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रविवार, 21 दिसंबर 2025

06-सदमा - (उपन्यास) - मनसा - मोहनी दसघरा

अध्याय-06

(सदमा - उपन्यास) 

तीन चार दिन के बाद भी सोम प्रकाश की हालत में कुछ सुधार नहीं आ रहा था। और मजे की बात तो यह की एम आर आई से पता चला की उसके सर के अंदर कोई चोट या खून के जमा होने का कोई चिन्ह दिखाई दे रहे थे। एक तरफ तो ये खुशी की बात थी, डा. के लिए परंतु दूसरी और ये चिंता खड़ी हो जाती है कि तब अचानक ये याददाश्त को क्या हो गया। ऐसा तो कम ही देखने को मिलता है। ये संवेदना के कारण भी हो सकता है। लेकिन ये केवल एक अनुमान मात्र ही समझो बीमारी का पता तो समय पाकर ही चल सकता है। इसलिए तीन चार दिन और अस्पताल में डा. ने और सोम प्रकाश को रखा और फिर कहां की आप नानी इसे घर ले जा सकती है। नानी बेचारी क्या करती। वह तो बस यही देख कर प्रसन्न थी की उसका सोमू जीवित तो है। और एक दिन नानी बूझे मन से सोम प्रकाश को घर ले कर आ जाती है। मन से ही नहीं वह शरीर से भी लाचार हो गया था। बूढ़ी नानी अब कैसे उसे उठा सकती है। कैसे उसे नहला धुला सकती है। कैसे उसकी देख भाल करेंगी।

उधर स्कूल के मालिक को जब ये पता चला की सोम प्रकाश अब स्कूल नहीं आ सकता है। तो उसे चिंता हुई की अब अचानक स्कूल का कार्य कौन सम्हालेगा। अपनी पति कि चिंतित देख कर उनकी पत्नी जो युवा थी जिसने उम्र ने देख कर पैसे से ही शादी की थी। अब उसे उसकी अंतस की वासना परेशान कर रही थी। वह बीच-बीच में सोम प्रकाश को अपने जाल में फंसाने के लिए कई पैंतरे बदल चूकि थी। अब उसने सोचा ये मोका अच्छा है। सो उसने अपने पति को कहा की ड्रिलिंग कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हो। एक बनावटी छद्म रूप बना कर। तब उनके पति ने कहां की नहीं बस स्कूल के विषय में सोच रहा था। की सोम प्रकाश के बाद अब एक दम नया टीचर कहां से लाया जाये। उस के ठीक होने में पता नहीं कितना समय लगेगा।

तब उनकी पत्नी ने कहा बात में तो आपके दम है। परंतु कहते है उसकी एक टाँग भी टूट गई है। तब तो उसकी देख भाल करने वाला भी वहां कोई नहीं है। शायद उसका और कोई है भी नहीं यहां पर मात्र एक बूढ़ी नानी है। तब वह बेचारी उनकी भला क्या देख भाल करेगी। आप कहो तो उसे एक कमरे में यहीं रहने दिया जाये दवाई तो समय पर मिल जायेगी और यहां पर नौकर चाकर उसकी देख भाल भी कर सकते है। तभी अचानक उसकी बात सून कर उसके पति को लगा बात में तो दम है। वह इस बात के लिए तुरंत तैयार हो गए।

तब सोनी ने अपनी पति देव धर करकरे जी को कहां की चलो आज ही चलते है। तब सोनी ने कहा आप रहने दो में ड्राइवर के साथ जाती हूं देखती क्या होता है। आप नाहक परेशान होगे। और सोनी मन ही सपने बुन रहीं थी। की उसकी टाँग ही तो टूटी है इस बहाने उसके और भी नजदीक आया जा सकता है। लेकिन जब वह पूछती हुई सोम प्रकाश के धर पर पहुंची तो नानी सोम प्रकाश को चाय पिला रही थी। पूरी तरह से वह अपना मुख भी नहीं खोल पा रहा था। आधी चाय नीचे गिर रही थी। परंतु नानी ने एक पुराना तौलिया उसके दोनों कंधों पर लपेट रखा था। आवाज मार कर सोनी अंदर आती है। वह सोम प्रकाश की हालत देख कर हतप्रभ रह जाती है। ये वो सोम प्रकाश ही नहीं है। जो उससे मिलने के लिए आया करता था। जिसे देख कर उसके मन में हजारों वासनाएं लाखों सपने बुने थे। जो सपने वह यहां आने से पहले भी बुन कर आई थी। वह सब सपने तो मानो पल में एक रेत के महल की तरह से गिर गए। फिर भी दिखावे के लिए वह कहने लगी में सोम प्रकाश के स्कूल मालिक की पत्नी हूं। सोम प्रकाश का हाल चाल पूछने के लिए आई हूं। नानी ने उसे एक बार नीचे से उपर तक देखा और कहने लगी आप उम्र की तो इतनी नहीं लगती। आप तो उनकी बेटी की उम्र की लगती है। सोम प्रकाश का मालिक तो उम्र में बहुत बड़ा है। तब सोनी समझ गई की बूढ़ी इतनी सीधी नहीं है। घाट को ही देख कर पानी की धार को पहचान लेती है।

