सुंदरी परिव्राजिका—(ऐतिहासिक कहानी)

गरीब ब्राह्मण सोम मित्र की कुटिया का आँगन, बहार अपनी पाँच वर्ष की लड़की को गोद में लिए कच्चे दालान में बैठा है। अंदर उसकी पत्नी को प्रसव पीड़ा तीन दिन से हो रही है। छटपटाती रही है अंदर, बहार ब्राह्मण केवल भगवान से सब ठीक-ठाक होने की दुआ मांग रहा था। किस तरह से आज तीसरे दिन अंदर से बच्चे के रोने की किलकारी सुनाई दी, परन्तु उसके पीछे एक दुःख भरी घटना भी साथ आई, बच्ची ने जीवन की पहली सांस ली वही बाह्मनी की आखिरी स्वास के साथ प्राण निकल गए। सोम मित्र की कुछ देर तो समझ में नहीं आया की रोएं या क्या करें। घर में हाहाकार मच गया। एक बच्ची आते ही अभागी बन गई जिसके सर से मां के आंचल का साया क़ुदरत ने पल भर में छीन लिया। कन्या रूप में इतनी सुंदर थी, जो उसे देखता बस दंग रह जाता। सब लोगों न असली नाम की पहचान तो भूल गए, सब उसे सुंदरी के नाम से ही पुकारने लगे।
धीरे-धीरे समय गुजरता चला गया। जैसे-जैसे सुन्दरी बड़ी होने लगी, उसका सौंदर्य विषमय रूप बढ़ने लगा। रूप के साथ वह बुद्ध में अति कुशाग्र दिखाई देने लगी। पिता गरीब बाह्रमण जन्म पत्री, टेवे, य गण, आदि से रोजगार चलता था। बाकी समय वो घर में विद्या अध्ययन करता रहता था।