एक सादगी भरा व्यक्ति जान लेता है कि प्रसन्नता जीवन का स्वभाव है। प्रसन्न रहने के लिए किन्हीं कारणों की जरूरत नहीं होती। बस तुम प्रसन्न रह सकते हो। केवल इसीलिए कि तुम जीवित हो। जीवन प्रसन्नता है जीवन आनंद है लेकिन ऐसा संभव होता है केवल एक सहज सादे व्यक्ति के लिए ही। वह आदमी जो चीजें इकट्ठी करता रहता है, हमेशा सोचता है कि इन्ही चीजों के कारण उसे प्रसन्नता मिलने वाली है....। आलीशान भवन, धन, सुख-साधन, वह सोचता है कि इन्हीं चीजों के कारण वह प्रसन्न है। समस्या धन-दौलत की नहीं है, समस्या है आदमी की दृष्टि की जो धन खोजने का प्रयास करती है। दृष्टि यह होती है, जब तक मेरे पास ये तमाम चीजें नहीं हो जाती है, मैं प्रसन्न नहीं हो सकता हूं। यह आदमी सदा दुखी रहेगा। एक सच्चा सादगी पसंद आदमी जान लेता है कि जीवन इतना सीधा सरल है कि जो कुछ भी है उसके पास, उसी में वह खुश हो सकता है। इसे किसी दूसरी चीज के लिए स्थगित कर देने की उसे कोई जरूरत नहीं है।
सोमवार, 28 मार्च 2011
सादगी भरा व्यक्ति और प्रसन्नता—
एक सादगी भरा व्यक्ति जान लेता है कि प्रसन्नता जीवन का स्वभाव है। प्रसन्न रहने के लिए किन्हीं कारणों की जरूरत नहीं होती। बस तुम प्रसन्न रह सकते हो। केवल इसीलिए कि तुम जीवित हो। जीवन प्रसन्नता है जीवन आनंद है लेकिन ऐसा संभव होता है केवल एक सहज सादे व्यक्ति के लिए ही। वह आदमी जो चीजें इकट्ठी करता रहता है, हमेशा सोचता है कि इन्ही चीजों के कारण उसे प्रसन्नता मिलने वाली है....। आलीशान भवन, धन, सुख-साधन, वह सोचता है कि इन्हीं चीजों के कारण वह प्रसन्न है। समस्या धन-दौलत की नहीं है, समस्या है आदमी की दृष्टि की जो धन खोजने का प्रयास करती है। दृष्टि यह होती है, जब तक मेरे पास ये तमाम चीजें नहीं हो जाती है, मैं प्रसन्न नहीं हो सकता हूं। यह आदमी सदा दुखी रहेगा। एक सच्चा सादगी पसंद आदमी जान लेता है कि जीवन इतना सीधा सरल है कि जो कुछ भी है उसके पास, उसी में वह खुश हो सकता है। इसे किसी दूसरी चीज के लिए स्थगित कर देने की उसे कोई जरूरत नहीं है।
शनिवार, 26 मार्च 2011
क्या आप फिर से एक और जन्म ले सकते है?
