रविवार, 20 सितंबर 2009
कभी, अचानक ऐसे हो जाएं जैसे नहीं हैं—
किसी वृक्ष के नीचे बैठे हुए, अतीत और भविष्या के बारे में न सोचते हुए, सिर्फ अभी और यहीं होते हुए, आप कहां है ?‘मैं' कहां है? आप इस ‘मैं’ को अनुभव नहीं कर सकते, वह इस क्षण में नहीं है। अहंकार कभी वर्तमान में नहीं पाया जाता। अतीत अब नहीं है। भविष्ये अभी आने को है, दोनों नहीं है। अतीत जा चुका, भविष्यै अभी आया नहीं—केवल वर्तमान में कभी भी अहंकार जैसी कोई चीज नहीं मिलती। तिब्बत के कुछ मठो में बहुत ही प्राचीन ध्यान-विधियों में से एक विधि अभी भी प्रयोग की जाती है। यह विधि इसी सत्यम पर आधारित है जो मैं आपसे कह रहा हूँ। वे सिखाते हैं कि कभी-कभी आप अचानक गायब हो सकते है। बगीचे में बैठे हुए बस भव करें कि आप गायब हो रहे है। बस देखें कि जब आप दुनिया से विदा हो जाते है, जब आप यहां मौजूद नहीं रहते, जब एकदम मिट जाते हैं। तो दुनिया कैसी लगती है। बस एक सेकेंड के लिए होने का प्रयोग करके देखें। अपने ही घर में ऐसे हो जाएं जैसे कि नहीं है। यह बहुत ही सुंदर ध्यान है। चौबीस घंटे में आप इसे कई बार कर सकते है—सिर्फ आधा सेकेंड भी काफी है। आधे सेकेंड के लिए एकदम खो जाएं आप नहीं है और दुनिया चल रही है। जैसे-जैसे हम इस तथ्ये के प्रति और सजग होते है कि हमारे बिना भी बड़े मजे से चलती है, तो हम अपने अस्तित्वे के एक और आयाम के प्रति सजग होते हैं, जो लंबे समय से, जन्मों-जन्मों से उपेक्षित रहा है। और बह आयाम है स्वी्कार भाव का। हम चीजों को सहज होने देते हैं, एक द्वार बन जाते हैं। चीजें हमारे बिना भी होती रहती हैं।
ओशो—( आरेंज बुक )
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