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शुक्रवार, 16 मई 2025

04-यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं –(Be Realistic: Plan for a Miracle) –(हिंदी अनुवाद)

04-यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं

(Be Realistic: Plan for a Miracle) –(हिंदी अनुवाद)

अध्याय -04

16 मार्च 1976 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में

 ............ अब से आपका नाम होगा: मा आनन्द सोमा।

सोम का अर्थ है चंद्रमा, और आनंद का अर्थ है आनंदमय चंद्रमा।

चाँद पर अधिक से अधिक ध्यान लगाओ। जब भी चाँद आसमान में हो, बस उसे देखते रहो, लेकिन बहुत खाली आँखों से। देखते रहो, और फिर भी ध्यान केंद्रित मत करो। बस देखते रहो, लेकिन बिना किसी तनाव के। क्या तुम समझ पाते हो?

नज़र दो तरह की हो सकती है। एक नज़र जिसे हम ध्यान कहते हैं... आप ध्यान केंद्रित करते हैं, और मन में तनाव होता है, जैसे कोई तीर से लक्ष्य पर निशाना लगाने जा रहा हो। फिर आप ध्यान केंद्रित करते हैं। लेकिन यह सही नहीं है। बस आराम से देखें, जैसे कि आप रास्ते से देख रहे हैं, और चाँद वहाँ है।

खाली आँखों से चाँद को देखो, मेरी आँखों को देखो... यही रास्ता है...

 

[ ओशो सोम की आँखों में स्थिर दृष्टि से देखते हैं]

 

... यह ध्यान है, हैम? मैं ध्यान केंद्रित कर रहा हूँ। अब...

 

[ ओशो सोम की ओर धीरे से देखते हैं]

 

... मैं आपकी ओर देखता हूँ, और फिर भी आपकी ओर नहीं देखता। और देखने का यही तरीका है, मि एम? अच्छा।

 

[ एक संन्यासी पूछता है: मैं अपने साथ क्या कर रहा हूँ? मैं एक साल से स्वस्थ नहीं हूँ। बस... एक के बाद एक समस्याएँ आ रही हैं।]

 

हम्म हम्म... यह तब तक जारी रहेगा जब तक आप जागरूक नहीं हो जाते और इस दुष्चक्र से बाहर नहीं निकल जाते।

एक दुख दूसरे की ओर ले जाता है... एक संघर्ष दूसरे की ओर ले जाता है... एक उदासी दूसरे दुख में बदल जाती है -- क्योंकि जिस चीज से आप गुजर रहे हैं, उसमें फिर से जाना आसान हो जाता है। आपका पूरा अस्तित्व दिशाबद्ध हो जाता है, हैम? एक दिन आप क्रोधित होते हैं -- दूसरे दिन, क्रोध आसानी से आता है। अगले दिन यह लगभग अपने आप आ जाता है। आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है -- यह आ जाएगा। और अगर आप इसकी आदत डालते चले जाते हैं, तो आप इसे पोषित करते चले जाते हैं।

गुरुवार, 15 मई 2025

04-यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं - (Be Realistic: Plan for a Miracle) - (हिंदी अनुवाद )

 

यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं - (Be Realistic: Plan for a Miracle)

अध्याय - 03

15 मार्च 1976 अपराह्न चुआंग त्ज़ु सभागार में

 [ एक जापानी व्यक्ति ने संन्यास लेने से पहले कुछ आशंका व्यक्त की, क्योंकि वह पहले से ही जापान में तेनरिक्यो नामक एक आंदोलन से जुड़ा हुआ था, जिसके बारे में उसने कहा कि यह जापान में सिर्फ एक सौ पचास साल पहले शुरू हुआ था, और यह बौद्ध धर्म जैसा कुछ था, फिर भी बौद्ध धर्म नहीं था।]

अभी इसे छोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। बस गहराई से खोजने के लिए सभी प्रयास करते रहें। अगर आपको कुछ उच्चतर मिल जाए, तो उसे छोड़ दें; फिर वह अपने आप छूट जाता है। आप इसे छोड़ते हैं या नहीं, यह सवाल नहीं है। आप इसे छोड़ने के बजाय इससे बाहर निकलते हैं। क्या आप मेरा अनुसरण करते हैं?

