शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

भारत एक सनातन यात्रा—पंतजलि....


पतंजलि का योग-विज्ञान

      पतंजलि अत्‍यंत विरल व्‍यक्‍ति है। वे प्रबुद्ध है बुद्ध, कृष्‍ण और जीसस की भांति, महावीर, मोहम्‍मद और जरथुस्‍त्र की भांति,लेकिन एक ढंग से अलग है। बुद्ध, कृष्‍ण, महावीर, मोहम्‍मद, जरथुस्‍त्र—इनमें से किसी की दृष्‍टिकोण वैज्ञानिक नहीं है। वे महान धर्म प्रवर्तक है, उन्‍होंने मानव-मन और उसकी संरचना को  बिलकुल बदल दिया, लेकिन उनकी पहुंच वैज्ञानिक नहीं हे।
      पतंजलि बुद्ध पुरूषों की दुनिया में आइंस्टीनी है। अद्भुत घटना है। वे सरलता से आइंस्टीनी,बोर, मैक्‍स प्‍लांक या हेसनबर्ग की तरह नोबल पुरस्कार विजेता हो सकते थे। उनकी अभिवृति और दृष्‍टि वही है जो किसी परिशुद्ध वैज्ञानिक मन की होती है। कृष्‍ण कवि है। पतंजलि कवि नहीं है। पतंजलि नैतिक वादी भी नहीं है। जैसे महावीर है। पतंजलि बुनियादी तौर पर एक वैज्ञानिक है, जो नियमों की भाषा में ही सोचते-विचारते है। उन्‍होंने मनुष्‍य के अंतस जगत के निरपेक्ष नियमों का निगमन करके सत्‍य और मानवीय मानस की चरम कार्य-प्रणाली के विस्तार का अन्‍वेषण और प्रतिपादन किया है।
      योग कोई धर्म नहीं है, यह बात स्‍मरण रहे। योग हिंदू नहीं है, मुसलमान नहीं है। योग तो एक विशुद्ध विज्ञान है—गणित, फ़िज़िक्स और केमिस्‍ट्री की तरह है। फ़िज़िक्स न तो ईसाई है और न बौद्ध है। चाहे ईसाई द्वारा ही फ़िज़िक्स के नियमों की खोज की गई हो, लेकिन फिर भी इस विज्ञान को ईसाई नहीं कहा जा सकता है। ये संयोग मात्र है कि ईसाइयों ने फ़िज़िक्स के नियमों का अन्‍वेषण किया। भौतिकी विज्ञान तो मात्र विज्ञान है। और योग भी मात्र विज्ञान है। यह फिर एक संयोगपूर्ण घटना ही है कि हिंदुओं ने योग को खोजा। लेकिन इससे यह हिंदू तो न हुआ। यह तो विशुद्ध गणित हुआ आंतरिक का। इसलिए एक मुसलमान भी योगी हो सकता है, ईसाई भी योगी हो सकता है। इसी तरह एक जैन, एक बौद्ध भी योगी हो सकता है।
      योग तो शुद्ध विज्ञान है। और जहां तक योग-विज्ञान की बात है। पतंजलि इस क्षेत्र के सबसे बड़े नाम है। यह पुरूष विरल है। किसी अन्‍य की पतंजलि के साथ तुलना नहीं की जा सकती। मनुष्‍य के इतिहास में धर्म को पहली बार विज्ञान की अवस्‍था तक लाया गया। पतंजलि ने धर्म को मात्र नियमों का विज्ञान बना दिया,जहां विश्‍वास की जरूरत नहीं है।
      सब तथाकथित धर्मो को विश्‍वासों की जरूरत रहती है। धर्मों में परस्‍पर कोई विशेष अंतर नहीं है। अंतर है तो उनकी अलग-अलग धारणाओं में ही। एक मुसलमान के अपने विश्‍वास है, इसी तरह हिंदू और ईसाई के अपने-अपने विश्‍वास है। अंतर तो विश्‍वासों में ही है। जहां तक विश्‍वासों की बात है। योग इस विषय में कुछ नहीं कहता। योग तो तुम्‍हें किसी बात पर विश्‍वास करने को नहीं कहता। योग कहता है। अनुभव करो। जैसे विज्ञान कहता है। प्रयोग करो, योग कहता है: अनुभव करो। प्रयोग और अनुभव एक ही बात है, उनकी दशाएं अलग-अलग है।
      योग मृत्‍यु तथा नव जीवन दोनों ही है। तुम जैसे हो, उसे तो मरना होगा। और जब तक पुराना मरेगा नही, नए का जन्‍म नहीं हो सकता। नया तुममें ही तो छिपा है। तुम केवल उसके बीज हो। और बीज को गिरना ही होगा, धरती में पिघलने के लिए। बीज को तो मिटना ही होगा, केवल तभी तुममें से नया प्रकट होगा। तुम्‍हारी मृत्‍यु ही तुम्‍हारा नव जीवन बन पाएगी। योग दोनों है—मृत्‍यु भी और जन्‍म भी। जब तक तुम मरने को तैयार न होओ तब तक तुम्‍हारा नया जन्‍म नहीं हो सकता है। यह केवल विश्‍वास को बदलने की बात नहीं है।
      ये मौत कोई साधारण मोत नहीं है, इसे तो हम लाखों बार जीते और मरते है। वह हमारे अहंकार की मौत है। और जन्‍म भी कोई साधारण नहीं उस के लिए तुम ही मां और तुम ही पिता बनोगें इसे अध्‍यात्‍मिक जगत में अयोनि कहां जाता है, द्विज। योनि से तो हमारा जन्‍म हजारों लाखों बार हुआ है। जब तुम अयोनि जन्‍म जाते हो तब प्रकृति तुम्‍हारे सामने नत मस्‍तक हो जाती है। उस का खेल खत्‍म हो जाता है। वो हार जाती है तुम्‍हारे सामने, फिर वो तुम्‍हारी मालिक नही रहती तुम अपने स्‍वय के मालिक हो जाते हो। ये पतंजलि शब्‍दों से नहीं कहते मार्ग के एक-एक स्‍थान को चिन्‍हित करते चलते है। वो किसी भगवान आत्‍मा परमात्‍मा मैं विश्‍वास करने को भी नहीं कहते। वो तुम्‍हें वहां ले जा कर छोड़े देते है। बिना किसी प्रमाण के तुम्‍हें उस अभूतपूर्व घटना पर पहुंचा देते है। इस लिए पतंजलि वैज्ञानिक है। कोई धर्म गुरु नहीं वो विरल है अभूतपूर्व है बेजोड़ है। पाँच हजार सालों में उस उच्‍चाई को कोई छू भी नहीं पाया।
ओशो—(पतंजलि योग सूत्र-1, प्रवचन-1)

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