संक्रांति की घड़ी---
सामूहिक नींद भी थी। अब कम से कम सामूहिक नींद का बोझ हट गया है।
जरी झकझोर सकते हो अपने को, तो उठ आने में देर न लगेगी।
इधर मैं अनेक लोगों पर ध्यान के प्रयोग करके कहता हूं तुमसे,
यह कोई सैद्धांतिक बात बात नहीं कह रहा हूं, समय बहुत अनुकूल है। सच हर पच्चीस सौ सालों के बाद समय अनुकूल होता है।
ऐसे पच्चीस सौ सालों में हमार सूर्य किसी एक महा सूर्य का एक चक्र पूरा करता है।
हर पच्चीस सौ सालों के बाद संक्रमण की घड़ी आती है।
पच्चीस सौ साल पहले बुद्ध हुए, महावीर हुए, लाओत्से, कनफयूशियस,
च्वांगत्सु, लीहत्सु, जरथुस्त्र, साक्रेटीज, सारी दुनियां बुद्धो से भर गई,
उसके भी पच्चीस सौ साल पहले कृष्ण, मोजेज, भीष्म पितामह, पतंजलि जैसे
बुद्ध पुरूष देखे, ये संक्रांति की घड़ी करीब है।
और संक्रांति की घड़ी का अर्थ होता है, जब सामूहिक नशा टूट जाता है।
सिर्फ व्यक्तिगत नशे के तोड़ने की जरूरत रहती है,
उसे तोड़ना बहुत कठिन नहीं है, आसान है।
इससे ज्यादा आसान कभी भी नहीं होगा।
कभी ऐसा होता है कि नाव ले जानी हो उस पार तो
पतवार चलानी पड़ती है, और ऐसा होता है,
कि पतवार नहीं चलानी पड़ती सिर्फ पाल खोल दो,
हवा अपने आप नाव को उस तरफ ले जाती है।
----ओशो
जय हो॒॒
जवाब देंहटाएंमै चाहूँगा कि "संक्रांति" पर आप कोई आलेख लिखें...आभार होगा...
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