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रविवार, 27 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-04)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)


पूना आवास-(भाग-04)

ध्‍यान का समय तीन घंटे था। मन अब भी बार-बार अपना जाल बून रहा था कि देखा मैंने तो पहले ही कहा था की ये तुम से नहीं हो सकेगा। चले थे तीन घंटे हंसने। मन की जहां मृत्‍यु की संभावना होती है वह अपने बचाव के लिए तुरंत कोई नया नाटक शुरू कर देता है। साधक को  हमेशा इस बाता के प्रति सजग रहना चाहिए। जो मन हमारा सहयोगी हो सकता है वहीं हमारा सबसे बड़ी बाधा ही नहीं दुश्मन भी है। मन से  ही मनुष्‍य  कहलाता है और वह अंतिम समय तक अपना प्रभुत्‍व छोड़ना बिलकुल नहीं चाहेगा। 

ध्‍यान में अधिक साधक नहीं थे, और उन  में से भी कुछ  तो  लेट  कर  सो गये। क्‍योंकि हंसना  रोना एक संप्रेषण है ये फैलता है। एक दूसरे को प्रभावित  करता है, एक आदमी  हंस  रहा है या रो रहा है या उदास है तो आप पास भी उसकी तरंगे  प्रभावित कर रही होती थी। परंतु ध्‍यान कराने वाले कॉर्डिनेटर "समन्वयक" या "ताल-मेल बैठाने वाला इस विषय में तटस्थ थे। जब आप ताकत लगा कर ध्‍यान नहीं करना चाहते तो आपके साथ कोई जबरदस्‍ती नहीं है। परंतु कुछ साधक हंसने का पूर्ण प्रयास कर रहे थे। खास कर ध्‍यान कराने वाले तो अपने उपर पूरी ताकत लगा कर ध्‍यान में डूबने  की कोशिश कर रहे थे।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-03)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)
 

पूना आवास-(भाग-03 )

(उपसंहार)

जीवन काल में ओशो से जुड़ने के बाद 35 साल की यात्रा जो की है। उस का अगर निचोड़ निकाला जाये तो आज गुजरे ओशो मिस्‍टिक रोज के 35 दिन बहुत भार पड़ रहे है। जैसे पूरे जीवन के ध्‍यान में जो मक्खन निकल रहा है। ये उसी का नतीजा है। मैं ऐसा बिलकुल नहीं कहा रहा की उन 35 सालों में ध्‍यान में कुछ गति नहीं हुई। वह तो हर पल, हर दिन नया आकाश नया आयाम देती ही आ रही है। परंतु अब कुछ ऐसा मिला है जिस न तो मन समझ पा रहा है और न ही मस्‍तिष्‍क उसकी व्याख्या कर पा रहा है।

ओशो मिस्‍टिक रोज- उर्जा का कमाल है, मानव शरीर का सबसे महत्‍व पूर्ण अंग अगर कुछ है तो वह नाभि है, हम जीवन नाभि से ही प्राप्त करते है। मां के पेट में हम न तो भोजन लेते है, न ही हमारा दिल ही धड़कता है। फिर भी जीवन अपनी गति बनाये रखता है। इस लिए जीवन के बाद भी हम जो भी दबाते है, वह नाभि में ही एक भय के रूप में जमा होता चला जाता है। जिस प्रकार हमें जीवन नाभि देता है उसी प्रकार नाभि ही हमें मृत्‍यु को केन्द्र भी है।

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-02)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना भाग-02

