गुरुवार, 28 नवंबर 2019

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-05)

मेरी प्रिय पुस्तकें--ओशो 

सत्र—पांचवां
अब काम शुरू होता है...
‘‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा--अब ब्रह्म की जिज्ञासा’’... इस तरह से बादरायण अपनी महान पुस्तक की शुरुआत करते हैं, शायद महानतम। बादरायण की पुस्तक प्रथम है जिस पर आज मैं बोलने जा रहा हूं। वे अपनी महान पुस्तक ‘ब्रह्मसूत्र’ का प्रारंभ इस वाक्य से करते हैं: ‘‘ब्रह्म की जिज्ञासा।’’ पूरब में सभी सूत्र हमेशा इसी तरह से शुरू होते हैं ‘‘अब... अथातो’’ कह कर, इससे अन्यथा कभी नहीं।

बादरायण उनमें से एक हैं जिन्हें गलत ही समझा जाता है, इसका सरल सा कारण यह है कि वे बहुत गंभीर हैं। रहस्यदर्शी को इतना गंभीर नहीं होना चाहिए, यह कोई अच्छा गुण नहीं है। लेकिन वे ऐसे ब्राह्मण हैं जो हजारों वर्ष पहले हुआ करते थे, ब्राह्मणों में उठना-बैठना, ब्राह्मणों से बातचीत, और ब्राह्मण संसार के सर्वाधिक गंभीर लोग हैं। क्या तुम्हें पता है कि भारत के पास लतीफे नहीं हैं? इतने बड़े देश के लिए क्या यह आश्चर्य नहीं है कि यहां कोई लतीफा नहीं है? बिना लतीफों के ही इतना लंबा इतिहास! ब्राह्मण मजाक नहीं कर सकते, क्योंकि मजाक अपवित्र मालूम होता है, और वे पवित्र लोग हैं।


