प्यारे
ओशो
जब
जरथुस्त्र
जंगल के सामने
के निकटतम नगर
में पहुंचे
वहीं पर उन्हें
बहुत सारे लोग
बाजार के
चौराहे पर एकत्र
हुई मिल गये :
क्योंकि ऐसी
घोषणा की गयी
थी कि कोई
रस्सी पर चलने
वाला नट आने
वाला था। और जरथुस्त्र
लोगों से इस
प्रकार बोले :
मैं
तुम्हें
परममानव
(सुपरमैन )
सिखाता हूं।
मानव कुछ ऐसी
चीज है जिससे
पार उठना है
तुमने उससे
पार उठने के
लिए क्या किया
है?
आज
तक के सभी
प्राणियों ने
कुछ अपने से
पार निर्मित
किया है : और
क्या तुम इस
महान ज्वार का
उतार बनना
चाहते हो और
मानव के पार
जाने के बजाय
पशुओं में लौट
जाना चाहते हो?
मनुष्यों
के लिए बंदर
क्या है? हंसी
की सामग्री
अथवा एक दुखद
शर्मिन्दगी।
और ठीक ऐसा ही
मानव है परममानव
के लिए : हंसी
की सामग्री
अथवा एक दुखद शर्मिन्दगी।
तुम
कीड़े—मकोड़ों
से चल कर
मनुष्य तक आए
हो और बहुत
कुछ तुम में
अभी भी कीड़ा— मकोड़ा
है। एक समय
तुम सब बंदर
थे और अब भी
किसी भी बंदर
के बजाय
मनुष्य
ज्यादा बंदर है।
लेकिन
तुम्हारे बीच
जो सबसे
बुद्धिमान है
वह भी केवल
पेड़— पौधों
की और भूत—प्रेतों
की विसंगति और
संकरवर्णता
भर है। लेकिन
क्या मैं कह
रहा हूं कि
तुम भूत—
प्रेत और पेड़—
पौधे बन जाओ?
देखो
मैं तुम्हें
परममानव
(सुपरमैन)
सिखाता हूं।
..........ऐसा
जरथुस्थ ने
कहा।
जरथुस्त्र
का प्रत्येक
वक्तव्य इतना
अर्थगर्भित
है कि उसके
सारे
निहितार्थों
को प्रगट कर
पाना, उसमें
छिपे सारे
रहस्यों को
उघाड़ पाना
करीब—करीब
असंभव है। और
यह और भी कठिन
हो जाता है
क्योंकि वह
किसी भी
परंपरा, किसी
भी
रूढ़िवादिता, किसी भी
अतीत के
सर्वथा खिलाफ
हैं। साधारणत:,
हमारे
वक्तव्यों की व्याख्या
अतीत के
परिप्रेक्ष्य
में की जा सकती
है। उनमें
अतीत समाया
होता है। वे
अतीत के ही
निष्कर्ष हैं।
जरथुस्त्र
के साथ स्थिति
ठीक उलटी है।
उनके
वक्तव्यों
में भविष्य
समाया हुआ है; और
भविष्य
विस्तीर्ण है,
भविष्य बहु—आयामी
है। अतीत के
बारे में हम
सुनिश्चित
बातें कह सकते
हैं क्योंकि
वह मृत है।
भविष्य के
बारे में हम
केवल
संभाव्यताएं
संभावनाएं
शक्यताएं भर
कह सकते हैं
क्योंकि भविष्य
खुला है। वह
अभी घटने को
है, और
उसकी
पूर्वघोषणा
की जानी संभव
नहीं — वही
उसका सौंदर्य
है, वही
उसकी अज्ञेयता
है, वही
उसकी भव्यता
है। भविष्य की
ओर देखने पर, तुम केवल एक
गहन
विस्मयविमुग्धता,
एक आश्चर्य,
एक हैरत
महसूस कर सकते
हो। हर कोने—कातर
में इतने सारे
खजाने छिपे
पड़े हैं कि जब तक
वे तुम्हारे
सम्मुख ही न आ
जाएं उनके
बारे में कुछ
भी कह सकने का
उपाय नहीं है।
गौतम बुद्ध
आसान हैं, वैसे
ही जीसस हैं, वैसे ही
महावीर हैं —
वे सब के सब
अतीत के
निष्कर्ष हैं।
जरथुस्त्र एक
भविष्यवाणी
हैं भविष्य के
लिए।
इसे
याद रखना
चाहिए : कि वह
मनुष्य के
पूरे इतिहास
में सवोधिक अ—पूर्वघोषणीय
रहस्यदर्शी
हैं। जब
जरथुस्त्र
जंगल के सामने
के निकटतम नगर
में पहुंचे, वहीं
पर उन्हें
बहुत सारे लोग
बाजार के
चौराहे पर
एकत्र हुए मिल
गये : क्योंकि
ऐसी घोषणा की गयी
थी कि कोई
रस्सी पर चलने
वाला नट आने
वाला था।
मनुष्य
इतना दुखी है
कि वह अपने
दुख को किसी भी
प्रकार के
मनोरंजन मैं
भूल जाना
चाहता है, चाहे
वह ?? ही
मूढ़तापूर्ण
क्यों न दिखे
उन लोगों को
जिनके पास जरा—सी
भी बुद्धि है।
हमारे सारे
खेल इतने
बचकाने हैं, लेकिन लाखों—लाखों
लोग उनमें ऐसे
उत्सुक हैं
जैसे कि वे उन्हें
एक नया जीवन
दे जाने वाले
हैं, प्राणों
की बदलाहट, जैसे कि वे
उनके दुख,उनकी
आत्मा की
अंधेरी रात
दूर कर देने
वाले हैं।
अगर
ऐसी घोषणा हो
कि रस्सी पर
चलने वाला नट
आ रहा है, तो
हजारों लोग
इकट्ठे हो
जाएंगे, सिर्फ
किसी व्यक्ति
को तने हुए
रस्से पर चलता
देखने के लिए —
जैसे कि इन
लोगों के पास
अपने जीवन में
कुछ भी सार्थक
करने के लिए
नहीं. है; जैसे
कि वे नहीं
जानते कि उस
समय का क्या
करना जो
अस्तित्व ने
उन्हें दिया
हुआ है।
जरथुस्त्र
को यह जमात
मिली।
निश्चित ही ये
वे लोग न थे जो
किसी
जरथुस्त्र और
उनके संदेश की
पात्रता रखते
हैं,
लेकिन यही
एकमात्र
किस्म है
लोगों की पूरी
पृथ्वी पर —
दूसरी और कोई
किस्म नहीं है।
इसलिए, इस
प्रकार बोले जरथुस्त्रलोगों
से.... बिना यह
फिक्र किये कि
क्या उनकी पात्रता
है, कि
क्या ' समझ
भी सकेंगे कि
क्या कहा जा
रहा है?
वह
वर्षा के बादल
की तरह हैं, प्रज्ञा
से इतने भारी
हो रहे हैं कि
वह कहीं भी
बरसना चाहते
हैं। वह स्वयं
को खाली करना
चहाते हैं।
उनकी खुशी, उनके मौन, उनकी आनंदमयता
के खजाने इतने
भारी हो चले
हैं कि कोई भी
चल जएगा जो
इन्हें बाट
लेता हो। सवाल
यह नहीं है कि
वे पात्र हैं
अथवा नहीं।
निश्चित ही यह
वह जमात न थी
जो उन्हें
सुने, लेकिन
वर्षा के मेघ
पत्थरों, चट्टानों,
बंजर भूमि
पर भी बरसते
हैं। वर्षा का
मेघ भेदभाव
नहीं कर सकता;
उसकी सारी
समस्या यह है
कि कैसे वह
अपने को
निर्भार करे।
पहला
बहस जो
उन्होंने
बोला, उसमें
उनका सारा
दर्शन, सारा
धर्म समाया
हुआ है :
मैं
तुम्हें
परममानव
सिखाता हूं।
मानव
कुछ ऐसी चीज
है जिस पर
विजय पाना है
तुमने उस पर
विजय पाने के
लिए क्या किया
है ''
इतने सटीक
रूप से, इतने
स्पष्ट रूप से
किसी ने नहीं
कहा है कि
मनुष्य को
स्वयं का
अतिक्रमण करना
है, कि उसे
स्वयं के पार
जाना है, कि
मनुष्य कुछ
ऐसी चीज है
जिस पर विजय
पायी जानी है।
परममानव
से क्या अर्थ
है उनका? — ठीक
वही जो मेरा
अर्थ है नये
मनुष्य से।
मैंने एक खास
कारण से 'परम'
शब्द छोड
दिया है। उससे
गलतफहमी हो
सकती है : उससे
गलतफहमी हुई है।
यह ऐसी धारणा
देता है कि
मनुष्य जो
तुम्हारा स्थान
लेने वाला है
वह तुमसे
श्रेष्ठ होगा।
यह तुम्हें
अपमानित करता
है। और शायद
यही कारण है
कि परममानव
आया नहीं; क्योंकि
कौन हीन होना
चाहता है न:
यदि परममानव
तुम्हें हंसी
का पात्र
बनानेवाला है,
शायद वही
मूलभूत कारण
है कि क्यों
मनुष्य ने न
केवल स्वयं के
पार जाने की
चेष्टा नहीं
की है बल्कि
उसने किसी के
भी उससे पार
जाने को रोकने
के लिए सब कुछ
किया है।
नया
मनुष्य क्या
है?
— एक मनुष्य
जिसने अतीत से
उस पर आरोपित
सभी शर्तों को
छोड़ दिया है; जिसने उस
सारे शान को
छोड़ दिया है
जो उधार है; जो अपने ही
सत्य की, अपनी
ही अंतरात्मा
की खोज में है।
उसका धर्म
वैयक्तिक है,
कोई संगठन
नहीं, कोई
भीड़ नहीं, कोई
सामूहिकता
नहीं। उसका
धर्म सामाजिक
नैतिकता का
पर्यायवाची नहीं
है। उसका धर्म
एक शब्द में
कहा जा सकता
है: ध्यान — अ—मन
की दशा, जिसमें
वह अपनी
अंतरात्मा के
सारतत्व का
अनुभव कर सकता
है, जोकि
अमृत है, जोकि
शाश्वत है।
जैसे ही
तुम अपनी
आत्मपरकता
(सब्जेक्टिविटी
) में प्रवेश
करते हो, हजारों
संभावनाओं का
द्वार खुलता
है। तुम पर
सर्वथा नये
अनुभवों की
वर्षा होने
लगती है, तुम
उनकी स्वप्न
में भी कल्पना
नहीं कर सकते।
तुम्हारे पास
उनके लिए शब्द
नहीं हैं, तुम्हारे
पास उनके लिए
प्रतीक नहीं
हैं :
हर्षोल्लास, आनंदमयता, शांति जो
समझ के पार है,
एक सजीव मौन
— कब्रिस्तान
का मौन नहीं
बल्कि एक उपवन
का मौन। मौन
जो एक गीत भी
है। मौन
जिसमें एक
संगीत है, स्वररहित
संगीत, और
सभी दिशाओं
में छलकता हुआ
प्रेम, जो
किसी को
संबोधित नहीं
है।
ठीक
एक झरने की भांति
तुम्हारे पास
इतना अधिक है, और
तुम्हारे
सारे स्रोत
तुम्हारे
प्राणों में
और—और प्रेम
ला रहे हैं कि
तुम्हारे पास
उसे बिना किसी
भेदभाव के
लुटाने के
सिवाय और कोई
उपाय नहीं है —
बिना यह फिक्र
लिए कि वह
पात्रों तक
पहुंचता है कि
अपात्रों तक,
कि वह संत—महात्माओं
को मिलता है
कि पापियों को।
एक करुणा
उत्पन्न होती
है क्योंकि अब
तुम जानते हो
कि तुम सर्व
के हिस्से हो — किसी भी
चीज को नष्ट
करना कुछ अपने
में ही नष्ट
करना है, किसी
की भी हत्या
करना अपने ही
अंग की हत्या
करना है।
नया
मनुष्य तुमसे
उच्चतर या
पवित्रतर
नहीं होगा, वह
तुमसे समग्रत:
भिन्न होगा —
तुलना का कोई
सवाल ही नहीं
है। तुम केवल
एक बीज हो।
नया
मनुष्य फूल
होगा।
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