रविवार, 8 अगस्त 2010

ओशो की विश्‍व यात्रा—2

बुद्ध की जन्‍म स्‍थली नेपाल में—

     3 जनवरी, 1986 को काठमांडू एयरपोर्ट पर नई दिल्‍ली से आने वाली पहली उड़ान का इंतजार बड़े जोश-खरोश से चल रहा था। विशिष्‍ट व्‍यक्‍तियों के स्‍वागत की नेपाली परंपरा के अनुसार पानी से भरे 108 कलश एयरपोर्ट के आगमन द्वार से पार्किग एरिया तक दो क़तारों में लगे हुए थे—और उनके पीछे सैकड़ों पूरबी पश्‍चिमी संन्यासियों का समूह नाच गा रहा था। रंग बिरंगी तख्‍तियां गर्व से घोषणा कर रही थी—‘’बुद्ध की धरती नए बुद्ध का स्‍वागत करती है।‘’
      काठमांडू के सोलती ओबराय में एक बार फिर से विश्‍व प्रेस जमा होने लगी। ओशो ने पाखंडी और न्‍यस्‍त स्वार्थी पर अपने प्रहार और तेज कर दिये।
      नेपाल के राजा ने प्रवचन में शामिल होने के लिए कई बार अपने दूत भी भेजे और इस दौरान एक बार  वह स्‍वयं भी ओबराय आया परंतु ओशो से नहीं मिला। ऐसा सुनने में आया की उस पर अमरीका सरकार का दबाव था।
      नेपाल छोटा सा देश है। बहुत गरीब भी। नेपाल के ऊपर भारत का भी काफी दबाव है, क्‍योंकि नेपाल भारत के काफी आर्थिक दबदबे में है।
     जब विश्‍वसनीय सूत्रों से पूरी तरह पक्‍का हो गया कि भारत सरकार नेपाल की सरकार पर दबाव डालने वाली है। कि मुझे गिरफ्तार करके भारत वापस भिजवा दिया जाए। तो मुझे नेपाल भी छोड़ना पडा।‘’
      मध्‍य फरवरी में नेपाल छोड़ते हुए ओशो ने ऐलान किया कि, अब मैं पूरे विश्‍व की यात्रा पर जाऊँगा, ताकि संसार भर में सबसे सीधी बात कर सकूँ और नींद में सोए लोगों को झकझोर कर जगा सकूँ।
      मेरी विश्व यात्रा का उद्देश्‍य था कि मैं लोगों को उनके दुखों से और ओढ़ी हुई गुलामी से जगा सकूँ। धर्मों ने लोगों को गुलाम बना रखा है। ये सब लोगों को गुलामी को सत्‍य का साक्षात्‍कार नहीं करने देते।
      ‘’और जब तक तुम सत्‍य को न जान लो, तुम जीवन के आनंद को नहीं जान सकते।
      यदि तुम सत्‍य का अनुभव नहीं कर लेते तो इस विशाल अस्‍तित्‍व से स्‍वयं को न जोड़ पाओगे जो तुम्‍हारा घर है, जिसने तुम्‍हें जन्‍म दिया है। और जो बड़ी आशा से तुम्‍हारी और देखता है कि तुम चेतना के परम शिखर को छू लो.....क्‍योंकि तुम्‍हारे माध्‍यम से ही अस्‍तित्‍व उन शिखरों को छू सकता है। और कोई उपास नहीं है।
      मनुष्‍य अस्‍तित्‍व का सबसे कीमती खजाना है—और सब धर्म इस खजानें को नष्‍ट करने पर तुले है। मनुष्‍य अस्‍तित्‍व का सबसे बड़ा प्रयोग है। इस विशाल जगत में यह छोटी सी पृथ्‍वी ही है जहां मनुष्‍य पैदा हुआ हे। जिसके पास पूरी तरह चैतन्‍य होने की संभावना है।   
      अस्‍तित्‍व तुमसे बड़ी आशा रखता है।
      सारे धर्म चेतना को विकसित होने से रोक रहे है। वे सब अस्‍तित्‍व के खिलाफ हैं, तुम्‍हारे खिलाफ है।
      मेरी विश्‍व यात्रा का उद्देश्य था कि ये लोगों को उनके कारागृह कि याद दिलाऊ। लोगों को उनकी संभावना की याद दिलाऊ—कि वे क्‍या है और क्‍या हो सकते है। और किसको यह अधिकार है कि तुम्‍हारी संभावना को पूरा होने से रोक सके।
      मैं इसलिए भी पूरे विश्‍व की यात्रा पर गया था। क्‍योंकि हमें एक ऐसी विश्व शक्ति तैयार करनी है कि फिर किसी सुकरात को जहर देने की हिम्‍मत न की जा सके। वरना तुम फिर-फिर वह गलती दोहराते चले जाओगे: जब भी कोई सुकरात आएगा और मार डालोगे।‘’
ओशो

1 टिप्पणी: