धर्म फिर क्या है?
धर्म ध्या न है, बोध है, बुद्धत्व है।
इसलिए मैं धार्मिकता की बात नहीं करता हूं।
चूंकि धर्म को सिद्धांत समझा गया है।
इस लिए ईसाई पैदा हो गए, हिंदू पैदा हो गए,
मुसलमान पैदा हो गए।
अगर धर्म की जगह धार्मिकता की बात फैले,
तो फिर ये भेद अपने आप गिर जाएंगे।
धार्मिकता कहीं हिंदू होती है,
कि मुसलमान या ईसाई होती है।
धार्मिकता तो बस धार्मिकता होती है।
स्वास्थ्य हिंदू होता है, कि मुसलमान, कि ईसाई।
प्रेम जैन होता है, बौद्ध होता है, कि सिक्ख ।
जीवन, अस्तित्व इन संकीर्ण धारणाओं में नहीं बंधता।
जीवन सभी संकीर्ण धारणाओं का अतिक्रमण करता है।
उनके पार जाता है।
---ओशो
आभार इन सदविचारों का...........
जवाब देंहटाएंसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'
बढिया विचार प्रेषित किए।आभार।
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