लकुंटक
भद्दीय
स्थविर नाटे
थे—अति नाटे एक
दिन अरण्य से
तीस भिक्षु
भगवान का
दर्शन करने के
लिए जेतवन आए।
जिस समय वे
शास्ता की
वंदना करने जा
रहे थे उसी
समय लकुंटक
भद्दीय स्थविर
भगवान को
वंदना करके
लौटे थे। उन
भिक्षुओं के
आने पर भगवान
ने पूछा क्या
तुम लोगों ने
जाते हुए एक
स्थविर को
देखा है? भंते
हम लोगों ने
स्थविर को तो
नहीं देखा
केवल एक श्रामणेर
जा रहा था
भगवान ने कहा
भिक्षुओ वह
श्रामणेर
नहीं स्थविर
है। भिक्षु
बोले भंते
अत्यंत छोटा
है इतना छोटा,
कैसे कोई
स्थविर होगा।
भगवान ने कहा
भिक्षुको
वृद्ध होने और
स्थविर के आसन
पर बैठने
मात्र से कोई
स्थविर नहीं
होता। किंतु
जो आर्य—
सत्यों का
ज्ञान प्राप्त
कर महा जनसमूह
के लिए अहिंसक
हो गया है वही
स्थविर है।
स्थविर का
संबंध उम्र या
देह से नहीं
बोध से है।
बोध न तो समय
में और न
स्थान में ही सीमित
है। बोध समस्त
सीमाओं का
अतिक्रमण है। बोध
तादाक्य से
मुक्ति है
और
तब उन्होंने
ये गाथाएं
कहीं—
न
तने थेरो होति
येनस्स
पलितं सिरो।
परिपक्को
वयो तस्स
मोधजिण्णोति
वुच्चति ।।
यम्हि
सच्चज्च
धम्मो च
अहिंसा सज्जमोदमो।
'सिर के बाल
के पकने से
कोई स्थविर
नहीं होता, केवल उसकी
आयु पक गयी
है। वह तो
वृथा वृद्ध
कहलाता है।'
'जिसमें सत्य,
धर्म, अहिंसा,
संयम और दम
हैं, वही
विगतमल और
धीरपुरुष
स्थविर
कहलाता है।'
पहले
तो स्थविर
शब्द को
समझना।
स्थविर
शब्द के दो
अर्थ हैं। एक
तो वही जो कृष्ण
का गीता में
स्थितप्रज्ञ
का है। जिसकी
प्रज्ञा
स्थिर हो गयी
है। जिसके
भीतर चंचलता
नहीं रही। जो
भीतर अचंचल हो
गया है। जैसे
दीया जलता हो
अकंप। कोई चीज
उसे कंपा न
पाती हो।
पहला। दूसरा, स्थविर
का अर्थ होता
है—प्रौढ़, वृद्ध।
जिसने जीवन के
अनुभव से सार
निचोड़ लिया।
जिसने जीवन को
देखा, जाना,
पहचाना और
जीवन के रहस्य
को समझ गया। अब
जीवन में उसे
भ्रम नहीं
होते। जीवन
में सपने नहीं
उठते। जीवन के
यथार्थ में
जीता है। स्थविर
का दूसरा अर्थ,
प्रौढ़, मैच्योर।
अब
यह छोटी सी
कहानी—
यह
लकुंटक
भद्दीय
स्थविर नाटे
थे,
बहुत छोटे
थे, लंबाई
उनकी कम। और
कोई उन्हें
देखे तो यही
समझे कि कोई
छोकरा है। एक
दिन कुछ
भिक्षु बुद्ध
को मिलने आए
तो उन्होंने
पूछा कि
अभी—अभी
लकुंटक
स्थविर गए हैं,
तुम्हें
राह में मिले?
तो
उन्होंने कहा
कि नहीं प्रभु,
स्थविर तो
हमने कोई नहीं
देखा, एक
श्रामणेर
श्रामणेर का
अर्थ होता है,
उम्मीदवार
भिक्षु। अभी
भिक्षु हुआ
नहीं, सिर्फ
उम्मीदवार है,
सिक्सडू।
श्रामणेर का
अर्थ होता है,
एप्रेंटिस।
उन्होंने
देखा, एक
छोटा सा, एक
लडका सा जाता
था, श्रामणेर
होगा ज्यादा
से ज्यादा, स्थविर तो
का आदमी होता
है। बाल पक गए
होते हैं, उम्र
हो गयी होती
है। तो
उन्होंने कहा
कि नहीं प्रभु,
स्थविर को
तो नहीं देखा,
केवल एक
श्रामणेर
जाता था।
भगवान ने कहा,
भिक्षुओ, वह श्रामणेर
नहीं, स्थविर
है। भिक्षु
बोले, भंते,
अत्यंत
छोटा है। इतनी
छोटी उमर में
कहीं कोई स्थविर
होता है!
