रविवार, 4 अक्तूबर 2009

जगत का सबसे बड़ा चमत्कार—

धर्म तो कभी-कभी अवतरित होता है—
जिसने सत्‍य को जाना हो, उसके सान्निध्‍य में,
जिसने सत्‍य को अनुभव किया हो,
उसके पास बैठ जाने में, उसकी निकटता में,
उसके साथ नाचने में, उसके साथ गाने में,
उससे आंखें चार करने में।
जहां खोजी की दो आंखें उन आंखों से मिल जाती है,
जिसने खोज लिया,
उन चार आंखों के मिलने में कुछ होता है।
रहस्‍यपूर्ण, जादू भरा, इस जगत का सबसे बड़ा चमत्‍कार।
उन चार आंखों के बीच कुछ घटता है,
जिसे पकड़ा नहीं जो सकता, छुआ नहीं जा सकता,
देखा नहीं जा सकता, परन्‍तु अनुभव किया जा सकता है।
वह जो घटना है उन आंखों के बीच, उसका नाम धर्म है।
धर्म एक काव्‍य है---महाकाव्‍य।
जो दो ह्रदयों की धड़कन के बीच जब जुगल बंदी हो जाती है,
तब घटता है, जब दो व्‍यक्ति एक जागा हुआ और एक सोया हुआ--
एक लय में आबद्ध हो जाते है, उस लय में,
उस सुर-ताल में, उस सरगम में धर्म छिपा है।
धर्म सत्‍संग की अनुभूति है।

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