हां, एक बार मैंने कहा था कि यदि इसकी आवश्यकता हुई तो मैं आऊँगा वापस। लेकिन अब मैं कहता हूं कि ऐसा असंभव है। अत: कृपा करना, थोड़ी जल्दी करना। मेरे फिर से आने की प्रतीक्षा मत करना। मैं यहां हूं केवल थोड़ और समय के लिए ही। यदि तुम सचमुच ही सच्चे हो तो जल्दी करना, स्थगित मत करना। एक बार मैंने कहा था वैसा लेकिन मैंने कहा था उन लोगों से, जो उस क्षण तैयार न थे। मैं सदा ही प्रत्युत्तर देता रहा हूं। मैंने ऐसा कहा था उन लोगों से जो कि तैयार न थे। यदि मैंने उनसे कहा होता कि मैं नहीं आ रहा हूं। तो उन्होंने एकदम गिरा ही दी होती सारी खोज। उन्होंने सोच लिया होता कि, फिर यह बात संभव ही नहीं है। मैं ऐसा एक जनम में नहीं कर सकता। और वे वापस नहीं आ रहे, तो बेहतर है कि शुरू ही न करना। एक जन्म में उपलब्ध होने के लिए यह एक बहुत बड़ी चीज है। लेकिन अब मैं तुमसे कहता हूं कि मैं यहाँ और नहीं आ रहा हूं। वैसा संभव नहीं है। मुझे लग रहा है कि अब तुम तैयार हो इसे समझने के लिए और गति बढ़ा देने के लिए।
शुक्रवार, 25 मार्च 2011
बुधवार, 23 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—29
प्रेम ओर विवाह--
मेरी दृष्टि में जब तक एक स्त्री और पुरूष परिपूर्ण प्रेम के आधार पर मिलते हे, उनका संभोग होता है। उनका मिलन होता है तो उस परिपूर्ण प्रेम के तल पर उनके शरीर ही नहीं मिलते है। उनकी आत्मा भी मिलती है। वे एक लयपूर्ण संगीत में डूब जाते है। वे दोनों विलीन हो जाते है, और शायद परमात्मा ही शेष रह जाता है उस क्षण। उस क्षण जिस बच्चो का गर्भाधान होता है। वह बच्चा परमात्मा को उपलब्ध हो सकता है। क्योंकि प्रेम के क्षण का पहला कदम उसके जीवन में उठा लिया गया है।
सोमवार, 21 मार्च 2011
चाय का अन्वेषक— बोधिधर्म
एक बौद्ध भिक्षु अपना दैनिक जीवन चाय से आरंभ करता है। उषा काल में, इसके पूर्व कि वह ध्यान करने जाए, वह चाय पीता है। ध्यान कर लेने के उपरांत वह चाय पीता है। और वह इसे बहुत धार्मिक ढंग से, बहुत गरिमा पूर्वक और अहो भाव पूर्वक पीता है। इसे कभी एक समस्या के रूप में नहीं सोचा गया; वस्तुत: बौद्धो ने ही इसकी खोज की थी। ऐतिहासिक रूप से यह बोधि धर्म से संबंधित है।
रविवार, 20 मार्च 2011
अस्तित्व की आधारभूत संरचना—
अब मैं तुम्हें तुम्हारे अस्तित्व की एक परम आधारभूत यौगिक संरचना के बारे में बताता हूं।
जैसे कि भौतिकविद सोचते है कि यह सब और कुछ नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉन, विद्युत-उर्जा से निर्मित है। योग की सोच है कि यह सब और कुछ नहीं वरन ध्वनि-अणुओं से निर्मित है। अस्तित्व का मूल तत्व, योग के लिए ध्वनि है। क्योंकि जीवन और कुछ नहीं बल्कि एक तरंग है। जीवन और कुछ नहीं बल्कि ध्वनि की एक अभिव्यक्ति है।
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—28
प्रेम ओर विवाह--
प्रेम जो है, वह व्यक्तित्व की तृप्ति का चरम बिंदु है। और जब प्रेम नहीं मिलता है तो व्यक्तित्व हमेशा मांग करता है कि मुझे पूर्ति चाहिए। व्यक्तित्व हमेशा तड़पता हुआ अतृप्त हमेशा अधूरा बेचैन रहता है। यह तड़पता हुआ व्यक्तित्व समाज में अनाचार पैदा करता है। क्योंकि तड़पता हुआ व्यक्तित्व प्रेम को खोजने निकलता है। उसे विवाह में प्रेम नहीं मिलता। वह विवाह के अतिरक्ति प्रेम को खोजने की कोशिश करता है।
वेश्याएं पैदा होती है विवाह के की कारण।
गुरुवार, 17 मार्च 2011
सिद्घपुरुष और संबोधी व्यक्ति में भेद—
