शनिवार, 22 नवंबर 2014

आओ साजन--गदराया फागुन--(कविता)

आओ साजन—गदराया फागुन

फिसलन मन की अकड़न तन की।
बनगया पतझड़ सारा जीवन।
नहीं सूलझती सुलझी उलझन
प्रेम प्रीत का ये कैसा बंधन।
आओ  साजन गदराया फागून
याद तुम्‍हारी बनी सिसकिया
ह्रदय मैं उठती—एक सिहरन।
तोड़ रहे तट, प्राणों का बंधन।


होट रसीले बोराया मधूबन
रंग अंबर के घूल-घूल जाते।
रंग दो साजन
रंग दो ये तन।
फूल खिले है फिर आया सावन
टूट न जाये सांसो का बंधन।
आओ साजन, रंग लु तन—मन
फिर नहीं आयेगा ऐसा  सावन।
स्‍वामी आनंद प्रसाद मनसा




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