दिनांक
29 जून;
सन् 1976
श्री
ओशो आश्रम
पूना।
बाउलगीत:
जो
व्यक्ति
प्रेम के
अनुभव से
अनजाना है
उसके
साथ सम्बंध जोड़कर तुम
कैसे किसी
निष्कर्ष परपहुंच
सकते हो?
उल्लू
सूर्य की
किरणों से
अंधा बना
बैठा
हुआ आकाश को
एकटक देखता
रहता है।
मनुष्य एक
अनवरत खोज है, एक
शाश्वत तलाश
है, और
निरंतर बना
रहने वाला एक
प्रश्न है। यह
खोज है उस
ऊर्जा के लिए
जो पूरे
अस्तित्व को
संभाले हुए है
चाहे तुम उसे
परमात्मा कहो,
सत्य कहो, अथवा चाहे
जिस नाम से पुकारो।
कौन एक साथ इस
अनंत
अस्तित्व को
धारण किए हुए है?
इस सभी का
केंद्र और
इसका सबसे
महत्त्वपूर्ण
भाग कौन है?
विज्ञान, दर्शनशास्त्र
और धर्म सभी
एक ही प्रश्न
पूछ रहे हैं।
उनके दिए गए
उत्तर भिन्न—भिन्न
हो सकते हैं, लेकिन उन
सभी के प्रश्न
ठीक वही हैं।
धर्म, उसे
परमात्मा
कहते हैं।
वैज्ञानिक इस
शब्द
परमात्मा से
सहमत नहीं है।
यह नाम बहुत
व्यक्तिगत
दिखाई देता है।
मनुष्य के रूप
में यह परमात्मा
के ही आरोप
जैसा मनुष्य
द्वारा ईजाद
किया गया नाम
जैसा लगता है।
वे लोग इसे ' विद्युत ' अथवा ' चुम्बकीय
ऊर्जा
क्षेत्र ' कहते
हैं, लेकिन
केवल नाम ही
अलग है।
परमात्मा
उनके लिए एक ' ऊर्जा ' क्षेत्र
है।
दार्शनिक
इसे विभिन्न
नाम दिए चले
जाते हैं, चट्टानों
की पर्तों का
बुनियादी
स्वरूप, पूर्ण
अथवा ब्रह्म। थेल्स से
लेकर बर्टेन्ड
रसेल तक, उन
लोगों ने इस
प्रश्न के
अनेक उत्तर
दिए हैं। कभी
कुछ दार्शनिक
कहते हैं—’‘ वह
जल है और
उसमें तरलता
और प्रवाह है,
कभी कोई
कहता है वह
अग्नि है।
लेकिन उनकी
खोज शाश्वत
बनी हुई है।
ऐसा क्या है
जो इस अनंत
ब्रह्माण्ड
को एक साथ
धारण किए हुए
है?''
बाउल
इसे प्रेम
पुकारते हैं
और मेरे लिए
भी उनका यह
उत्तर सबसे
अधिक संगत
प्रतीत होता
है। यह न तो
व्यक्तिगत है
और न
अवैयक्तिक है।
इसमें कुछ
तत्व
परमात्मा
जैसा है और
कुछ ऐसा है, जो
चुम्बकीय है,
जो दिव्य है
और उसमें कुछ
ऐसा है जिसमें
पृथ्वी की सुवास
है।
प्रेम
के दो चेहरे
होते हैं। यह
इटली के
प्राचीन
देवता जानुस
जैसा है।
(जिसके आने
जाने के दो
द्वारों के
प्रतीक स्वरूप
आगे पीछे दो
चेहरे होते थे।)
एक चेहरा
पृथ्वी की ओर
नीचे देखता है
और दूसरा
चेहरा ऊपर
आकाश की ओर।
यह। एक ऐसा
महान
संश्लेषण है, जिसकी
अभी तक धारणा
की गई है। यह
वासना से
जन्मता
प्रार्थना की
ओर जाता है।
यह कीचड़ से
उत्पन्न होता
है और सूर्य
की ओर देखते
हुए एक कमल का
पुष्प बन जाता
है।
यह
शब्द ' प्रेम
' समझने
जैसा है। इस
प्रेम शब्द से
हम क्या अर्थ
लेते हैं?
एक चीज का तो
निश्चित रूप
से हम यह अर्थ
लेते हैं कि
उसमें अपनी ओर
खींचने की एक
महान शक्ति है।
जब तुम किसी
के प्रेम में पडते हो तो
ऐसा नहीं है
कि तुम कुछ
करते हो। तुम
खींच लिए जाते
हो। उसमें एक
चुम्बकीय
शक्ति होती है।
तुम अपने
प्रेमपात्र
की ओर आकर्षित
होते हो, जैसे
तुम असहाय
होकर प्रेम
पात्र की
चुम्बकीय
शक्ति से अपनी
इच्छा के
विरुद्ध भी
उसकी ओर खींच
लिए जाते हो।
उसमें एक
खिंचाव और
आकर्षण होता
है, एक
चुम्बकीय
क्षेत्र होता
है। यही कारण
है कि हम उसे ' प्रेम में
गिरना ' या '
प्रेम के
लिए मर जाना ' कहते हैं।
गिरना और मरना
कौन चाहता है?
लेकिन कौन
प्रेमी उससे
अपने को बचा
सकता है? जब
वह ऊर्जा
तुम्हें
पुकारती है तब
तुम वही पुराने
व्यक्ति नहीं
रह जाते। कुछ
चीज जो तुमसे
बड़ी महान और
दिव्य है वह
तुम्हें अपनी
ओर आमंत्रित
कर रही है, जादू
से अपनी ओर
खींच रही है।
यह चुनौती ऐसी
है कि कोई भी
व्यक्ति उसकी
ओर सिर के बल दौड़
पड़ता है।
इसलिए
पहली चीज जो
समझने जैसी है
वह यह है कि प्रेम
में आकर्षण और
अपनी ओर
खींचने की एक
महान शक्ति
होती है। तुम
अचानक ही वही
सामान्य
व्यक्ति नहीं
रह जाते।
चमत्कारिक
रूप से
तुम्हारी
चेतना में कुछ
चीज बदल जाती
है। प्रेम
तुम्हें
रूपांतरित कर
देता है।
प्रेम में
गिरकर एक
हिंसक मनुष्य
भी कोमल और दयावान
बन जाता है।
एक हत्यारा भी
इतना अधिक
करुणापूर्ण
बन जाता है कि
लगभग इस पर
विश्वास करना
ही असम्भव
लगता है।
प्रेम एक
चमत्कार है—वह
तुच्छ धातु को
स्वर्ण में
बदल देता है।
जब लोग
प्रेम में पड़
जाते हैं, तब क्या
तुमने उनके
चेहरे और आंखों
का निरीक्षण
किया है? तुम
विश्वास ही
नहीं कर सकते
कि ये लोग वही
व्यक्ति हैं।
जब प्रेम उनकी
आत्माओं को
अपने अधिकार
में ले लेता
है, उनकी
आकृति बदल
जाती है, जैसे
वे किसी अन्य
आयाम में चले
जाते हैं और
वह भी अचानक......
और वह भी
स्वयं उनके
बिना कोई
प्रयास के।
जैसे मानो वे
परमात्मा के
जाल में पकड़
लिए गए हो।
प्रेम उन्हें
निम्न तल से
उच्च तल की ओर
ले जाता है, वह पृथ्वी
को आकाश में
रूपांतरित कर
देता है, वह
मनुष्य को
दिव्यता में
बदल देता है।
ये दो चीजें
है, पहली
है—प्रेम एक
ऊर्जा
क्षेत्र है......
.वैज्ञानिक भी
इससे सहमत है।
दूसरी चीज हैं—प्रेम
में एक
रूपांतरित कर
देने वाली
शक्ति है। वह तुम्ह
भारहीन होने
में सहायता
करती है, वह
तुम्हें पंख
देती है। तुम
अनंत की ओर
सभी के पार जा
सकते हो।
धार्मिक
विचारक इससे
सहमत होंगे कि
प्रेम
परमात्मा और
विद्युत
दोनों ही हैं।
प्रेम एक
दिव्य ऊर्जा
है। बाउलों
ने प्रेम को
चुना है, क्योंकि
यह मनुष्य के
जीवन में होने
वाला सबसे
अधिक
महत्त्वपूर्ण
अनुभव है। तुम
भले ही
धार्मिक हो
अथवा नहीं, इससे कोई
अंतर नहीं
पड़ता। प्रेम
मनुष्य के
जीवन का
केंद्रीय
अनुभव बना ही
रहता है। यह
सबसे अधिक
सामान्य और
सबसे अधिक
असामान्य है।
यह कम या अधिक
प्रत्येक
व्यक्ति को
घटता है और जब
यह घटता है, यह आकृति और
प्रकृति
दोनों बदल
देता है। यह
सामान्य होकर
भी असामान्य
है। यह
तुम्हारे और
सर्वोच्च
सत्ता के मध्य
एक सेतु है।’’
हमेशा
तीन ' प ' का स्मरण
रखो—प्रेम, प्रकाश और
परिपूर्ण
जीवन।
परिपूर्ण
जीवन तुम्हें
अस्तित्व ने
दिया है, तुम
उसे जी रहे हो।
प्रकाश
तुम्हारे
सामने मौजूद
है लेकिन तुम्हें
प्रकाश और
अपने पूरे
जीवन के मध्य
एक सेतु बनाना
है। यह सेतु
ही प्रेम है। इन
तीनों प को
लेकर तुम पूरे
जीवन का मार्ग
बना सकते हो, अपने होने
और अस्तित्व
को एक नई दिशा
दे सकते हो।
बाउल
दार्शनिक
नहीं है। वे
लोग कवि अधिक
हैं—वे गाते
और नाचते हैं।
वे सोच विचार
नहीं करते।
वास्तव में वे
लगभग
दार्शनिकता
के विरोधी जैसे
हैं, कयोंकि
उनकी यह भली
भांति समझ में
आ गया है कि जब
भी मनुष्य बुद्धि
प्रधान अधिक
हो जाता है वह
प्रेम करने में
असमर्थ हो
जाता है और
प्रेम ही सेतु
बनने जा रहा
है। एक मनुष्य
जो बहुत अधिक
बुद्धि
प्रधान हो जाता
है, हृदय
से दूर चला
जाता है और
हृदय ही वह
केंद्र है, जो प्रेम की
पुकार का
उत्तर देता है।
बुद्धिप्रधान
व्यक्ति
संसार से कटकर
जैसे उससे दूर
हो जाता है।
वह रहता संसार
में ही है, लेकिन वह
ऐसे रहता है
जैसे मानो
किसी गहरी गफलत
में हो। वह
रहता संसार
में ही है, लेकिन
वह उस वृक्ष
की भांति रहता
है, जिसने
अपनी जड़ें खो
दी हों। वह
सिर्फ नाम भर
को रहता है, कुछ यों
रहता है जैसे
उसमें जीवन का
रस अब और प्रवाहित
ही न हो रहा हो।
जैसे सभी से
सम्पर्क तोड़कर
वह सभी ले टूट
गया हो। जैसे
उस पर से उसका
स्वामित्व
कहीं और
हस्तांतरित
हो गया हो।
आज का
मनुष्य ऐसा
अनुभव करता है, जैसे
स्वयं पर से
उसका स्वामित्व
कहीं और
हस्तांतरित
हो गया है, वह
यहां अपने
आपको बाहरी
व्यक्ति जैसा
अकेला अनुभव
करता है, उसे
ऐसा नहीं लगता
कि वह अपने घर
में है, जीवन, अस्तित्व
और इस संसार
के साथ आराम
से है। उसे
ऐसा अनुभव
होता है जैसे
उसे इस संसार
में फेंक दिया
गया है और वह
एक आशीर्वाद
या वरदान की
अपेक्षा एक
अभिशाप कहीं
अधिक है।
ऐसा
आखिर हुआ
क्यों है? बहुत
अधिक बुद्धिप्रधान
होने के कारण,
मस्तिष्क
को बहुत अधिक
प्रशिक्षण
दिए जाने से
उसकी वे जडें
ही कट गई हैं
जो हृदय को
उससे जोड़े हुए
थीं। यहां
बहुत से लोग
हैं और मैंने
यह निरीक्षण किया
है कि हजारों
लोग ऐसे हैं
जो यह जानते
भी नहीं कि हृदय
है क्या? वे
उसे छोड़ ही
चुके हैं।
हृदय उनका धड़कता
जरूर है, लेकिन
उसकी ऊर्जा
उसके द्वारा
प्रवाहित नहीं
हो रही। वे
उसे छोड़ कर
आगे बढ़ गए है, वे सीधे
खोपड़ी में चले
गए हैं। जब वे
प्रेम भी करते
हैं, तो वे '
सोचते ' हैं
कि वे प्रेम
कर रहे हैं।
जब वे कुछ
अनुभव करते
हैं तो ' वे
सोचते हैं ' कि वे अनुभव
कर रहे हैं।
अनुभव करना
अथवा
भावपूर्ण
होना भी सोचने
के द्वारा ही
होता है।
वास्तव में यह
नकली होना ही
है।
सोचना—विचारना
सबसे बड़ा धोखा
और झूठ है, क्योंकि
सोचना, मनुष्य
का संसार को
समझने का
प्रयास है और
प्रेम है परमात्मा
का मनुष्य को
समझने का
प्रयास। मुझे
इसे फिर
दोहराने दो —
जब तुम
परमात्मा
अथवा
अस्तित्व
अथवा सत्य को समझने
का प्रयास
करते हो, वह
तुम्हारी
अखण्ड और उस
अनंत पूर्ण के
एक भाग, एक
बहुत छोटे से
भाग को पकड़ने
की कोशिश हैं।
इस कोशिश को
बरबाद होना ही
है, वह
असम्भव है।
ऐसा होना
वस्तुओं का
स्वभाव नहीं
है।
प्रेम
तब जन्मा, जब
परमात्मा ने
तुम्हें पाया।
प्रेम तब उपजा,
जब
परमात्मा के
हाथ तुम्हें
खोजने को
टटोलते हुए
आगे बड़े।
प्रेम तब होता
है, जब तुम
अपने खोजने की
परमात्मा को
अनुमति देते
हो। इसलिए तुम
प्रेम की
व्यवस्था
नहीं कर सकते।
तुम तर्क
वितर्क करने
की व्यवस्था
कर सकते हो
जहां तक तर्क
वितर्क का
सम्बंध है, तुम इसमें
बहुत बहुत
कुशल हो सकते
हो। जिस क्षण
प्रेम उमगता
है, तुम
पूरी तरह से
अक्षम और
नकारा बन जाते
हो। तब तुम यह
नहीं जानते कि
तुम हो कहां, तब तुम यह
नहीं जानते कि
तुम क्या कर
रहे हो, तब
तुम यह नहीं
जानते कि तुम
कहां जा रहे
हो, तब तुम
किसी
नियंत्रण को
जानते ही नहीं।
तर्क वितर्क
को नियंत्रित
किया जा सकता
है, लेकिन
प्रेम
अनियंत्रित
है। तर्क—वितर्क
कुशलता से की
जाने वाली
व्यवस्था है,
जब कि प्रेम
होना एक घटना
है। तर्क
तुम्हें यह
अनुभव कराता
है कि तुम भी
कुछ हो और
प्रेम
तुम्हें इस
बात का अहसास
देता है कि
तुम कुछ भी हो
नहीं हो।
तुममें
प्रेम तभी
उमगता है, जब तुम
अपने अंदर
परमात्मा को
प्रवेश करने
की अनुमति
देते हो। जब
तुम अपने से
कोशिश कर रहे
हो तो पूरा
प्रयास ही
व्यर्थ है।
मैंने
सुना है:
अपनी
लड़की के यहां
एक सांध्यकालीन
उत्सव में
मुल्ला नसरुद्दीन
को धकेलते हुए
मुख्य अतिथि
तक ले जाया
गया। उसने
सुना कोई उसे
डॉक्टर कहकर
सम्बोधित कर रहा
है। अब उसने
आत्मविश्वास
के साथ कहा—’‘ डॉक्टर!
क्या मैं आपसे
एक प्रश्न पूछ
सकता हूं?''
उसने
कहा—’‘ निश्चय
ही। आप अवश्य
पूछिए।’’ मुल्ला
नसरुद्दीन
ने कहा—’‘ कुछ
देर से मेरे
दिल के नीचे
एक अजीब तरह
का दर्द हो
रहा है.......।’’ मेहमान
ने असहज होने
का अनुभव करते
हुए उसे टोका—’‘
मुझे बहुत बहुत
अफसोस है
मुल्ला! लेकिन
सत्यता यह है
कि मैं डॉक्टर
ऑफ फिलासफी
हूं।’’ नसरुद्दीन ने कहा—’‘ ओह!
मुझे बहुत
अफसोस है।’’ यह कहते हुए
वह जाने के
लिए मुड़ा,
लेकिन फिर
घूमकर अपनी
उत्सुकता
शांत करने के लिए
उसने कहा—’‘ डॉक्टर!
एक प्रश्न और,
कृपया मुझे
यह बतलाइये
कि यह फिलासफी
किस तरह की बीमारी
होती है।’’
हां। फिलासफी
या
दर्शनशास्त्र
एक तरह की
बीमारी ही है
और वह किसी
तरह की
सामान्य
बीमारी ही
नहीं, वह
कैंसर से भी
कहीं अधिक
अन्य शेष सभी
बीमारियों को
मिलाकर उनसे
भी कहीं अधिक
खतरनाक है। एक
रोग केवल एक
जड़ को काट
सकता है। सभी
बीमारियां
मिलकर भी
तुम्हें एक
साथ अस्तित्व
से पूरी तरह
नहीं काट सकती।
दर्शनशास्त्र
तुम्हें बस
पूरी तरह काट
देता है, तुम
पूरी तरह जडूमूल
से उखड़ जाते
हो।
यह रोग
है क्या? जब अस्तित्व
के साथ
तुम्हारे
सम्बंध का एक
तार ढीला हो
जाता है, तुम
बीमार पड़ जाते
हो। जब सिर से
सम्बंध शिथिल
होता है। तब
वहां सिर दर्द
होता है। जब
से सम्बंध टूट
जाता है तो
पेट दर्द होता
है। कहीं न
कहीं तुम
स्वतंत्र हो
जाते हो, तुम
एक दूसरे पर
आश्रित रहने
वाले
अस्तित्व सागर
में जब और
नहीं रह पाते,
तभी बीमारी
प्रकट होती है।
रोग की अपनी
एक अलग
स्वतंत्रता
है। जब तुम्हारे
अंदर कैंसर की
कोशिकाएं
विकसित होती हैं।
वह विकास अपने
आप में एक नया
संसार हैं।
उसका इस
अस्तित्व के
साथ कोई
सम्बंध नहीं
होता। एक
रुग्ण मनुष्य
वह है, जिसके
कई तरह से
अस्तित्व से
सम्बंध नहीं
रह गए। जब कोई
रोग जटिल, पुराना
और असाध्य हो
जाता है, उसका
साधारण सा
अर्थ यही है
कि उसकी जड़ें
पूरी तरह नष्ट
हो चुकी हैं।
यहां तक कि
पृथ्वी में
उसे फिर रोपने
की भी संभावना
नहीं रह गई है।
तुम्हें केवल
आशिक रूप से
जीवित रहना
होगा, क्योंकि
तुम्हारा एक
भाग मृत ही
रहेगा। किसी
को लकवा मार
जाता है, इसका
क्या अर्थ है? शरीर
ने अस्तित्व
की ऊर्जा के
साथ अपना
सम्बन्ध तोड़ दिया
है। अब वह
लगभग एक मृत
चीज है असम्बंधित।
केवल लटका हुआ।
अब उसमें जीवन
रस प्रवाहित
नहीं हो रहा
है।
यही है
वह, जिसे
रुग्णता कहते
हैं, तब
दर्शनशास्त्र
वास्तव में वह
सबसे बड़ी बीमारी
है जो यहां हो
सकता है—
क्योंकि यह
तुम्हें
अस्तित्व से
पूरी तरह काट
देती है और
इतना ही नहीं
यह तुम्हारा
ऐसे तर्क से
भी सम्बंध
विच्छेद कर
देती है जो
तुम्हें कभी
भी इस बात से
सजग नही होने
देता कि तुम
रुग्ण हो। यह
तुम्हारा
सम्बंध ऐसे
औचित्य और
तार्किक समझ
के साथ जोड़
देती है कि
तुम कभी सजग नहीं
हो पाते और
तुम चूके चले
जाते हो। यह
स्वयं को
न्यायसंगत
ठहराने की
बहुत बड़ी बीमारी
है, जो
अपना समर्थन
किए चले जाती
है।
दर्शनशास्त्र
का अर्थ कि
मनुष्य पूरी
तरह से बुद्धि
के अधिकार में
हो गया। वह
अस्तित्व को
प्रेम की
दृष्टि के
द्वारा न देखकर,
तर्क की ही
दृष्टि से
देखता है।
जब तुम
तर्क की
दृष्टि के
द्वारा देखते
हो, तो
तुम बहुत थोड़ी
सी चीजें ही
जानोगे, लेकिन
वे थोड़ी सी
चीजें
तुम्हें सत्य
और वास्तविकता
की पूरी
दृष्टि नहीं
देंगी। वह
केवल थोड़ा सा
संक्षिप्त
विवरण होगा।
जब तुम
प्रेम के
द्वारा देखते
हो, तब
तुम सत्य और
वास्तविकता
जैसी है, उसे
यथार्थ रूप
में जानते हो।
प्रेम
अस्तित्व के
साथ मिलकर, एक साथ
सहभागिता में
बरस रहा है।
वह सर्वोच्च
आनंद का एक
प्रपात जैसा
है और तुम
उसमें बहे जा
रहे हो और
अस्तित्व सदा
से ही प्रवाहित
हो रहा है और
दोनों एक
दूसरे, से
मिलकर, एक
दूसरे में
समाहित होकर,
जैसे दो सरिताओं
का एक संगम बन
गए हो। इस
मिलन से एक
महान
संश्लेषण
उत्पन्न हो
रहा है। खण्ड,
अखण्ड में
मिल रहा है और
अखण्ड खण्ड
में समाहित हो
रहा है। तब
कोई ऐसी चीज
उत्पन्न होती
है जो खण्ड से
कहीं अधिक
होती है और
जिसमें साथ ही
अखण्ड भी होता
है। यही है वह
प्रेम।
मनुष्य की सभी
भाषाओं में
प्रेम
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण
शब्द है
क्योंकि
प्रेम की भाषा,
अस्तित्वगत
भाषा है।
लेकिन
किसी न किसी
प्रकार हम
बचपन से ही
अपंग बना दिए
जाते हैं।
हमारी जड़ें
हृदय से काट
दी जाती हैं।
हमको बुद्धि
की ओर
बलपूर्वक
धकेल दिया
जाता है और
हृदय तथा भाव
की ओर जाने की
अनुमति नहीं
मिलती। यही वह
चीज है जिससे
मनुष्यता एक
लम्बी अवधि से
पीड़ित है, यही वह
गहरा संकट है,
जिसके कारण
मनुष्य अभी भी
प्रेम के साथ
रहने में
समर्थ नहीं हो
पा रहा है।
इसके
कुछ कारण हैं।
प्रेम में
बहुत बड़ी
जोखिम है।
प्रेम
तुम्हें
खतरों में ले
जाता है
क्योंकि तुम
उसे
नियंत्रित
नहीं कर सकते, उसमें
कोई सुरक्षा
नहीं होती।
तुम्हारे
हाथों में फिर
कुछ भी नहीं
रह जाता। तुम
बेबस हो जाते
हो। उसके बारे
में पहले से
कुछ भी नहीं
कहा जा सकता, वह
तुम्हें कहां
किस ओर ले
जाएगा, कोई
भी नहीं जानता।
प्रत्येक
स्थिति में वह
कहीं ले ही
जाएगा, यह भी कोई
नहीं जानता।
कोई भी
व्यक्ति निपट
अंधेरे में ही
आगे बढ़ रहा
होता है, लेकिन
जड़ें अंधेरे
में ही विकसित
होती हैं। यदि
एक वृक्ष की
जड़ें ही
अंधेरे से
डरकर, पृथ्वी
के अंदर न
जाएं तो वृक्ष
मर जाएगा।
उन्हें
अंधेरे में
आगे बढ़ना ही
होता है।
उन्हें
पृथ्वी की गहनतम
और गहरी
पर्तों की ओर
बढ़ना होता है।
जहां वे पोषित
होने के लिए
जल का स्रोत
खोज सकें।
हृदय
भी तुम्हारे
अस्तित्व का
सबसे अधिक अंधेरा
भाग है, वह एक
अंधेरी रात की
भांति है। वह
तुम्हारा
गर्भ है। वही
तुम्हारी
पृथ्वी है।
इसीलिए लोग
अंधेरे में
जाने से डरते
हैं और वे
प्रकाश में ही
रहना चाहते
हैं। कम से कम
तुम यह देख तो
सकते हो कि
तुम हो कहां और
क्या होने जा
रहा है। तुम
सुरक्षित और
सही सलामत हो।
जब तुम प्रेम
में आगे बढ़ते
हो, तुम
होने वाली
संभावनाओं का
अनुमान नहीं
लगा सकते तुम
परिणामों का
भी अनुमान नहीं
लगा सकते। तुम
परिणामों की
ओर उन्मूख
होकर किसी
विशिष्ट दिशा
में आगे नहीं
बढ़ सकते।
प्रेम के लिए
भविष्य का कोई
अस्तित्व है
ही नहीं, केवल
वर्तमान ही
सामने रहता है।
तुम इस क्षण
में हो सकते
हो, लेकिन
तुम आने वाले
अगले क्षण के
बारे में कुछ
भी सोच ही
नहीं सकते।
प्रेम में कोई
योजना बनाना
संभव ही नहीं
है।
समाज, सभ्यता, संस्कृति और
संगठित धर्म—
यह सभी एक
छोटे से बच्चे
को, जो वे
ठीक समझते हैं,
उस पर
विश्वास कर
उसे करने को
विवश करते हैं।
वे सभी
शक्तियों को
उसकी बुद्धि
में केंद्रित
करने का
प्रयास करते
हैं। और एक
बार सारी ऊर्जाएं
और शक्तियां
बुद्धि में
केंद्रित हो
जाये, फिर
हृदय की ओर
प्रवाहित
होना बहुत
कठिन हो जाता
है। वास्तव
में प्रत्येक
बच्चा प्रेम
की महान ऊर्जा
के साथ ही
जन्म लेता है,
क्योंकि
प्रेम की
ऊर्जा से ही
वह जन्मता है।
बच्चा प्रेम
और विश्वास से
भरा हुआ होता
है। क्या
तुमने एक छोटे
से बच्चे की आंखों
में झांक कर
देखा है? कितने
विश्वास से
भरी हुई है वे?