मैं समझ सकता हूं और बादरायण को क्षमा कर सकता हूं, लेकिन मैं यह बताना नहीं भूल सका कि वे गंभीर व्यक्ति थे। मुझे संकोच अनुभव हो रहा था कि उन्हें पुस्तकों की अपनी सूची में शामिल करूं या नहीं। यह संकोच उनकी गंभीरता के कारण हो रहा था। मीरदाद के विषय में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ; उमर खय्याम की ‘रुबाइयात’ के बारे में भी मुझे संकोच नहीं हुआ। लेकिन बादरायण के ब्रह्मसूत्र के बारे में मुझे संकोच हुआ, जब कि इसे पूरब में महानतम ग्रंथों में से एक माना जाता है--और निश्चित ही यह है भी।
मैंने बहुत सी गंभीर पुस्तकें पढ़ी हैं, यहां तक कि उस दुष्ट संत जॉर्ज गुरजिएफ की ‘ऑल एंड एवरीथिंग’ भी, लेकिन जहां तक गंभीरता का प्रश्न है बादरायण के ब्रह्मसूत्र का कोई मुकाबला नहीं। वे अपनी गंभीरता में भी शिखर पर हैं। काश, वे थोड़ा हंस लिए होते!
ईसाइयत ऐसा मानती है कि जीसस कभी हंसे नहीं। मैं इसका खंडन करता हूं। मैं इसका पूरी तरह से खंडन करता हूं! बादरायण के बारे में यह संभव है; हो सकता है कि वे कभी न हंसे हों। वे इतने गंभीर हैं, बिलकुल गंभीर। इससे अधिक गंभीर पुस्तक की रचना नहीं की जा सकती है। इसे समझाने के लिए हजारों भाष्य लिखे गए कि उनका अर्थ क्या है।
सत्य के लिए किसी भाष्य की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जब इसे गंभीर आवरण में बंद कर दिया जाता है, तो स्वाभाविक है कि भाष्यकार इसे समझाने आएं, और भाष्यकार हमेशा शैतान की ही सेवा करते हैं। अभी भी यह एक महान ग्रंथ है; बादरायण की गंभीरता के बावजूद यह महान है। बादरायण बड़ी कुशलता के साथ, बड़ी क्षमता के साथ, एक वैज्ञानिक की क्षमता के साथ परम शिखर को, सर्वोच्च को स्पर्श करते हैं।
भारत में किसी व्यक्ति को आचार्य तभी कहा जाता है जब वह इन तीन शास्त्रों पर भाष्य लिख चुका हो: पहला है, ‘एक सौ आठ उपनिषद;’ दूसरा है, ‘श्रीमद्भगवद्गीता,’ कृष्ण के दिव्य गीत; तीसरा है, सभी से अधिक महत्वपूर्ण, बादरायण का ‘ब्रह्मसूत्र।’ मैं इस पर कभी नहीं बोला। कई वर्षों तक मुझे ‘आचार्य’ कहा जाता रहा, और लोग मुझसे पूछते थे कि क्या मैं इन तीनों पर भाष्य लिख चुका हूं--गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र पर। मैं हंसता और कहता, ‘‘मैं केवल लतीफे सुनाता हूं। मैं कोई भाष्य वगैरह नहीं लिखता हूं। मुझे आचार्य कहा जाना एक मजाक है, इसे गंभीरता से मत लो।’’
‘ब्रह्मसूत्र।’ ‘ब्रह्म’ को ईश्वर जाना और समझा जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। ईश्वर के बारे में ईसाइयत की जो धारणा है, कि ईश्वर ने जीसस क्राइस्ट के जन्म से चार हजार चार साल पहले दुनिया का निर्माण किया था, उससे ब्रह्म का कुछ भी लेना-देना नहीं है। जब मैं यह कह रहा हूं तो सोच रहा हूं कि अगर बादरायण मेरी बात सुन रहे होंगे, तो शायद वे भी हंसते होंगे, शायद उनकी गंभीरता खो गई होगी। ‘ब्रह्म’ का अर्थ ईश्वर नहीं है; ‘ब्रह्म’ का अर्थ है भगवत्ता, दिव्यता जिसने संपूर्ण अस्तित्व को व्याप्त कर रखा है... संपूर्ण, संपूर्ण की पवित्रता।
‘सूत्र’ का सीधा सा अर्थ है मार्ग। ब्रह्म के बारे में अधिक कुछ और नहीं कहा जा सकता है; इसके बारे में जो कुछ भी कहा जा सकता है वह केवल एक मार्ग है, एक संकेत है। परंतु संकेत भी सेतु बन सकता है, मार्ग सेतु बन सकता है, और बादरायण ने अपने सूत्रों में सेतु निर्मित कर दिया है।
बादरायण की गंभीरता के बावजूद मैं इस पुस्तक से प्रेम करता हूं। मुझे गंभीरता से इतनी अधिक घृणा है कि मुझे कहना पड़ा, ‘‘बादरायण की गंभीरता के बावजूद।’’ संसार की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक की रचना के लिए अब भी मैं उनसे प्रेम करता हूं। बादरायण के सूत्रों से ‘बाइबिल’ जैसी पुस्तकें कोसों दूर हैं, वे इसके पास भी नहीं फटक सकती हैं।

