अचानक
रूकने की कुछ
विधियां:
तीसरी
विधि:
‘’पूरी
तरह थकनें तक
घूमते रहो, और तब
जमीन पर
गिरकर, इस
गिरने में पूर्ण
होओ।‘
वही
है, विधि वही
है।
पूरी
तरह थकनें तक
घूमते रहो।
बस
वर्तुल में घूमों।
कुदो, नाचो, दौड़ों,
जब तक थ न जाओ
घूमते रहा। यह
घूमना तब तक
जारी रहे जब
तक ऐसा न लगे
कि और एक कदम
उठना असंभव
है। लेकिन यह
ख्याल रखो कि
मन कह सकता है
कि अब पूरी
तरह थक गए। मन
की बिलकुल मत
सुनो। चलते
चलो, दौड़ते
रहो। नाचते
रहो, कूदते
रहो।
मन
बार-बार कहेगा
कि बस करो, अब
बहुत थक गए।
मन पर ध्यान
ही मत दो। तब
तक घूमना जारी
रखो जब तक
महसूस न हो—विचारना
नहीं, महसूस
करना महत्वपूर्ण
है—कि शरीर
बिलकुल थक गया
है। और अब ऐ
कदम भी उठाना
संभव न होगा। और
यदि उठाऊंगा
तो गिर जाऊँगा।
जब तुम अनुभव
करो कि अब
गिरा तब गिरा।
अब आगे नहीं
जा सकता, शरीर
भारी और थक कर चूर हो
गया है। ‘’तब जमीन
पर गिरकर इस
गिरने में पूर्ण
होओ।‘’ तब गिर
जाओ।
ध्यान
रहे कि थकना
इतना हो कि
गिरना अपने आप
ही घटित हो।
अगर तुमने
दौड़ना जारी
रखा तो गिरना
अनिवार्य है।
जब यह चरम
बिंदू आ जाए
तब—सूत्र कहता
है—गिरो और इस
गिरने में पूर्ण
होओ।
इस
विधि का
केंद्रिय
बिंदू यही है:
जब तुम गिर रहे
हो, पूर्ण
होओ।
इसका
क्या अर्थ है? पहली
बात यह है कि
मन के कहने से
ही मत गिरो।
क्योंकि
आयोजन मत करो।
बैठने की चेष्टा
मत करो, लेटने
की चेष्टा मत
करो। पूरे के
पूरे गिर जाओ
मानो कि पूरा शरीर
एक है। और वह
गिर गया है।
ऐसा न हो कि
तुमने उसे
गिराया है।
अगर तुमने
गिराया है तो
तुम्हारे दो
हिस्से हो
गए। एक गिरने
वाले तुम हुए और
दूसरा गिराया
हुआ शरीर हुआ।
तब तुम पूर्ण
न रहे। खंडित और
विभाजित रहे।
उसे
अखंडित गिरने
दो; अपने को समग्ररतः:
गिरने दो। ‘गिरो’
शब्द को याद
रखो। व्यवस्था
नहीं करनी है।
मृतवत गिर
जाना है। इस
गिरने में
पूर्ण होओ। अगर
इस भांति गिरे
तो पहली बार
तुम्हें
अपने पूरे अस्तित्व
का, अपनी
पूर्णता का
एहसास होगा।
पहली बार
केंद्र को
अखंड, अद्वैत,
एक अनुभव
करोगे। यह
कैसे घटित
होगा?
शरीर
में ऊर्जा के
तीन तल है। एक
है दैनंदिन
कामों का तल।
इस तल को याद
रखो। आसानी से
चुक जाती है।
यह दिनचर्या
के कामों के
लिए ही है।
दूसरा तल आपातकालीन
कामों के लिए
है। यह ज्यादा
गहरा ती है।
जब तुम किसी
संकट में होते
हो तभी इस
ऊर्जा का
उपयोग करते
हो। और तीसरा
तल जागतिक
ऊर्जा का है,
जो अनंत है।
पहले
तल की ऊर्जा
आसानी से चुक
जाती है। यदि
मैं तुम्हें
दौड़ने को
कहूं तो तुम
तीन चार चक्कर
लगाकर कहोगे
कि मैं थक गया
हूं। सच में तुम
थके नह हो।
पहल तल की ऊर्जा
समाप्त हो गई
है। सुबह में यह
इतनी आसानी से
नहीं चुकती,
शाम में जल्दी
चुक जाती है।
क्योंकि दिन
भर तुमने उसका
उपयोग किया
है। अब इसे
विश्राम की
जरूरत है। यही
वजह है। कि
रात में शरीर
आराम खोजता
है। उसे गहरी
नींद की जरूरत
है। जागतिक ऊर्जा
के भंडार से
शरीर फिर अगले
दिन के काम के
लिए जरूरी ऊर्जा
ले लेगा। यह
पहली तल हुआ।
अभी
यदि मैं तुमसे
दौड़ने को
कहूं तो तुम
कहोगे कि मुझे
नींद आ रही
है। तभी कोई
आता है और कहता
है कि तुम्हारे
घर में आग लग
गई है। अचानक
तुम्हारी
नींद काफूर हो
गई। थकावट
जाती रही। तुम
ताजा हो गए और दौड़ने
लगे। अचानक क्या
हुआ? तुम थके
थे, लेकिन आपत्काल
ने तुम्हें
तुम्हारी
