, मैं कहां गायब हो गया। क्योंकि फाइलों में कोई प्रमाण नहीं मिलेगा। मैं यह नहीं कर सकता हूं। तुम लिखो और मैं हस्ताक्षर कर दूंगा।
रात के बारह बज रहे थे। वह स्वयं अपने घर जाना चाहता था। मैंने कहा, यदि तुम घर जाना चाहते हो तो तुम लिख सकते हो, तुम फार्म भर दो। और मैंने अपने नाम का हस्ताक्षर कर दिया। उसने कहा भी कि तुम क्या कर रहे हो? मैंने कहा, जो कानूनी है वही मैं कर रहा हूं। और कल सुबह ही तुम देखोगे कि सभी दूरदर्शन पर, समाचार-पत्रों में यह बात प्रकाशित हो जाएगी कि मुझे कोई अन्य नाम लिख कर उसके नीचे हस्ताक्षर करने को विवश किया गया है। क्या यही व्यक्ति की निजता का सम्मान है, यही स्वतंत्रता है और क्या यही वह देश है, जो पूरी दुनिया को बचाने वाला है? और मैंने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि मेरे बगल में एक स्त्री बैठी हुई थी। मैंने उससे का कि तुम मार्शल के साथ जो यहां मेरी बातचीत हो रही है, उसे सुनती रहो। करीब-करीब दो हजार लोग चारों ओर घेरे खड़े हैं। तुम बाहर जाकर जो कुछ भी यहां हुआ है, उन्हें बता देना।
सुबह 6 बजे के समाचार प्रसारण द्वारा पूरे अमरीका को यह पता चल गया कि मुझ पर दबाव डाला गया है। इसलिए उन्हें तुरंत मेरी जेल बदलनी पड़ी, ताकि वे कागजों को नष्ट कर सकें। जैसे कि मैं कभी उस जेल में था ही नहीं।
इसके बाद वे मुझे जिस जेल में ले गए मुझे उसका नाम नहीं मालूम है। क्योंकि यह एफ बी आई(अमरीकी गुप्तचर संस्था) की खास जेल थी। यह जेल दूर किसी जंगल में थी, जहां समाचार माध्यमों के प्रतिनिधी नहीं पहुंच सकते थे। लेकिन अमरीकी समाचार-माध्यमों के प्रतिनिधियों ने मेरी बहुत मदद की। वे वहां भी पहुंच गए। वे मेरी कार के साथ साथ हैलिकाप्टरों में चल रहे थे। उनकी कारें मेरी कार के पीछे-पीछे चल रही थीं।
यदि आज मैं जीवित हूं तो इसका कारण अमरीकी समाचार माध्यम हैं। और अमरीकी समाचार माध्यम संभवतः पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं। अधिक प्रामाणिक और सरकार से अपेक्षाकृत अधिक निडर। पूरे रास्ते वे मेरे पीछे-पीछे चले और उन्होंने पूरे विश्व को समाचार से अवगत कराया।
एक जेलर के बाद दूसरे जेलर ने मुझे कहा कि ऐसा कैदी उन्होंने पूरे जीवन में नहीं देखा। क्योंकि पूरी की पूरी जेल चारों ओर कैमरों, फोटोग्राफी, टेलीविजन, पत्र पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों से घिर हुई थी। मुझे आप सबसे यह इसलिए कहना पड़ रहा है कि इस देश में भी समाचार-सूत्रों को ऐसा ही बनना है कि वह व्यक्ति की रक्षा कर सके, सरकार की स्वतंत्रता की रक्षा कर सके।
लेकिन अभी ऐसा नहीं है। बस थोड़े से ही पत्रकारों के पास ईमानदारी है, निजता है, अन्यथा यहां प्रीतीष नंदी जैसे लोग भी हैं, जिसने इलेस्ट्रेटेड वीकली जैसी सुंदर पत्रिका को एक तीसरे दर्जे का, पीला पत्र, अश्लील पत्र बना दिया है। बेशक इसकी बिक्री बहुत बढ़ गई है, लेकिन इसकी आत्मा मर गई है। मुझे समाचार-माध्यमों से बहुत उम्मीदें हैं। समाचार-माध्यम सरकारों की विशाल शक्ति के खिलाफ व्यक्ति की स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में आगे आए हैं। मेरे पास कोई ताकत है। यदि आप मेरे साथ हों तो मैं अकेला नहीं हूं। ठीक