बच्चा किसी
भी बात पर
विश्वास कर
सकता है।
बच्चा सांप के
साथ भी खेल
सकता है, बच्चा
किसी भी
व्यक्ति के
साथ कहीं भी
जा सकता है।
बच्चा आग के
भी इतने अधिक
निकट जा सकता
है कि वह उसके
लिए खतरनाक भी
हो सकता है
क्योंकि बच्चे
ने अभी तक
संदेह करना
नहीं सीखा है।
इसलिए हम उसे
संदेह करना
सिखलाते हैं।
हम उसे सत्य
और प्रत्येक
बात पर सन्देह
और तर्क करना
सिखलाते हैं।
यह विषम
परिस्थितियों
में जीवित
रहने की ओर
उठाये गए कदम
दिखाई देते हैं।
हम उसे भयभीत
होना, सावधानी
बर्तना
और समझदार
बनना सिखलाते
हैं और यह सभी
चीजें मिलकर
उसके प्रेम की
संभावना की
हत्या कर देती
है।
मैंने
सुना है :
डी.
अब्राहम को
मुल्ला नसरुद्दीन
की दुकान पर
उसे देखने
बुलाया गया, जहां
मुल्ला बेहोश
पड़ा हुआ था।
डॉक्टर
अब्राहम ने एक
लम्बे समय तक
उसका इलाज और
देखभाल की और
उसे होश में
ले आया।
होश
में आने पर
उसने मुल्ला
से पूछा— '' आखिर तुमने
उस चीज को
पिया ही क्यों?
क्या तुमने
उसकी शीशी पर
लगे लेबिल
पर यह पढ़ा
नहीं कि वह
विष है।’’
नसरुद्दीन ने
उत्तर दिया—’‘ जी हां
डॉक्टर साहब!
मैंने उसे पढ़ा
तो, लेकिन
उस पर विश्वास
नहीं किया।’’
डॉक्टर
अब्राहम ने
पूछा—’‘ आखिर
क्यों?''
नसरुद्दीन ने
उत्तर दिया—’‘ क्योंकि
मैंने जब कभी
भी किसी पर
विश्वास किया,
मैंने धोखा
ही खाया।’’
लोग
धीमे— धीमे ही
सीखते है—कि
कैसे विश्वास
न किया जाए और
कैसे पक्का
संदेही बना
जाए। और यह
इतनी अधिक
धीमी गति और
इतनी छोटी —छोटी
खुराकें
लेने के बाद
घटता है, कि तुम कभी
भी उसके प्रति
सजग हो ही
नहीं पाते, जो कुछ
तुम्हें घट
रहा है। जब वह
घट चुकता है
तो काफी देर
हो चुकी होती
है। यही वह
चीज है, जिसे
लोग अनुभव
कहते हैं। वे
लोग तभी उसी
व्यक्ति को
अनुभवी कहते
हैं, जब वह
हृदय के साथ
अपना सम्बंध
पूरी तरह तोड़
चुका होता है,
वे कहते हैं—’‘
यह व्यक्ति
बहुत अधिक
अनुभवी, बहुत
अधिक चतुर और
चालाक है और
इसे अब कोई भी
व्यक्ति धोखा
नहीं दे सकता।’’
भले ही
उसे कोई भी
व्यक्ति धोखा
न दे सकता हो, लेकिन
उसने स्वयं
अपने आप को ही
धोखा दिया है।
उसने वह सभी
कुछ खो दिया
था, जो
बचाने जैसा है।
उसने सभी कुछ
खो दिया है।
और वह बचा
क्या रहा है?
तब एक
बहुत विलक्षण
घटना घटती है।
लोग दूसरे
व्यक्तियों
से प्रेम नहीं
कर सकते, क्योंकि लोग
धोखेबाज हो
सकते हैं। वे
वस्तुओं से
प्रेम करना
शुरू कर देते
हैं क्योंकि
उसके स्थान पर
प्रेम करने की
बहुत अधिक
जरूरत है, वे
उसका विकल्प
खोजने लगते
हैं। कोई
व्यक्ति अपने
घर से प्रेम
करने लगता है,
कोई अपनी
कार से प्रेम
करने लगता है,
कोई
व्यक्ति कपड़ों
से और अन्य
कोई व्यक्ति
धन से प्रेम
करने लगता है।
वास्तव में घर
धोखा नहीं दे
सकता, इस
प्रेम में कोई
खतरा नहीं है।
तुम कार से
प्रेम कर सकते
हो, एक कार
एक असली
व्यक्ति की
अपेक्षा कहीं
अधिक विश्वसनीय
है। तुम धन से
प्रेम कर सकते
हो, धन तो
मृत है। वह
हमेशा तुम्हारे
नियंत्रण में
रहता है। बहुत
से लोग
व्यक्तियों
की अपेक्षा, वस्तुओं से
क्यों अधिक
प्रेम करते
हैं? और
यदि वे किसी
व्यक्ति से
प्रेम करते भी
हैं, तो वे
उस व्यक्ति को
एक वस्तु की
भांति तुच्छ और
बेजान बना
देते हैं। यदि
तुम किसी
स्त्री से
प्रेम करते हो,
तुम तुरंत
उसे अपने अधीन
कर अपनी पत्नी
बनाने को
तैयार हो जाते
हो, जो वह
है, तुम
उसके कद को
घटाकर उसे एक
विशिष्ट
पत्नी का रोल
देने को तैयार
हो जाते हो
क्योंकि असली
प्रेमिका की
अपेक्षा उसके
बारे में पहले
ही से कुछ
अधिक जाना जा
सकता है। यदि
तुम किसी
पुरुष से प्रेम
करती हो तो
तुम उसे एक
वस्तु की
भांति अपने अधिकार
में रखना
चाहती हो। तुम
चाहती हो कि
वह तुम्हारा
पति बन जाए
क्योंकि
प्रेमी में
कहीं अधिक
तरलता होती है,
कोई भी नहीं
जानता कि वह.
एक पति कहीं
अधिक ठोस दिखाई
देता है। कम
से कम उसके
साथ कानून तो
है, कचहरी
और पुलिस तो
है और उस बारे
में राज्य
सरकार भी है जो
उसके पति पर
उसके अधिकार
को एक विशिष्ट
दृढ़ता
प्रदान करती
है। एक प्रेमी
तो स्वप्न
सदृश दिखाई
देता है, वह
उतना अधिक
वास्तविक
नहीं है।
शीघ्र ही
प्रेम में
पड़ने के बाद
लोग विवाह करने
के लिए तैयार
हो जाते हैं।
प्रेम से
उन्हें इतना
अधिक भय होता
है। और जिससे
भी हम प्रेम
करते हैं हम
उसे अपने नियंत्रण
में लेने की
कोशिश शुरू कर
देते हैं। पति
और पत्नी के
बीच मां और
बेटों के बीच,
भाई और
बहनों के बीच
और मित्रों के
मध्य भी यही
संघर्ष चल रहा
है : कि कौन
किसे अपने
अधिकार में
रखने जा रहा
है। इसका अर्थ
है कौन किसे
वस्तु बनाकर
अपने अधिकार
में करने जा
रहा है, कौन
किसे अपनी
सीमा में
आबद्ध करने जा
रहा है? कौन
मालिक बनेगा
और कौन गुलाम
बनेगा?
मुल्ला नसरुद्दीन
शराब का जाम थामे उदास
बैठा था और
उसे देखकर
उसके मित्र ने
उससे पूछा—’‘ तुम आज अपना
मुंह सिए
हुए खामोश
क्यों बैठे हो?''
नसरुद्दीन ने कहा—’‘ मेरा
मनोविश्लेषक
कहता है कि
मुझे अपने
छाते से प्रेम
हो गया है, और
वही मेरी
मुसीबतों का
स्रोत है।’’
'' तुम
अपने छाते के
प्रेम में पड़
गए हो?''
'' हां!
पर क्या यह
इतनी व्यर्थ
की बात है? ओह!
मैं अपने छाते
को बहुत अधिक
पसंद करता हूं
उसका सम्मान
करता हूं और
उसे साथ रखने
का आनंद लेता
हूं। लेकिन
प्रेम?''
लेकिन
प्रेम और होता
क्या है? यदि तुम
अपने छाते को
अपने साथ रखने
में प्रसन्न
होते हो, यदि
तुम उसका
सम्मान करते
हो और तुम
अपने छाते को
चाहते हो, तो
प्रेम
आखिरकार इससे
अधिक और क्या
हो सकता है? प्रेम है
किसी को
सम्मान देना,
अत्यधिक
आदर देना।
प्रेम एक गहरी
चाहना है और
जिसे तुम
प्रेम करते हो,
उसकी
उपस्थिति में
पूर्ण रूप से
प्रसन्न रहना
ही प्रेम है।
इसके
अतिरिक्त
प्रेम और होता
क्या है?
लेकिन
लोग वस्तुओं
से प्रेम करते
हैं—किसी न
किसी तरह उस
खाली स्थान को
किसी अन्य चीज
से मरने की
गहरी जरूरत है।
स्मरण
रहे पहला संकट
है कि कोई
व्यक्ति
बुद्धि प्रधान
या सोच विचार
करने वाला बन
जाए। दूसरी
महान विपदा यह
है कि कोई व्यक्ति
प्रेम करने के
लिए किसी
व्यक्ति का
प्रतिस्थापन
किसी वस्तु से
करे। तब तुम
भटक गए। किसी
मरुस्थल में
विलीन हो गये।
तब तुम सागर
तक कभी न
पहुंच सकोगे।
तब तुम बस
बिखर कर नष्ट
हो जाओगे। भाप
बनकर उड़ जाओगे।
तब तुम्हारा
जीवन पूरी तरह
बरबाद हो
जाएगा।
जिस
क्षण भी
तुम्हें यह
होश आ जाए कि
जो कुछ हो रहा
है, वह
यही है तो हृदय
के साथ जुड्ने
के सभी सम्भव
प्रयास करो, अपनी चाल का
रुख बदल दो।
यह वही है, जिसे
बाउल प्रेम
कहते हैं—हृदय
के साथ फिर से
सम्बंध जोड़ना
तुम्हारे साथ
समाज द्वारा
जो कुछ भी
किया गया है, उस किए को
अनकिया करना।
और जो समाज
द्वारा
तुम्हारे साथ
नहीं किया गया
है, वही
सच्चा धर्म है।
उन सभी व्यर्थ
की चीजों को
अनकिया करना
है जो तुम्हारा
भला चाहने
वालों ने
तुम्हारे साथ
की है। वे
सोचते होंगे
कि वे
तुम्हारी
सहायता कर रहे
हैं और वे
जानबूझ कर
तुम्हें
बरबाद नहीं कर
रहे होंगे। वे
लोग स्वयं भी
इसी तरह अपने
माता—पिता और
समाज के शिकार
बने होंगे।
मैं उनके
विरुद्ध कोई
भी बात नहीं
कह रहा हूं।
उन सभी के लिए
अत्यधिक
करुणा की
आवश्यकता है।
गुरजियेफ अपने
शिष्यों से
कहा करता था
कि एक व्यक्ति
केवल तभी
धार्मिक बनता
है, जब
वह अपने माता—पिता
को क्षमा करने
योग्य बन जाता
है। क्षमा
करना? हां!
