बोध भिक्षु ओर वैश्या-(एस धम्मो सनंतनो)
एक बार एक बौद्ध भिक्षु एक गांव से गुजर रहा था। चार कदम चलने के बाद वह ठिठका। क्योंकि भगवान ने भिक्षु संध को कह रखा था। दस कदम दूर से ज्यादा मत देखना। जितने से तुम्हारा काम चल जाये। अचानक उसे लगया ये गली कुछ अलग है। यहां की सजावट, रहन सहन। लोगों का यूं राह चलते उपर देखना। इशारे करना। कही कोई किसी को बुला रहा है। इशारा कर के। कोई किसी स्त्री को प्रश्न करने के लिए मिन्नत मशक्कत कर रहा है। जगह-जगह भीड़ इक्कठी है। ओर गांव और गलियों में ये दृश्य कम ही देखने को मिलते है। पर भिक्षु विचित्र सेन, थोड़ा चकित जरूर हुआ पर, निर्भय आगे बढ़ा, वह समझ गया की ये वेश्याओं का महोला है। यहां भिक्षा की उम्मीद कम ही है। वैसे तो भगवान ने कुछ वर्जित नहीं किया था कि किस घर जाओ किस घर न जाओ। पर जीवन में ऐसा उहाँ-पोह पहले आई नहीं थी। वह कुछ आगे बढ़ा।
एक बार एक बौद्ध भिक्षु एक गांव से गुजर रहा था। चार कदम चलने के बाद वह ठिठका। क्योंकि भगवान ने भिक्षु संध को कह रखा था। दस कदम दूर से ज्यादा मत देखना। जितने से तुम्हारा काम चल जाये। अचानक उसे लगया ये गली कुछ अलग है। यहां की सजावट, रहन सहन। लोगों का यूं राह चलते उपर देखना। इशारे करना। कही कोई किसी को बुला रहा है। इशारा कर के। कोई किसी स्त्री को प्रश्न करने के लिए मिन्नत मशक्कत कर रहा है। जगह-जगह भीड़ इक्कठी है। ओर गांव और गलियों में ये दृश्य कम ही देखने को मिलते है। पर भिक्षु विचित्र सेन, थोड़ा चकित जरूर हुआ पर, निर्भय आगे बढ़ा, वह समझ गया की ये वेश्याओं का महोला है। यहां भिक्षा की उम्मीद कम ही है। वैसे तो भगवान ने कुछ वर्जित नहीं किया था कि किस घर जाओ किस घर न जाओ। पर जीवन में ऐसा उहाँ-पोह पहले आई नहीं थी। वह कुछ आगे बढ़ा।