जी हम दोनों एक साथ काम करते थे। इसलिए आपस में प्रेम हो गया और फिर समाज के नियम से हमने शादी कर ली। तब वह बात को बदने के अंदाज से कहने लगी की अब नानी सोम प्रकाश की क्या हालत है।

नानी—‘क्या बतलाऊं बेटी अब तो ये मुझे भी नहीं पहचानता। पत्थर हो गया है। बेचारे ने आज तक कभी किसी का दिल नहीं दुखाया। फिर भी भगवान न जाने क्यों उसे ये सज़ा दे रहा है। ये सब हमारे भाग्य में लिखा है। राम जाने अब क्या होगा।’

सोनी—‘ये सब कैसे हो गया अभी कुछ दिन पहले तो मुझे मिला था एक दम से ठीक था।’

नानी—‘हां बेटी तुम ठीक ही कहती हो। ये होनी को खूद अपने घर में लेकर आया था। चला था भला करने के लिए। अब हो गया भला। वह तो पल में इसे छोड़ कर चली गई उसने तो पीछे मुड़ कर एक बार देखा भी नहीं। भला कहीं ऐसा होता है। कोई अपनी जान पर खेल कर आपकी रक्षा करें और आप जब ठीक हो जाये तो। उसे पहचाने तक नहीं....।’(और नानी ने बात को बीच में छोड़ कर एक गहरी सांस ली)

सोनी—‘क्या हुआ था नानी।‘

नानी—‘अरे होना क्या था, शहर से एक लड़की को ले आया था। वह पागल थी। मंद बुद्धि थी। बच्चे की तरह से रखता था। मैं तो उसे देखते ही समझ गई थी की ये होनी को ले कर आया था। न उसका को ठोर ठिकाना था न वह यहां किसी को पहचानती थी। कई महीने यहां पर हमारे ही साथ रही। खूब सेवा की इस बेचारे ने आखिर हम एक दिन पहाड़ी की तलहटी वाले महात्मा जी के पास भी ले गये। और देखो उसकी भगवान ने ऐसी सूनी की वह ठीक हो गई। उधर से पुलिस के साथ खोजते हुए उसके माता पिता भी आ गए। परंतु जब उनकी लड़की उन्हें एक दम से ठीक मिली तो वह उसे लेकर बहुत खुश हुए और पुलिस केस भी वापस ले लिया। और वह तो पल में सब भूल कर अपने मां बाप के साथ चली गई। साथ में पुलिस भी आई थी सो ये बेचारा पुलिस से डर गया। अब क्या बतलाऊं आगे क्या हुआ मुझे भी कोई खास पता नहीं था।’

तब नानी ने उसकी और मुख कर के पूछा—हां तो तुम क्यों आई बेटी।

सोनी—‘हां नानी जी मेरे पति ने इलाज के लिए इनकी तीन महीने की वेतन भेजी है ताकि आपको घर चलने या इन का इलाज करने में कोई परेशानी न हो।‘

और वह बैग से पैसे निकालने लगी। तभी नानी ने कहा रहने दो बेटी में इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहती तुम्हारे नाना की पेंशन आती है, उसी से एक की बजाए दो का गुजारा हो जायेगा। जब यह ठीक हो जाये तो इसके ही हाथ में आकर रखना। सोनी ने लाख मिन्नत की परंतु नानी ने पैसे नहीं लिए।