ऐसा कैसे हो
होता है। इसे
समझना बहुत
कठिन है। जिस
क्षण तुम सजग
बनते हो, यह
बहुत मुश्किल
लगता है लगभग
असम्भव ही कि
तुम अपने माता—पिता
को क्षमा कर
सको, क्योंकि
उन्होंने
तुम्हारे साथ
बहुत सी चीजें
ऐसी की होंगी,
और वास्तव
में उन्होंने
वे अनजाने और
मूर्च्छा में
ही की होगी, लेकिन फिर
भी उन्होंने
की है।
उन्होंने
तुम्हारे
प्रेम को नष्ट
कर दिया और उन्होंने
तुम्हें मृत
तर्क—वितर्क
और विचार थमा
दिए।
उन्होंने
तुम्हारी समझ
और प्रज्ञा को
नष्ट कर दिया
और उसके
प्रतिस्थापन
के रूप में
तुम्हें
बुद्धि दी।
उन्होंने
तुम्हारे
जीवन की
जीवंतता नष्ट
कर दी और
तुम्हें रहने
के लिए एक
बंधा बंधाया
ढांचा और एक
योजना दे दी।
उन्होंने
तुम्हारी
दिशा ही बिगाड़
दी और तुम्हें
एक लक्ष्य
अथवा एक मंजिल
दे दी।
उन्होंने
तुम्हारे
जीवन में
उत्सव आनंद
मनाने के क्षण
नष्ट कर दिए
और तुम्हें
बाजार में बिकने
वाली वस्तु
बना दिया।
बहुत कठिन है
उन्हें क्षमा
करना। इसीलिए
तभी पुरानी
परम्पराएं
कहती हैं—
अपने माता—पिता
का सम्मान क्रो।
पर
उनको क्षमा कर
पाना बहुत
कठिन है। और
उनको आदर देना
तो बहुत बहुत
कठिन कार्य है।
लेकिन यदि तुम
इसे समझ गये
हो, तो
तुम उन्हें
क्षमा कर दोगे,
तुम ठीक वही
कहोगे, जो
जीसस ने क्रॉस
पर कहा था—’‘ हे
परमपिता!
उन्हें क्षमा
कर, वे
नहीं जानते कि
वे क्या कर
रहे हैं?'' हां!
ठीक यही शब्द
थे वे। और
यहां
प्रत्येक
व्यक्ति
क्रॉस पर ही
चढ़ा है और यह
क्रॉस
तुम्हारे
दुश्मनों
द्वारा तैयार
नहीं किया गया
है, लेकिन यह
तुम्हारे
माता—पिता और
समाज द्वारा
बनाया गया है,
और
प्रत्येक
व्यक्ति
क्रॉस पर लटका
हुआ है।
यह
मस्तिष्क
इतना अधिक
नियंत्रक बन
गया है कि यह
सहजता और
स्वाभाविकता
को निकट आने
ही नहीं देता।
वह तानाशाह बन
गया है। वह
हृदय को एक भी
शब्द कहने की
अनुमति ही
नहीं देता।
उसने हृदय को
पूरी तरह
खामोश रहने को
विवश कर दिया
है।
तुम्हें
फिर से हृदय
की आवाज को
सुनना होगा।
तुम्हें तर्क
को थोड़ा— थोड़ा
छोडना शुरू
करना पड़ेगा।
तुम्हें कुछ
खतरे उठाने
होंगे।
तुम्हें कुछ
जोखिम उठाकर
जीना पड़ेगा।
तुम्हें
अज्ञात की ओर
आगे बढ़ना होगा
और तुम्हें
वस्तुओं से
प्रेम न कर
व्यक्तियों
से प्रेम करना
होगा।
तुम्हें इसके
लिए अपने को
तैयार करना
होगा कि तुम
किसी व्यक्ति
पर अधिकार न जमाओ, क्योंकि जिस
क्षण तुम उस
पर अधिकार
जमाते हो, वह
व्यक्ति फिर
वह रह ही नहीं
जाता, वह
एक वस्तु जैसा
बन जाता है और
किसी वस्तु पर
ही अधिकार
किया जा सकता
है।
इसे
जितनी अधिक
गहराई से
सम्भव हो सके, समझने का
प्रयास करो, जिस क्षण
तुम किसी
व्यक्ति से
प्रेम करने
लगते हो, तुम्हारा
आदतों और
अनुशासन से
आबद्ध ढांचा,
उसे अपने
अधिकार में
लेने की कोशिश
शुरू कर देता
है। इस
प्रलोभन को
रोको, शैतान
तुम्हें लालच
दे रहा है—यह
शैतान है समाज,
यह शैतान है
सभ्यता और
तुम्हारा
तथाकथित धर्म।
यह शैतान
धार्मिक
लिबास पहने
हुए
शास्त्रों के
उद्धरण दिए
चले जा रहा है।
उससे सावधान
रहो।
तुम जब
भी किसी को
अपने अधिकार
और नियंत्रण
में लेने की
कोशिश करते हो, तुम
प्रेम—हत्या
कर देते हो।
इसलिए या तो
तुम किसी
व्यक्ति को
अपने अधिकार
में ले सकते
हो, अथवा
तुम किसी
व्यक्ति से
प्रेम कर सकते
हो—दोनों साथ—साथ
करना सम्भव
नहीं है।
इसलिए
दो चीजों में
से एक को ही
चुनना है — एक
व्यक्ति जो
बाउल बनना
चाहता है, एक
प्रेमी बनना
चाहता है, उसे
अपनी सारी पकड़
छोड़नी
होगी। अधिकार
के सम्बंध में
सभी
प्रलोभनों को
छोड़ना होगा, क्योंकि यह
प्रलोभन
अहंकार से आ
रहा है।
एक बार
मुल्ला नसरुद्दीन
ने मुझसे कहा— '' श्रीमान!
यह बात कितनी
प्रशंसनीय है
कि हम दोनों
एक दूसरे के
कितने अनुरूप
हैं। जब कि
व्यावहारिक रूप
में हम लोगों
में कुछ भी
समान नहीं है।’’
मैंने
उत्तर दिया—’‘ ओह! हां, पर हम लोहों
में एक बहुत
ही समान
महत्त्वपूर्ण
बात है। मेरा
ख्याल है कि
तुम एक अद्भुत
व्यक्ति हो और
इस बारे में
मेरे साथ
सहमति रखते हो।’’
अहंकार
गलत चीजों के
लिए सहमति दिए
चले जाता है, क्योंकि
गलत चीज के
साथ ही अहंकार
अस्तित्व में
बने रह सकता
है। गलत चीज
ही उसका भोजन
है। इसलिए
तुम्हें जब भी
यह महसूस हो
कि तुम्हारा
अहंकार तुष्ट
हो गया है, सावधान
हो जाओ तुमने
किसी गलत चीज
को भोजन बना
लिया है।
तुमने कोई गलत
चीज निगल ली
है। तुम्हें
जब भी अहंकार
शून्य होने का
अनुभव होता है,
तुम
विश्रामपूर्ण
हो जाते हो।
अब तुमने किसी
ऐसी चीज को
आहार बनाया है
जो तुम्हारी
प्रकृति से
मेल खाती है।
बाधाओं
और मुसीबतों
से ही अहंकार
का जन्म होता
है, लेकिन
उसका अपना एक
अलग तर्क है।
वह यह कहे चले
जाता है कि
तुम महत्वपूर्ण
हो, कि तुम
संसार के सबसे
अधिक
महत्त्वपूर्ण
व्यक्ति हो और
तुम्हें इसे
सिद्ध करना है।
और हम सभी इसे
एक या दूसरी
तरह से करने की
कोशिश कर रहे
हैं कोई इसे
अधिक धन पाकर,
कोई एक
सुंदर स्त्री
पर अधिकार
प्राप्त कर, कोई इसे
प्रतिष्ठा
अथवा शक्ति
पाकर, कोई
राष्टाध्यक्ष
या
प्रधानमंत्री
बनकर, कोई
कलाकर अथवा
कवि बनकर और
कोई महात्मा
बनकर, लेकिन
हम सभी किसी न
किसी तरह अपनी
आंतरिक सनक
द्वारा यह
सिद्ध करने
में जुटे हुए
हैं कि हम ही
संसार के
सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण
व्यक्ति हैं।
तब तुम एक
प्रेमी नहीं
हो।
महत्त्वाकांक्षा, प्रेम के
लिए एक विष है।
प्रेमी को इसे
सिद्ध करने की
कोई आवश्यकता
नहीं होती।
वास्तव में वह
जानता है कि
उसे प्रेम मिल
रहा है। और
यही उसके लिए
पर्याप्त है।
बहुत
सावधानी से इस
रोग को
पहचानने की
कोशिश करो। जब
तुम्हें कोई
प्रेम नहीं
करता और यदि
तुम स्वयं
किसी से प्रेम
नहीं करते तो
तुम्हें किसी
और का प्रेम
कैसे मिल सकता
है? जब
तुम्हें
प्रेम नहीं
किया जाता और
तुम भी किसी
से प्रेम नहीं
करते, तभी
अकस्मात्
संसार को कुछ
करके दिखाने
की, कि तुम
बहुत
महत्त्वपूर्ण
हो और
तुम्हारी आवश्यकता
है संसार को, एक चाह
उत्पन्न हो
जाती है। उस
स्थिति में एक
बहुत बड़ी चाह
होती है कि
तुम संसार
द्वारा चाहे
जाओ। तुम्हें
लगता है कि
यदि तुम न
चाहे गए तो
तुम एक व्यर्थ,
नपुंसक और
अनुपयोगी
व्यक्ति हो।
यह चाह अपने
आप में गलत
नहीं है। यह
एक प्रेम की
चाह की
आवश्यकता है।
यदि एक स्त्री
तुम्हें
प्रेम करती है,
तुम
परिपूर्ण हो
और तुष्ट हो
कोई व्यक्ति
तुम्हें
चाहता है तुम
किसी की जरूरत
हो, तुम
महत्वपूर्ण
हो। तब तुम भीड
के बारे में
कुछ भी फिक्र
नहीं करते।
तुम
बाजार जाकर
चीख—चीख कर यह
नहीं कहते—’‘ मैं एक
महत्त्वपूर्ण
व्यक्ति हूं।’’
तब तुम
महत्त्वाकांक्षी
नहीं होते, तब तुम्हें
धन संग्रह
करने की धुन
नहीं होती।
यदि
कोई भी
व्यक्ति
तुम्हें
प्रेम करता है, तो उस
प्रेम से तुम
महिमामय हो
जाते हो, तुम
प्रभुत्व
सम्पन्न बन
जाते हो।
प्रेम
तुम्हें एक
सम्राट, एक
शासक बना देता
है। प्रेम
तुम्हें इतनी
अधिक गहराई और
श्रेष्ठता से
तुष्ट करता है
कि कोई भी
कार्य अथवा
कोई कलात्मक
कार्य करने की
जरूरत ही
महसूस नहीं
होती। प्रेम
के साथ अहंकार
रह ही नहीं
सकता। लेकिन
यदि यह चाह
अधूरी रह जाती
है तब तुम इसे किसी
और तरह से
पूरा करने की
कोशिश करोगे,
तुम एक
सुप्रसिद्ध
व्यक्ति बनना
चाहोगे, जिससे
बहुत से लोग
तुम्हें
चाहें।
लेकिन
स्मरण रखें, किसी
व्यक्ति
द्वारा प्रेम
किये जाना, और लाखों
व्यक्तियों
द्वारा चाहा
जाना, समान
बात नहीं है।
अकेले एक
व्यक्ति का भी
प्रेम, और
उसका एक प्रेम
भरी दृष्टि से
देखना ही यथेष्ट
है, और तुम
लाखों लोग
इकट्ठे कर
सकते हो, और
वे सभी
तुम्हारी ओर
तुम्हें देख
सकते हैं, लेकिन
उससे तुम्हें
संतोष न
मिलेगा। यह है
वह राजनीति और
यही सब कुछ
राजनीतिक लोग करने
का प्रयास कर
रहे .