दूसरी: नारद का ‘भक्ति-सूत्र।’ नारद बादरायण से ठीक विपरीत हैं, और विपरीत को साथ रखना मुझे अच्छा लगता है। नारद और बादरायण को मैं एक ही कक्ष में रखना चाहूंगा और फिर उनके बीच जो भी घटित होगा उसका आनंद लूंगा। नारद हमेशा ही अपने साथ एकतारा रखा करते थे, यह एक ऐसा वाद्ययंत्र है जिसमें एक ही तार होता है। नारद हमेशा अपना एकतारा साथ रखा करते थे, बजाया करते थे, गाया करते थे, नाचा करते थे। बादरायण तो इस सबको बिलकुल भी सहन नहीं करते। मैं हर तरह के लोगों को सहन कर सकता हूं। बादरायण तो नारद पर चीखे होते और चिल्लाए होते। नारद उस तरह के व्यक्ति नहीं थे कि वे बादरायण की बात सुनते; वे अपना एकतारा बजाते ही रहते, और बादरायण को चिढ़ाने के लिए और जोर से गाने लगते। दोनों को एक ही कक्ष में देख कर मुझे तो मजा ही आ जाता। इसीलिए दूसरी पुस्तक जो मैंने चुनी वह है नारद का ‘भक्ति-सूत्र।’
उनके सूत्र ‘‘अथातो भक्ति जिज्ञासा--अब भक्ति की जिज्ञासा’’ से प्रारंभ होते हैं। भक्ति की जिज्ञासा श्रेष्ठतम खोज है, श्रेष्ठतम जिज्ञासा है। अन्य सभी बातें छोटी पड़ जाती हैं, यहां तक कि परमाणु ऊर्जा भी। तुम अलबर्ट आइंस्टीन की क्षमता के वैज्ञानिक हो सकते हो, लेकिन जब तक तुम प्रेम में न पड़ो तब तक तुम्हें पता भी न चलेगा कि असली खोज क्या है। और केवल प्रेम ही नहीं, बल्कि प्रेम+जागरूकता... तब यह प्रेम की जिज्ञासा बन जाती है, जो कि संसार में सबसे कठिनतम कार्य है।
मैं फिर से दोहरा दूं, संसार में यह सबसे कठिनतम कार्य है--प्रेम+जागरूकता। लोग प्रेम में गिरते हैं; लोग प्रेम में होश खो देते हैं। उनका प्रेम बस शारीरिक होता है, वह नीचे की ओर खींचता है। उन्हें धरती की ओर नीचे खींच लिया जाता है। लेकिन नारद पूरी तरह से अलग ही प्रेम की बात कर रहे हैं: प्रेम ध्यान की तरह, जागरण की तरह। या वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो प्रेम ऊर्ध्वगमन की तरह, गुरुत्वाकर्षण के विपरीत। गुरुत्वाकर्षण को कब्रों में रहने वालों के लिए छोड़ दो; तुम ऊपर की ओर उठो, ऊंचे उठो! और जब कोई प्रेम में उठने लगता है, सितारों की ओर उड़ने लगता है, तो वही है ‘अथातो भक्ति जिज्ञासा।’
तुम सब इतने चिंतित क्यों दिख रहे हो? मैं राक्षसों को भी प्रेम करता हूं--उन्हें काम करने दो, वे जितना शोर मचाना चाहें, उन्हें मचाने दो। और जहां तक मेरा संबंध है वे मुझे परेशान नहीं कर सकते हैं, और जहां तक तुम्हारा संबंध है तुम पहले से ही परेशान हो, इससे अधिक वे कर भी क्या सकते हैं? इसलिए सब-कुछ बिलकुल ठीक है, वैसा ही है जैसा होना चाहिए।
नारद की पुस्तक को मैंने अत्यधिक प्रेम किया है। मैंने इस पर बोला भी है, लेकिन अंग्रेजी में नहीं, क्योंकि अंग्रेजी मेरी भाषा नहीं है, और इसके अलावा यह बहुत वैज्ञानिक, गणितीय और आधुनिक भाषा है। नारद पर मैं हिंदी में, अपनी मातृभाषा में बोला हूं, जिसमें मैं ज्यादा आसानी से गा सकता हूं। यह मेरे हृदय के निकट है।
मेरे एक प्रोफेसर कहा करते थे, ‘‘तुम विदेशी भाषा में प्रेम नहीं कर सकते, और न ही तुम झगड़ा कर सकते हो।’’
जब झगड़े का मौका आता है तो आदमी अपने हृदय की भाषा बोलना चाहता है। जब प्रेम का क्षण आता है तो भी ऐसा ही होता है, बल्कि और भी अधिक, क्योंकि यहां और अधिक गहराई की जरूरत है।
जब मैं अंग्रेजी में बोलता हूं तो मैं गलत बोलने के लिए बाध्य हूं, क्योंकि यह दोहरा कार्य है। मैं अब भी हिंदी में बोल रहा हूं और फिर इसका अंग्रेजी में अनुवाद कर रहा हूं। यह एक कठिन कार्य है। सीधे ही अंग्रेजी में बोल पाना मेरे लिए अभी तक संभव नहीं हो पाया है, भगवान का धन्यवाद! याद रखना, भगवान का अस्तित्व नहीं है; उसे बस इसीलिए बनाया गया है कि हम किसी को धन्यवाद दे सकें। मैं आशा करता हूं कि नारद पर मैंने जो बोला है कोई उसका अनुवाद करेगा।
बहुत से विषयों को आवश्यक समझते हुए मैं उन पर हिंदी में बोला हूं, उन पर मैं अंग्रेजी में नहीं बोला, क्योंकि ऐसा संभव नहीं था। और इससे विपरीत भी हुआ है; मैं बहुत से विषयों के बारे में अंग्रेजी में बोला हूं, जिन पर हिंदी में बोल पाना संभव नहीं था। मेरा काम थोड़ा अजीब हो गया है। जब मेरी सभी पुस्तकों का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद हो जाएगा, और अंग्रेजी से हिंदी में, तो तुम आज की तुलना में और अधिक किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाओगे, तुम इस समय जितना उलझे हुए हो उससे और अधिक उलझ जाओगे--और तब मैं ठहाका लगा कर हंसूंगा। मैं शरीर में रहूं या न रहूं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; मैं जी भर कर हंसूंगा, यह मेरा वादा रहा, जहां भी मैं होऊं! मैं ब्रह्मांड में कहीं तो होऊंगा ही। मैं तुम्हें उलझन में देख कर, घबड़ाए हुए, सिर हिलाते हुए, तुम्हें भरोसा नहीं आएगा, क्योंकि मैंने अलग-अलग आयामों में इन दोनों भाषाओं में बोला है... मैंने अंग्रेजी में बोलना केवल इसलिए चुना, क्योंकि एक ऐसा आयाम है जिसे हिंदी में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।