सोनी जब आई तो उसके मन में लाख सपने थे, परंतु आपने देखा जब आपके आस पास वासना का कोहरा हो तब आप प्रेम रूपी पर्वत को पा नहीं सकते। उस चढ़ना या उसकी रमणीयता का आनंद तो दूर की बात है। जिसे वह प्रेम समझती थी, वह उसकी वासना थी। जब यहां आकर देखा की अब यह आदमी तो उसके किसी काम का नहीं तब उसकी वासना बूझ गई। अब जरा सोचो जब सोम प्रकाश रेशमी को लेकर के आया था। वह मन से तो बालवत थी परंतु तन तो उसका युवा था। और दूसरी और सोम प्रकाश का मन तन दोनों युवा थे। परंतु जहां पर प्रेम की जरा भी चिंगारी होगी वहां वासना का धुआं कहां उठ पायेगा। रेशमी उसके सीने पर लेट कर सो जाती थी। परंतु प्रेम में एक पवित्रता होती है। उस समय उन दोनों का प्रेम एक पिता-पुत्री जैसा प्रेम हो जाता था। आप एक ही स्त्री से भिन्न आयाम में प्रेम करते है। वह आपको भिन्न आयामों में प्रेम करती है। कभी एक मां बन कर कभी एक दोस्त बन कर कभी एक प्रेमिका बन कर। कभी एक सहधर्मिणी , पत्नी या भार्या बन कर। लेकिन सोनी तो एक तन की वासना को ही जानती थी। क्योंकि वह इस में ही जल रही थी। बाकी आस पास सुविधा इस पर और घना कोहरा पैदा कर रहा था। प्रेम की एक झलक के लिए उसने अब सब दरवाजे खिड़कियां लगभग बंद कर लिए थे।

तब प्रेम के प्रकाश का समय था, तब शायद सुरक्षा या भय के कारण उसने पैसे को चुन लिया। वह जवान थी सुंदर थी उसे कोई प्रेम करने वाला मिल जाता परंतु शायद उतनी सुविधा न मिल पाती जितनी आज वह भोग रही है। परंतु आज समय पा कर वहीं भोग उसके जीवन का जंजाल बन गया है। अब वह जाल में फंसी उस मछली की तरह से हो गई जिसने पानी को छोड़ कर रेत को अपना हम सफर बनाया।

सोनी चेहरे मोहरे को देख कर नानी पल में समझ गई की ये औरत किस चाल चलन की है। परंतु जिस मार्ग जाना ही नहीं उसकी बात ही क्या करनी। सोनी वहां ज्यादा देर के लिए रूकी नहीं और बहार निकल कर नानी को कहने लगी नानी में एक दो दिन में आती हूं। किसी चीज की जरूरत हो तो पता भेज देना या मैं ड्राइवर के हाथों भेज दूंगी।

तब नानी ने एक गहरी श्वास ली और कहां ठीक है बेटा। जैसी परमात्मा की मर्जी। नानी की जान को अनेक समस्या थी एक तो उम्र ने शरीर को कमजोर कर दिया था। तब सोम प्रकाश की इस बीमार और जवान शरीर को किसी तरह से उठा सकती है। फिर दोनों हाथ जोड़ नानी ने कहा जैसी उसकी मर्जी। वहीं सब करने वाला है। अच्छा बेटी अपना ख्याल रखना। और सोनी कार में बैठ कर पल में ओझल हो गई। सोम प्रकाश ने तो उसे ऐसे देखा की वह उसे जानता ही नहीं। सच ही वह उसे ही क्या वह तो नानी को भी नहीं चिंहित कर रहा था। वह तो एक पत्थर की तरह से बैठा रहता था। खाना भी नानी उसे अपने हाथ से उसे खिलाती थी। आदमी का मन भी क्या है। चाहे वह पत्थर हो जाये चाहे वे बर्फ बन जाये, या वाष्प बन कर अति सूक्ष्म हो जाये। कल किसे पता है क्या होने वाला है। ये हंसता खेलता आदमी एक पल में बर्फ की तरह जम जायेगा।