है।
मैं
अभी तक ऐसे
किसी
राजनीतिज्ञ
के सम्पर्क में
नहीं आया, जिसका
हृदय कार्यरत
हो। उसका हृदय
पूरी तरह मृत
है—लेकिन उसकी
चाह है कि उसे
औरों से प्रेम
मिले, वह
चाहा जाये, और कोई
व्यक्ति उसकी
ओर देखे। वह
कहां करे? इसकी
पूर्ति? वह
भीड़ जुटाता है।
किसी तरह भीड़
के द्वारा वह
प्रेम की चाह
को पूरा करने
की कोशिश करता
है। लेकिन भीड़
उसे प्रेम
नहीं करती, भीड़ उसकी
कोई
चिंता नहीं करती, भीड़ की
अपनी जरूरतें
और चाहें हैं।
क्योंकि वह
सत्ता में है,
इसलिए वह
महत्त्वपूर्ण
प्रतीत होता
है। वे लोग
कुर्सी का
सम्मान करते
हैं और कुर्सी
पर बैठने वाला
धोखे खाता है।
एक बार कुर्सी
पर बैठने वाला
व्यक्ति, कुर्सी
से हट जाए तो
भीड़ उसकी जरा
भी फिक्र नहीं
करती।
क्या
कभी तुमने इस
बात का
निरीक्षण
किया है कि एक
बार राजनेता
सत्ता से बाहर
हो जाए तो उसे
भुला दिया
जाता है। कौन
उसे याद करता
है? वह
तीस चालीस
वर्ष तक जीवित
रह सकता है, पर कोई भी
व्यक्ति उसके
बारे में कुछ
भी नहीं जानना
चाहेगा। धीमे—
धीमे पीछे
हटते हुए वह
अंधकार में खो
जायेगा। केवल
एक बार जब वह
मर जाता है, तो अखबारों
में एक छोटी
सी खबर
प्रकाशित हो
जाती है कि
भूतपूर्व
राष्ट्रपति
अथवा भूतपूर्व
प्रधानमंत्री
की मृत्यु हो
गई।
लेनिन
से पूर्व जिस
व्यक्ति ने
रूस पर शासन
किया, वह
केरेन्सकी,
सत्ता से
हटने के पचास
वर्ष तक
न्यूयार्क
में एक छोटा
सा परचूनिया बनकर
जीवित रहा, और उसके
बारे में कोई
भी व्यक्ति
कुछ भी नहीं जानता
था। वह रूस का
प्रधानमंत्री
था, सबसे
अधिक
महत्त्वपूर्ण
व्यक्ति—क्रांति
हुई और वह
सत्ता से बाहर
फेंक दिया गया।
वह रूस से
पलायन कर गया।
वह पचास वर्षों
तक और जीवित
रहा। केवल जब
उसकी मृत्यु
हुई लोगों ने
जाना कि केरेन्सकी
पचास वर्षों
तक और जीवित
रहा। सत्ता
प्रेम की चाह
को पूरा नहीं
कर सकती। तुम
महान
साम्राज्य
प्राप्त कर
सकते हो लेकिन
वह तुम्हारे
प्रेम की चाह
को पूरा नहीं
करेगी। लेकिन
यदि तुम्हारे
पास एक हृदय
है, जो
तुमसे लयबद्ध
होकर
तुम्हारे साथ धड़कता है, तब तुम
पूर्ण हो।
बाउल
गाते हैं:
ओ मेरे
हृदय! तू मुझे
उस लता
कुंज में ले
चल,
जहां
कृष्ण लीला
रचाते हुए
अपना
प्रेम लुटा
रहे हैं।
वहां
हवा के
आनंददायक
झोंके
तुम्हारे
जीवन को शीतल
कर देंगे।
उस वनांचल
में
पांच
गंधों के
शाश्वत फूल
महकते हैं।
उनकी
सुवास
तुम्हारे
जीवन और आत्मा
में
एक
जादू जगा देगी
और
देगी उन्हें
तीन लोकों का
प्रभुत्व और
गरिमा।
प्रेम
के मंदिर में
प्रवेश करो, और तुम
उसमें हमेशा
एक सम्राट की
ही भांति प्रवेश
करते हो।
संसार में
प्रवेश करो और
वस्तुओं के
संसार में जाओ,
जहां तुम
हमेशा एक
भिखारी की तरह
ही प्रवेश करते
हो। संसार
प्रत्येक
व्यक्ति की
गरिमा घटाकर
उसे भिखारी ही
बना देता है, और प्रेम
प्रत्येक
व्यक्ति की
गरिमा बढ़ाकर
उसे सम्राट
बना देता है।
प्रेम एक
रासायनिक
घटना है। यदि
किसी का हृदय
भी तुम्हारी
ओर प्रवाहित
हो रहा है तो
उस हृदय के
द्वारा परमात्मा
ही तुम तक आ
पहुंचा है।
किसी ने प्रेम
भरी चितवन से
तुम्हें
निहारा, उस
क्षण
परमात्मा ने
ही तुम्हारी
ओर अपनी दृष्टि
उठाई है। जरा
उन प्रेम से
भरी आंखों की
झील में देखो,
वहां प्रेम
ही प्रेम छलक
रहा है और तुम वहां
हर धड़कन में
परमात्मा को धड़कता
पाओगे
क्योंकि जो
हमेशा प्रेम
करता है, वह
परमात्मा ही
तो है। प्रेम
करना, परमात्मा
ही बन जाना है।
प्रेम घटने की
अनुमति देना
ही परमात्मा
बन जाना है।
तुम जब
भी प्रेम के
शिखर से नीचे
गिरते हो, तब वह कुछ
और ही चीज
होती है। तुम मालकियत
जमाने लग जाते
हो, तुम
पति या पत्नी
बन जाते हो।
तब तुम
परमात्मा की
पकड़ से बाहर
होते हो।
बल्कि जब कभी
भी तुम प्रेम
के शिखर अनुभव
पर पहुंचते हो।
भले ही जब कभी
अकेले एक क्षण
के लिए ऐसा
घटता हो, जब
दो व्यक्ति
पूरी तरह एक
दूसरे से
लयबद्ध हो
जाते हैं, उनके
बीच कोई अवरोध
और बाड़ नहीं
रह जाती, फिर
वे दो अलग— अलग
केंद्रों पर न
धड़कते
हुए उस क्षण
वे एक ही
केंद्र बन
जाते हैं। जब
प्रेम घटता है
तो परमात्मा
ही घटता है।
जब परमात्मा
धरती पर
अवतरित होता
है तो उसका नाम
प्रेम होता है।
प्रत्येक
फल
जब दो
वृक्षों के
जोड़े से नीचे
भूमि पर गिरता
है।
तो
उसके लिए दो
सीमाएं
विस्मयजनक
रूप से एक हो
जाती हैं।
इसे
ध्यान से
सुनो.
प्रत्येक
फल
जो दो
वृक्षों के एक
जोड़े से नीचे
गिरता है
उसके
लिए दो सीमाएं
विस्मयजनक
रूप से एक हो
जाती हैं।
क्या
तुमने कभी
किसी फल को
क्या वृक्षों
के एक जोड़े पर
जन्मते देखा
है? एक
वृक्ष पर एक
ही फल उत्पन्न
होता है। एक
फल के लिए दो
वृक्षों की
आवश्यकता
नहीं होती।
प्रेम ही वह
फल है जो दो
वृक्षों के एक
जोड़े पर जन्म
लेता है। वह
कभी भी एक
वृक्ष पर नहीं
जन्मता।
प्रत्येक
फल के लिए
दो
सीमाएं, विस्मयजनक
रूप से एक हो
जाती हैं।
गहरे
ध्यान में ही
यह बोध
बिना
किसी संदेह के
होता है।
जब तुम
किसी व्यक्ति
से प्रेम करते
हो और कोई व्यक्ति
तुम्हें
प्रेम करता है, तब एक
क्षण ऐसा आता
है, जब ये
दो वृक्ष दो
वृक्ष नहीं रह
जाते, तब
वह एक ही
वृक्ष बन जाता
है। वह वृक्ष,
प्रेम का
वृक्ष होता है,
और प्रेम के
उस वृक्ष पर
पूर्णता और
संतोष है, इच्छित
वरदान को पाने
का आनंद है, और एक
खिलावट है।
वे दो, जब मिलकर
पूर्ण
रूप से एक
अखण्ड हो जाते
हैं,
तभी
प्रेम का वह
फल उत्पन्न
होता है
जिसे
वह सद्गुरु को
समर्पित कर सकें,
उन
क्षणों में वे
होशपूर्ण और
सचेत होते हैं।
तभी तो
वे प्रेम के
फल को जन्म दे
पाते हैं।
मैं
फिर से
दोहराना
चाहता हूं वे
दो जो वहां समग्रता
से उपस्थित है......
.प्रेम में दो
व्यक्तियों
की एक दूसरे
के लिए उपस्थिति
ही पर्याप्त
होती है और वे
करते कुछ भी
नहीं। प्रेम
कुछ भी करना
जानता ही नहीं।
जब दो व्यक्ति
गहरे प्रेम
में होते हैं, उनका बस
मौजूद होना ही
एक दूसरे के
लिए पर्याप्त
होता है।
दोनों के
चेहरे एक
दूसरे के
सामने होते
हैं, केवल
वे उपस्थित भर
होते हैं, जैसे
दो दीये एक
दूसरे के
सामने जल रहे
हों, अथवा
दो दर्पण एक
दूसरे के
सामने रखे हुए
एक दूसरे को लाखों
रूप में
प्रतिबिंबित
कर रहे हों।
दो प्रेमी ठीक
एक दूसरे की
उपस्थिति में
दूसरे के घुल
कर जैसे एक हो
रहे हों, जैसे
वे दोनों एक
दूसरे में
समाते जा रहे
हों। उस
स्थिति में एक
क्षण ऐसा आता
है, वह चरम
शिखर पर
पहुंचने का
क्षण होता है— ''
जब उस प्रेम
के फल का जन्म
होता है, जब
वे फिर दो
नहीं रह जाते,
जब सारे भेद
मिट जाते हैं,
जब अहंकार
और अस्मिता
बचती ही नहीं,
जब उनकी
शुद्ध
उपस्थिति
मात्र रह जाती
है।’’
तभी उस
फल का जन्म
होता है।
वे दो, जो वहां
समग्रता और
परिपूर्णता
से
उपस्थिति
भर होते हैं।
वे तभ
उस प्रेम के
फल को जन्म दे
पाते हैं
जिसे
सद्गुरु को
भेंट करना है।
और वही
वह फल है, जिसे
सद्गुरु को, परमात्मा को
भेंट में
अर्पित करना है।
वे उन क्षणों
में होशपूर्ण
और फल उत्पन्न
करने में समर्थ
होते हैं।
प्रेम
के उस शिखर
अनुभव में वे
पूरी तरह से
होशपूर्ण और
फल उत्पन्न
करने में
समर्थ होते
हैं। स्मरण
रहे, प्रेम
मूर्च्छा—
जैसी कोई चीज
नहीं है।
साधारणतया जब।
तुम प्रेम में
होते हो तुम और
अधिक मूर्च्छित
हो जाते हो। तब
वह वासना होती
है। तब वह
बहुत निम्र
कोटि का प्रेम
होता है। तब वह
उसके सबसे
अधिक नीचे का
ही डंडा होता
है। वास्तव
में वह है
सीढ़ी का ही एक
डंडा, लेकिन
वह सबसे अधिक
नीचे का डंडा
है। सीढ़ी के
सबसे ऊंचे
डंडे पर विराट
चेतना होती है
और यदि तुम
अपने प्रेमी
की उपस्थिति
में पूर्ण
सचेत और
होशपूर्ण
नहीं हो सकते,
फिर तुम और
कहां होशपूर्ण
हो सकते हो? यदि
तुम्हारे
प्रेमी की
उपस्थिति
होशपूर्ण बनाने
लायक नहीं है,
फिर तुम
चेतना का वह
खजाना कहां और
पा सकते हो?
