tag:blogger.com,1999:blog-3430383595992148716.post3574138003772035655..comments2024-03-19T20:10:08.056+05:30Comments on ओशो गंगा/ Osho Ganga: गीता दर्शन--(प्रवचन--001)oshoganga-ओशो गंगाhttp://www.blogger.com/profile/06416428388577433201noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3430383595992148716.post-73161751261238562152022-01-01T09:30:26.147+05:302022-01-01T09:30:26.147+05:30यहां भी सोचने जैसी बात है कि पहला शंखनाद कौरवों की...यहां भी सोचने जैसी बात है कि पहला शंखनाद कौरवों की तरफ से होता है। युद्ध के प्रारंभ का दायित्व कौरवों का है; कृष्ण सिर्फ प्रत्युत्तर दे रहे हैं। पांडवों की तरफ से प्रतिसंवेदन है, रिस्पांस है। अगर युद्ध ही है, तो उसके उत्तर के लिए वे तैयार हैं। ऐसे युद्ध की वृत्ति नहीं है। पांडव भी पहले बजा सकते हैं। नहीं लेकिन इतना दायित्व--युद्ध में घसीटने का दायित्व--कौरव ही लेंगे।<br />युद्ध का यह प्रारंभ बड़ा प्रतीकात्मक है। इसमें एक बात और ध्यान देने जैसी है कि प्रत्युत्तर कृष्ण शुरू करते हैं। अगर भीष्म ने शुरू किया था, तो कृष्ण को उत्तर देने के लिए तैयार करना उचित नहीं है। उचित तो है कि जो युद्ध के लिए तत्पर योद्धा हैं...। कृष्ण तो केवल सारथी की तरह वहां मौजूद हैं; वे योद्धा भी नहीं हैं, वे युद्ध करने भी नहीं आए हैं। लड़ने की कोई बात ही नहीं है। पांडवों की तरफ से जो सेनापति है, उसे शंखनाद करके उत्तर देना चाहिए। लेकिन नहीं, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि शंखनाद का उत्तर कृष्ण से शुरू करवाया गया है। यह इस बात का प्रतीक है कि पांडव इस युद्ध को केवल परमात्मा की तरफ से डाले गए दायित्व से ज्यादा मानने को तैयार नहीं हैं। परमात्मा की तरफ से आई हुई पुकार के लिए वे तैयार हैं। वे केवल परमात्मा के साधन भर होकर लड़ने के लिए तैयार हैं। इसलिए यह जो प्रत्युत्तर है युद्ध की स्वीकृति का, वह कृष्ण से दिलवाया गया है।<br />उचित है। उचित है, परमात्मा के साथ लड़कर हारना भी उचित है; और परमात्मा के खिलाफ लड़कर जीतना भी उचित नहीं है। अब हार भी आनंद होगी। अब हार भी आनंद हो सकती है। क्योंकि यह लड़ाई अब पांडवों की अपनी नहीं है; अगर है तो परमात्मा की है। लेकिन यह रिएक्शन नहीं है, रिस्पांस है। इसमें कोई क्रोध नहीं है।<br />अगर भीम इसको बजाता, तो रिएक्शन हो सकता था। अगर भीम इसका उत्तर देता, तो वह क्रोध में ही दिया गया होता। अगर कृष्ण की तरफ से यह उत्तर आया है, तो यह बड़ी आनंद की स्वीकृति है, कि ठीक है। अगर जीवन वहां ले आया है, जहां युद्ध ही फलित हो, तो हम परमात्मा के हाथों में अपने को छोड़ते हैं।❤️👌🌷🌹<br />raginidavehttps://www.blogger.com/profile/13483177543504950554noreply@blogger.com