सफलता मिल जाए तो व्यर्थ है,
असफलता भी मिले तो सार्थक है।
सवाल मंजिल का नहीं,
सवाल कहीं पहुंचने का नहीं,
कुछ पाने का नही—
दिशा का नहीं, आयाम का नहीं।
कंकड़-पत्थर इकट्ठे भी कर लिए किसी ने,
तो क्या पाया।
तो भी बहुत कुछ पा लिया जाता है—
उस खोने में भी ,
अंनत की यात्रा पर जो निकलता है,
वे डूबने को भी उबरना समझते है।
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