यदि
तुम वास्तव
में सच्चा
प्रेम करते हो, तो चेतना
का एक शिखर
निर्मित होता
है। यदि हम
इसे देखना
चाहते हो तो
क्या तुम अपने
प्रेमी अथवा
प्रेमिका के
साथ एक शुद्ध
उपस्थिति के
रूप में रहना
चाहोगे? ऐसा
करने से वे
अधिक से अधिक
सचेत होने में
एक दूसरे की
सहायता करते
हैं, क्योंकि
जब उनमें से
एक अधिक सजग
और होशपूर्ण होता
है, तो यह
तुरंत दूसरे
में भी प्रतिबिबित
होता है।
दूसरा और अधिक
सचेत हो जाता है।
और यह एक '' चेन—रिएक्शन
'' की तरह
कार्य करता है।
वे आनंद और
चेतना के उच्च
से उच्चतम
शिखर पर पहुंचते
हैं और तब
वहां एक क्षण
ऐसा आता है जब
फल का जन्म
होता है। इसी
फल को दैवी
प्रेम कहते
हैं, श्रद्धा
कहते हैं। इसी
प्रेम और
श्रद्धा के फल
को इस संसार
के मालिक को
तुम अर्पित कर
सकते हो। किसी
और तरह के फल
से काम चलेगा
नहीं।
''वे
होशपूर्ण और
प्रेम के फल
को जन्माने
में समर्थ
होते हैं। और
चेतना के उस
सर्वोच्च
शिखर पर ही वे
फल को जन्म
में समर्थ
होते हैं।
अन्यथा लोगों
का जीवन फलविहीन
होता है, लोग
बिना फल
उत्पन्न किए
हुए ही जीवन
बिता देते हैं।
उनके कुछ
उत्पन्न होता
ही नहीं। वे
बस रहते हुए
ही मर जाते
हैं। उनका
जीना अर्थहीन
और बिना किसी
महत्त्व के होता
है। जीवन
महत्वपूर्ण
तभी होता है
जब दो वृक्ष
मिलकर एक ही
वृक्ष बन जाता
है और उसी एक
वृक्ष पर प्रेम
के फल का जन्म
होता है।
होशपूर्ण
ओर फलप्रद।
कुंआ
पानी में कभी
भी नहीं डूबता।
बाउल
कहते हैं—’‘ तुम
देखते हो? जाओ
और जाकर किसी
पानी से भरे
हुए
कुंए
के अन्दर
झांको लेकिन
कुंआ कभी भी
पानी में
डूबता नहीं।
यह
बहुत
रहस्यपूर्ण
है। जब तुम
पहली बार दो
से एक बनकर
पूरी तरह से
उस
अद्वैत में
डूबते हो, तुम
वास्तव में
नहीं डूबते।
तुम एक दूसरे
में समाहित हो
जाते
हो, सारी
सीमाएं मिट
जाती हैं, लेकिन
तभी एक विरोधाभास
घटता है? यह
विरोधाभास है—पूरी
तरह खोने और मिट
जाने का और फिर
भी पहली बार तुम्हारे
स्वयं के अपने
होने का भी। जब
तुम पूरी तरह खो
जाते हो, मिट
जाते हो, तो
तुम पहली बार
अपने
वास्तविक
स्वरूप अथवा
सत्य का अनुभव
करते हो। तुम
अखण्ड होते हो
चारों ओर से
विराट ऊर्जा की
बाढ़ से घिरे
होते हो, लेकिन
फिर भी उसमें
डूबते नहीं।
तुम उसमें
मिलकर उसके
साथ एक हो
जाते हो, बल्कि
पहली बार
तुम्हारे
दीये की
ज्योति जलती
है। बिना किसी
अहंकार के
तुम्हारा
अस्तित्व प्रकट
होता है।
बाउल
गाते हैं:
फल में
पूरी सुवास
आने के लिए
उसे
अपना समय आने
तक पकने दो
एक हरे और
कच्चे फल को
सख्ती
से हथेली से
दबाकर और
गर्मी देकर
मुलायम
तो बनाया जा
सकता है, लेकिन
उसमें मिठास
नहीं आती।
और वे
कहते हैं—’‘ इस प्रेम
को तुम
बलपूर्वक
उत्पन्न नहीं
कर सकते। इसे
नियंत्रित
करने का कोई
तरीका है ही
नहीं। इस बारे
में वहां ऐसा
कुछ भी नहीं
है, जो तुम
कर सकते हो।
तुम बस इतना
भर सकते हो कि
उसे होने की
अनुमति दो। एक
दिन स्वयं
पककर वह मीठा
हो जाता है।
उसे
स्वयं पकने दो।
अपना
समय आने पर ही
वह स्वयं पक
जाएगा।
इसलिए
बाउल लोग किसी
तरह का योग
नहीं करते। वे
लोग योग के
विरुद्ध हैं।
इसी कारण
मैंने तुमसे
शुरू में ही
कहा था कि यह
लोग वेद और
योग की
परम्परा से
सम्बंध न रखते
हुए तंत्र की
परम्परा के
हैं।
वास्तव
में बाउल की
परम्परा, वेद और योग
की परम्परा से
भी कहीं अधिक
प्राचीन है।
इतिहासकार
कहते हैं कि
तंत्र आर्य
सभ्यता से पूर्व
का है। जब
आर्य भारत आये
तो तंत्र वहां
प्रचलित था और
उसके देवता
शिव थे। जब
आर्य भारत में
आये तो भारत
भर में भ्रमण
करते हुए
उन्होंने
यहां रहने
वाले लोगों को
युद्ध में
पराजित किया।
उनके धर्म को
कुचल दिया गया।
उनके शास्त्र
जला दिए गए और
धीमे—धीमे
उनके देवता भी
आर्यों के
बहुदेववाद
में समाहित हो
गए। शिव उनके
देवता थे।
उन्हें स्वीकारने
और अपना देवता
बनाने में
काफी लम्बा
समय लगा। वे
उनके लिए
विदेशी थे, लेकिन
उनके व्यापक
प्रभाव को
देखते हुए
उन्हें शिव को
स्वीकारना ही
पड़ा। और जब
उनके सभी
अनुयायी भी आर्य—संसार
में घुल मिल
गए तो वे लोग
अपने देवता को
भी लेते आये।
तंत्र
का सम्बंध शिव
से है और बाउल
उसी वृक्ष की
एक शाखा है।
तंत्र कहता है—’‘ प्रत्येक
चीज अपना ठीक
समय आने पर
स्वयं होती है,
तुम्हें
बलप्रयोग
करने की कोई
जरूरत नहीं है।
तुम्हें बल
प्रयोग से कुछ
भी सहायता
नहीं मिलेगी।
वह
प्रयास एक
अवरोध ही
बनेगा। वह उसे
नष्ट भी कर
सकता है और वह
सृजनात्मक तो कभी
भी नहीं हो
सकता। एक
व्यक्ति को
उसके लिए बहुत
प्रयास रहित
और सहज होना
होता है, उसे उसके
साथ स्वीकार
भाव से रहना
होता है।’’
फल में
स्वाद और
सुवास के लिए
उसे
अपना समय लेते
हुए स्वयं
पकने दो।
एक
कच्चे हरे फल
को हथेलियों
से दबाकर और
गर्मी देकर
मुलायम
तो बनाया जा
सकता है
लेकिन
उसे मीठा नहीं
बनाया जा सकता।
बाउल
कहते हैं—’‘ हम
सांसारिक बन्धनों
से मुक्त होने
के लिए नहीं
खोज रहे हैं।
एक प्रेमी, एक प्रेम का
खोजी, मुक्ति
और
स्वतंत्रता
की भाषा में
कभी बात करता
ही नहीं।’’
वह
कहता है—' वह ' अत्यधिक
सुंदर है।
अस्तित्व में
सभी कुछ जो भी
है, वह
पहले ही से
बहुत सुंदर है।
उससे मुक्त
होने की कोई
जरूरत ही नहीं
है। वह सब कुछ
जिसकी जरूरत
है वह है कि
उसमें हम कैसे
बने रहे, उसमें
कैसे
तल्लीनता से
एक हो जायें।’’
बाउल
के लिए यह
संसार एक
बन्धन नहीं है, और वहां
रहते हुए उससे
संघर्ष करने
की भी कोई जरूरत
नहीं है।
वास्तव में
बाउल कहता है—’‘
हम सांसिाकर
बन्धनों
से प्रेम करते
हैं, क्योंकि
ये बेड़ियां
तुम्हारे लिए
ही मेरे मालिक
के द्वारा ही
सृजित की गई
हैं।’’
हृदय
कमल निरंतर
सुरभित हो रहा
है
युग के
बाद युग बीत
गए।
तुम
उससे भ्रमर की
भांति बंधे
हुए हो
और ऐसा
ही मैं भी
बंधा हूं।
बाउल
अपने
परमात्मा से
निवेदन करता
है—
तुम भी
उससे बंधे हुए
हो,
और ऐसे
ही मैं भी
उससे बंधा हुआ
हूं
और इससे
भागना कहां है?
कमल
पुष्प खिल रहा
है, सुरभित
हो रहा है, वह
खिलता ही जाता
है और इसके खिलने
का कोई अंत
नहीं है।
लेकिन इन सभी
कमल पुष्पों
में
एक ही
तरह का पराग, और एक ही
तरह की मिठास
है
जिसका
एक विशिष्ट
स्वाद है।
मधुमक्खी
लालची बनी
केवल उसी में
उत्सुक है
और उसे
छोड़ कर वह
कहीं जा नहीं
सकती।
इसीलिए
तुम भी उससे
बंधे हुए हो
और मैं
भी उसके प्रेम
में आबद्ध हूं।
तब
कहां
स्वतंत्रता?
और
कैसी मुक्ति?
यह
लुकाछिपी की
एक बहुत बड़ी
लीला है, जो उस ऊर्जा,
जिसे
परमात्मा या
अस्तित्व
कहते हैं और
तुम्हारी
ऊर्जा के बीच
खेली जा रही
है। इस महान
छिपने और
खोजने को लीला
में समान ऊर्जाएं
ही निमग्न हैं।
यह एक विराट
लीला है। इसका
कहीं कोई अंत
है ही नहीं।
इन कमल के
पुष्पों को खिलने दो, यह हमेशा—
हमेशा खिलते
ही रहेंगे। यह
संसार बहुत
सुंदर है, यही
तंत्र की
आधारभूत
दृष्टि है।
योग कहता है—’‘ एक एक
व्यक्ति को
मुक्त होने की
आवश्यकता है।
तंत्र पूछता
है—’‘ आखिर
क्यों और
किससे मुक्ति?
यह बंधन
बहुत सुंदर है,
क्योंकि यह
तो परमात्मा
के साथ बंधना
है। योग कहेगा—’‘
छोड़ते चलो,
धीमे— धीमे
सारे बन्धनों
और आसक्तियों
को तोड़ते चलो,
और अंत में
उस व्यक्ति को
प्रेम के भी
पार जाना है।
बाउल कहते हैं
: सारे बन्धन
बहुत सुंदर
हैं। उनमें
गहरे और गहरे डूबो, जिससे
तुम परिधि पर
न रहकर, उसके
केंद्र तक
पहुंच सको।
परिधि पर ही
बन्धन और
आसक्ति है, केंद्र पर
केवल प्रेम है।’’
मधुमक्खी
पराग के
प्रलोभन से
बंधी
उसे
छोड़ कर जाने
में असमर्थ है,
ऐसे ही
तुम भी बंधे
हुए हो
और मैं भी
उससे बंधा हुआ
हूं
तक
कहां
स्वतंत्रता?
और
कैसी मुक्ति?
बाउल
के लिए जीवन
कोई गम्भीर
बात नहीं है।
इसके लिए यह
एक लीला है।
एक हास, परिहास है, एक आनंद है।
इसलिए तुम बाउलों
के संसार में,
तथा कथित
धार्मिक
लोगों के
लम्बे लटके
चेहरे और धर्म
स्थानों में
पूजा
प्रार्थना के
लिए जाने वाले
लोगों में
गम्भीरता
जैसी कोई भी
चीज न पा
सकोगे।
वे
प्रेम करते
हैं, हंसते
हैं, वे
प्रेम की लीलाएं
रचाते हैं। वे
छोटी—छोटी
चीजों को भी
बहुत सम्मान
देते हैं, और
उनमें आनंदित
होते हैं।
सामान्यता, सभी धर्मों
में बहुत
संयमी गम्भीर
और लम्बे नीचे
लटके चेहरों
वाले लोग हैं,
क्योंकि
उन्हें जीवन
के विरोध में
होने के कारण
ऐसा होना ही
पड़ता है।
मैंने
सुना है:
मुल्ला
नसरुद्दीन
के एक मित्र
को यह देखकर
बहुत आश्चर्य
हुआ कि मुल्ला
पुरस्कार
जीतने वाले
अपने बैल को
जमीन के अंदर
जमी जड़ों को उखाड़ने के
लिए हल में
जोते हुए अपने
खेत में कठिन
श्रम करने के
लिए उसे
निर्देशित कर
रहा था। उसने
कहा—’‘ मुल्ला!
तुम कहीं पागल
तो नहीं हो गए?
वह बैल
पच्चीस हजार
रुपयों का है।
तुम उससे यह
हल क्यों चलवा
रहे हो?''