क्या आपने निवास स्थान का निर्धारण कर लिया है...... अस्पष्ट।
ह मकान। यह मकान मेरा घर है।

क्या लोगों को आपके विचारों से निराशा हुई?
न लोगों को आप मेरे पास ले आइए। क्योंकि मुझे तो अभी तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जिसे मुझसे निराशा हुई हो। उन्हें ले आइए।

एक अंगरक्षक जो?
से मेरे सामने लाइए और मैं प्रत्येक बात का उत्तर दे सकता हूं कि उन्हें निराशा हुई है उस प्रतिमा से जो उन्होंने मेरी बना रखी थी। अगर आप मुझे परमात्मा बनाते हो तो आप मूर्ख हैं। और जब आप को वह परमात्मा नहीं मिलता तो आप निराश होते हैं। तो क्या आप सोचते हैं कि इसके लिए मैं जिम्मेवार हूं? मैं एक सामान्य व्यक्ति हूं--मनुष्य की सभी कमियों और कमजोरियों को लिए हुए। परंतु आप मुझे परमात्मा बना देते हैं, तब आप सोचते हैं कि पानी पर चल सकता हूं और पानी को शराब में बदल सकता हूं। और मैं यह नहीं कर सकता हूं। तब किसको किससे निराशा हुई? आपको अपनी ही जड़ धारणाओं से निराशा हुई। मैं एक सामान्य मनुष्य हूं।

(सुनाई नहीं दिया)
भगवान का मात्र इतना ही अर्थ है: भाग्यवान। इसका अर्थ परमात्मा नहीं है। यही कारण है कि हम बुद्ध को, जो परमात्मा पर विश्वास नहीं करते। भगवान पुकारने हैं। भगवान का अर्थ केवल भाग्यवान है।
संस्कृत में प्रत्येक शब्द के बहुत अर्थ हैं। केवल हिंदू भगवान को परमात्मा की भांति सोचते हैं। में कोई हिंदू नहीं हूं। मैं बस मैं ही हूं। और मैं यहां किसी की धारणाओं को पोषित करने के लिए नहीं हूं। इसलिए अगर वे नष्ट होती हैं तो आप मूर्ख हैं। दस मिनट पर्याप्त होने चाहिए।

(सुनाई नहीं दिया)
मैं अपने को बचाता नहीं हूं, और वह मेरा अंगरक्षक नहीं था।

(सुनाई नहीं दिया)
नहीं। मैं नहीं कर सकता। आप मेरे रक्षक हैं। वे जिन्हें मुझसे प्रेम है, वे मुझे बचाएंगे। और अगर किसी को मुझसे प्र्रेम नहीं तब मुझे बचाने की कोई जरूरत नहीं।

प्रश्न: आपकी भावी योजनाएं क्या हैं?
कोई योजनाएं नहीं।

क्या आप कोरेगांव पार्क पूना जाएंगे?
हीं। मैं कभी अतीत की तरफ नहीं जाता, मैं भविष्य की तरफ जाता हूं।

जब आपने पूना छोड़ा तब आपको सरकार को बहुत धन चुकाना था।
मेरे जिम्मे कभी किसी का एक पैसा भी नहीं है।

कम्यून को, कम्यून को काफी टैक्स चुकाना है
म्यून सरकार से लड़ रही है। यह कम्यून का धंधा है। यह मेरा धंधा नहीं है। मैं यहां एक अतिथि हूं। यदि यहां मकान में कोई गड़बड़ है तो मेरी समस्या नहीं है। यह समस्या उस व्यक्ति की होगी, जिसका यह मकान है। मैं मात्र एक मेहमान हूं।