और मैं तुम्हें कुछ ऐसा दे रहा हूँ जो कहीं भी विकसित हो सकता है -- चाहे तुम किसी भी धर्म में हो, चाहे तुम किसी भी चर्च से जुड़े हो। मैं किसी के खिलाफ नहीं हूँ। तुम अपने चर्च में रह सकते हो और फिर भी विकसित हो सकते हो।

[ आगंतुक संन्यास लेता है।]

आपका नाम होगा: स्वामी आनंद मंसूर।

आनंद का मतलब है खुश, आनंदित, और मंसूर एक सूफी फकीर का नाम है। क्या आपने यह नाम सुना है - मंसूर अल हिल्लाज?

मंगलवार, 13 मई 2025

04-यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं - (Be Realistic: Plan for a Miracle) - (हिंदी अनुवाद ) )

 यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं- (Be
Realistic: Plan for a Miracle)

अध्याय -02

 14 मार्च 1976 सायं चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

 [ विपश्यना नामक संन्यासिन का भाई, जो तीन दिन पहले ब्रेन ट्यूमर के कारण मर गया था, दर्शन के लिए आया था।]

 आपने अच्छा किया। यह मुश्किल है, लेकिन आपने अच्छा किया। और अगर कोई अपने किसी प्रियजन की मृत्यु का सामना कर सकता है, तो वह इससे पूरी तरह से एकीकृत होकर बाहर आता है।

मृत्यु बहुत विघटनकारी हो सकती है... यह आपको चकनाचूर कर सकती है, या यह एक बहुत ही क्रिस्टलीकृत शक्ति हो सकती है और आपको एकीकृत कर सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसका उपयोग कैसे करते हैं, आप इसे कैसे देखते हैं। और आपने अच्छा किया है। बहुत बढ़िया.... कुछ कहना है?

 [ एक संन्यासी ने कहा कि उसने केवल एक एनकाउंटर ग्रुप किया था जिससे वह 'नफरत' करता था।]

 तो आपको इसे दोबारा करना होगा! (हँसी) क्योंकि नफ़रत दर्शाती है कि आप आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। नफरत एक रिश्ता है जब तक आप उदासीन समूह से बाहर नहीं आते, यह आपकी मदद करेगा; किसी भी तरह - चाहे आप इसे प्यार करें या नफरत करें, मि. एमी?

सोमवार, 12 मई 2025

04-यथार्थवादी बनें: किसी चमत्कार की योजना बनाएं - (Be Realistic: Plan for a Miracle) - (हिंदी अनुवाद )

यथार्थ वादी बनें: चमत्कार की योजना बनाएं - (Be Realistic: Plan for
a Miracle
)

 13/3/76 से 6/4/76 तक दिए गए भाषण

दर्शन डायरी

22 अध्याय

प्रकाशन वर्ष: 1977

 

यथार्थवादी बनें: चमत्कार की योजना बनाएं- (Be Realistic: Plan for a Miracle)

अध्याय - 01

 13 मार्च 1976 सायं चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

 [ एक संन्यासी पश्चिम में अपने काम और अपने संबंधों के बारे में पूछता है..... यह पागलपन है कि मुझे आपसे ये बातें पूछनी पड़ रही हैं..... मेरे पास अपना दिमाग है।]

 नहीं, आप पूछते हैं... यह अपना मन बनाने का एक तरीका है, मि. मी? अब तुम मेरा हिस्सा हो और मैं भी तुममें उतना ही शामिल हूं जितना तुम हो - उससे भी ज्यादा। तो यह मत सोचो कि तुम पागल हो। बस मुझे बताओ। मुझे बताने से भी बहुत मदद मिलेगी.

मैं आपके लिए निर्णय नहीं ले सकता, लेकिन मैं निर्णय लेने में आपकी सहायता कर सकता हूं। ये दो बातें... कुछ और? कोई तीसरी चीज़ भी तो होगी.