'' यह
बैल, '' मुल्ला
ने कठोरता से
कहा—’‘ इसे
यही तो सीखना
है कि जिंदगी
आखिर कोई खेल
तमाशा नहीं है।’’
यहां
ऐसे लोग हैं, जो
तुम्हारे
हंसते ही, उसी
क्षण परेशान
और व्याकुल हो
उठते हैं, वे
तुम्हें जैसे
यह सिखाना
चाहते हैं कि
जीवन आखिर कोई
खेल या हंसी
मजाक नहीं है।
ये लोग स्वयं
तो रुग्ण हैं
ही। यह लोग
जीवन को चूके
हुए हैं और यह
नहीं चाहते कि
कोई दूसरा भी
जीवन में आनंद
ले। सभी
पुजारी और
पुरोहित
रुग्ण लोग हैं
वे कभी नहीं
चाहेंगे कि
तुम आनंदित
रहो। यह सभी
चूके हुए और
भटके हुए लोग
हैं और वे तुमसे
ईर्ष्या करते
हैं।
उन्होंने
बहुत कुछ दांव
पर लगाया हुआ
है, उनके
अहंकार केवल
तभी तृप्त
होते हैं, जब
वे जीवन के
विरुद्ध होने
के कारण उसकी
निंदा करें।
उन्होंने
जीवन से विरोध
में अहंकार को
चुना है। यदि
तुम जीवन को
चुनते हो, तो
वे तुम्हारे
विरुद्ध
होंगे ही। वे
तुम्हें
रोकते
प्रतिबंधित
करते रहेंगे,
वे तुम्हें
निंदित किए
जाएंगे और वे
तुममें अपराधबोध
उत्पन्न
करेंगे। इससे
बड़ा हादसा और
इतना गहरा
संकट
मनुष्यता के
लिए कभी नहीं
घट सकता जितना
इन सभी
तथाकथित धर्मों
द्वारा
उत्पन्न किया
गया है। गहरा
संकट यह है कि
उन्होंने
तुम्हारे
अंदर अपराध
बोध उत्पन्न
कर दिया है।
इसलिए जब भी
तुम प्रसन्न
होते हो, तो
कहीं गहरे में
अपने अंदर
तुम्हें यह
महसूस होना
शुरू जाता है
कि जैसे तुम
कोई अपराध कर
रहे हो, जैसे
मानो तुम कुछ
चीज गलत कर
रहे हो। तुम
जब भी स्वस्थ होते
हो, तुम्हें
यह अनुभव होना
शुरू हो जाता
है कि कहीं
कुछ गलत है।
तुम जब भी
नृत्य कर रहे
हो होते हो, तुम्हें यह
लगने लगता है
कि तुम कुछ
गलत कर रहे हो।
तुम जब भी
हंसते हो, तो
कभी खुलकर उन्मुक्त
रूप से हंसते
भी नहीं, क्योंकि
अपने गहरे में
कोई चीज
तुम्हें वापस अपनी
ओर खींचते हुए
जैसे तुमसे
पूछ रही होती
है—’‘ तुम
आखिर यह क्या
मूर्खता कर
रहे हो?''
अपने
बचपन में जब
कभी तुम
प्रसन्न होते
थे, तो
वहां कोई
व्यक्ति
तुम्हें यह
सिखाता था कि जीवन
कोई खेल या
हंसी मजाक
नहीं है, बंद
करो खी—खी करते
हुए दांत
दिखाना।
गम्भीर हो जाओ।
आखिर तुम कब
परिपक्व बनोगे?
विकसित
होना सीखो।
बहुत हो चुका
यह सब कुछ। अब बचपने की
यह सभी व्यर्थ
आदतें छोड़ो।
कोई न
कोई हमेशा ही
तुम्हारे
चारों ओर
तुम्हें कुछ न
कुछ शिक्षा
देने के लिए
मौजूद होता था।
वे लोग स्वयं
तो भटके हुए
थे ही। वे
स्वयं आनंदित
हो ही नहीं
सकते थे, इसलिए वे
दूसरों को भी
खुश होने की
अनुमति नहीं
दे सकते थे।
इसी तरह से पीढ़ी
दर पीढ़ी, ये
बीमारियां एक
दूसरे को
हस्तांतरित
की जाती रहीं।
तुम
अपने स्वयं के
जीवन को देखो, जरा आंखें
खोल कर देखो।
पूरा
अस्तित्व
उत्सव मना रहा
है। ये वृक्ष
उदास और
गम्भीर नहीं है
और न यह पक्षी
ही गम्भीर है।
नदियां
और सागर आदिम
उल्लास से उफन
रहे हैं और हर
कड़ी वहां एक
लीला चल रही
है, हर
कहीं
प्रसन्नता और
आनंद है। जरा
अस्तित्व का
निरीक्षण करो,
उसका एक भाग
बनकर उसकी धड़कनें
सुनो। तब तुम तुम एक
बाउल बन जाओगे,
तब तुम एक
प्रेमी बन
जाओगे, क्योंकि
केवल इस लीला
के प्रति एक
गहरा सम्मान
रखते हुए ही
प्रेम जीवित
रह सकता है।
गंभीर मन के
साथ प्रेम
नहीं रह सकता।
गम्भीर मन के
साथ तर्क
वितर्क की
संगति बैठ जाती
है। कभी भी
गम्भीर या
उदास मत रहो।
मैं यह नहीं
कह रहा कि तुम
निष्कपट और
ईमानदार मत
बनो। ईमानदार
बनो, लेकिन
गम्भीर और
उदास होकर
नहीं।
ईमानदारी और
निष्कपटता
कुछ और ही चीज
है, और
गम्भीरता पूर
तरह एक अलग
चीज है।
ईमानदार और
निष्कपट बनो
अस्तित्व के
साथ, तभी
तुम एक सच्चे
और प्रामाणिक बनोगे, तुम
इस ब्रह्माण्डीय
लीला के एक
भाग बन जाओगे।
बाउल
गाते हैं:
तुम प्रेम
की राहों पर
अपने
ऊपर चुराये
हुए लूट का
माल लादे हुए
बिना
चोट खाये कैसे
चल सकते हो?
इस
वृंदावन में
( जहां
लीला हो रही
है)
प्रेम
करना ही पूजा
और आराधना है।
वृंदावन
वह पावन भूमि
है, जहां
कृष्ण ने अपने
प्रेमी मित्रों
गोपों और गोपिकाओं
के साथ लीलाएं
कीं, जहां
उन्होंने
नृत्य किया, और जहां
उन्होंने रास
रचाया। यह
शब्द ' रास '
बहुत सुंदर
है। इसका अर्थ
है दिव्य अक्ल
और दिव्य
नृत्य।
तुम
प्रेम की
राहों पर
अपने
साथ चुराये
हुए लूट का
माल लिए हुए
बिना
चोट खाए कैसे
चल सकते हो?
इस
वृंदावन में
प्रेम
करना ही पूजा
और आराधना है
जैसे
अस्तित्व सभी
भौतिक औरनैतिक
प्रदूषणों से
मुक्त होकर
आकाश में
विद्युत सा
दीप्तिवान है।
वैसे
ही प्रेम, वासना का
अतिक्रमण कर
परमानंद को
जन्म देता है।
सांस
की धौंकनी से
जीवन की अग्नि
में
अस्थिर
पारे का शोधन
करो।
पारे
जैसे अस्थिर, द्रव्य
का भी शोधन
किया जा सकता
है। इसलिए
वासना को ही
क्यों नहीं
शुद्ध किया जा
सकता है? फिक्र
करो ही मत।
तुम्हारे
प्रेम का वहां
एक केंद्र हो,
एक लक्ष्य
हो तुम्हारे
तीर के लिए
कोई निशाना हो
और वासना का
अतिक्रमण ही
प्रेम है। योग
कहेगा—’‘ वासना
से लडों
तभी उसका
अतिक्रमण हो
सकेगा, तभी
तुम उसके पार
जा सकोगे। यह
एक नकारात्मक
पहुंच है।
बाउल कहते हैं
: प्रेम, और
प्रेम के
द्वारा ही तुम
वासना के पार
हो जाते हो।
यह है विधायक
पहुंच।’’
ओ मेरे
मौन सदगुरु।
ओ मेरे
मालिक।
मुझे
बताओ, वह कौन सी
पूजा है।
जो
मेरी प्रियतम
के कंवल
को खिलते
देखने को
मेरी आंखों
खोल दो?
चांद
और सितोर
भी
बिना
कोई ध्वनि किए
मौन शाश्वत
रूप से उसकी
प्रदक्षिणा
कर रहे हैं
ब्रह्मांड
का प्रत्येक
घटना चक्र
इस
अस्तित्वगत
प्रेम के
महान
आश्चर्य का
स्वागत करते
हुए
मौन
बना उसकी
प्रार्थना करता
है।
यह वही
है, जिसे
भौतिक विज्ञानके
विशेषज्ञ ' विद्युत—चुम्बकीय
ऊर्जा—
क्षेत्र ' कहते
हैं। इसी को
धार्मिक लोग,
परमात्मा, और बाउल
प्रेम कहते
हैं।
ब्रह्मांड
का प्रत्येक
घटना चक्र
इस
अस्तित्वगत
प्रेम को
आश्चर्य से
निहारता
मौन
बना उसकी प्रार्थना
करता है।
वृक्ष, पृथ्वी
के प्रेम में
मदहोश हैं, और पृथ्वी
वृक्षों से
प्रेम करती है।
पक्षियों को
वृक्षों से
प्रेम है और
वृक्ष पक्षियों
को प्रेम करते
हुए उन्हें
आश्रय देते हैं।
पृथ्वी, आकाश
के प्रेम में
है और आकाश
प्रेम में
पृथ्वी को अता
है। इस पूरे
अस्तित्व में
प्रेम का असीम
सागर उफन रहा
है। तुम भी
प्रेम को अपनी
पूजा बना लो
और प्रेम को अपनी
प्रार्थना बन
जाने दो।
आज जो
गीत गाना है, वह बहुत
छोटा सा है, लेकिन वह एक
बहुत कीमती
हीरा है। और
बाउल जानते
हैं इसे ठीक
से कैसे
अभिव्यक्त
किया जाए।
पिछली रात ही
में डिगौले
की जीवनी पड़
रहा था। वह
अपनी मेज पर
एक सुत्र रखता
था। मुझे वह
बहुत प्यारा
लगा। बाउल
सुनते, तो
वे भी उसकी
प्रशंसा करते।
वह
सूत्र है—’‘ संक्षेप
में अपने को
अभिव्यक्त
करने की शैली हो,
विचारों
में परिपूर्ण
शुद्धता हो और
जीवन में
निर्णय लेने
की क्षमता हो।
जो
व्यक्ति
प्रेम के
अनुभव से
अनजाना है,
उसके
साथ सम्बंध जोड़कर तुम
कैसे किसी
निष्कर्ष पर पहुंच
सकते हो?
उल्व
सूर्य की
किरणों से
अंधा बना
बैठा
हुआ एकटक आकाश
की ओर देखता
रहता है।
बाउल
कहते हैं—’‘ उसे
अभिव्यक्त
करना असम्भव
है।’’
जो
व्यक्ति
प्रेम के
अनुभव से अनजाना
हो
उसके
साथ सम्बंध जोड़करतुम
कैसे किसी
निष्कर्ष पर
पहुंच सकते हो? किसी ऐसे
व्यक्ति से, जो प्रेम को
नहीं जानता है,
उसके साथ सम्बाद
जोड़ना असम्भव
है। हम उससे
कैसे
परमात्मा के
बारे में बात
कर सकते हैं? हम कैसे
उससे
प्रार्थना के
सम्बंध में
अर्थपूर्ण
बातचीत कर
सकते हैं? हम
कैसे उसके साथ
सत्य के बारे
में कुछ भी
चर्चा कर सकते
हैं? क्योंकि
वह पूरी तरह
अपने हृदय के
बारे में अचेत
है। वह अपनी
खोपड़ी और
बुद्धि में ही
रहता आया है, वह उस भाषा
को ही नहीं
जानता। वह उस उल्ल की
तरह है, जो
सूर्य की
किरणों से
अंधा बना हुआ,
बैठा हुआ
एकटक आसमान
में देखता
रहता है।
भारतीय
पौराणिक
कथाओं में
उल्लू को
ज्ञान, विद्या और
विद्वता और
प्रतीक माना
जाता है। जो
व्यक्ति बहुत
अधिक विद्वान
हैं, बहुत
अधिक बुद्धि
जाल में उलझे
हैं, जिन्होंने
बहुत सी सूचनाएं
और आंकड़े
इकट्ठे किए
हैं, वे
लोग उल्लूओं
के ही समान
हैं। वे यह
नहीं देख सकते
कि सूर्योदय
हो चुका है।
वे लोग सूरज
की ओर एकटक
देखे चले जाते
हैं। लेकिन
फिर भी वे
प्रकाश की
किरणों से
अनजाने बने
रहते हैं।
बाउल
कहते हैं, जो
व्यक्ति केवल
बुद्धि में
उलझा है वह पंडित
है और विद्वान
है, जो
मनुष्य केवल
विचारों, सिद्धांतों,
उपदेशों ओर
मतों की भाषा
में ही सोचता
है, जिसने
वेद कुरान और
बाइबिल
कंठस्थ कर लिए
हों, वह
व्यक्ति
प्रेम के बारे
में कोई भी
बात समझने में
समर्थ न हो
सकेगा। यदि
तुम उससे कुछ
कहो भी, तो
वह तुरंत उसे
गलत ही समझेगा।
यदि तुम उससे
प्रेम के बारे
में कुछ
बातचीत करो, तो वह उसे एक
सिद्धांत बना
देगा और प्रेम
की कभी भी
सिद्धांत के
रूप में
व्यवस्था
नहीं की जा
सकी। यदि तुम
उससे
प्रार्थना के
बाबत कुछ भी
कहो, तो वह
प्रार्थना को
भी जांच का एक
विषय बना देगा
और प्रार्थना,
जांचने वाला विषय
है ही नहीं।
एक तर्कशील
व्यक्ति
हमेशा
प्रत्येक चीज
को अपने तर्क
के दायरे में
ले जाता है।
मैंने
सुना है—
प्रभु—
भक्ति से एक
पादरी जब जीसस
की पवित्र
भूमि गेलेली
के समुद्र तट
पर पहुंचा तो
उसका हृदय
बहुत रोमांचित
था—’‘ शायद
ये ही वे
लहरें होंगी,
जिन्होंने
जीसस के चरणों
को स्पर्श
किया होगा।
तभी एक नाविक
उनके पास आया।
पादरी ने अपने
हाथों में ली
हुई अरबी—
अंग्रेजी
भाषा कोष की
सहायता से
चुने हुए अरबी
शब्दों में
उससे बातचीत
शुरू की।’’
नाविक
ने शिकायती
लहजे में कहा—’‘ आखिर
मामला क्या है?
