वे मिटाने में लग जाते है,
जो कविता नहीं रच सकते, वे आलोचक हो जाते है।
जो धर्म का अनुभव नहीं कर सकते, वे नास्तिक हो जाते है।
जो ईश्वर की खोज नहीं कर सकते, वे कहते है—ईश्वर है ही नहीं।
अंगूर खट्टे है,
इनकार करना आसान है, स्वीकार करना कठिन।
जो समर्पित नहीं हो सकते, वे कहते है—समर्पित होए क्यों।
मनुष्य की गरिमा उसके संकल्प में है, समर्पण में नहीं।
जो समर्पित नहीं हो सकते, वे कहते है--,
ध्यान रखान, सृजन कठिन है, विध्वंस आसान है।
जो माइकलएंजलो नहीं हो सकता ।
जो कालिदास नहीं हो सकता,
वह जौसेफ़ स्टैलिन हो सकता है।
जो बानगाग नहीं हो सकता, वह माओत्से तुंग हो सकता है।
विध्वंस आसान है।
--ओशो
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