 [ वह उत्तर देता है: ठीक है... मेरी प्रवृत्ति नकारात्मक, आलोचनात्मक, कम ऊर्जावान होने की है...]

शनिवार, 10 मई 2025

मधुर यादें-( मेहेराबाद महाराष्ट्र) - भाग-03

मार्ग की मधुर यादें-( मेहेराबाद महाराष्ट्र) 

भाग-03 धूनी

मेहरा बाद एक सूखी और खुश्क जमीन है जहां पर बरसात बहुत ही कम होती है। कहते है मेहेराबाद में मेहेर बाबा की धूनी एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक परंपरा है। इस परम्परा को मेहेर बाबा द्वारा एक संशोधित रूप में अपनाया गया था। यह उन कुछ प्रामाणिक धार्मिक संकल्पों में से एक है, जिसे मेहेर बाबा ने स्वयं अपने सामने किया। आज भी यह कार्यक्रम हर महीने की 12 तारीख की शाम को लोअर मेहेराबाद के मेहेर पिलग्रिम सेंटर के पास बाबा द्वारा स्थापित परंपराओं के अनुसार किया जाता है, ओर प्रति माह होने वाले कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण केंद्रबिंदु होता है। मेहेर बाबा की धूनी पहली बार 10 नवंबर 1925 को जलाई गई थी, जब कुछ ग्रामीणों ने मेहेर बाबा से एक भयंकर सूखे के बारे में मदद मांगी, जिसने उनकी फसलों को खतरे में डाल दिया था। इस धुनी को जलाने की परंपरा आज भी जारी है और इसे मेहेर बाबा के आध्यात्मिक कार्य का प्रतीक माना जाता है।

धुननी के बारे में यहां एक कथा है कि...

सितंबर का महीना था - मेहराबाद में मानसून का अंतिम चरण। जून के पहले सप्ताह से शुरू होने वाले पहले तीन महीनों के दौरान बारिश बहुत कम बिलकुल न के बराबर हुई थी, जिससे सूखे की आशंका थी, अगर द्वितीयक मानसून धारा नहीं आई।

गुरुवार, 8 मई 2025

मधुर यादें-( मेहेराबाद महाराष्ट्र) - भाग-02

मार्ग की मधुर यादें-( मेहेराबाद महाराष्ट्र) 



भाग-02 (स्वछंद आवारगी)

आज जो (एम पी आर) मेहेराबाद बना है, आजादी से पहले वहां पर पहले अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी। परंतु आजादी के बाद सरकार ने इसे मेहर बाबा को उपहार स्वरूप दे दिया। क्योंकि ये जमीन पुराने मेहेराबाद से एक दम से सटी है। जो एक दम से वीरान थी। वहां न कोई पेड़ पौधा ही उकता था। पानी की वहां हमेशा करम रहती है। बरसात भी वहां कम ही होती है। इन दोनों के बीच से पूना रेल व हाईवे गुजरता है। अब  जिसके नीचे से एक सुंदर पथ मार्ग बना दिया है। इस MPR  (मेहर पिल ग्राम रिट्रीट) से पुराने मेहेराबाद आप बीच अंदर से भी जा आ सकते है। वैसे तो पूरा मेहेर बाबा का आश्रम कई किलोमीटर में फैला हुआ है। परंतु जहां मेहेर बाबा  की समाधि है वह दोनों आश्रमों की एक दम से मध्य में है।  परंतु चाहे नया हो या पुराना दोनों ही अति सुंदर कलात्मक शांति अपने में समेटे हुए है। पुराने मेहरा बाद में करीब रहने खाने का 250 रूपये ही लगते हे। इसलिए अगर देखे तो पुराने मेहेराबाद उर्जा क्षेत्र ध्यान के लिए अति गहरी है। क्योंकि समाधि के पास या पुराने मेहेराबाद में ही अधिक दिनों तक भगवान मेहर बाबा रहे थे। मुझे तो वहां का एक-एक स्थान उर्जा से लवरेज हे। आप कहीं भी एकांत जंगल में बैठ जाये आप अचानक गहरे ध्यान में डूबने लग जाओगे।

