धर्म की महायात्रा में स्वयं को दांव पर लगाने का साहस—(प्रवचन—चौहदवां)
(प्रतीक्षा
बना देती है
दर्पण चेतना
को। और जिस
दिन हम दर्पण
बन जाते हैं
उसी दिन सब
मिल जाता है। क्योंकि
सब तो सदा ही
था सिर्फ हम
नहीं थे।
दर्पण होकर हम
हो जाते है।)
भगवान
श्री जाति—
स्मरण अर्थात
पिछले जन्मों
की स्मृतियों
में प्रवेश की
विधि पर आपने
द्वारका
शिविर में
चर्चा की है।
आपने कहा है
कि चित्त को
भविष्य की
दिशा से पूर्णत:
तोड़ कर ध्यान
की शक्ति को
अतीत की ओर
फोकस करके
बहाना चाहिए।
प्रक्रिया का
क्रम आपने
बताया पहले
पांच वर्ष की
उम्र की
स्मृति में
लौटना फिर तीन
वर्ष की फिर
जन्म की स्मृति
में फिर
गर्भाधान की
स्मृति में
फिर पिछले जन्मों
की स्मृति में
प्रवेश होता
है। आपने आगे
कहा है कि मैं
जाति— स्मरण
के प्रयोग के
पूरे सूत्र
नहीं कह रहा हूं।
पूरे सूत्र
क्या हैं? क्या
आगे के सूत्र
का कुछ
स्पष्टीकरण
करने की कृपा
कीजिएगा?