तीसरी पुस्तक है पंतजलि का ‘योग-सूत्र।’ बादरायण बहुत गंभीर हैं, नारद बहुत गैर-गंभीर हैं, पतंजलि ठीक मध्य में हैं, ठीक बीच में: न तो गंभीर और न ही गैर-गंभीर, उनमें एक वैज्ञानिक की आत्मा है। मैं पतंजलि पर दस भागों में बोल चुका हूं, इसलिए उनके विषय में कुछ और कहने की आवश्यकता नहीं है। दस भागों के बाद कुछ और कहना कठिन है, कुछ और जोड़ना कठिन है... बस एक ही बात है कि उस व्यक्ति से मुझे प्रेम है।

चौथी: कबीर, ‘दि सांग्स ऑफ कबीर’--‘कबीर के गीत।’ संसार में इनके जैसा कुछ भी नहीं है। कबीर अविश्वसनीय रूप से सुंदर हैं। एक बे-पढ़ा-लिखा व्यक्ति, जुलाहे के घर जन्मा, जिसे कोई जानता नहीं... उनकी मां ने उन्हें गंगा-तट पर छोड़ दिया था। निश्चित ही वे नाजायज संतान रहे होंगे। लेकिन यह सिर्फ जायज संतान होना ही पर्याप्त नहीं है; वे निश्चित ही नाजायज संतान रहे होंगे, लेकिन उनका जन्म प्रेम के द्वारा हुआ था, और प्रेम असली कानून है। मैं कबीर पर भी बहुत बोला हूं, इसलिए कुछ और जोड़ने की आवश्यकता नहीं है सिवाय इसके कि बार-बार मैं कहूंगा, ‘‘कबीर, मैंने तुम्हें इस तरह प्रेम किया है जैसा किसी और व्यक्ति से कभी नहीं किया।’’
मेरी गिनती ठीक है न?
‘‘हां, ओशो।’’
यह तो बहुत अच्छी बात है! शैतान मुझे बिलकुल तंग नहीं कर सकते!