मंगलवार, 6 मई 2025

मधुर यादें-( मेहेराबाद महाराष्ट्र) - भाग-01

मार्ग की अनुभुतिया-( मेहेराबाद महाराष्ट्र) 


भाग-01

पूना का एक माह का आवास काल अति सुंदर रहा। तब बेटी ने कहां की पापा आप ध्यान में जो ठहराव मिला है उसे गहरे जाने के लिए आप मेहेराबाद चले जाये तो अति उत्तम होगा। हम आप की वहां की बुकिंग करा देते हे। मैं इससे पहले मेहेराबाद कभी नहीं आया था। पूना के पास ही है, करीब 125  किल मीटर होगा। पूना से अमरावती जाने वाली ट्रेन जो 11-20 पर चलती है। और मैं एक बज कर 20 मिनट पर मेहेराबाद पहुंच गया। वहां से आटो ले कर। MPR  (मेहर पिल ग्राम रिट्रीट) ये रेहने के लिए नया स्थान बनाया है। वैसे पुराना जो पूना हाईवे से सटा है। जहां पहले महर बाबा रहते थे। उसे मेहेराबाद कहते है। सड़क से इसकी दूरी 8-9 किलोमीटर है। परंतु अंदर से अगर आओ तो केवल दो किलोमीटर है। परंतु सामान के साथ तो आपको बाहर से ही आना होगा।

दफ्तर में पहुंचने पर वहां काम करने वाले मित्र ने कहां की आपका खाना रखा है। पहले आप खाना खाकर आये बाद में आप दफ्तर का काम करे। व्यवहार बहुत मधुर था वहां के लोगों का। मैंने आठ दिन के पैसे दे दिये। 400+300 खाने के। खाने में सुबह नाश्ता चाय। दोपहर का नाश्ता श्याम की चाय और रात का खाना। खाना यहां का बहुत सुस्वाद है। तीन चार तरह की सब्जियां, दो-तीन तरह का सलाद।

शनिवार, 3 मई 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-06)

 मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)  


(तीसरा चरण-मोन ध्यान)

पूना आवास-(भाग-06)

ध्‍यान के पहने दो चरण गुजर चूके थे। परंतु विश्‍वास ही नहीं हो रहा था की वो सब अनुभव इस मन इस देह पर से गुजरा है। अचेतन तक उस सब से अनभिग था। ओशो से जूड़े इस लम्‍बे अंतराल में ध्‍यान के अभूतपूर्व अनुभव है। कदम-कदम पर विषमय के साथ आनंद बरस रहा था। परंतु इस सब का न तो मन को पता था और नहीं ही इस सब की पहले मन ने कल्‍पना थी। बेटी बोधि उन्‍मनी की जिद के कारण यहां आया। वह तो आठ साल पहले ही मुझे ध्यान के लिए भेज रही थी। उस समय तो मोहनी बीमार भी नहीं हुई थी। परंतु मुझे लगा की इस सब ध्यान की मुझे जरूरत ही नहीं है। क्योंकि लम्बे अंतराल से लगातार पूना ध्यान के लिए आ जा रहे थे। और हमारा घर भी ध्यान के लिए अति सहयोगी है। आज भी वहां नित एक या दो ध्यान तो हम करते ही रहते है। बहुत सरल और सहज गति से हम सब ध्यान में साथ सहयोग के साथ  बरसो से चल ही रहे थे। ध्यान से जो जीवन में बदलाव हो रहे थे, मन एक दम से जो मिल रहा था उस से तृप्‍त था। परंतु तब मैं नहीं आया। परंतु इस बार तो वह जिद्द पर ही अड़ गई की मम्‍मी की बीमारी के ये सात-आठ साल के कारण तो आप एकांत में जी रहे है इस तरह से आप भी बीमार हो जायेंगे। और उसने मेरी एक न सूनी और आज सोचता हूं तो ये उसने सच ही एक महान कार्य किया। अब मन से उसका ये उपकार एक उपहार एक आनंद दे रहा है। की मेरी जिद्द गलत थी। हम बड़े है इस का मतलब हम सही है ये जरूरी नहीं।

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-05)

 मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)