नानी ये सब सोच कर दर्द के सागर में डूब रही थी, अपनी आंखों में आये आंसुओं को अपने पल्लू के कोर से पोंछ कर सुबक पड़ी। उसके दर्द को महसूस करने वाला वहाँ कोई दूसरा नहीं था। इतना दर्द तो उसे उस दिन भी नहीं हुआ था जिस दिन भरी जवानी में इसके नाना छोड़ कर चले गए थे। अचानक नानी एक गहरी श्वास लेती है। परंतु सोचती है ये सब क्यों और कैसे हुआ ये तो इतना भोला है फिर भी परमात्मा इस की इतनी परीक्षा क्या ले रहा है। इसका पूरा जीवन तो यूं ही कष्ट से गुजरा है। एक छोटे बच्चे की तरह सुदूर बैठा सोम प्रकाश बहार खिड़की की और देख रहा था। खिड़की के परदे के पास से छन कर आती धूप कैसे अपना आस्तित्व फैलाये आँगन में खिल-खिल लग रही थी। जैसे किसी ने आस पास फूल सज़ा दिये हो। परंतु उसे महसूस करने वाला वहाँ पर सोम प्रकाश नहीं था। धूप धीरे-धीर इस कोने से ले कर उस दूसरे कोने की और बढ़ती जा रही थी। नवम्बर का मौसम होने के कारण धूप में बैठना इस समय मन को बहुत सुहाता है। इसलिए नानी ने सोचा सोम प्रकाश की कुर्सी जब बहार आँगन में बिछी है पल भर के लिए उस पर बैठ जायेगा तो शरीर के लिए अच्छा होगा। परंतु सहारा देना अब नानी के बस की बात नहीं थी। दूसरा सब से ज्यादा परेशानी टूटी टाँग की थी। देखो कब तक ये प्लास्टर खुलता है। इसके बाद तो शायद नानी को आराम हो जायेगा।

बहार निकल कर सोनी ने अपने ड्राइवर को कहा चलो घर चलते है। और गाड़ी धूल उड़ती तेजी से अपनी मंजिल की और चल दी। सोनी गुस्से में थी उसके मन की मुराद पूरी नहीं हुई थी। परंतु इस में किसी का कोई कसूर नहीं था। आपकी चाहत ही स्वार्थ से भरी होगी तो वो हमेशा आपको सुख देगी ऐसा कैसे हो सकता है। जो वह सोच रही थी, उसमें केवल वासना थी, प्रेम दया या करुण का कहीं नामों निशान नहीं था। वह क्या-क्या सपने सजो कर आई थी कि जब वह सोम प्रकाश को लेकर आयेगी तो उसके अंग संग को छूने को निहारने का करीब से मोका मिलेगा। और महीने दो महीने का समय काफी होता है। वह उस पर अपने डोरे डाल ही लेगी। कब तक वह इस जलती आग से बच सकेगा। परंतु वहां तो मामला ही दूसरा निकला। अब वह तो किसी काम का नहीं रहा। न आदमी और न आदमी की जात। क्या मिलता है इन लोगों को इस सब नैतिकता में जीने से। केवल अपने आपको मारते रहते है। जवान शरीर था, सुंदर था। उस से भोग कर के कितना आनंद ले सकता था और कितना दे सकता था। परंतु नहीं हम तो सिद्धांत के दम पर महान बनना है। मरो अब गोबर के लोंदा बन कर पड़े रहो।

जब वह सोम प्रकाश के घर से निकली तो देखा एक आदमी सड़क पर अपने एक छोटे से सूटकेस को हाथ में लटकाये चला आ रहा था। उसकी और सोनी का जरा भी ध्यान नहीं गया। वह तो बदले की आग में जल रही थी। उसके पास से जब तेजी से गाड़ी गुजरी तो उस व्यक्ति का ध्यान जरूर गाड़ी में बैठी महिला पर गया। परंतु ये गाड़ी तो सोम प्रकाश के घर की और से ही तो आ रही थी। परंतु ये तो रेशमी नहीं लग रही थी। अप-टू-डेट क्या रेशमी ठीक हो गई। गजब हो गया। मन में प्रसन्नता भी हुई। तब उसने तेज कदम घर की और रखे। घर के सामने जाकर पेंटल खड़ा हो गया। दरवाजा एक दम से चौपट खुला था। इन पहाड़ी घरों के दरवाजे हमेशा बंद ही रहने चाहिए। क्योंकि जंगली जानवरों का खतरा हमेशा बना रहा था। समाने ही कुर्सी पर सोम प्रकाश बैठा है। वह उसे पल भर के लिए देखता रहा। परंतु उसे आया देख कर उसने तो कोई हरकत नहीं थी। तब पेंटल को लगा की शायद बाहर धूप के कारण उसने उसे पहचाना न होगा।