उस रात के समय तो को तो आश्रम में कोई खास ध्‍यान नहीं हो रहा था। केवल पश्‍चात्‍य संगीत और फूहड़ नृत्य जो मुझे अधिक नहीं भाता। सो नहाने के बाद थोड़ा आश्रम में धूम पुरानी यादों में कुछ क्षण जिया। और उसके बाद थोड़ी सी खिचड़ी और दाल खाई और फिर कुछ लिखा फिर प्रवचन लगा कर सो गया। रात को मुझे जल्‍दी सोने की आदत है। क्‍योंकि फिर सुबह जल्‍दी उठना भी होता है। अकसर सुबह तीन बजे मेरी आँख खुल जाती है। उठने के बाद सबसे पहले थोड़ा पानी पिया और उसके बाद केतली में चाय बनाई और फिर बाहर घूमने के लिए निकल पड़ा। जो मेरी घर पर भी दिनचर्या थी। घर पर भी जल्‍दी उठ कर मैं और मोहनी साथ घूमने निकल पड़ते है। इस बार उमर ख्‍याम में ठहरने का मोका मिला था। सच ही उमर ख्‍याम को तो ओशो की चित्र कला की प्रदर्शनी के लिए सजाया व बना रखा था। पूरे गलियारे सीढ़ियों या कमरों में जहां भी नजर जाती थी केवल ओशो की बनी पेंटिंग ही लगी थी। कुछ तो ऐसी थी जो मैं पहली बार देख रहा था। ये अंग्रेज सच चीजों को कलात्मक से बनाने में माहिर है।

उसके बाद आकर नहाया और चोगा पहन कर ओशो की समाधि पर शांत ध्‍यान के लिए चला गया। वहां से जब तक आया, तब तक विजिटिंग सेंटर (स्‍वागत कक्ष)  खुलाने का समय हो गया था। इसलिए मैं कार्ड बनवाने के लिए चला गया। मेरे पास पुराना कार्ड था इस लिए बनने में अधिक देर नहीं लगी और फिर पैसे जमा करने के लिए अंदर जाकर जहां कार्य ध्‍यान के आफिस चला गया। तब वहां जाकर मैंने पैसे जमा करने के लिए बिल निकलवाया। वहां पर एक विदेशी लड़की बैठी थी।

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-01)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना आवास –(भाग-01)

इस बार लम्‍बे अंतराल के बाद पूना जाना का सौभाग्‍य हुआ। पिछली बार पूना 2018 में शायद सितम्बर माह में गया था। उस के बाद कुछ ऐसा घटा की पूना जाने का अवसर आया ही नहीं। ओशो से जुड़ने के बाद ये मेरे जीवन में पहली बार है, जब इतने दिनों तक पूना नहीं जा पाया। वरना तो काम करते हुए भी हर साल पूना तो जाना ही होता था। और अब तो सब कामों से मुक्‍त हूं। फिर भी जीवन में ऐसा अंतराल आना एक अनहोनी जैसा लग रहा है। असल में हमारा मन अपने को बचाने के नये-नये बहाने तलाश लेता है। क्‍योंकि पूना में इस बीच कुछ ऐसा घटा पहले तो करोना काल, फिर स्वीमिंग पूल बेचने वाली बात। जिससे मन बहुत आहत हुआ था। क्‍योंकि मेरा सबसे अच्‍छा ध्‍यान तैरना ही होता था। अब जो वहां पर नहीं था। इसलिए मैंने निर्णय लिया की जब तक तरूण ताल खुल नहीं जाता तब तक पूना नहीं जाऊंगा। परंतु अंदर से एक तड़प थी। इस सब में सहयोग दिया बेटी ने। की पापा आप को पूना जाना ही चाहिए। मैं मम्‍मी के पास हूं। इस बीमारी में आप 6-7 साल से मम्‍मी के पास हो। तो अब आप के लिए तो पूना जाना अति अनिवार्य है। अब मेरे पास इस का कोई उत्‍तर नहीं था। सच कहूं तो मैं खूद ही जाना चाहता था। क्‍योंकि बेटी ने 1999 में मिस्‍टिक रोज किया था। लेकिन हम खूद 35 साल से ओशो से जूड़े रहे फिर भी नहीं कर पाये थे। तब बेटी ने कहां की पापा सब ध्‍यान-ध्‍यान है परंतु मिस्‍टिक रोज कोई ध्‍यान नहीं है। वह अंतस के चित की गहराई में उसकी सफाई करता है। ये ध्‍यान एक प्रकार की थेरेपी है। आप को और मम्‍मी को तो इसे बहुत पहले कर लेना चाहिए था। अब आप की कोई बात नहीं सूनी जायेगी और उसने मार्च माह के लिए मेरी बुकिंग कर दी।