(ध्‍यान का दूसरा चरण रोना )

पूना आवास-(भाग-05)

हंसी का पहला सप्ताह जिस सहजता से गुजरा। उस से मन की  जो चालबाजी थी, वह कमजोर पड़ गई। हंसी का वो झरना अब भी अंदर सहज बह रहा था। मानो अंदर सब तरल हो गया। सच ये सात दिन पल में ही गुजर गये। मानो समय की गति अपने अलग आयाम में चली गई। ये सब लिख रहा हूं परंतु जो घटा था उसके लिए शब्‍द बहुत ही छोटे और पराये-पराये लग रहे है। क्‍योंकि इसे मैंने वहीं पूना में बैठ कर लिख लिया था इसलिए वहां की कुछ महक कुछ झलक इन शब्‍दों में बसी रह गई है। वरना तो यहां आते-न आते वो सब काफूर हो गया है। बस अब उस लिखे को टाईप भर कर रहा हूं। फिर भी टूटी फूटी तुतलाती बोली में लिखने की कोशिश कर रहा हूं। उसे ही आप अधिक समझ कर पढ़ना ही नहीं उसमें उतरने की कोशिश करना।

अगला सप्ताह शुरू हुआ रोने का। आज समाधि पर हल्के-नीले-हरे रंग के पिल्लों चादर बिछी थी। आज समाधि सब रंग रूप बदला हुआ बहुत सुंदर और ह्रदय को एक ठहराव दे रहा था। ध्‍यान करने में आपके आस पास का माहोल भी कितना महत्‍वपूर्ण होता है। एक तो समाधि दूसरा ओशो ने जैसे जो कहां था ये लोग उसी तरह से ध्‍यान को कराते हे। अपना कुछ भी उस में विलय या लिप्त नहीं करते। जो पिछले सप्ताह गुजरा था ध्‍यान में वह एक संकल्प एक साहास दे रहा था। कहीं से एक साहस एक शक्‍ति अपने आप आती सी महसूस हो रही थी। की हंस लिए तो रोना शायद इतना कठिन नहीं होगा।

रविवार, 27 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-04)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)


पूना आवास-(भाग-04)

ध्‍यान का समय तीन घंटे था। मन अब भी बार-बार अपना जाल बून रहा था कि देखा मैंने तो पहले ही कहा था की ये तुम से नहीं हो सकेगा। चले थे तीन घंटे हंसने। मन की जहां मृत्‍यु की संभावना होती है वह अपने बचाव के लिए तुरंत कोई नया नाटक शुरू कर देता है। साधक को  हमेशा इस बाता के प्रति सजग रहना चाहिए। जो मन हमारा सहयोगी हो सकता है वहीं हमारा सबसे बड़ी बाधा ही नहीं दुश्मन भी है। मन से  ही मनुष्‍य  कहलाता है और वह अंतिम समय तक अपना प्रभुत्‍व छोड़ना बिलकुल नहीं चाहेगा। 

ध्‍यान में अधिक साधक नहीं थे, और उन  में से भी कुछ  तो  लेट  कर  सो गये। क्‍योंकि हंसना  रोना एक संप्रेषण है ये फैलता है। एक दूसरे को प्रभावित  करता है, एक आदमी  हंस  रहा है या रो रहा है या उदास है तो आप पास भी उसकी तरंगे  प्रभावित कर रही होती थी। परंतु ध्‍यान कराने वाले कॉर्डिनेटर "समन्वयक" या "ताल-मेल बैठाने वाला इस विषय में तटस्थ थे। जब आप ताकत लगा कर ध्‍यान नहीं करना चाहते तो आपके साथ कोई जबरदस्‍ती नहीं है। परंतु कुछ साधक हंसने का पूर्ण प्रयास कर रहे थे। खास कर ध्‍यान कराने वाले तो अपने उपर पूरी ताकत लगा कर ध्‍यान में डूबने  की कोशिश कर रहे थे।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-03)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)
 

पूना आवास-(भाग-03 )

(उपसंहार)