सिद्ध पुरूष—में वह सारी शक्तियां जिनकी योग बात करता है, और पतंजलि बात करेंगे जिनके बारे में—वे उसे आसानी से उपलब्ध होंगी। वह चमत्कारों से भरा होगा; उसका स्पर्श चमत्कारिक होगा। कोई भी चीज संभव होगी क्योंकि उसके पास निन्यानवे प्रतिशत विधायक मन होता है। विधायकता एक सामर्थ्य है, एक शक्ति है। वह बहुत शक्तिशाली होगा। लेकिन फिर भी वह संबोधी को उपलब्ध तो नहीं है। और वास्तविक बुद्ध की अपेक्षा इस व्यक्ति को तुम आसानी से बुद्ध कहना चाहोगे। क्योंकि संबोधी को उपलब्ध व्यक्ति तो तुम्हारे पार ही चला जाता है। तुम नहीं समझ सकते उसे; वह अगम्य हो जाता है।
बुधवार, 16 मार्च 2011
विवेकानंद और वेश्या– (कथा यात्रा)
ऐसा हुआ कि विवेकानंद अमरीका जाने से पहले और संसार-प्रसिद्ध व्यक्ति बनने से पहले, जयपुर के महाराजा के महल में ठहरे थे। वह महाराज भक्त था विवेकानंद और रामकृष्ण का। जैसे कि महाराज करते है, जब विवेकानंद उसके महल में ठहरने आये,उसने इसी बात पर बड़ा उत्सव आयोजित कर दिया। उसने स्वागत उत्सव पर नाचने ओर गाने के लिए वेश्याओं को भी बुला लिया। अब जैसा महा राजाओं का चलन होता है; उनके अपने ढंग के मन होते है। वह बिलकुल भूल ही गया कि नाचने-गाने वाली वेश्याओं को लेकर संन्यासी का स्वागत करना उपयुक्त नहीं है। पर कोई और ढंग वह जानता ही नहीं था। उसने हमेशा यही जाना था कि जब तुम्हें किसी का स्वागत करना हो तो, शराब, नाच, गाना, यही सब चलता था।
मंगलवार, 15 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—27
प्रेम ओर विवाह--
मनुष्य की आत्मा, मनुष्य के प्राण निरंतर ही परमात्मा को पाने के लिए आतुर है। लेकिन किस मनुष्य को? कैसे परमात्मा को? उसका कोई अनुभव, उसका कोई आकार, उसकी कोई दिशा मनुष्य को ज्ञात नहीं है। सिर्फ एक छोटा सा अनुभव है, जो मनुष्य को ज्ञात है। और जो परमात्मा की झलक दे सकता है। वह अनुभव प्रेम का अनुभव है।
जिसके जीवन में प्रेम की कोई झलक नहीं है। उसके जीवन में परमात्मा के आने की कोई संभावना नहीं है।
रविवार, 13 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—26
युवक और यौन—
जिस दिन दुनिया में सेक्स स्वीकृत होगा, जैसा कि भोजन, स्नान स्वीकृत है। उस दिन दुनिया में अश्लील पोस्टर नहीं लगेंगे। अश्लील किताबें नहीं छपेगी। अश्लील मंदिर नहीं बनेंगे। क्योंकि जैसे-जैसे वह स्वीकृति होता जाएगा। अश्लील पोस्टरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं रहेगी।
अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, की भोजन छिपकर खाना। कोई देख न ले। अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्टर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन। क्योंकि आदमी तब पोस्टरों से भी तृप्ति पाने की कोशिश करेगा। पोस्टर से तृप्ति तभी पायी जाती है। जब जिंदगी तृप्ति देना बंद कर देती है। और जिंदगी में तृप्ति पाने का द्वार बंद हो जाता है।
शुक्रवार, 11 मार्च 2011
संभोग से समाधि की और—25
युवक और यौन—
आदमी के मन का नियम उलटा है। इस नियमों का उलटा नहीं हो सकता है। हां कुछ जो बहुत ही कमजोर होंगे, वह शायद नहीं आ पायेंगे तो रात सपने में उनको भी वहां आना पड़ेगा। मन में उपवाद नहीं मानते है। जगत के किसी नियम में कोई अपवाद नहीं होता। जगत के नियम अत्यंत वैज्ञानिक है। मन के नियम भी उतने ही वैज्ञानिक हे।
यह जो सेक्स इतना महत्वपूर्ण हो गया है वर्जना के कारण। वर्जना की तख्ती लगी है। उस वर्जना के कारण यह इतना महत्वपूर्ण हो गया है। इसने सारे मन को घेर लिया है। सारा मन सेक्स के इर्द-गिर्द घूमने लगाता है।