तब वह चार कदम आगे बढ़ा, परंतु सोम प्रकाश तो कंबल ओढ़े निश्चित ही बैठा रहा जैसे वह उसे चिंहित नहीं करता। ऐसा कैसे हो सकता है। वह हजारों मील दूर से अपने दोस्त से मिलने के लिए आया है। और वह खड़ा होकर भी उसका स्वागत नहीं कर रहा है। उसका मन बूझ गया। तब उसने उसे ध्यान से देख की क्या यही उसका दोस्त सोम प्रकाश है। नहीं ये तो कोई और ही आदमी बैठा है। वह तो एक दम मस्त मोला आदमी थी। तभी पीछे से नानी आ गई। अरे कौन.....?अरे पेंटल तुम आ गए न मानो में कल से तुम्हें ही रह-रह कर याद कर रही हूं। नानी क्या हुआ इस पागल को। बेटा तुम ठीक ही तो कहते हो, अब तेरा दोस्त वो दोस्त नहीं रहा वह पागल हो गया है। देख नहीं रहे इसकी हालत। न जाने क्या हो गया एक दम से पत्थर बन गया है।

पेंटल—परंतु ये सब हुआ कैसे। अभी पिछले बार तो मुझसे मिला था, तब तो एक दम से ठीक था। एक ही साल तो मैं बीच में इससे मिलने नहीं आ सकता। और ये सब हुआ किस तरह से। और वह लड़की जो ये अपने साथ लेकर आया था। कहां है वह जो अभी गाड़ी से गई है क्या वही थी वह लड़की.....क्या वह ठीक हो गई?

नानी—बेटा मत पूछो ये अपने होनी को खूद साथ लेकर आया था। जब पिछले साल ये शहर गया था। उस साल तो तू आया नहीं था यहां पर। परंतु अपने साथ न जाने कहां से एक बाल बुद्धि लड़की को लिए चला आया। शरीर से तो एक दम से जवान थी। सुंदर थी। अच्छे खाते घर की दिखती थी। जरूर कुछ उसके साथ ऐसा घटा की वह अपनी याद को भूल गई। बस ये दयावान उसे अपने साथ ले आया। एक अंजान लड़की को जिसके बारे में कुछ भी नहीं जानता था। क्या इस बात का तुझे नहीं पता तुझे तो पता होगा।

पेंटल—परंतु नानी उस लड़की को साथ लाने से ये सब कैसे। मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।

नानी—अरे बेटा उस लड़की को अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगा। एक बच्चे की तरह से उसकी देख भाल करता। उसे कपड़े पहनाता। उसे नहलाता-धुलाता। अपने हाथ से उसे खिलता। परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था। हम जो सोचते है, वही सब प्रकृति की गोद में लिखा होता है। अगर लिखे को पढ़ ले तो फिर रहस्य ही क्या रहेगा। शायद ये रहस्य ही परमात्मा है इस रहस्य के कारण ही तो ये संसार है। उसका पागलपन का इलाज भी पास एक स्वामी जी से कराया जिस की दवा से वह ठीक हो गयी थी। मैं तो इस बात को कम-कम नहीं मानती। सारा खेल तो इसके लाड़, इसके प्यार ने उसे नया जीवन दिया। हां ये बात दूसरी है की दवाई हाथ का सहारा दे सकती है। परंतु चलना तो अपने पेरो से ही होता है। इसलिए लाखों लोगों को दवा दी जाती है। परंतु ठीक कितने होते है केवल उंगलियों पर गिना जा सकता है। परंतु सच इन दोनों को देखती तो घर में रौनक मेला हो गया था। ऐसे घुल मिल गए थे की जैसे जन्म से एक दूसरे को जानते है। जरा देर की लिए वह आंखों से औझल होता तो वह लड़की पागल हो जाती मेरा सोम कहां है।

अब तू आ गया मेरे लिए तो अब तेरा आना किसी देवदूत से कम नहीं है। अब बैठ जरा तुझे सारी बात बतलाती हूं। और नानी शुरू से ले कर आखिर तक पूरी कथा पेंटल को सुनाई , पेंटल हां हूं करता रहा परंतु वह तो वो सब जानता था। कहानी के उस हिस्से को भी वह जानता था जिस के विषय में नानी को भी पता नहीं था। जब वह रेशमी को लेकर के यहां पर आया था। परंतु डर के मारे उसने वह बात नानी से छुपा ली की नाहक नानी इस में मेरा ही कसूर मानेगी। की तुमने उसे रोका क्यों नहीं। परंतु अंदर से उसे बड़ा दूख हो रहा था की मेरे दोस्त ने तो एक भला काम किया था बदले में ये सब क्यों मिला।

क्या नेकी का यही नतीजा होता है। तब कौन नेकी करना चाहेगा। परंतु प्रकृति की गोद में ये तो एक बीज है शायद इस बीज के चटकने से ही आगे आने वाला समय पा कर, भविष्य में एक विशाल वृक्ष बने।

 

 

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