जीवन काल में ओशो से जुड़ने के बाद 35 साल की यात्रा जो की है। उस का अगर निचोड़ निकाला जाये तो आज गुजरे ओशो मिस्‍टिक रोज के 35 दिन बहुत भार पड़ रहे है। जैसे पूरे जीवन के ध्‍यान में जो मक्खन निकल रहा है। ये उसी का नतीजा है। मैं ऐसा बिलकुल नहीं कहा रहा की उन 35 सालों में ध्‍यान में कुछ गति नहीं हुई। वह तो हर पल, हर दिन नया आकाश नया आयाम देती ही आ रही है। परंतु अब कुछ ऐसा मिला है जिस न तो मन समझ पा रहा है और न ही मस्‍तिष्‍क उसकी व्याख्या कर पा रहा है।

ओशो मिस्‍टिक रोज- उर्जा का कमाल है, मानव शरीर का सबसे महत्‍व पूर्ण अंग अगर कुछ है तो वह नाभि है, हम जीवन नाभि से ही प्राप्त करते है। मां के पेट में हम न तो भोजन लेते है, न ही हमारा दिल ही धड़कता है। फिर भी जीवन अपनी गति बनाये रखता है। इस लिए जीवन के बाद भी हम जो भी दबाते है, वह नाभि में ही एक भय के रूप में जमा होता चला जाता है। जिस प्रकार हमें जीवन नाभि देता है उसी प्रकार नाभि ही हमें मृत्‍यु को केन्द्र भी है।

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-02)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना भाग-02

उस रात के समय तो को तो आश्रम में कोई खास ध्‍यान नहीं हो रहा था। केवल पश्‍चात्‍य संगीत और फूहड़ नृत्य जो मुझे अधिक नहीं भाता। सो नहाने के बाद थोड़ा आश्रम में धूम पुरानी यादों में कुछ क्षण जिया। और उसके बाद थोड़ी सी खिचड़ी और दाल खाई और फिर कुछ लिखा फिर प्रवचन लगा कर सो गया। रात को मुझे जल्‍दी सोने की आदत है। क्‍योंकि फिर सुबह जल्‍दी उठना भी होता है। अकसर सुबह तीन बजे मेरी आँख खुल जाती है। उठने के बाद सबसे पहले थोड़ा पानी पिया और उसके बाद केतली में चाय बनाई और फिर बाहर घूमने के लिए निकल पड़ा। जो मेरी घर पर भी दिनचर्या थी। घर पर भी जल्‍दी उठ कर मैं और मोहनी साथ घूमने निकल पड़ते है। इस बार उमर ख्‍याम में ठहरने का मोका मिला था। सच ही उमर ख्‍याम को तो ओशो की चित्र कला की प्रदर्शनी के लिए सजाया व बना रखा था। पूरे गलियारे सीढ़ियों या कमरों में जहां भी नजर जाती थी केवल ओशो की बनी पेंटिंग ही लगी थी। कुछ तो ऐसी थी जो मैं पहली बार देख रहा था। ये अंग्रेज सच चीजों को कलात्मक से बनाने में माहिर है।

उसके बाद आकर नहाया और चोगा पहन कर ओशो की समाधि पर शांत ध्‍यान के लिए चला गया। वहां से जब तक आया, तब तक विजिटिंग सेंटर (स्‍वागत कक्ष)  खुलाने का समय हो गया था। इसलिए मैं कार्ड बनवाने के लिए चला गया। मेरे पास पुराना कार्ड था इस लिए बनने में अधिक देर नहीं लगी और फिर पैसे जमा करने के लिए अंदर जाकर जहां कार्य ध्‍यान के आफिस चला गया। तब वहां जाकर मैंने पैसे जमा करने के लिए बिल निकलवाया। वहां पर एक विदेशी लड़की बैठी थी।

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-01)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना आवास –(भाग-01)

