रविवार, 20 सितंबर 2009
गीत गाओ—‘’ध्यान’’
गीत गाना दिव्यक है, दिव्य तम घटनाओं में से एक है। केवल नृत्य। ही इससे ऊपर है। नृत्यं के बाद गायन ही आता है। और नृत्य, करना और गीत गाना दिव्यघ घटनाएं क्यों हैं ? क्यों कि यही वे घटनाएं हैं जिनमें आप पूरी तरह से खो सकते है। आप गायन में इतना डूब सकते हैं कि गायक खो जाए और केवल क्षण होता है जब गायक नहीं बचता और केवल गीत रह जाता है। जब आपका पूरा अस्तित्व् एक गीत या एक नृत्यह बन जाता है, तो वही प्रार्थना है। आप क्या गा रहे हैं, यह अप्रासंगिक है। चाहे वह कोई धार्मिक गीत न भी हो, लेकिन यदि आप उसे पूरे प्राणों से गा रहे हैं, तो वह पवित्र है। और इससे उलटा भी हो सकता है—सदियों से श्रद्धापूर्वक चला आ रहा कोई गीत भी यदि आप पूरे प्राणों से नहीं गा रहे हैं तो वह अपवित्र है। गीत के बोलों का महत्वह नहीं है, उसमें आप जो भाव लाते हैं,--समग्रता, प्रगाढ़ता लाते है—वही महत्वेपूर्ण है। किसी और का गीत मत दोहराएं, क्योंकि वह आपके ह्रदय से नहीं उठा है। और यह ढ़ग नहीं है उस दिव्यक के चरणों में अपने ह्रदय को उंड़ेलने का। अपने गीत को उठने दें। छंद और व्या्करण को भूल जाएं । परमात्मार कोई बहुत बड़ा व्याकरण का जानकार नहीं है। और उसे इसकी चिंता नहीं है कि आप किन शब्दों का प्रयोग करते है। उसकी उत्सु कता आपके ह्रदय में है।
ओशो—( आरेंज बुक )
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