मंगलवार, 2 जून 2020

मनुष्य होने की कला--( A bird on the wing)-ओशो

झेन बोध कथाएं-( A bird on the wing)-ओशो   

मनुष्य होने की कला--(A bird on the wing) "Roots and Wings" - 10-06-74 to 20-06-74 ओशो द्वारा दिए गये ग्यारह अमृत प्रवचन जो पूना के बुद्धा हाल में दिए गये थे। उन झेन और बोध काथाओं पर अंग्रेजी से हिन्दी में रूपांतरित प्रवचन माला)
इस पुस्तक से:
ज़ेन सदगुरू हाकुई के निकट आगर एक समुराई योद्धा ने पूछा—क्या यहां स्वर्ग और नर्क जैसी कुछ चीज है?’
हाकुई ने पूछा: तुम कौन हो?’
उस योद्धा न उत्तर दिया-मैं सम्राट की सुरक्षा में लगा समुराई योद्धाओं का प्रधान हूं।
हाकुई ने कहा: तुम और समुराई? अपने चेहरे से तो तुम एक भिखारी अधिक लगते हो।
यह सून कर यह योद्धा इतना अधिक क्रोधित हो उठा की उसने अपनी तलवार म्यान से बहार निकाल ली। उसके सामने शांत खड़े हुए हाकुई ने कहां: यहीं खुलता है नर्क का द्वार।
सदगुरू की शांत और आनंदित मानसिकता स्थिरता को देख कर और अनुभव कर वह योद्धा थोड़ा नीचे झुका। और उसने अपनी तलवार म्यान में रख ली।

तब हाकुई ने कहां: और यहां खुलता है स्वर्ग का द्वार।
स्वर्ग और नर्क भोगोलिक स्थान नहीं है। यदि तुम उन्हें खोजने जाओ तो किसी को भी कहीं पाओगे नहीं। क्योंकि वे तुम्हारे ही अंदर है, वे मनोवैज्ञानिक है। मन ही स्वर्ग है और मन ही नर्क है। मन में ही इनमें से कोई भी बनने की क्षमता रखता है। लेकिन लोग सोचे चले जाते है कि हर चीज कहीं बाहर है। हम हमेशा हर चीज के लिए बाहर की और ही देखते है। क्योंकि अपने ही अंदर जाना बहुत कठिन है। हम बाहर जाने वाले लोग है। यदि कोई कहता है कि वहां है परमात्मा, तो हम लोग आकाश की और देखते है कि वह वहां बैठा है।

(मैं भौतिक शरीर में नहीं रहूंगा परंतु मेरी खाली कुर्सी पर मुझे पाओगे....)  
 इसलिए रात्रि ध्यान दो घंटे का होगा। सात बजे से नौ बजे तक। इससे पहले कोई चीज खाना नहीं है। नौ बजे इस गहरे आनंदमय नशे से बाहर आने के लिए सुझाव दिए जाएंगे। इससे बाहर आने पर तुम ठीक से चलने में समर्थ न हो सकोगे लेकिन परेशान मत होना। उसका मजा लेना। तब भोजन करके सो जाना।
दूसरी नई चीज यह, मैं वहां नहीं रहूंगा, केवल मेरी खाली कुर्सी ही वहां होगी, लेकिन चूक मत जाना क्योंकि एक अर्थों में मैं वहां हूंगा भी और दूसरे अर्थों में हमेशा मेरी खाली कुर्सी ही तुम्हारे सामने होगी। ठीक अभी भी कुर्सी खाली ही है, क्योंकि यहां कोई है ही नहीं, जो उस पर बैठे। मैं तुमसे बात कर रहा है- लेकिन यहां कोई है ही नही, जो तुमसे बात कर सके। यह समझना जरा मुश्किल है, लेकिन जब अहंकार विसर्जित हो जाता है तो ऐसा होना हो सकता है। बातचीत जारी हो सकती है, बैठना, चलना और भोजन करना भी चलता रहता है, लेकिन केंद्र गायब हो जाता है। अभी भी
यह कुर्सी खाली है, लेकिन मैं हमेशा अभी तक के सभी शिविरों में तुम्हारे साथ रहा, क्योंकि तब तुम तैयार न थे। अब मैं अनुभव करता हूं कि तुम तैयार हो। मेरी अनुपस्थिति में कार्य करने के लिए तुम्हें पहले से तैयार होने में मदद जरूर मिलेगी, लेकिन यह अनुभव कि ' मैं हूं ' तुम्हारे अंदर एक खास उत्साह का संचार करता रहता है, जो नकली है। बस यह अनुभव करते हुए कि मैं मौजूद हूं तुम वह काम भी कर डालते हो, जिन्हें तुम कभी करना नहीं चाहते थे, और केवल मेरे प्रभाव के कारण तुम अधिक श्रम कर सकते हो, लेकिन इससे अधिक सहायता मिलेगी नहीं, क्योंकि केवल वही
चीज सहायक हो सकती है, जो तुम्हारे अस्तित्व से स्वत: आए। मेरी कुर्सी वहां होगी, मैं तुम्हें देखता रहूंगा, लेकिन तुम्हें पूरी तरह स्वतंत्रता का अनुभव होगा। यह मत सोचना कि मैं वहां नहीं हूं क्योंकि इससे तुम निराश हो सकते हो और यह हताशा तुम्हारे ध्यान में बाधा बनेगी। मैं वहां हूंगा और यदि तुम ठीक से ध्यान कर रहे हो तो जब तुम्हारा ध्यान पूरी तरह मेरे साथ लयबद्ध जाएगा, तुम मुझे वहां देख सकोगे इसलिए वही कसौटी होगी कि तुम वास्तव में ध्यान कर रहे हो या नहीं। तुममें से बहुत से मुझे और अधिक सघनता से देख सकने में सक्षम होंगे जितना कि ठीक अभी तुम मुझे देख
सकते हो।
जब कभी तुम मुझे देखते हो, तुम निश्चित हो सकते हो कि सभी चीजें ठीक दिशा में हो रही हैं इसलिए यही कसौटी होगी। इस शिविर के अंत में मैं आशा करता हुं कि तुममें से नब्बे मतिशत मुझे खाली कुर्सी पर भी देख सकेंगे। दस प्रतिशत लोग अपने मन के कारण चूक भी सकते हैं, इसलिए यदि तुम मुझे देखो तो उस बारे में सोचना शुरू मत कर देना कि यह क्या घट रहा है। यह मत सोचना कि यह कल्पना है या प्रक्षेपण या मैं वास्तव में वहां -हूं। कभी कुछ सोचना ही मत, क्योंकि यदि तुम सोचने लगे तो मैं तुरन्त विलुप्त हो जाऊंगा, सोचना ही अवरोध बन जाएगा। दर्पण पर धूल आ. जाएगी और तब फिर प्रतिबिम्ब नहीं बनेगा। जब वहां धूल नहीं होगी, तुम अभी यहां
मेरे बारे में जितना सजग हो सकते हो, अचानक तब उससे कहीं अधिक सजग हो जाओगे। भौतिक शरीर के प्रति सजग होना अधिक सजगता नहीं है। सूक्ष्म शरीर के प्रति सजगता ही सच्ची सजगता है।
तुम्हें बिना मेरे काम करना सीखना चाहिए। तुम हमेशा यहां नहीं रह सकते, तुम्हें यहां से दूर जाना ही होगा। तुम हमेशा ही मेरे चारों ओर घूमते नहीं रह सकते, तुम्हें करने के लिए और भी काम हैं। तुम विश्व- भर के कई देशों से यहां आए हो, तुम्हें कर लौटना ही होगा। कुछ दिनों के लिए ही तुम मेरे साथ यहां हो, लेकिन यदि तुम मेरी शारीरिक उपस्थिति के आदी बन गए तो बजाय एक सहायता बनने के वह तो एक व्यवधान बन जाएगा, क्योंकि जब तुम दूर चले जाओगे तब मुझसे चूकते रहोगे। यहां तुम्हारा ध्यान बिना मेरी उपस्थिति के ऐसा होना चाहिए जिससे तुम कहीं भी जाओ, फिर भी किसी तरह ध्यान प्रभावित न हो।
यह भी याद रखना है कि मैं हमेशा ही तुम्हारे साथ इस भौतिक शरीर में नहीं रह सकता। एक-न-एक दिन यह शरीर का वाहन तो छूटना ही है। जहां तक मेरा सम्बन्ध है, मेरा काम पूरा हो चुका है। यदि मैं इस शरीर के वाहन को चलाए जा रहा हूं तो केवल तुम्हारे लिए ही और किसी दिन इसे छोड़ना ही है। इससे पहले कि ऐसा हो, तुम्हें मेरी अनुपस्थिति में काम करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। और एक बार मेरी अनुपस्थिति में भी यदि तुम मुझे अनुभव कर सके तो तुम मुझसे मुक्त हो जाओगे और तब मैं भले ही यहां इस शरीर में न रहूं सम्पर्क टूटेगा नहीं।
……………मेरी कुर्सी खाली रह सकती है, तुम मेरी अनुपस्थिति का अनुभव कर सकते हो और स्मरण रहे-तुम मेरी उपस्थिति तभी अनुभव कर सकते हो, जब तुम मेरी अनुपस्थिति को भी महसूस कर सको। यदि मेरे शरीर के वाहन के वहां न होते हुए तुम मुझे नहीं देख सकते तो तुमने मुझे देखा ही नहीं। यह मेरा वायदा है कि मेरी खाली कुर्सी वास्तव में खाली नहीं रहेगी। मैं अपनी खाली कुर्सी पर भी रहूंगा। इसलिए ऐसा व्यवहार करो और कुर्सी कभी खाली नहीं दिखेगी, लेकिन अच्छा यही है कि तुम मेरे अशरीरी अस्तित्व के सम्पर्क में रहने की कला सीखो। यह अधिक गहरा, अधिक अंतरंग को स्पर्श करने वाला सम्बन्ध है।
इसी वजह से मैं कहता हूं कि इस शिविर से मेरे कार्य करने का एक नया अध्याय प्रारम्भ होने जा रहा है और मैं इसे समाधि-साधना शिविर कहता हूं। जो मैं तुम्हें सिखाने जा रहा हूं वह मात्र ध्यान नहीं है, वह पूर्ण परमानन्द है। यह मात्र पहला कदम नहीं है। यह आखिरी कदम भी है। तुम्हारे लिए बस अमल की ही जरूरत है, सब कुछ पहले से ही तैयार है। बस केवल सजग हो जाओ, अधिक सोचो ही मत। इन तीनों ध्यान प्रयोगों के बीच बचे समय में बातचीत न करते हुए अधिक-से- अधिक शांत रहो। यदि कुछ करना ही चाहते हो तो हंसो, नाचो या कुछ ऐसा शारीरिक काम सघन रूप से करो, लेकिन- मानसिक काम नहीं। टहलने के लिए लम्बे निकल जाओ, जोगिंग करो, धूप में उछलो या जमीन पर लेटकर आकाश को देखते हुए हर बात का मजा लो, लेकिन मन को कार्य करने की इजाजत मत दो। हसों, रोओ, चीखो, चिल्लाओ, पर सोचो मत।.........
ओशो
मनुष्य होने की कला--(A bird on the wing)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें