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बुधवार, 9 जनवरी 2019

सुंदरी परिव्राजिका-(कहानी)-मनसा दसघरा

सुंदरी परिव्राजिका—(ऐतिहासिक कहानी)

गरीब ब्राह्मण सोम मित्र की कुटिया का आँगन, बहार अपनी पाँच वर्ष की लड़की को गोद में लिए कच्चे दालान में बैठा है। अंदर उसकी पत्नी को प्रसव पीड़ा तीन दिन से हो रही है। छटपटाती रही है अंदर, बहार ब्राह्मण केवल भगवान से सब ठीक-ठाक होने की दुआ मांग रहा था। किस तरह से आज तीसरे दिन अंदर से बच्चे के रोने की किलकारी सुनाई दी, परन्तु उसके पीछे एक दुःख भरी घटना भी साथ आई, बच्ची ने जीवन की पहली सांस ली वही बाह्मनी की आखिरी स्वास के साथ प्राण निकल गए। सोम मित्र की कुछ देर तो समझ में नहीं आया की रोएं या क्‍या करें। घर में हाहाकार मच गया। एक बच्ची आते ही अभागी बन गई जिसके सर से मां के आंचल का साया क़ुदरत ने पल भर में छीन लिया। कन्या रूप में इतनी सुंदर थी, जो उसे देखता बस दंग रह जाता। सब लोगों न असली नाम की पहचान तो भूल गए, सब उसे सुंदरी के नाम से ही पुकारने लगे।

      धीरे-धीरे समय गुजरता चला गया। जैसे-जैसे सुन्‍दरी बड़ी होने लगी, उसका सौंदर्य विषमय रूप बढ़ने लगा। रूप के साथ वह बुद्ध में अति कुशाग्र दिखाई देने लगी। पिता गरीब बाह्रमण जन्म पत्री, टेवे, य गण, आदि से रोजगार चलता था। बाकी समय वो घर में विद्या अध्ययन  करता रहता था।

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

चूलसुभद्या-(कहानी)-मनसा दसघरा

चूलसुभद्या—(ऐतिहासिक कहानी)

सूर्य के आगमन से पहले उसके पद-चिह्न, आकाश में बादलों के छिटकते टुकड़े के रूप में श्यामल से नारंगी होते दिखाई दे रहे थे। सुबह ने अल साई सी अंगड़ाई ली, पेड़-पौधों में नई जीवंतता का संचार हुआ। कली‍, फूल, पत्तों में भी सुबह के आने की सुगबुगाहट,  उन्मादी पन का अहसास होने लगा था। कोमल नवजात पत्तों ने पहली साँस के साथ नन्हीं आँखों से धरा को झाँक कर देखना चाहा, परंतु सूर्य की चमक ने उन सुकोमल नन्हे पत्तों को भय क्रांत कर फिर माँ के आँचल में दुबका दिया था। पास बड़े पत्तों न मंद्र समीर में नाच खड़खड़ाहट कर, तालियाँ बजा उनके भय को कुछ कम करना चाहा। दूर पक्षियों ने मानो उनके लिए मधुर लोरियों की झनकार छेड़ दी हो। उनका कलरव नाद सर्वस्व में कैसी मधुरता भर रहा था। तोतों ने जिन आमों को रात कुतरना छोड़ सो गए थे, सुबह फिर उन्हीं पर लदे-लटके कैसे किलकारियाँ मार-मार कर कह रहे हो,’’पा गया रात वाला फल’’ और खुशी के मारे उन्हें कुतर-कुतर कर विजय पत्ताका फहरा रहे थे। कुछ किसी अलसाए साथी को धक्के मार-मार के उठा रहे हे, चलो महाराज सूर्य सर पर चढ़ आया है, मीलों लंबा सफ़र तय करना है।

रविवार, 6 जनवरी 2019

पटाचारा-(कहानी)-मनसा दसघरा

पटाचारा—( ऐतिहासिक कहानी)

श्रावस्‍ती नगरी के श्रेष्ठी आयु सेन के दो बच्‍चे थे। एक लड़की और एक लड़के जिनके नाम चन्‍द्र बाला और चन्‍द्र देव थे। घर धन-धान्‍य से भरा था। पर नहीं था तो माता-पिता के पास समय, जो बच्‍चों के लिए निकाल पाते। माता पिता दोनों व्‍यवसाय में इतने डूबे रहते थे, या ये कह ली जीए की काम इतना अधिक था की दोनों की देखे-रेख में भी पूरा नहीं होता था। घर में नौकर चाकर सुख सुविधा सब थी पर नहीं था तो मां बाप का प्‍यार दुलार संग साथ। दोनों बच्‍चे धीरे-धीरे बड़े होने लगे। उनकी जरूरतें बढ़ने लगी पर माता-पिता को इस की कोई भी चिंता नहीं था। जो भी मांगा जाता उसे पूरा कर दिया जाता। धीरे-धीरे चन्द्र बाला बचपन से  जवानी की और बढ़ने लगी। इस आयु को हम अल्हड़पन-लड़कपन कहते है। इसी तरह से एक नौकर शुम्‍भी नाथ नाम का नवयुवक था, जो बचपन से ही अनाथ हो गया था और सेठ जी ने उसे अपने घर पर रख लिया। अब वह भी बड़ा हो कर घर के काम काज देखने लगा था। बचपन से ही इसी घर में पला तो उसके साथ नौकर सा व्यवहार नहीं किया जाता था। वह स्वतंत्र था पूरे घर में जहां जाए,  देखने में सांवला रंग रूप था परंतु उसके नाक नक्‍श अति सुंदर थे। शरीर से भी बलिष्‍ठ था। वहीं चन्‍द्र बाला का बाल सखा था, दोनों साथ रहते खेलते अब वह चंद्र बाला की देख रेख के लिए नियुक्त कर दिया था। वह उसे बाहर घूमाने ले जाता। सारथी रथ ले चलता, कभी उपवन, तो कभी जलविहार या नौकायान के लिए अचरवती नदी के तीर ले जाता।

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

आर्य रेवत-कहानी-(मनसा दसघरा)

      आर्य रेवत-(ऐतिहासिक कहानी)

रेवत स्‍थविर सारि पुत्र को छोटा भाई था। राजगृह के पास एक छोटे से गांव का रहने वाला था। सारि पुत्र और मौद्गल्यायन स्‍थविर बचपन से ही संग साथ खेल और बड़े हुए। दोनों ने ही राजनीति ओर धर्म में  तक्ष शिला विश्‍वविद्यालय से शिक्षा प्राप्‍त की । और एक दिन घर परिवार छोड़ कर दोनों ही बुद्ध के अनुयायी हो गये। उस समय घर में बूढ़े माता-पिता, पत्‍नी दो बच्‍चे, दो बहने और छोटा रेवत था। इस बात की परिवार को दु:ख के साथ कही गर्व भी था की उनके सपूत ने बुद्ध को गुरु माना। पर परिवार की हालत बहुत बदतर होती चली गई। कई-कई बार तो खानें तक लाले पड़ जाते। जो परिवार गांव में कभी अमीरों में गिना जाता था। खुशहाल था। अब शरीर के साथ-साथ मकान भी जरजर हो गया था।

      रेवत जब बड़ा होने लगा तो उसे तक्ष शिला नहीं भेजा गया पढ़ने के लिए। एक तो तंग हाथ दूसरा सारि पुत्र का यूं अचानक घर से छोड़ जाना। घर को बहुत बड़ा सदमा दे गया। सारी आस उसी पर टीकी थी। की घर गृहथी को सम्हाले। और जो मां बाप ने सालों धन उस पर खर्च किया था उसकी भरपाई करेंगे। बहनों का शादी विवाहा करेंगे। छोटे भाई रेवत को पढ़ाते, पर सब बर्बाद हो गया। घर की हालत दीन हीन होई।