पूर्वरंग—भाग—1
(पहला प्रवचन)
प्यारे
ओशो,
जब
जरथुस्त्र
तीस साल के थे,
वह अपना घर और
उसकी सुखद
सुरक्षा
छोड़कर पहाड़ों
में चले गये।
वहां
उन्होंने
अपने स्व का
और अपने एकांत
का भरपूर आनंद
लिया और दस
साल तक उससे
थकित नहीं हुए।
लेकिन अंतत:
उनके हृदय का
भाव बदला — और
एक प्रात: वह
अरुणोदय के
साथ उठे चल कर
सूर्य के सम्मुख
आए और उससे इस
प्रकार बोले :
महा
सितारे! क्या
होगा
तुम्हारा
आनंद यदि वे न
हों जिनके लिए
तुम चमकते हो!
तुम
यहां मेरी
गुफा पर दस
वर्षों से आते
रहे हो : तुम
अपने प्रकाश
से और इस
यात्रा से थक
गये होते मेरे
बिना मेरे
गरुड़ और मेरे
सर्प के बिना।
लेकिन
हमने हर सुबह
तुम्हारा
इंतजार किया
तुमसे
तुम्हारी
बहुलता ग्रहण
की और उसके
लिए तुम्हें
धन्यवाद दिया
देखो!
मैं अपनी
प्रज्ञा से
थकित हूं एक
मधुमक्खी की भांति
जिसने बहुत
ज्यादा मधु
इकट्ठी कर ली
हो;
मुझे ऐसे
हाथों की
जरूरत है जो
इसे लेने के
लिए फैले हों।
मैं
इसे देना और
बांटना
चाहूंगा जब तक
कि मनुष्यों
में
बुद्धिमान
अपनी मूढ़ता
में फिर से आनंदित
न हो जाएं और
गरीब अपने धन
में आनंदित न
हो जाएं।
...
ऐसे प्रारंभ
हुआ
जरथुस्त्र का
नीचे उतरना।
मैं
इतिहास को
पूरी तरह उसके
मूल से ही
लिखना चाहूंगा, खासकर
इन लोगों के
बारे में
क्योंकि इनको
मैं अपनी
स्वयं की
अंतर्दृष्टि
से जानता हूं —
मुझे तथ्यों
की चिंता लेने
की जरूरत नहीं
है, मैं
सत्य को ही
जानता हूं। ये
लोग जीवन के
विरोध में
होकर नहीं गये
थे : ये केवल
एकांत के लिए
गये थे; ये
अकेले होने के
लिए गये थे; ये बस चित्त—विक्षेपों
से दूर गये थे।
लेकिन
गौतम बुद्ध और
जरथुस्त्र के
बीच फर्क यह
है कि गौतम
बुद्ध ने —
स्वयं को पा
लेने के बाद
भी — कभी यह
घोषणा नहीं की, 'अब
मेरे एकांतवासी
बने रहने की, मठवासी बने
रहने की जरूरत
नहीं है। मैं
वापस लौट सकता
हूं और संसार
में एक सामान्य
व्यक्ति की
तरह रह सकता
हूं।'
शायद
इसके लिए
संसार छोड्कर
जाने से भी
ज्यादा साहस
की जरूरत होती
है;
संसार में
वापस लौटने के
लिए और अधिक
साहस की जरूरत
होती है। चढ़ाई
दुर्गम होती
है, लेकिन
बहुत ज्यादा
तुष्टिदायक।
तुम ऊंचे ही
ऊंचे और ऊंचे
और ऊंचे चले
जा रहे हो, और
एक बार तुम
उच्चतम शिखर
पर पहुंच गये
कि फिर महत
साहस की जरूरत
होती है नीचे
की तरफ उन अंधेरी
घाटियों में
लौटने के लिए
जिन्हें तुम छोड़
गये थे, केवल
लोगों तक
संदेश
पहुंचाने के
लिए कि : 'तुम्हें
सदा—सदा के
लिए अंधकार
में बने रहने
की जरूरत नहीं
है। तुम्हें
सदा—सदा के
लिए दुख और
नर्क में बने
रहने की जरूरत
नहीं है। ' इस
नीचे उतरने
वाली यात्रा
की उन लोगों
द्वारा निंदा
भी हो सकती है
जिनकी तुम मदद
करने जा रहे
हो। जब तुम
ऊपर की तरफ जा
रहे थे, तुम
एक महान संत
थे, और जब
तुम नीचे की
तरफ आ रहे हो, लोग सोचेंगे
शायद
तुम्हारा पतन
हो गया, तुम्हारा
अपनी महानता
से, अपनी
ऊंचाइयों से
पतन हो गया।
निश्चित ही
परम ऊंचाइयों
को छूने के
बाद फिर से
सामान्य
व्यक्ति होने
के लिए जगत के
महानतम साहस
की जरूरत होती
है।
जरथुस्त्र
वह साहस
दिखलाते हैं।
............ऐसा
जरथुस्त्र ने
कहा।
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