हमारी
सदा यह धारणा
होती है कि
ज्ञान का कोई
संबंध उम्र से
है। उम्र से
ज्ञान का कोई
संबंध नहीं।
अज्ञानी की
अज्ञानता ही
बढ़ती जाती है
उम्र के
साथ—साथ और
कुछ नहीं।
ज्ञान का कोई
संबंध उम्र से
नहीं है।
ज्ञान कभी भी
घट सकता है।
इसलिए ज्ञान के
लिए
प्रतीक्षा मत
करना कि जब के
हो जाओगे तब
घटेगा। अक्सर
तो बाल धूप
में ही पकते
हैं,
प्रौढ़ता के
कारण नहीं।
बुद्ध
का जन्म हुआ, तो
जब बुद्ध का
जन्म हुआ तो
हिमालय से एक
का ऋषि, जिसकी
उम्र सौ साल
थी, भागा
हुआ बुद्ध के
पिता के महल
में आया। उस
वृद्ध ऋषि को
देखकर बुद्ध
के पिता तो
उसके चरणों
में झुक गए।
उन्होंने कहा,
आपका कैसा
आगमन हुआ? वह
बड़ा
ख्यातिनाम
था। उन्होंने
कहा, मैं
समाधि में
बैठा था और
मैंने देखा कि
तुम्हारे घर
एक बच्चा
उत्पन्न हुआ
है जो भविष्य
में बुद्ध
होगा, मैं
उसके दर्शन
करने आया हूं।
पिता
तो चौंके।
पिता ने कहा, अभी
वह चार दिन का
बच्चा है, आप
उसका दर्शन
करने आए!
लेकिन आए तो
ठीक। बेटे को
लाकर उनकी गोद
में रख दिया।
वह चार दिन का
बच्चा है, अभी
आंख भी
मुश्किल से
खुली है। वह
वृद्ध तपस्वी
छोटे से बच्चे
के चरणों में
सिर रखकर लेट
गया साष्टाग
और उसकी आंखों
से आंसू की
धारा बहने
लगी। बुद्ध के
पिता थोड़े
चिंतित हुए।
उन्होंने कहा
कि यह बात
क्या है? एक
तो यह शोभन
नहीं कि आप एक
चार दिन के
बच्चे के
चरणों में
झुकें। आप
जगत—प्रसिद्ध,
लाखों आपके
भक्त, आप
यह क्या कर
रहे हैं! आपका
मन तो कुछ
गड़बड़ नहीं हो
गया? आप यह
कैसा पागलों
जैसा कृत्य कर
रहे हैं! और फिर
आप रो क्यों
रहे हैं?
तो
उस वृद्ध
तपस्वी ने कहा
कि मैं रो रहा
हूं इसलिए कि
मेरे तो दिन
समाप्त हुए।
यह तुम्हारा
बेटा जब बुद्ध
होगा, तब मैं
इस पृथ्वी पर
नहीं होऊंगा।
नहीं तो इसके
चरणों में
बैठता, इसकी
वाणी सुनता, इसकी तरंगों
में डोलता। वे
धन्यभागी हैं
जो, जब यह
बुद्धत्व को
उपलब्ध होगा,
तब यहां
पृथ्वी पर
होंगे। मैं
अभागा हूं मैं
तो चला, मेरे
तो जाने के
दिन करीब आ
गए। इसलिए मैं
भागा आया हूं
कि चलो कुछ
हर्ज नहीं, वृक्ष तो
नहीं देखेंगे
तो बीज को ही
नमस्कार कर
आएं, बीज
में भी फूल तो
छिपा ही है।
उम्र
से कोई संबंध
नहीं है।
बुद्ध ने यह
जो कहा, भिक्षुओं,
वृद्ध होने
और स्थविर के
आसन पर बैठने
मात्र से कोई
स्थविर नहीं
होता।
यह
कोई पदवी नहीं
है कि के हो गए
तो स्थविर हो
गए। यह तो बोध
की एक दशा है
कि प्रौढ़ हो
गए,
कि तुमने
जीवन को जागकर
जीना शुरू कर
दिया, कि
तुम्हारे
भीतर समाधि का
फल लग गया, कि
तुम्हारी
प्रज्ञा ठहर
गयी—अब
तुम्हारे भीतर
चंचल लहरें
नहीं उठतीं, अब तुम्हारा
दर्पण निर्मल
है।
जिसने
आर्य—सत्यों
का ज्ञान
प्राप्त कर
लिया है।
चार
आर्य —सत्य
हैं,
बुद्ध ने
कहे। एक, कि
जीवन दुख है।
दूसरा, कि
जीवन के दुख
से पार होने
का उपाय है।
तीसरा, कि
पार होने की
दशा है, पार
होने की
व्यवस्था है।
और चौथा, दुख
के पार
निर्वाण है।
ये चार
आर्य—सत्य
हैं। दुख है, दुख को
मिटाने का
मार्ग है, दुख
को मिटाने के
साधन हैं, दुख
के मिटने के
बाद एक चित्त
की दशा है, चैतन्य
की दशा है।
जिसने इन चार
आर्य —सत्यों को
अनुभव कर लिया
है, वही
स्थविर है।
जो
अहिंसक हो गया
है।
हिंसा
तभी तक उठती
है जब तक हमारे
भीतर तरंगें
हैं,
जब तक यह कर
लूं तो फिर जो
भी मार्ग में
पड़ जाता है
उसे मिटा दूं।
फिर यह बन
जाऊं और जो भी
प्रतिएकर्धा
करता है, उससे
दुश्मनी हो
जाती है। जिसे
न कुछ बनना है,
न कुछ होना
है, न कुछ
पाना है, जो
अपने होने से
राजी हो गया, जो अपने
भीतर राजी हो
गया, जिसकी
तथाता फल गयी,
फिर उसकी
कैसी हिंसा!
उसका किसी से
कोई वैमनस्य
नहीं है, स्पर्धा
नहीं है, प्रतियोगिता
नहीं है, वह
अहिंसक हो
जाता है।
अहिंसा यानी
महत्वाकांक्षा से
मुक्ति।
स्थविर
का संबंध उम्र
या देह से
नहीं, बोध से
है।
जिसके
भीतर चैतन्य
का अनुभव जिसे
होने लगा कि
मैं देह नहीं, चेतना
हूं। यह देह
तो मेरा मकान
है, मैं
उसके भीतर
निवास कर रहा
हूं। मैं
मिट्टी का
दीया नहीं, दीए के भीतर
जलती ज्योति
हूं। जिसे ऐसा
अनुभव होने
लगा, वही
व्यक्ति
स्थविर है।
बोध न तो समय
में और न स्थान
में सीमित है।
बोध समस्त
सीमाओं का
अतिक्रमण है,
बोध
तादात्म्य से
मुक्ति है।
ये
तीन छोटी—छोटी
कथाएं हैं, इनके
साथ बंधी हुई
ये छोटी—छोटी
गाथाएं हैं, ये तुम्हारे
जीवन के बहुत
से पृष्ठों को
उघाड़ दे सकती
हैं। ये
तुम्हारे
जीवन में नए
अध्याय की
शुरुआत बन
सकती हैं।
ऐसे
ही हम बुद्ध
के और सूत्रों
पर विचार
करेंगे। और
मैं इन गाथाओं
को उनकी कहानियों
के साथ रख रहा
हूं ताकि
तुम्हें पूरा
संदर्भ समझ
में आ जाए, पूरी
परिस्थिति
समझ में आ
जाए। क्यों, किस स्थिति
में बुद्ध ने
कोई वचन कहा
है। ये वचन
अपूर्व हैं।
सीधे —सरल, पर
बहुत गहरे।
तुम्हारे मन
पर इनकी चोट
पड जाए तो कोई
कारण नहीं है
कि तुम भी
किसी दिन बुद्धत्व
को क्यों न
उपलब्ध हो
जाओ!
बुद्धत्व
सबका
जन्मसिद्ध
अधिकार है।
ओशो
एस धम्मो
सनंतनो
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