मिस्‍टिक रोज हर माह पूना में 11 तारीख को शुरू होता है। सच मोहनी की बीमारी ने तन मन को बहुत थका दिया था। इतने सालों से बाहर खूले में निकलने का मोका भी नहीं मिला था। जब भी बाहर जाना होता था तो मोहनी के स्‍वास्‍थ के लिए ही बाहर जाना होता था। मन में एक भय और उमंग एक साथ था। पहली बार ऐसा होगा की पूना में पूरा एकांत वास होगा। अंदर रहने का एक अलग ही अनुभव था।

ओशो मंडल ध्‍यान - (OSHO Mandala Meditation)

 OSHO Mandala Meditation-(ओशो मंडल ध्‍यान)

मंडल ध्‍यान और बुढ़ापा-  हां  कुछ सालों पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी जिस में कहां था की बुढ़ापा मनुष्‍य के पैरों से शुरू होता है और उसकी प्रक्रिया सर पर महसूस होती है। यानि की आप के मस्‍तिष्‍क  में उर्जा की गति कम से कम तर होती चली  जाती है।

मंडल ध्‍यान एक चमत्कारी ध्‍यान है। इस खास कर जिनके पैरों में या घूटनों  में दर्द रहता है जो चलने में कठिनाई महसूस करते है उन्‍हें तो जरूर करना चाहिए। मेरी समझ में ये ओशो को सम्पूर्ण  ध्‍यान है। सक्रिय ध्‍यान से शुरू करते  है, ये एक पुरूष उर्जा ध्‍यान है  जो आपकी सेक्‍स उर्जा  को  रूपांतरित करे ने में अति सहयोगी वा मददगार है, दूसरा  कुंडली  ध्‍यान ये  एक स्‍त्रेण ध्‍यान है जो आपकी नाभि  चक्र को अति संवदेनशील करने में आपको भय मुक्‍त करने में सहयोगी होगा। एक ध्‍यान है गोरी शंकर जो तीसरी आंख के लिए अति उत्तम है।

रविवार, 22 दिसंबर 2024

44-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय - 44

अध्याय का शीर्षक: स्वर्ग केवल साहसी लोगों के लिए है

02 अक्टूबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

ऐसा क्यों है कि हम सभी गुरु की मार से इतने डरते हैं? जब ऐसा हो रहा है, तो यह प्रमाण है कि यह वही है जिसकी हमें आवश्यकता थी, फिर भी भय बना रहता है। क्या कायरता अहंकार का अनिवार्य हिस्सा है?

 

अहंकार कायरता है

कायरता अहंकार का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, यह संपूर्ण अहंकार है। और ऐसा होना ही है, क्योंकि अहंकार उजागर होने के निरंतर भय में रहता है: यह भीतर से खाली है, इसका कोई अस्तित्व नहीं है; यह केवल दिखावा है, हकीकत नहीं। और जब भी कोई चीज़ केवल एक दिखावा, एक मृगतृष्णा होती है, तो उसके केंद्र में भय अवश्य होता है।

रेगिस्तान में आपको दूर से मृगतृष्णा दिखाई देती है। यह इतना वास्तविक लगता है कि इसके किनारे खड़े पेड़ों का भी पानी में प्रतिबिम्ब दिखता है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। तुम वृक्ष देख सकते हो और तुम प्रतिबिंब देख सकते हो; आप पानी में लहरें देख सकते हैं और लहरों के साथ झिलमिलाते प्रतिबिंब भी देख सकते हैं - लेकिन यह सब दूर से है। जैसे-जैसे आप करीब आते हैं, मृगतृष्णा गायब होने लगती है। वहाँ कभी कुछ नहीं रहा; यह रेगिस्तान की गर्म रेत से परावर्तित होने वाली सूर्य की किरणों का एक उपोत्पाद मात्र था। इस प्रतिबिंब और लौटती सूर्य की किरणों में मरूद्यान की मृगतृष्णा निर्मित होती है। लेकिन यह तभी अस्तित्व में रह सकता है जब आप बहुत दूर हों; जब आप निकट आते हैं तो यह अस्तित्व में नहीं रह सकता। फिर, वहाँ केवल गर्म रेत हैं, और आप सूर्य की किरणों को परावर्तित होते हुए देख सकते हैं।

बुधवार, 18 दिसंबर 2024

43-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय - 43

अध्याय का शीर्षक: सूरजमुखी हमेशा सूर्य की ओर मुंह करके रहता है

01 अक्तूबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

आप कितने प्रेम और करुणा से हाथ जोड़ते हैं और हमें नमस्ते करते हैं - धन्यवाद, धन्यवाद, ओशो।

मैंने कभी नहीं पूछा - फिर भी, मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर मिल गया है।

ओशो, क्या आप हमें बता सकते हैं कि एक शिष्य को किस प्रकार का प्रश्न पूछना चाहिए?

 

शिष्य को मांगना नहीं है, बल्कि पीना है।

उसके पास कोई सवाल नहीं है, बस एक खोज है। वह पूछताछ नहीं कर रहा है। उसने सत्य को महसूस किया है, उसने उसकी एक झलक देखी है, वह वही बनना चाहता है। दूरी दुख देती है।

शिष्य कोई विद्यार्थी नहीं है जो जिज्ञासाओं से भरा हो, हजारों तरह के प्रश्नों से भरा हो।

शिष्य चुप हो गया। कोई प्रश्न ही नहीं था।

और आप यह जानते हैं। आपने खुद लिखा है कि आपने कभी कोई सवाल नहीं पूछा और आपके सभी सवालों के जवाब मिल गए हैं।

सोमवार, 16 दिसंबर 2024

42-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -42

अध्याय का शीर्षक: साधक बनो, आस्तिक नहीं

30 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

मैं अच्छी तरह से समझता हूं कि आप हमें क्यों चला रहे हैं, धीरे-धीरे, ताकि हम आपकी भौतिक उपस्थिति से स्वतंत्र हो जाएं, लेकिन मुझे आश्चर्य है कि कैसे।

पिछले दिनों आपने कहा था कि आपके पास अपने तरीके हैं। मुझे आप पर पूरा भरोसा है और मैं जानता हूँ कि आप हमारे और आपके बीच की नाजुक दीवार को नुकसान नहीं पहुँचाएँगे; और अगर आप ऐसा करते हैं, तो ऐसा इसलिए होगा क्योंकि हमारी यात्रा में कुछ कमी रह गई है।

लेकिन मैं यह सोचने और चिंता करने से बच नहीं सकता: "वह" - आप - "हमारे अस्तित्व से दूर कैसे जाएंगे?"

प्रिय मित्र, अब आप संसार के राजा हैं, और आपका भारत आना मेरे लिए यीशु के यरूशलेम वापस आने के समान है। क्या यह सच है?

 

जिस क्षण आप व्यक्तित्व की सीमाओं को पार कर जाते हैं, चेतना एक हो जाती है।

यह गौतम बुद्ध का हो सकता है, यह ईसा मसीह का हो सकता है, यह चुआंग त्ज़ु का हो सकता है। ये नाम शख्सियतों के नाम हैं. इन नामों का परे से, शुद्ध चेतना से कोई लेना-देना नहीं है। यह हमेशा एक जैसा है:  जहां कहीं भी अति चेतनता मौजूद है, वह यीशु है जो यरूशलेम में वापस आ रहा है।

मैं तुम्हारा डर समझता हूं, क्योंकि तुम मेरा तरीका नहीं समझते।

तुम्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो गायब होने का केवल एक ही तरीका है ताकि मैं तुम्हारे लिए कोई बाधा न रहूं, और वह है तुम्हें अकेला छोड़ देना। इसीलिए मैंने कहा है कि मेरे अपने तरीके हैं।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

41-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -41

अध्याय का शीर्षक: सूचना से परिवर्तन तक

29 सितंबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

मैं समझ नहीं पा रही हूं कि आत्मज्ञान क्या है। हे मेरे सुंदर गुरु, क्या आप कृपया आत्मज्ञान के स्वाद के बारे में कुछ कहेंगे?

 

चेतना, जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें समझा नहीं जा सकता। इन्हें अनुभव तो किया जा सकता है, लेकिन समझाया नहीं जा सकता। उन्हें समझाना उन्हें समझाना है।

ऐसी चीजों के बारे में, आपको परिवर्तन से गुजरना होगा।

आप जानकारी मांग रहे हैं. वस्तुओं के बारे में जानकारी दी जा सकती है; संपूर्ण विज्ञान सूचना है। और संपूर्ण धर्म परिवर्तन है - जिस क्षण धर्म जानकारी बन जाता है, वह मर जाता है।

आप मुझसे आपको आत्मज्ञान का कुछ स्वाद देने के लिए कह रहे हैं। क्या आप एक साधारण तथ्य नहीं देख सकते? -- उस स्वाद को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता; या तो वे आपके पास हैं या आपके पास नहीं हैं।

साधारण स्वाद भी... मीठे फल का स्वाद समझ से परे है। इसका स्वाद आपको खुद ही चखना होगा.