इस बार लम्‍बे अंतराल के बाद पूना जाना का सौभाग्‍य हुआ। पिछली बार पूना 2018 में शायद सितम्बर माह में गया था। उस के बाद कुछ ऐसा घटा की पूना जाने का अवसर आया ही नहीं। ओशो से जुड़ने के बाद ये मेरे जीवन में पहली बार है, जब इतने दिनों तक पूना नहीं जा पाया। वरना तो काम करते हुए भी हर साल पूना तो जाना ही होता था। और अब तो सब कामों से मुक्‍त हूं। फिर भी जीवन में ऐसा अंतराल आना एक अनहोनी जैसा लग रहा है। असल में हमारा मन अपने को बचाने के नये-नये बहाने तलाश लेता है। क्‍योंकि पूना में इस बीच कुछ ऐसा घटा पहले तो करोना काल, फिर स्वीमिंग पूल बेचने वाली बात। जिससे मन बहुत आहत हुआ था। क्‍योंकि मेरा सबसे अच्‍छा ध्‍यान तैरना ही होता था। अब जो वहां पर नहीं था। इसलिए मैंने निर्णय लिया की जब तक तरूण ताल खुल नहीं जाता तब तक पूना नहीं जाऊंगा। परंतु अंदर से एक तड़प थी। इस सब में सहयोग दिया बेटी ने। की पापा आप को पूना जाना ही चाहिए। मैं मम्‍मी के पास हूं। इस बीमारी में आप 6-7 साल से मम्‍मी के पास हो। तो अब आप के लिए तो पूना जाना अति अनिवार्य है। अब मेरे पास इस का कोई उत्‍तर नहीं था। सच कहूं तो मैं खूद ही जाना चाहता था। क्‍योंकि बेटी ने 1999 में मिस्‍टिक रोज किया था। लेकिन हम खूद 35 साल से ओशो से जूड़े रहे फिर भी नहीं कर पाये थे। तब बेटी ने कहां की पापा सब ध्‍यान-ध्‍यान है परंतु मिस्‍टिक रोज कोई ध्‍यान नहीं है। वह अंतस के चित की गहराई में उसकी सफाई करता है। ये ध्‍यान एक प्रकार की थेरेपी है। आप को और मम्‍मी को तो इसे बहुत पहले कर लेना चाहिए था। अब आप की कोई बात नहीं सूनी जायेगी और उसने मार्च माह के लिए मेरी बुकिंग कर दी।

मिस्‍टिक रोज हर माह पूना में 11 तारीख को शुरू होता है। सच मोहनी की बीमारी ने तन मन को बहुत थका दिया था। इतने सालों से बाहर खूले में निकलने का मोका भी नहीं मिला था। जब भी बाहर जाना होता था तो मोहनी के स्‍वास्‍थ के लिए ही बाहर जाना होता था। मन में एक भय और उमंग एक साथ था। पहली बार ऐसा होगा की पूना में पूरा एकांत वास होगा। अंदर रहने का एक अलग ही अनुभव था।

ओशो मंडल ध्‍यान - (OSHO Mandala Meditation)

 OSHO Mandala Meditation-(ओशो मंडल ध्‍यान)

मंडल ध्‍यान और बुढ़ापा-  हां  कुछ सालों पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी जिस में कहां था की बुढ़ापा मनुष्‍य के पैरों से शुरू होता है और उसकी प्रक्रिया सर पर महसूस होती है। यानि की आप के मस्‍तिष्‍क  में उर्जा की गति कम से कम तर होती चली  जाती है।

मंडल ध्‍यान एक चमत्कारी ध्‍यान है। इस खास कर जिनके पैरों में या घूटनों  में दर्द रहता है जो चलने में कठिनाई महसूस करते है उन्‍हें तो जरूर करना चाहिए। मेरी समझ में ये ओशो को सम्पूर्ण  ध्‍यान है। सक्रिय ध्‍यान से शुरू करते  है, ये एक पुरूष उर्जा ध्‍यान है  जो आपकी सेक्‍स उर्जा  को  रूपांतरित करे ने में अति सहयोगी वा मददगार है, दूसरा  कुंडली  ध्‍यान ये  एक स्‍त्रेण ध्‍यान है जो आपकी नाभि  चक्र को अति संवदेनशील करने में आपको भय मुक्‍त करने में सहयोगी होगा। एक ध्‍यान है गोरी शंकर जो तीसरी आंख के लिए अति उत्तम है।