पांचवीं: अब मैं एक महिला का जिक्र करता हूं। मैं बार-बार सोच रहा था कि किसी महिला का जिक्र करूं, लेकिन द्वार पर पुरुषों ने बड़ी भीड़ लगा रखी थी--वे लोग बहुत ही अशिष्ट हैं!--और वे किसी महिला को भीतर नहीं आने दे रहे थे। और वह महिला किसी तरह अंदर आ ही गई है... हे भगवान, क्या महिला है! मैडम ब्ला-ब्ला (बकबक) ब्लावट्‌स्की! मैं ब्लावट्‌स्की को हमेशा इसी तरह बुलाता हूं: ब्ला-ब्ला। उसे ब्ला-ब्ला लिखने में, बकवास लिखने में महारत हासिल थी--राई का पहाड़ बना देना, व्यर्थ के बारे में भी बहुत कुछ लिख देना। और मैं जानता था कि वह अंदर आने वाली पहली महिला होगी। वह एक सशक्त महिला थी। वह किसी तरह इन सभी लोगों--पतंजलियों, कबीरों और बादरायणों को किनारे ढकेलते हुए अपनी पुस्तक ‘दि सीक्रेट डॉक्ट्रिन’ के सात भागों के साथ अंदर आने में सफल हो गई है। वह मेरी पांचवीं पुस्तक है। यह लगभग एक विश्वकोष, एनसाइक्लोपीडिया है--‘एनसाइक्लोपीडिया इसोटेरिका।’ जहां तक रहस्य-विद्या का संबंध है, मैं समझता हूं कि ब्लावट्‌स्की का मुकाबला कोई नहीं कर सकता--केवल मुझे छोड़ कर; मैं सात सौ भाग लिख सकता हूं। इसीलिए मैं ‘दि सीक्रेट डॉक्ट्रिन’ पर बोलने से बच रहा था: क्योंकि अगर मैं ‘दि सीक्रेट डॉक्ट्रिन’ के सात भागों पर बोलूंगा, तो इंशाअल्लाह, परमात्मा की मर्जी होगी तो मैं सात सौ भाग बना दूंगा, इससे कम नहीं।
मुझे बताया गया है कि अब तक मैं तीन सौ छत्तीस पुस्तकें बोल चुका हूं। हे परमात्मा! परमात्मा बड़ा दयालु है--दयालु इसलिए कि मुझे उन्हें नहीं पढ़ना पड़ेगा। उनमें से किसी को मैंने पढ़ा भी नहीं है। लेकिन ब्लावट्‌स्की इसमें से भी कुछ निकाल लेती, इसी को मैं गुह्य-विज्ञान कहता हूं। तीन सौ और छत्तीस: तीन-तीन-छह, अर्थात तीन+तीन छह होते हैं...छियासठ; छह+छह बारह होते हैं...एक+दो...फिर वही तीन! जैसे ही तुम तीन पर आते हो तुम रहस्यवादी को रोक नहीं सकते; चाबी मिल गई है। रहस्यवादी उन आयामों में ले जाएगा जिसकी तुमने कभी कल्पना भी न की हो। ‘तीन’ सभी द्वारों को खोलने के लिए प्रर्याप्त है, चाहे ताला लगा हो या न लगा हो।
ब्लावट्‌स्की, बेचारी महिला--मुझे उस पर दया भी आती है और मुझे उससे प्रेम भी है, उसके चेहरे के बावजूद, जो कि प्यारा नहीं है, आकर्षक भी नहीं है, प्यारे की तो बात ही क्या कहें! उसके चेहरे का उपयोग केवल बच्चों को डराने के लिए किया जा सकता है जब वे कुछ उपद्रव कर रहे हों। ब्लावट्‌स्की का चेहरा बहुत कुरूप था--लेकिन मुझे उस महिला पर दया आती है: पुरुषों की दुनिया में, पुरुषों द्वारा बनाई गई दुनिया में, पुरुषों द्वारा शासित दुनिया में वह अकेली महिला है जिसने आवाज बुलंद की, जो छा गई, और उसने पहली बार किसी महिला द्वारा स्थापित एक धर्म की स्थापना की--थियासॉफी। उसने बुद्ध, जरथुस्त्र, मोहम्मद के साथ मुकाबला किया, और इसके लिए मैं उसे धन्यवाद देता हूं। किसी को तो यह करना ही था। पुरुष को उसकी औकात बतानी ही चाहिए। इसके लिए मैं उसे धन्यवाद देता हूं।
‘दि सीक्रेट डॉक्ट्रिन,’ यद्यपि इसमें गुह्य-विज्ञान का ढेर सारा कचरा है, लेकिन इसमें बहुत से सुंदर हीरे भी हैं और कमल के अनेक फूल भी। इसमें ढेर सारा कचरा है, क्योंकि वह संग्रह करती रहती थी। वह जहां-जहां से संभव हो वहां-वहां से हर तरह का कूड़ा-करकट इकट्ठा करती रहती थी बिना इसकी फिकर किए कि वह उपयोगी है या नहीं। वह निरर्थक बकवास को भी व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने में माहिर थी। बहुत व्यवस्थित महिला थी। लेकिन इसमें थोड़े से--यह कहते हुए दुख होता है कि थोड़े से--यहां-वहां हीरे मिल जाते हैं।
कुल मिला कर पुस्तक बहुत काम की नहीं है। मैं केवल इसे इसीलिए शामिल कर रहा हूं ताकि मेरी सूची में कुछ महिलाएं भी हों, और मुझे पुरुषों का पक्षधर न समझा जाए। जो कि मैं नहीं हूं। मैं महिलाओं का पक्षधर हो सकता हूं, लेकिन पुरुषों का पक्षधर कभी भी नहीं हो सकता।

