नया मनुष्य—(प्रवचन—बारहवां)
दिनांक 22 मार्च, 1979;
श्री रजनीश
आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—भगवान! मेरे
आंसू स्वीकार करें। जा रही हूं आपकी नगरी से। कैसे जा रही हूं, आप ही जान सकते हैं। मेरे जीवन में दुख ही दुख था। कब और कैसे क्या हो गया,
जो मैं सोच भी नहीं सकती थी; अंदर बाहर खुशी
के फव्वारे फूटे रहे हैं! आपने मेरी झोली अपनी खुशियों से भर दी है, मगर हृदय में गहन उदासी है और जाने का सोचकर तो सांस रुकने लगी हैं। आप हर
पल मेरे रोम-रोम में समाए हुए हैं। मुझे बल दें कि जब तक आपका बुलावा नहीं आता,
मैं आपसे दूर रह सकूं।
2—मैं परमात्मा
को पाना चाहता हूं, क्या करना आवश्यक है?