दिनांक 21 सितम्बर सन् 1979;
ओशो आश्रम पूना
सारसूत्र:
मन
बनिया बान न छोड़ै।।
पूरा
बांट तरे खिसकावै, घटिया को टकटोलै।
पसंगा
मांहै करि चतुराई, पूरा कबहुं न तौले।।
घर
में वाके कुमति बनियाइन, सबहिन को झकझोलै।
लड़िका
वाका महाहरामी, इमरित में विष घोलै।।
पांचतत्त
का जामा पहिरे, एंठा-गुइंठा डोलै।
जनम-जनम
का है अपराधी, कबहूं सांच न बोलै।।
जल
में बनिया थल में बनिया, घट-घट बनिया बोलै।
पलटू
के गुरु समरथ साईं, कपट गांठि जो खोलै।।
जहां
कुमति कै बासा है, सुख सपनेहुं नाहीं।।
फोरि
देति घर मोर तोर करि, देखै आपु तमासा है।।
कलह
काल दिन रात लगावै, करै जगत उपहासा है।।
निर्धन
करै खाए बिनु मारै, अछत अन्न उपवासा है।।
पलटूदास
कुमति है भोंड़ी, लोक परलोक दोउ नासा है।।