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

40-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -40

अध्याय का शीर्षक: मेरे शिष्य मेरे बगीचे हैं

28 सितंबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

मु पर बरस रहे आपके प्यार और करुणा को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मेरी कृतज्ञता और कृतज्ञता किसी भी शब्द या किसी भी भाषा में व्यक्त नहीं की जा सकती।

कृपया मेरी कमियों के लिए मुझे क्षमा करें।

इसके अलावा, कृपया मुझे क्षमा करें, मेरे परम प्रिय भगवान ओशो, कि आपको मेरा सिर अपने हाथों में लेने के लिए झुकना पड़ा। मैं जानता हूं कि आपकी पीठ में कितना दर्द है। यह मेरे लिए इतना दर्दनाक था कि मेरी वजह से तुम्हें झुकना पड़ा।

मेरे संन्यास के दिन आपने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया था कल आपने मेरा सिर अपने हाथों में ले लिया था. मैं आशा करता हूं, प्रार्थना करता हूं और सभी का आशीर्वाद मांगता हूं कि मैं इसके योग्य बन सकूं।

मेरे प्रिय गुरु, कृपया उन सभी को बताएं और समझाएं कि यात्रा अभी शुरू ही हुई है। मैं अभी भी उनके सम्मान के लायक नहीं हूं. सम्मान के बजाय, सभी मुझे अपना आशीर्वाद दें ताकि एक दिन मैं वास्तव में आपके चरण छूने के योग्य बन सकूं।

मैं आपसे हाथ जोड़कर अनुरोध और विनती कर रहा हूं कि आप सभी से कहें कि मुझे शर्मिंदगी से बचाएं, मुझे वह सम्मान दें जिसके मैं अभी हकदार नहीं हूं।

 

गोविंद सिद्धार्थ के अनुसार, आध्यात्मिक जीवन के नियम सामान्य सांसारिक अस्तित्व के बिल्कुल विपरीत हैं।

दुनिया में कोई भी व्यक्ति सम्मान पाना चाहता है, चाहे वह इसके योग्य हो या न हो। असल में लोग जितने कम पात्र होते हैं, वे उतना ही अधिक चाहते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में, आप जितना अधिक योग्य होंगे उतना ही कम आप चाहेंगे।

बुधवार, 4 दिसंबर 2024

39-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -39

अध्याय का शीर्षक: अलविदा मत कहो, सुप्रभात कहो

27 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

अब आपके पास, मैं झरने के तल पर नवनिर्मित एक प्रसन्न बुलबुले की तरह महसूस करती हूँ, जो हँसता और नाचता हुआ सागर की ओर जा रहा है। यदि मैं इस जीवन में सागर तक पहुँच जाऊँ, तो क्या इसका वास्तव में यह अर्थ है कि मुझे और आपको अलविदा कहना होगा? मैं अब स्वयं को आपके प्रति प्रेमपूर्ण कृतज्ञता में पाती हूँ। ऐसा लगता है कि मेरे पास और कोई प्रश्न नहीं है, लेकिन एक गहरी आवश्यकता है - जो आपके प्रति मेरी कृतज्ञता से पैदा हुई है, प्रिय ओशो, आपने मेरे लिए जो कुछ किया है, आप जो कुछ भी हैं सब कारक के लिए। दुनिया में अब आपके अलावा कुछ नहीं बचा है। मैं अभी और जब तक मैं इस पार्थिव शरीर को नहीं छोड़ देती, तब तक आपके निकट रहना चाहूँगी, भले ही इसका अर्थ यह हो कि इस छोटे बुलबुले को थोड़ा पीछे रहना पड़े।

क्या आनन्द के सागर तक पहुंचने के बाद अलविदा कहना नितांत आवश्यक है?