जब आप पूना में थे पहले वर्ष आपके सभी शिष्य आपसे मिल सकते थे। आपने यह अनुमति क्यों दी कि दूसरे वर्ष हम कभी आपसे मिल नहीं सकते थे।
मुझे बहुत तरह की एलर्जी है। मैं नहीं चाहता कि विशेषकर तेज गंध लगाए हुए महिलाएं मेरे निकट आएं। क्योंकि ये गंध मुझे दमा के दौरे देती है। मैं कोई परमात्मा नहीं, मुझे दमा है।

(सुनाई नहीं दया)
ह उनका धंधा है। जिसने भी आपको जो कुछ बताया। सत्य यह है कि मुझे कई एलर्जी है गंधों से, धूल से--जहां तक गंध का सवाल है बंबई की स्त्रियां सबसे बदतर हैं। आप अपनी देह जो बदबू भरी है, सुगंध से ढक रहे हैं मेरे लिए यह भी एलर्जी है। तो यह भी एक समस्या है। अतः वे लोग मुझे दमे के आक्रमण से बचाने भर के लिए प्रयास कर रहे थे, अन्यथा पूरी रात मैं सो नहीं सकता।

अब आप फिर भारत में हैं, क्या आप यहां ठहरेंगे? और क्या आप केवल निरंतर अंग्रेजी में बोलते रहेंगे अथवा आप हिंदी में भी बोलेंगे।
मैं निरंतर अंग्रेजी बोलता रहूंगा, क्योंकि मुझे पूरे संसार पर चोट करनी है। हिंदी मुझे एक छोटे से कुएं का मेंढक बना देगी। वह मैं नहीं कर सकता। अब यह मेरे वश के बाहर है।

क्या आप उन युवा लोगों के संबंध में, जो बिना मुकदमें के जेलों में बंद हैं, इंटरनेशनल एमेन्स्टी को लिखेंगे।
मैं केवल बोला हूं मैं लिखता नहीं हूं। आपको लिखना होगा मेरे लिए।

(सुनाई नहीं दिया)
मैं कहीं भी जाने को तैयार हूं, अगर वे मुझे अनुमति दें। मैंने प्रत्येक देश से आवेदन किया है। आप जरा मेरा पासपोर्ट को तो देखें। प्रत्येक देश इनकार करता है कि मैं खतरनाक हूं, उनके देश में प्रवेश की कोई संभावना नहीं। और विशेषकर श्रीलंका मुझसे नाराज, क्योंकि मैंने कुछ डिस्को दुनिया भर में खोले हैं, जिन्हें जोरबा दि बुद्धा नाम दिया है। यह मेरा मौलिक प्रयास है। जोरबा भौतिकवादी का प्रतिनिध्त्वि करता है और बुद्धा आध्यात्मवादी का। और मैं चाहता हूं कि मनुष्य दोनों हो, अन्यथा वह अधूरा होगा। और एक अधूरा आदमी कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। जोरबा दि बुद्धा प्रतीक रूप है।
श्रीलंका के राजदूत ने मुझे पत्र लिखा कि अगर आप श्रीलंका जाएंगे तो आप पर पत्थर फेंके जाएंगे, क्योंकि आप गौतम बुद्ध को घसीट कर जोरबा के स्तर पर ला रहे हैं।
मैंने उसे लिखा कि जरा इसे दूसरे ढंग से देखें कि मैं जोरबा को गौतम बुद्ध तक उठाने का प्रयास कर रहा हूं। वे नाराज हैं कि मैंने गौतम बुद्ध का संबंध जोरबा से जोड़ दिया है। और यही मेरा पूरा योगदान है।
मैं साधारण जीवन को बिना किसी त्याग के असाधारण जीवन बनाना चाहता हूं: संसार में होना और फिर भी संसार का न होना। और जब तक हम ऐसी स्थिति पैदा नहीं करते, यह संसार रुग्ण बना रहेगा।
31 जुलाई 1986 प्रातः सुमिला, जुहू बंबई




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