बुधवार, 9 मार्च 2011
गुरु की खोज—
गुरु की खोज जितनी सरल और सहज हम समझते है। शायद उतनी आसान नहीं है। गुरु की खोज एक प्रतीक्षा है। और गुरु तुम्हें दिखाया नहीं जा सकता। कोई नहीं कह सकता,’’यहां जाओ और तुम्हें तुम्हारा सद्गुरू मिल जायेगा। तुम्हें खोजना होगा, तुम्हें कष्ट झेलना होगा, क्योंकि कष्ट झेलने और खोजने के द्वारा ही तुम उसे देखने के योग्य हो जाओगे। तुम्हारी आंखे स्वच्छ हो जायेगी। आंसू गायब हो जायेगे। तुम्हारी आंखों के आगे आये बादल छंट जायेंगे और बोध होगा कि यह सद्गुरू है।
मंगलवार, 8 मार्च 2011
हंसी कि छ: कोटियां—
भगवान बुद्ध ने एक बार सारिपुत्र से कहां की तुम हंसी पर ध्यान के देखो और मुझे बतलाओ हंसी कितने प्रकार की होती है। सारिपुत्र ने पुरा विवरण बुद्ध भगवान को दिया। सारिपुत्र के पहले और सारिपुत्र के बाद कभी भी किसी ने हंसी को इतनी गहराई से नहीं समझा। सारिपुत्र ने हंसी के छह कोटियों में विभक्त किया। जिसमें हंसी की महिमा के सभी अच्छे और बुरे रूपों को वर्णन किया है। सारिपुत्र के सामने हास्य ने अपना पूरा रूप उद्घाटित कर दिया।
1—सिता
2—हंसिता
3—विहंसिता
4—उपहंसिता
5—अपहंसिता
6—अतिहंसिता
सोमवार, 7 मार्च 2011
स्वर्णिम बचपन (परिशिष्ट प्रकरण)—24
मेरे एथिक्स के प्रोफेसर और मेरे पंचानवे प्रतिशत अंक
जब मैं विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था। मैंने एथिक्स, निति शास्त्र लिया था। मैं उस विषय के प्रोफेसर के केवल एक ही लेक्चर में उपस्थित हुआ। मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा था कि कोई व्यक्ति इतना पुराने विचारों का भी हो सकता है। वे सौ साल पहले जैसी बातें कर रहे थे। उन्हें जैसे कोई जानकारी ही नहीं थी। कि नीति शास्त्र में क्या-क्या परिवर्तन हो चुके है। फिर भी उस बात को में नजर अंदाज कर सकता था। वे प्रोफेसर एकदम उबाऊ आदमी थे।
और जैसे कि विद्यार्थियों को बोर करने की उन्होंने कसम खा ली थी। लेकिन वह भी कोई खास बात न थी। क्योंकि मैं उस समय सौ सकता था। लेकिन इतना ही नहीं वे झुंझलाहट भी पैदा कर रहे थे। उनकी कर्कश आवाज उनके तौर-तरीके,उनका ढंग, सब बड़ी झुंझलाहट ले आने वाले थे। लेकिन उसके भी अभ्यस्त हुआ जा सकता था। लेकिन वह बहुत उलझे हुए इंसान थे। सच तो यह है मैंने कभी कोई ऐसा आदमी नहीं देखा जिसमें इतने सारे गुण एक साथ हो।
जब मैं विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था। मैंने एथिक्स, निति शास्त्र लिया था। मैं उस विषय के प्रोफेसर के केवल एक ही लेक्चर में उपस्थित हुआ। मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा था कि कोई व्यक्ति इतना पुराने विचारों का भी हो सकता है। वे सौ साल पहले जैसी बातें कर रहे थे। उन्हें जैसे कोई जानकारी ही नहीं थी। कि नीति शास्त्र में क्या-क्या परिवर्तन हो चुके है। फिर भी उस बात को में नजर अंदाज कर सकता था। वे प्रोफेसर एकदम उबाऊ आदमी थे।
और जैसे कि विद्यार्थियों को बोर करने की उन्होंने कसम खा ली थी। लेकिन वह भी कोई खास बात न थी। क्योंकि मैं उस समय सौ सकता था। लेकिन इतना ही नहीं वे झुंझलाहट भी पैदा कर रहे थे। उनकी कर्कश आवाज उनके तौर-तरीके,उनका ढंग, सब बड़ी झुंझलाहट ले आने वाले थे। लेकिन उसके भी अभ्यस्त हुआ जा सकता था। लेकिन वह बहुत उलझे हुए इंसान थे। सच तो यह है मैंने कभी कोई ऐसा आदमी नहीं देखा जिसमें इतने सारे गुण एक साथ हो।