छठवीं: ‘दि सांग्स ऑफ मीरा’--‘मीरा के गीत।’ ब्लॉवट्‌स्की के बाद मुझे मीरा को शामिल करना ही है, चीजों को फिर से थोड़ा सुंदर बनाने के लिए, बस संतुलित करने के लिए। ब्लॉवट्‌स्की बहुत भारी भरकम है और उसके साथ संतुलन बनाने के लिए कुछ और महिलाओं की जरूरत होगी। मैं वह भी करूंगा। छठवीं है ‘मीरा के गीत;’ वे आज तक किसी भी स्त्री या पुरुष द्वारा गाए गए गीतों में सबसे सुंदर हैं। उनका अनुवाद करना असंभव है।
मीरा कहती है: ‘‘मैं तो प्रेम दीवानी--मैं प्रेम में पागल हूं, इस कदर पागल होकर प्रेम किया है कि मैं पागल हूं, मैं पागल हूं, पागल हूं!’’ शायद इससे तुम्हें थोड़ा सा इशारा मिल जाए कि वह किस प्रकार के गीत गाती थी। वह राजकुमारी थी, रानी थी, परंतु वह राजमहल छोड़ राह पर भिक्षा मांगने लगी। अपनी ‘वीणा’ बजाते हुए, नाचते हुए वह बाजार में, गांव-गांव में, नगर-नगर में, शहर-शहर में जाकर पूरे दिलोजान से अपने हृदय के गीत गाने लगी। मीरा पर मैंने हिंदी में बोला है; जो कुछ मैंने कहा है किसी दिन कोई दीवाना उसका अनुवाद कर सकता है।

सातवीं: एक और महिला... मैं तो बस उस भारी भरकम ब्ला-ब्ला ब्लावट्‌स्की के साथ संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा हूं। वह वास्तव में भारी थी, सचमुच में भारी भरकम, कोई तीन सौ पौंड की रही होगी! एक महिला और तीन सौ पौंड की! वह एक क्षण में तुम्हारे मोहम्मद अली जैसे को उठा कर फेंक सकती थी। वह तुम्हारे तथाकथित महानतम लोगों को अपने पैरों तले कुचल सकती थी और उनका पता भी नहीं चलता। एक असली महिला--तीन सौ पौंड की! आश्चर्य नहीं कि उसे कोई प्रेमी नहीं मिला, केवल अनुयायी मिले। स्वाभाविक है, स्पष्ट है कि इस प्रकार की महिला से तुम प्रेम नहीं कर सकते। अगर वह तुम्हारे साथ जोर-जबरदस्ती करे तो तुम केवल उसकी आज्ञा का पालन कर सकते हो। ब्लावट्‌स्की के साथ संतुलन बनाने के लिए सातवीं है ‘दि सांग्स ऑफ सहजो’--‘सहजो के गीत।’
एक और महिला, सहजो। उसका नाम भी काव्यात्मक है; इसका अर्थ है ‘सहजता का सारभूत तत्व।’ मैं सहजो पर बोला हूं, और हिंदी में बोला हूं, क्योंकि अंग्रेजी मुझे उतना काव्यात्मक होने नहीं देती। अंग्रेजी भाषा में मुझे बहुत काव्य दिखाई नहीं देता, और कविता के नाम पर जो मैं देखता हूं वह इतना काव्यरहित है कि मुझे आश्चर्य होता है कि इसके प्रति कोई विद्रोह क्यों नहीं करता है। ऐसे लोग क्यों नहीं हैं जो अंग्रेजी भाषा को नये सिरे से प्रारंभ करें, लेकिन काव्यात्मक ढंग से? यह दिन प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिकों की, तकनीशयनों की, या और सही कहा जाए तो टेक्नालॉजी की, प्रौद्योगिकी की भाषा होती जा रही है। यह दुर्भाग्य है। इसकी केवल आशा की जा सकती है कि किसी दिन जो मैंने सहजो पर बोला है वह पूरे संसार को पता चलेगा।

