मंगलवार, 18 जनवरी 2011

बिल्‍ली मत पलना—(कथा यात्रा)

एक बार एक महात्मा मरने के करीब था। उसने अपने पिय शिष्‍य को अपने पास बुलाया और कहने लगा। देख तू मेरी एक बात मान जो चाहे करना पर बिल्‍ली मत पालना। ये में अपने जीवन भी निचोड़ तुझे दिये जा रहा हूं। ये तेरी जीवन का सूत्र है। शिष्‍य ने कहा पर गुरूदेव में इस सूत्र का अर्थ समझ नहीं पाया। पर गुरु के पास समय कम था सो वह स्‍वर्ग सीधार गये। अब युवक उस सूत्र में उलझा रह गया। कितने शस्‍त्र पढ़ पर उसका हल नहीं मिला। अब गुरु की बात को झूठ तो मान नहीं सकता। उपनिषद, पुराण, सभी धार्मिक ग्रंथों में टटोल लिया पर उस गूढ सूत्र का रहस्‍य नहीं मिला तो नहीं मिला। पर शिष्‍य की समझ में ये नहीं आ रहा था की बिल्‍ली का अध्‍यात्‍म से क्‍या रहस्‍य हो सकता है। और फिर में बिल्‍ली क्‍यों पालू ही क्‍यों? बिल्‍ली के पालने में ऐसा क्‍या है, नाहक लोग हंसेंगे। कुत्‍ते के साथ रहोगे तो आधे कुत्‍ते तो तुम खुद ही हो जाओगे। अब में क्‍यों ऐसा चुनाव कुरू। बात आई गई हो गई। थोड़ दिनों में युवक उस बात को ही भूल गया। सोचा गुरु मरते समय सठिया गया था।
      तब वह युवक जंगल में एक कुटिया बना कर ध्‍यान करने लगा। अब जंगल की कुटिया कोई सुरक्षित जगह तो थी नहीं। वहाँ पर आस पास में चूहे बहुत थे। युवक के पास पहने के लिए दो जोड़ा कपड़े थे, उन्‍हें भी वह चूहे काटने लगे। वह परेशान हो गया। गांव में जब भिक्षा मांगने के लिए जाता तो लोग पूछते महाराज कपड़ों में छेद क्‍यों हो गया। तब उस युवक को बड़ी शर्म आती। अब वह जब भी कपड़े धोकर सुखाता,साथ एक मोटा सोटा ले कर बैठ जाता जिससे की चूहे उन्‍हें काटने न पाये। रात भी कपड़ों की सुरक्षा के लिए उसे बार-बार जागना पड़ता। आखिर में तंग आ कर उसने गांव के लोगो से कहां की मेरे झोंपड़े के आस पास चूहे बहुत है। बताओ क्‍या करे। तब एक बुजुर्ग ने कहां करना क्‍या है। तुम एक बिल्‍ली को क्‍यों नहीं पाल लेते। वह सारे चूहों को वहां से भगा देगी या खा जायेगी। युवक को यह बात पसंद आई और वह गांव में से एक बिल्‍ली को मांग कर ले गया। तब भी उसे गुरु की बात याद नहीं आई। कि गुरु कह गये थे कि बेटा सब करना पर बिल्‍ली को मत पालना।
      बिल्ली ने तो महीने भर में सारे चूहे सफाचट कर दिये। अब उसे बड़े चेन की नींद आती। उसकी सारी की सारी फिक्र बिल्‍ली ने अपने कंधे पर ले ली। पर महीने बाद जब चूहे खत्‍म हो गये तब बिल्‍ली भूखी रहने लगी। वह गांव में जाता तो भिक्षा के साथ उस बिल्‍ली के लिए दुध भी माँगता। तब एक दो दिन तो लोग बागों ने दे दिया। पर दूध उनके बच्‍चो के लिए भी कम ही था। अब साधु की बिल्ली के लिए कहां से दे। साधु परेशान होने लगा। लोगों उसे प्रेम और श्रद्धा की नजर से देखते थे। अब गांव कहने लगे महाराज आप ऐसा क्‍यों नहीं करते एक गाय को पान लो। आस पास चारा तो बहुत है। आपको क्‍या करना है। श्‍याम को दूध निकाल लेना। आप दोनों का बड़े मजे से गुजर हो जायेगा। बात साधु को जँचीं। वह किसी किसान के यहां से बूढ़ी गाय मांग कर ले गया। रोज-रोज दूध देने से बेहतर यही था कि एक गाय ही दे दि जाये। अब वह दूध भी कितना देती थी। पर साधु के पा जाकर उसने खुब दुध देना शुरू कर दिय1 उस के साथ जो  बछड़ा था वह भी बड़ा हो गया। कुछ ही दिनों में उसने एक और बच्‍चे को जनम दिया। आब साधु के पास चार प्राणी हो गये। एक बिल्‍ली। और गाय और उसके बछड़े। उसे उनके लिए एक झोपडी भी बनाना पडा। चारे की कमी के कारण। वह आस पास की खाली जमीन पर कुछ तरा-सरसो बोने लगा। सारा दिन जमीन को साफ करता। पानी देता। काटता। उसे ध्‍यान के लिए समय ही नहीं मिलता। लोगो ने कहा की थोड़ा सा गेहूँ भी क्‍यों नहीं बो देते फिर तुम्‍हें भिक्षा की भी जरूरत नहीं रहेगी। वैसे भी अब भी वह भिक्षा मांगने जाने की सोचता पर जा नहीं पाता था। उसका अपना ही काम कितना हो गया था। कहीं गोबर उठना,कहीं बछड़े का नहलाना। पूरा झमेला हो गया साधु के सर पर।