ऊर्जा के
दूसरे तल से
जोड़ दिया, और तुम
फिर ताजा हो
गये। यह दूसरा
तल है।
इस
विधि में
दूसरे तल की
ऊर्जा का
चुकाना है।
पहला तल बहुत
आसानी से चुक
जाता है। उसने
चुकने पर भी दौड़ते
रहो। थकनें पर
भी दौड़ते
रहो। कुछ ही
क्षण में
ऊर्जा की एक
नई लहर आएगी और
तुम फिर ताजा
हो जाओगे। और तुम्हारी
थकावट चली
जायेगी।
अनेक
लोग मुझसे आकर
कहते है कि जब
हम साधना शिविर
में होते है
तब एक चमत्कार
सा होता है कि
हम इतना कर
लेते है। सुबह
में एक घंटा
सक्रिय ध्यान,
जिसमे हम पूरे
पागल की तरह
ध्यान करते
है। पिछले पहर
भी एक घंटा ध्यान
करते है। और फिर
रात में भी।
तीन-तीन बार
हम पागलों की
तरह ध्यान
करते है। अनेक
लोगों ने कहां
है कि यह हमें
असंभव सा लगता
है। लगता है
कि अब और नहीं चलेगा।
लगता है कि
अगले दिन हाथ पाँव
हिलाना भी असंभव
होगा। लेकिन
कोई थकता नहीं
है। रोज
तीन-तीन सत्र और
इतना कठिन
श्रम। और इसके
बावजूद कोई भी
नहीं थकता है।
ऐसा क्यों है?
ऐसा
इसलिए है कि
लोग शिविर में
दूसरे तल की
ऊर्जा से
संबंधित हो
जाते है। यदि
तुम अकेले करो
तो थक जाओगे।
किसी पहाड़ पर
जाकर प्रयोग
करके देखो,
पहले तक के चूकते
ही तुम चुक
जाते हो।
लेकिन एक बड़े
समूह में,
जहां पाँच सौ
लोग सक्रिय ध्यान
कर रहे हों,
बात दूसरी है।
तुम्हें
लगता है,
दूसरे लोग जब नहीं
थके है तो
तुमको भी कुछ
देर जारी रखना
चाहिए। और हरेक
आदमी ऐसा ही
सोच रहा है।
कि जब कोई
नहीं थका है
तो मुझे भी
जारी रखना
चाहिए। जब सक
काई ताजा और सक्रिय
है तो मैं ही
क्यों थकान
अनुभव करूं?
यह
समूह भाव तुम्हें
प्ररेणा देता
है। शक्ति
देता है और तुम
दूसरे तल पर
पहूंच जाते
हो। और दूसरा
तल बहुत बड़ा
है—आपातकालीन तल
जो है। और जब
आपातकालीन तल
चुकता है तब और
अभी, तुम जाग्रति
तल में,
प्रवेश कर
जाते हो। अनंत
से तुम्हारा
संबंध स्थापित
हो जाता है।
इसलिए बहुत
श्रम की जरूरत
है। इतने श्रम
की कि तुम्हें
लगे कि अब यह
मेरे बस की
बात नहीं है।
लेकिन
अभी भी यह
तुम्हारे वश
के बाहर नहीं है।
यह सिर्फ तुम्हारे
पहले तल कि
ऊर्जा के वश
के बाहर है।
जब पहले तल की
ऊर्जा चुकती
है। तो थकावट
महसूस होती
है। दूसरे तल
की ऊर्जा के
चूकने पर तुम्हें
लगेगा की अब
अगर और ज्यादा
किया तो मैं
मर जाऊँगा।
अनेक
लोग मरे पास
आते है और कहते
है कि जब हम ध्यान
की गहराई में उतरते
है तो एक क्षण
के आता है कि
हम भयभीत हो
जाते है। आतंकित
हो जाते है।
क्योंकि
लगता है कि
मृत्यु करीब
है। इससे आगे
जाने पर मृतयु
निशचित है।
यह
मृत्यु का भय
पकड़ लेता है।
और लगता है कि
ध्यान के
बाहर आना नहीं
हो सकेगा।
यही
वह क्षण है,
ठीक क्षण, जब
तुम्हें
साहस की जरूरत
है। थोड़ा और साहस
और तुम तीसरे
तल में प्रविष्ट
हो जाओगे। यह
सबसे गहरा तल
है—आत्यंतिक, अनंत।
यह
विधि तुम्हें
ऊर्जा के
जागतिक सागर में
आसानी से
उतारने में सहयोगी
है।
‘’पूरी
तरह थकनें तक
घूमते रहो, और तब
जमीन पर
गिरकर, इस
गिरने में पूर्ण
होओ।‘’
और
जब तुम जमीन
पर गिरते हो तो
पहली बार तुम
पूर्ण हो
जाओगे—अद्वैत,
एक कोई
विभाजन, कोई
द्वैत नही
रहेगा। विभाजनों
वाला मन विदा
हो जाएगा। और पहली
बार वह सत्ता
प्रकट होगी जो
अविभाजित है,
अविभाज्य
है।
ओशो
विज्ञान
भैरव तंत्र,
भाग—2
प्रवचन—17
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