आठवीं: एक और महिला, क्योंकि अभी भी हैवी वेट चैम्पियन ब्लावट्‌स्की के साथ मैं संतुलन नहीं बना पाया हूं। लेकिन यह महिला उसे संतुलित कर देगी। वह एक सूफी है; उसका नाम है, राबिया अल-अदाबिया। अल-अदाबिया का मतलब है ‘अदाबिया गांव से।’ राबिया उसका नाम है, अल-अदाबिया उसका पता है। सूफियों ने उसे इसी नाम से पुकारा: राबिया अल-अदाबिया। राबिया के जीवन-काल में ही उसका गांव मक्का बन गया। पूरी दुनिया से यात्री, हर जगह के खोजी राबिया की झोपड़ी खोजते हुए चले आते थे। वह वास्तव में एक खूंखार फकीर थी; हाथ में हथौड़ा लेकर वह किसी की भी खोपड़ी खोल सकती थी। उसने वास्तव में कई खोपड़ियां तोड़ दीं और छिपे हुए सारतत्व को उजागर कर दिया था।
एक बार उसकी तलाश करता हुआ, उसे खोजता हुआ, हसन उसके पास आया। वह उसके साथ ठहरा हुआ था, सुबह की प्रार्थना करने के लिए हसन ने कुरान मांगी। राबिया ने उसे अपनी कुरान दे दी। उसे देख कर हसन तो चकित हो गया; उसने कहा, ‘‘यह तो कुफ्र है। किसने किया है यह?’’ राबिया ने कुरान में सुधार कर दिया था! उसने कई स्थानों पर कई शब्दों को काट दिया था। कहीं तो उसने पूरा पैराग्राफ ही काट दिया था। हसन ने कहा, ‘‘इसकी इजाजत नहीं है। कुरान में सुधार नहीं किया जा सकता। पैगंबर, खुदा के आखिरी संदेशवाहक की बात को कौन बदल सकता है?’’ इसीलिए मुसलमान उन्हें आखिरी पैगंबर कहते हैं--क्योंकि मोहम्मद के बाद कोई और पैगंबर नहीं होगा। तो उनके कहे हुए शब्दों में कौन सुधार कर सकता है? वे सही हैं, और उनमें सुधार नहीं किया जा सकता।
राबिया हंसी और बोली: ‘‘मुझे परंपरा की कोई परवाह नहीं है। मैंने खुदा को रू-ब-रू देखा है, और मैंने अपनी अनुभूति के अनुरूप किताब को बदल दिया है। यह मेरी किताब है।’’ उसने कहा: ‘‘तुम कोई एतराज नहीं उठा सकते। यह मेरी चीज है। तुम्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए कि मैंने तुम्हें इसे पढ़ने दिया। मुझे अपनी अनुभूति के प्रति सच्चा होना चाहिए, किसी दूसरे की अनुभूति के प्रति नहीं।’’
यह है राबिया, एक अविश्वसनीय महिला। मैं उसे अपनी सूची में शामिल कर रहा हूं। वह मैडम ब्लावट्‌स्की को उसकी अपनी औकात दिखाने के लिए काफी है। फिर से मैं कहूंगा, राबिया ने स्वयं कुछ भी नहीं लिखा है, केवल शिष्यों के नोट्‌स हैं, जैसे देवगीत के। राबिया बिना संदर्भ के कुछ बोल देगी--किसी को संदर्भ का पता भी न चलेगा; अचानक फिर कुछ बोल देगी, और उसे लिख लिया जाएगा। इसी तरह की कई छोटी कहानियां उसके बारे में हैं, और उसका खुद का जीवन अपने आप में एक कहानी हो गया है। मैं उसे प्रेम करता हूं।
मीरा सुंदर है, लेकिन बिना नमक की, बस मीठी। राबिया में बहुत नमक है। तुम्हें पता ही है कि मुझे डायबिटीज है, और मैं मीरा को बहुत ज्यादा नहीं पी सकता हूं और न खा सकता हूं--देवराज इसकी अनुमति नहीं देगा। लेकिन राबिया ठीक है, जितना नमक चाहूं ले लूं। असल में, मुझे चीनी से घृणा है और सैकरीन से तो और भी ज्यादा, कृत्रिम चीनी जिसे डायबिटीज वालों के लिए विशेष रूप से बनाया गया है--लेकिन नमक मुझे प्रिय है।
जीसस ने अपने शिष्यों से कहा था: तुम पृथ्वी के नमक हो। मैं राबिया के बारे में कहूंगा: राबिया, वे सभी महिलाएं जो कभी इस पृथ्वी पर हुई हैं और कभी होंगी, तुम उन सभी का नमक हो।

नौवीं: नानक, सिक्ख धर्म के संस्थापक, उनके गीत। उन्होंने अपने एक ही शिष्य मरदाना के साथ उस समय के ज्ञात पूरे संसार की यात्रा की। मरदाना यानी पौरुष से भरा हुआ--‘वास्तव में वीर।’ शिष्य होने के लिए वीर होना आवश्यक है। नानक गाते थे और मरदाना अपना सितार बजाते थे, और इसी तरह वे सारे संसार में परम की सुगंध फैलाते घूमते रहे। उनके गीत इतने सुंदर हैं कि मेरी आंखों में आंसू ले आते हैं। केवल उनके गीतों से एक नई भाषा का जन्म हो गया। उन्हें न तो व्याकरण से मतलब था, न भाषा के कायदे-कानूनों से, उन्होंने अपने गीतों से ही पंजाबी भाषा को रचा है। यह एक बहुत शक्तिशाली भाषा है, ठीक तलवार की पैनी धार की तरह।