      रात-रात भर खेतों की रखवाली करन। जंगली जानवर उन्‍हें खराब न कर दे। उसके चारों और कांटे की झंडियां लगाई। अब वह थक गया ओर फिर एक गांव में गया और राय मांगने लगा। की तुमने अच्‍छी राय दि पर। अब मेरा काम बहुत बढ़ गया है। ध्‍यान तपश्चर्या भी नहीं कर पाता। पहले भिक्षा मांगता था। और दिन भर ध्‍यान करता था। अब तो चौबीस घंटे खेतों के या गाय के पीछे ही लगे रहना पडा है। अब एक गाय की दस हो गई। मेरा पूरा शरीर थक जाता है। तुम कुछ राय दो अब क्‍या करू।
      गांव वालों ने कहा, बात तो आपकी ठीक है। पर तुम अब एक काम कर सकते हो। गांव में एक नवयुवक मर गया। उसकी पत्‍नी बेचारी विधवा है। बहुत ही नेक और शरीफ है। अब उसका कोई नहीं है। क्‍यों न तुम उस विधवा को साध्वी बना कर अपने पास रख लो। वह आपके पचास काम करेगी। एक से दो भले होगें। काम भी आधा-आधा बट जायेगा। शरीर से वह बहुत मजबूत है। आपको तो काम करने ही नहीं देगी। खेतीबाड़ी में साथ जायेगी। और आप जब थक होगें तो आपके पैर भी दबा देगी। भोजन बना देगी। घर की सफाई कर देगी। किसान की बेटी है। मेरे ख्‍याल से आप अपनी तपश्चर्या करना और वह आपके सारे काम को देख लेगी।
      साधु को बात जँचीं। और फिर जो होना था सो हुआ। फिर विधवा से धीर-धीरे प्रेम हो गया। विधवा पैर भी दबाए, रोटी भी खिलाएं। स्‍नान भी करवाए। अब सारा दिन का संग साथ। तो धीरे-धीरे एक दूसरे से लगाव हो गया। फिर दोनों ने एक दिन गांव के लोगो से राय ली की अब क्‍या किया जा सकता है। हम लोगो में प्रेम हो गया है। लोगो ने कहा ये तो आपका बड़ा पन है। आपकी महानता है। आपने हमें बताया। नहीं तो हमे पता ही नहीं चलता। सो भलाई अब इसी में है कि आप पति पत्‍नी बन जाये। सो लोगों ने साधु की शादी करा दी। देखते ही देखते दो तीन बच्‍चे हो गये। फिर बच्‍चों को पढ़ाना लिखाना, उनकी शादी विवाह करना। बात बढ़ती ही चली गई। एक बिल्ली से शुरू हो कर बात इतनी दूर चली गयी। की बल्‍ली की बात तो वह युवक साधु भूल ही गया। जब वह मरने लगा तो तब उसे अपने गुरु की बात याद आई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
      मरते गुरू ने जो सुत्र शिष्‍य को दिया था। वह उसकी समझ में नहीं आया। समझ में आ भी नहीं सकता। हम अनुभव से भी समझ जाये तो काफी बुद्धिमान...पर हम अनुभव से भी नहीं समझ पाते। गुरु ने कहां था। बेटा बिल्‍ली भर मत पालना। कैसी भूल हो गई। पूरा जीवन बेकार चला गया। तब साधु ने सोचा। मैने गुरु की बात न मान कर कितनी बड़ी गलती की है। अब ये बात अगले जन्‍म में याद रखूंगा.....तब हम यह मान ले कि वह रख सकेगा। जब इस जन्‍म में उसे याद नहीं रहा था तो पिछले जन्‍म की कोई संभावना नहीं है।
      मन जब तक साथ है तो बिल्‍ली नहीं पालेगे तो कुत्‍ता पाल लोगे। इससे फर्क कुछ पड़ने वाला नहीं है। कुछ भी पालो। मन जब तक होगा, खेती न करोगे तो दुकान चलाओग। फिर वह दुकान पूजा की ही क्‍यों न हो। यज्ञ हवन की ही क्‍यों न हो। मन कुछ न कुछ करवाएगा। मन बिना कर्ता हुए नहीं रह सकता। मन के प्राण ही उसके कर्ता होने में है।
ओशो
कहे होत अधीर—पलटू

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