अध्याय -12
30 सितम्बर 1976 सायं
चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में
देव का अर्थ है दिव्य और नवीन का अर्थ है नया। दिव्य कभी पुराना नहीं होता और जो पुराना है वह कभी दिव्य नहीं होता। दिव्य हमेशा नया रहता है - यह अपनी शाश्वत नवीनता के कारण दिव्य है।
इसलिए संन्यास का पूरा प्रयास, पूरा उद्देश्य, आपको बिना किसी शर्त के नया बनाना है। यह ऐसा कुछ नहीं है जो एक बार और हमेशा के लिए होता है - यह ऐसा कुछ है जो आपके जीवन के हर पल में होने वाला है। हर पल आपको कल को छोड़ना होगा, हर पल आपको अतीत को छोड़ना होगा। मन की प्रवृत्ति इसे इकट्ठा करने, इस पर पनपने, इस पर मजबूत बनने की है - अतीत, सभी कल।