दसवीं: मैं हमेशा शंकराचार्य पर बोलना चाहता था--पहले वाले, वर्तमान वाले पर नहीं--असली शंकराचार्य पर, आदि शंकराचार्य पर। मैंने उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘विवेक-चूड़ामणि’--‘जागरूकता की शिरोमणि’ पर बोलने का निश्चय किया था। अंतिम क्षण में... जैसा कि तुम जानते हो, मैं पागल आदमी हूं; और अंतिम क्षण में मैंने यह निर्णय लिया कि मैं इस पर न बोलूं। कारण सीधा साफ है: इस पुस्तक में प्रेम के बजाय तर्क अधिक है, और मुझे उस तर्क को झेलना पड़ता। यह छोटी-मोटी पुस्तक नहीं है। यह एक बड़ी पुस्तक है और मैं आठ महीने लगातार इस पर बोलने वाला था। यह एक लंबी यात्रा होती, इसलिए इसे छोड़ देना ही बेहतर था। तो मैंने इस पर न बोलने का निर्णय लिया। लेकिन जिन श्रेष्ठ पुस्तकों को मैं यहां गिन रहा हूं उनमें इसको शामिल किया जाना चाहिए।
निश्चित ही शंकराचार्य की ‘विवेक-चूड़ामणि’ में यहां-वहां हीरे हैं, पुष्प हैं, सितारे हैं। लेकिन बीच-बीच में ब्राह्मणों की बकवास इतनी अधिक और इतनी घनी है कि मैं इसे सहन नहीं कर सका। लेकिन पुस्तक श्रेष्ठ है--हीरों की खदान को तुम सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ सकते हो कि उसमें पत्थर बहुत हैं और चारों ओर बहुत सा कीचड़ है।

ग्यारहवीं: और इस श्रृंखला की अंतिम: हजरत मोहम्मद की ‘कुरान।’ कुरान ऐसी किताब नहीं है जिसे पढ़ा जाए, बल्कि ऐसी किताब है जिसे गाया जाए। अगर तुम इसे पढ़ोगे तो चूक जाओगे। अगर इसे गाओगे तो इंशाअल्लाह शायद पा ही जाओ।
‘कुरान’ को किसी विद्वान या दार्शनिक ने नहीं लिखा था। मोहम्मद एकदम अनपढ़ थे। वे अपने हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते थे। लेकिन वे भगवत्ता से अभिभूत हो जाते थे। अपनी सरलता के कारण वे चुन लिए गए थे और गाने लगे, और वह गीत ‘कुरान’ है।
मैं अरबी भाषा नहीं समझता, लेकिन मैं कुरान समझता हूं, क्योंकि मैं लय को, और अरबी सुरों की लय के सौंदर्य को समझ सकता हूं। अर्थ की परवाह कौन करता है? जब तुम एक फूल को देखते हो तो क्या तुम पूछते हो, ‘‘इसका अर्थ क्या है?’’ फूल अपने आप में पर्याप्त है। जब तुम आग की लपट देखते हो तो क्या तुम पूछते हो, ‘‘इसका अर्थ क्या है?’’ लपट अपने आप में पर्याप्त है। इसका सौंदर्य ही इसका अर्थ है। अगर यह लयबद्ध है तो इसकी अर्थहीनता ही इसका अर्थ है।
ऐसी ही कुरान है, और मैं आभारी हूं कि परमात्मा ने मुझे अवसर दिया--और ध्यान रहे, ईश्वर कहीं नहीं है, यह एक अभिव्यक्ति मात्र है। मुझे कोई अवसर नहीं दे रहा है, इंशाअल्लाह, परमात्मा का शुक्र है कि मुझे इस श्रृंखला को कुरान के साथ समाप्त करने का अवसर मिला, जो सबसे सुंदर, सबसे अर्थहीन, और सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, लेकिन फिर भी मनुष्य-जाति के संपूर्ण इतिहास में सबसे अतार्किक किताब है।




ओशो 

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