क्या आप अमेरिकन
भाषा में बात
नहीं कर सकते?''
वह
नाविक एक
अमरीकन ही था
जो अपनी गुजर
बसर के लिए
नौका चालन के
कार्य में लगा
था।
पादरी
ने हर्ष और
आश्चर्य से
चिल्लाते हुए
कहा—’‘ तो
यही है वह गेलेली
का वह सागर, जहां हमारा
मुक्तिदाता
जीसस पानी के
ऊपर चला था।’’
'' हां!
यह यही स्थान
है वह।’’
'' तुम
ठीक उस जगह ले
जाने के लिए
मुझसे कितनी
धनराशि लोगे?''
देखने में
जैसे कि आप एक
पादरी दिखाई
देते हैं मैं
आपसे वहां तक
जाने के लिए
कुछ भी नहीं
लूंगा।
उस
स्थान पर
पहुंचने के
बाद, परम
संतोष से
पादरी ने अपने
चारों ओर देखा।’
अपने
साथ लाई
बाइबिल के मूल
पाठ और टिप्पणियों
को पढ़ा और अंत
में नाविक को
संकेत से कहा
कि अब उसे
वापस ले चले।’’
'' आपको
वापस तट तक ले
जाने के लिए
मैं आपसे बीस
डालर लूंगा।’’‘'
लेकिन
तुमने तो कहा
था कि तुम
मुझसे कुछ भी
चार्ज नहीं
करोगे।’’‘' वह
तो आपको यहां
तक लाने के
लिए कहा था।’’
और तुम
प्रत्येक से
वापस ले जाने
के लिए बीस डालर
ही लेते हो?
'' हां
इतना ही था, या इससे और
अधिक।’’
'' फिर
ठीक है।’’ यह
कहते हुए उसने
फिर अपनी जेब
में रखी
बाइबिल को
देखते हुए कहा—’‘
कोई
आश्चर्य की
बात नहीं, कि
हमारा
मुक्तिदाता
इन्हीं हालात
में नाव से
उतर कर पानी
पर चला होगा।’’
यहां
प्रत्येक
व्यक्ति
प्रत्येक चीज का
अपने— अपने
तरीके से अर्थ
निकाले जा रहा
है। हमारी
व्याख्याएं
हमारी अपनी
व्याख्याएं हैं।
एक दिन
ऐसा हुआ :
मुल्ला नसरुद्दीन
ने ठीक आश्रम
के गेट के ठीक
सामने खड़ी
टैक्सी को
अभिवादन करते
हुए कहा—’‘ ड्राइवर!
मुझे आश्रम ले
चलो।’’ चालाक
ड्राईवर
ने एक पैर से
फुदकते हुए
मुल्ला को
टैक्सी में बैठाकर
घृणा से एक्सलेटर
दबाया, और
फिर दरवाजा
खोलकर बाहर
निकला और पैसे
मांगते हुए
कहा—’‘ आप
ठीक आश्रम के
सामने खड़े हैं।’’
'' ठीक
है।’’ झुंझलाते हुए मुल्ला
ने कहा—’‘ लेकिन
अगली बार इतनी
तेज रफ्तार से
टैक्सी मत चलाना।’’
यदि तुम
शराब पिए हुए
हो, तब
तुम प्रत्येक
चीज की
व्याख्या
अपनी मदहोशी
के द्वारा ही
करोगे। यदि
तुम्हें
बुद्धि और
तर्क का नशा
है, तो
प्रेम, तुम्हारी
खोपड़ी में
प्रवेश न कर
सकेगा। तब
तुम्हारा सिर
बहुत मोटी
चमड़ी से ढका
ठोस होना ही
चाहिए। प्रेम
के लिए उसमें
प्रवेश करना
असम्भव है। तब
तुम उस उल्ल
के ही समान हो।
बाउल
कहते हैं कि
संवाद होना तो
तभी सम्भव है जब
दोनों के बीच
भाषा समान हो।
इसलिए यदि तुम
बाउलों
को समझना
चाहते हो तो
तुम्हें किसी व्यक्ति
से प्रेम करना
होगा क्योंकि
बिना प्रेम
किए हुए प्रेम
को समझने का
और कोई रास्ता
है ही नहीं।
यदि तुम किसी
प्रार्थना
करने वाले
व्यक्ति को
समझना चाहते
हो, तो
प्रार्थना
करो।
प्रार्थना
में उतर जाओ, उसका जरा
स्वाद लो।
सारे तर्क
वितर्क उठाकर कर
अलग रख दो।
कभी यह कोशिश
मत करो कि
पहले तर्क के
द्वारा प्रार्थना
का औचित्य समझ
लिया जाए तब
तुम प्रार्थना
करोगे, तब
किसी व्यक्ति
ने आज तक
प्रार्थना की
ही नहीं है
क्योंकि पहली
बात यह है कि
ऐसा करना असम्भव
है, इसे
किया ही नहीं
जा सकता है।
कोई भी
व्यक्ति तर्क
द्वारा
तुम्हें यह
नहीं समझा
सकता कि
प्रार्थना
करना
अर्थपूर्ण
कृत्य है।
तुम्हारे मन
का तार्किक
ढांचा
तुम्हें ऐसा करने
से रोकता है।
इसलिए तुम एक
असम्भव बात
पूछ रहे हो।
यदि तुम कहते
हो—’‘ पहले
तुम्हें यह
सिद्ध करना
होगा कि प्रेम
ही परमात्मा
है, तभी
मैं प्रेम
करूंगा।’’ तब
तुम्हें
प्रतीक्षा
करनी होगी, और यह
प्रतीक्षा
अनंत होगी। और
वह कभी भी
घटेगा नहीं।
जिस दिन प्रेम
होगा, वह
उसी तरह से
घटेगा, केवल
जिस तरह वह घट
सकता है, और
उसके घटने का
एक ही तरीका
है कि तुम
अपनी बुद्धि
और तर्क एक ओर
उठाकर अलग रख
दो। तर्क करना
अप्रासंगिक
है। तुम बस
प्रेम करो, जरा उसका
स्वाद लो।
प्रेमियों के
संसार में
जाकर रहो।
अपने चारों ओर
उन्हें नाचते
हुए गीत गाने
दो। उसे अपना
अनुभव बनाओ, और वही
प्रमाण बनेगा
और वही बनेगा
तुम्हारा दृढ़
विश्वास। तब
तुम अपने तर्क
का प्रयोग
करना और
तुम्हारा
तर्क उसे
सिद्ध करना
शुरू कर देगा,
लेकिन उससे
पहले नहीं।
पहले उसका
स्वाद लो।
उसका अनुभव
करो, तब
उसके बाद तर्क—वितर्क
करो। तर्क—वितर्क
एक बहुत अच्छा
और भला सेवक
है, लेकिन
उसका मालिक
होना बहुत
बुरा है।’’
जो
व्यक्ति
प्रेम के
अनुभव से अनजाना
है
उसके
साथ सम्बंध जोड़कर
तुम
कैसे किसी
निष्कर्ष पर
पहुंच सकते हो?
उल्लू
सूर्य की
किरणों से
अंधा बना
बैठा—बैठा
एकटक आकाश को
देखता रहता है।
प्रेम, तुम्हारे
अस्तित्व के गहनतम
केंद्र में एक
मौलिक
परिवर्तन
लाता है। सिर
और बुद्धि तो
परिधि पर हैं।
बुद्धि तो सागर
की लहरों की
भांति है और
प्रेम, सागर
की गहराई जैसा
है। सागर की
गहराई में
वहां कोई भी
लहरें नहीं है
और लहरों के
अंदर कोई
गहराई नहीं है।
विचार, लहरों
के समान हैं, जो केवल
परिधि पर रहते
हैं। लहर के
लिए गहराई को
जानने का लहर
बने हुए ही कोई
रास्ता है ही
नहीं। लहर
गहराई को जान
सकती है, लेकिन
तब उसे गहराई
में खो जाना
होगा। तब फिर
वह एक लहर न रह
सकेगी, जो
वापस लौटकर
फिर सतह पर आ
सके। लेकिन तब
वह लहर स्वयं
एक बाउल बन
जाएगी, कोई
दूसरी लहर उसे
न सुन सकेगी।
दूसरी लहरें
उस लहर को
पागल कहेंगी,
क्योंकि वह
गहराइयों के बाबत
बतलायेगी
और लहरें तो
केवल उथलापन
ही जानती हैं,
वे गहराई को
नहीं जानती।
प्रेम
एक अनुभव है—स्वाद
के समान वह
अस्तित्वगत
है। यदि तुमने
नमक को कभी
नहीं चखा, तो उसे
स्पष्ट करने
का कोई तरीका
है ही नहीं।
यदि तुमने उसे
चखा है, तो
उसे भूल जाने का
भी कोई रास्ता
नहीं है। यदि
तुमने उसे चखा
भी है, तब
भी किसी ऐसे
अन्य व्यक्ति
को जिसने उसे
पहले कभी नहीं
चखा, उसे
स्पष्ट कर
समझाने का कोई
रास्ता है ही
नहीं।
किसी
भी ऐसे
व्यक्ति को
जिसने कभी भी
नमक जैसी चीज
जानी ही नहीं, तुम कैसे
उसके बारे में
कुछ बतला सकते
हो? तुम
कहोगे क्या? ऐसा नहीं कि
तुम उसके बारे
में जानते
नहीं। तुम
जानते हो, वह
ठीक तुम्हारा जुबान की
नोंक पर रखा
है। तुम जानते
हो कि खारापन
का स्वाद कैसा
है, लेकिन
तुम दूसरे को
उसे बताओगे
कैसे? केवल
एक ही काम
किया जा सकता
है कि तुम उसे
थोड़ा सा नमक
भेंट करो।
लेकिन यदि वह
कहता है—’‘ पहले
मुझे समझा तो
दो कि वहां
नमक जैसी कोई
चीज होती भी
है, केवल
तभी मैं उसे
तुमसे लूंगा।
यदि वह इतना
सावधान है, तो उसके लिए
उसे जानना असम्भव
है। तब उसे
नमक का अनुभव
जाने बिना ही
रह जाना पड़ेगा।’’
और
प्रेम का
अनुभव किए
बिना जीना, मृतक के
समान जीना है— ''
क्योंकि
केवल एक
प्रेमी ही
अपनी मृत
अहंकार और
अपनी निजता को
छोड़ता चला
जाता है, क्योंकि
केवल एक
प्रेमी ही
क्रियाशील
होता है और
वही निरंतर
इधर उधर घूमता
रहता है। तर्क
मुर्दा है और
प्रेम जीवंत
है।’’
मुझे ब्राउनिंग
का एक सूत्र
याद आ रहा है।
वह कहा करता
था— '' जीवन
की प्रगति
होती है। जब
हम अपने मृत
अहंकार की
सीढ़ियों पर
कदम रखते हुए
उच्चतम चीजों
को पाने के
लिए आगे बढ़ते
हैं।’’
तर्क—वितर्क
अतीत की
सम्पत्ति है, और प्रेम
का सम्बंध भविष्य
से है। तर्क
केवल पुराने
घेरे में ही
बार—बार घूमता
रहता है।
प्रेम नये—नये
क्षेत्रों
में गतिवान
होता है। अपने
आप में सीमित
रहकर कभी जड़
मत बनो और
प्रेम करते
हुए भी कभी जड़
होकर न रहो।
प्रेम हमेशा
परमानंद देता
है। थिर खड़े
हुए रक्त
प्रवाह रुक
जाता है, जड़ता
आती है, पर
प्रेम तो परम
आनंद में एक
बरतन और रास
है।
घूमते
हुए नृत्य
करते रहो। कोई
कभी भी कहीं
पहुंचता ही
नहीं, यद्यपि
एक है, जो
हमेशा पहुंच
रहा है।
आज बस
इतना ही।
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