 

जीवन मेरी, जिस क्षण तुम सागर से मिलोगी, उसी क्षण तुम मुझसे मिलोगी।

अलविदा कहने का तो सवाल ही नहीं उठता; आपको गुड मॉर्निंग कहना ही पड़ेगा!

और इस बात की चिंता मत करो कि तुम इस जीवन में सफल हो पाओगी या नहीं। एक बार जब तुम बहने लगे, तो तुम सफल हो ही गए।

हर नदी निरंतर सागर बनने की ओर अग्रसर है। समस्या केवल उन लोगों के साथ है जो तालाब बन गए हैं, बंद हो गए हैं, बहने के लिए खुले नहीं हैं, भूल गए हैं कि यह उनकी नियति नहीं है, यह मृत्यु है। तालाब बनना आत्महत्या करना है, क्योंकि अब कोई विकास नहीं है, कोई नई जगह नहीं है, कोई नया अनुभव नहीं है, कोई नया आकाश नहीं है - बस पुराना तालाब, अपने आप में सड़ रहा है, और अधिक से अधिक मैला होता जा रहा है।

मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

38-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -38

अध्याय का शीर्षक: व्यक्ति के विरुद्ध षडयंत्र

26 सितंबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

दुनिया के लिए आपको वैसे ही स्वीकार करना इतना कठिन क्यों है?

 

इसके कई निहितार्थ हैं।

सबसे पहले, दुनिया कभी भी किसी को उसके वास्तविक रूप में स्वीकार नहीं करती। यह दुनिया और व्यक्तियों के साथ व्यवहार करने के तरीके के बारे में बहुत बुनियादी बात है।

व्यक्ति छोटा होता है; व्यक्ति असहाय, बच्चा पैदा होता है। दुनिया हमेशा बड़ी होती है; इसमें बनाने या नष्ट करने की सारी शक्ति होती है। बच्चे को पता नहीं होता कि वह कौन है -- और निश्चित रूप से उसे एक पहचान की आवश्यकता होती है। दुनिया उसे एक पहचान देती है। दुनिया उसे अपनी ज़रूरतों के हिसाब से बनाना, उसका निर्माण करना शुरू कर देती है।

संसार व्यक्ति के लिए नहीं है। पूरा प्रयास व्यक्ति को संसार के लिए अस्तित्वमान बनाने का है।

शनिवार, 30 नवंबर 2024

37-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -37

अध्याय का शीर्षक: गुरु को प्रणाम करना

25 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

इससे पहले कभी भी मैंने आपके साथ घर पर इतना अच्छा महसूस नहीं किया था। इस स्थान में इतना सुंदर कंपन है, और मुझे लगता है कि इसका अधिकांश हिस्सा आपके भारतीय शिष्यों द्वारा बनाया गया है।

कभी-कभी, ऐसा लगता है कि उनके हाव-भाव आपके हाव-भाव और कृपा के साथ इस तरह से घुल-मिल गए हैं कि मैं स्वयं से पूछने लगता हूं कि क्या हम, आपके पश्चिमी संन्यासी, कुछ चूक रहे हैं। भारतीय संन्यासियों को आपके सामने झुकते देखना मेरे हृदय को गहराई से छूता है, और कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं कुछ चूक रहा हूं। झुकना मुझे ठीक नहीं लगता, और कभी-कभार ही मेरे साथ झुकना घटित होता है - जो मुझे लगता है कि सबसे सुंदर क्षणों में से एक है।

कृपया टिप्पणी करें।

 

भारत की प्रकृति किसी भी अन्य भूमि से भिन्न है।

यह स्पंदन हजारों वर्षों से निरंतर स्वयं की खोज पर निर्भर करता है। कोई भी अन्य देश इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए समर्पित नहीं है; यह विशेष और अनूठा है। एक पल के लिए भी भारतीय चेतना अपनी खोज से विचलित नहीं हुई। इसने इसके लिए सब कुछ त्याग दिया है; इसने इसके लिए खुद को बलिदान कर दिया है। इसने गुलामी, गरीबी, बीमारी, मृत्यु को झेला है - लेकिन इसने खोज में हार नहीं मानी है।

और यह खोज इतनी पुरानी है कि यह इस देश के लोगों के खून, हड्डियों और मज्जा में समा गई है। हो सकता है कि उन्हें इसका अहसास न हो, लेकिन निश्चित रूप से उनमें एक अलग तरह की भावना है: यह उनकी अपनी नहीं है, यह उनकी विरासत है। वे इसके साथ पैदा हुए हैं।

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

36-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -36

अध्याय का शीर्षक: आप यहाँ केवल उस चमत्कार के लिए हैं

24 सितंबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

पिछले दिनों मैंने एक घटना का वर्णन किया था, और कल आपने अपने तरीके से उत्तर दिया। घटना, सवाल और जवाब, केवल आप और मैं ही जानते हैं। अब मैं समझ सकता हूं कि भगवान बुद्ध और शिष्य महाकाश्यप के बीच क्या हुआ होगा।

प्रिय, सुंदर ओशो, यह भाषा नहीं बल्कि मौन है जिसने पूछा है, जिसने उत्तर दिया है और उत्तर दिया है। शब्द बोले नहीं जाते, लेकिन मैंने सुना है।

भगवान बुद्ध और शिष्य महाकाश्यप के बीच एक फूल था।

आपके और मेरे बीच कुछ और था।

आप जानते हैं और मैं जानता हूं कि यह क्या था - कुछ ऐसा जो आप लाए और दिया, और कुछ ऐसा जो मुझे मिला।

हर किसी ने इसे देखा है, और फिर भी कोई इसे नहीं जानता।

शिष्य महाकाश्यप हंसे और मेरी आंखों से आंसू छलक आए।

मेरे प्यारे, सुंदर प्रभु, मेरा हृदय कृतज्ञता और कृतज्ञता से भरा हुआ आपके सामने झुकता है, और मेरी आँखें खुशी और प्रसन्नता के आँसुओं से भरी हुई हैं। यह घटना बाईस सितंबर, उन्नीस सौ अस्सी को फिर से दोहराई गई है। इसे रिकॉर्ड कर लिया जाए।

ओशो, क्या आप टिप्पणी करना चाहेंगे?

 

गोविंद सिद्धार्थ, महाकाश्यप की हंसी और आपके आंसुओं का अर्थ अलग-अलग नहीं है।

शायद आप महाकाश्यप से भी अधिक गहराई से हँसे होंगे। जब हँसी बहुत अधिक होती है, तो वह केवल आँसुओं के रूप में ही निकल सकती है -- खुशी के आँसू, कृतज्ञता के आँसू, आनंद के आँसू।

हां, मेरे और तुम्हारे बीच कुछ हुआ है।

मंगलवार, 26 नवंबर 2024

35-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -35

अध्याय शीर्षक: भगवान रजनीश, बुद्ध भगवान मैत्रेय

23 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

क्या यह एक प्रश्न है, एक अनुभूति है, या एक घोषणा है?

कुछ परे मुझे इसे कागज पर लिखने के लिए मजबूर कर रहा है; हालांकि मैं इसे लिख रहा हूं, लेकिन शब्द मेरे नहीं हैं।

आधी रात के बाद का समय है, भारतीय माह की पूर्णिमा की रात के लगभग पाँच बजे हैं, जिसे "भद्रा गुरुवार" के नाम से जाना जाता है, जो भारतीय भाषा में गुरुवर मास्टर का दिन है।

मैं विपश्यना ध्यान में हूँ। जैसे ही मेरी आँखें खुलती हैं, एक चमकदार रोशनी कमरे को रोशन कर देती है। मैं अपनी आँखें खुली नहीं रख सकता, क्योंकि रोशनी बहुत ज़्यादा चमकदार है। कुछ मिनटों के बाद, मैं अपनी आँखें खोलता हूँ और मैं पूरी तरह से जागरूक हो जाता हूँ।

मेरे सामने दो आकृतियां खड़ी हैं: एक है प्रिय भगवान, जो हाथ जोड़े हुए हैं और सौम्य, सुंदर मुस्कान लिए हुए हैं; और दूसरी है ज्ञान मुद्रा में गौतम बुद्ध। यह बुद्ध का तीसरा शरीर है।

सोमवार, 25 नवंबर 2024

34-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad


अध्याय -34

अध्याय का शीर्षक: न होना, सबसे बड़ा परमानंद

22 सितंबर 1986 अपराह्न

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

मैंने आपको कई वर्षों से प्रवचन में देखा है, और समय बीतने के साथ-साथ आप अधिक खालीपन से भरे हुए प्रतीत होते हैं। मैं जानता हूं इसका कोई मतलब नहीं है, लेकिन क्या यह संभव है कि आप अधिक खाली हैं?

 

शुन्यो, यह बिल्कुल आपके नाम का अर्थ है।

शून्यो का अर्थ है ख़ालीपन, एक विशेष अर्थ के साथ। अंग्रेजी शब्द 'एम्प्टीनेस' का वह अर्थ नहीं है। अंग्रेजी शब्द का नकारात्मक अर्थ है: इसका सीधा सा अर्थ है किसी चीज का खाली होना।

शून्यो, जो संस्कृत में 'शून्यता' का पर्याय है, का दोहरा अर्थ है: इसका अर्थ है किसी चीज़ से खाली होना और किसी चीज़ से भरा होना।

उदाहरण के लिए, यह कमरा लोगों से भरा हुआ है। जब आप सभी चले जाते हैं, तो यह कहा जा सकता है, "यह कमरा अब खाली है" - यह एक नकारात्मक अर्थ है। यह भी कहा जा सकता है कि "अब कमरे में जगह ज़्यादा है।" लोग जगह ले रहे थे; अब वे चले गए हैं, कमरा बड़ा हो गया है। जब लोग यहाँ थे, तो खालीपन कम था। अब जब लोग चले गए हैं, तो खालीपन ज़्यादा है।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

33-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -33

अध्याय का शीर्षक: बाज़ार में ध्यान, बाज़ार में ध्यान नहीं

21 सितम्बर 1986 अपराह्न

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

दूदा (WADUDA) और मैं "बाजार में ध्यान" नामक एक समूह का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसमें लोगों को यह सिखाया जाता है कि उनका मन किस तरह से उनकी वास्तविकता का निर्माण करता है। अभ्यासों में से एक लोगों को उनकी इच्छाओं को पूरा करने के तरीके दिखाना है।

क्या लोगों को यह बताना कि वे अपनी इच्छाओं को कैसे पूरा करें, उन्हें ध्यान की स्थिति में ले जाता है, या उन्हें उससे और दूर ले जाता है?

 

वदूद, बाज़ार में ध्यान करना मेरा पूरा संदेश है, लेकिन जिस अर्थ में आपने इसे समझा है वह सही नहीं है।

सबसे पहले, ध्यान कोई मन के भीतर की चीज़ नहीं है।

संसार मन के भीतर है। ध्यान मन से परे है.

मन संसार का निर्माण करता है, लेकिन मन ध्यान का निर्माण नहीं कर सकता। मन निराशा, संतुष्टि, खुशी, दर्द, चिंता, पीड़ा या पशु-प्रकार की संतुष्टि, भैंस संतुष्टि पैदा कर सकता है - लेकिन भैंस ध्यान में नहीं है।

गुरुवार, 21 नवंबर 2024

भगवान रजनीश, बुद्ध भगवान मैत्रेय-का शरीर ओशो में प्रवेश -कथा यात्रा

अध्याय शीर्षक: भगवान रजनीश, बुद्ध भगवान मैत्रेय

23 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

क्या यह एक प्रश्न है, एक अनुभूति है, या एक घोषणा है?

कुछ परे मुझे इसे कागज पर लिखने के लिए मजबूर कर रहा है; हालांकि मैं इसे लिख रहा हूं, लेकिन शब्द मेरे नहीं हैं।

आधी रात के बाद का समय है, भारतीय माह की पूर्णिमा की रात के लगभग पाँच बजे हैं, जिसे "भद्रा गुरुवार" के नाम से जाना जाता है, जो भारतीय भाषा में गुरुवर मास्टर का दिन है।

मैं विपश्यना ध्यान में हूँ। जैसे ही मेरी आँखें खुलती हैं, एक चमकदार रोशनी कमरे को रोशन कर देती है। मैं अपनी आँखें खुली नहीं रख सकता, क्योंकि रोशनी बहुत ज़्यादा चमकदार है। कुछ मिनटों के बाद, मैं अपनी आँखें खोलता हूँ और मैं पूरी तरह से जागरूक हो जाता हूँ।