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सोमवार, 9 सितंबर 2024

लिंग भेद और मानव शरीर-(गहरी चर्चा) -मनसा-मोहनी

 लिंग भेद और मानव शरीर-

अध्यात्मिक जगत और लिंगिये भेद-शायद आप को ये जानकर अति विषमय होगा, परंतु अध्यात्मिक जगत रहस्यों के साथ एक वैज्ञानिक भी है। खास कर हिंदु धर्म। हम चक्र और उसके रंग, सूर, ताल और उस चक्र की परिणति स्त्री है या पुरूष की इस पर बहुत बात कर चुके है परंतु चक्र और उसके लिंग के भेद की कम ही बात करते है। क्योंकि यह अति गूढ़ रहस्य है। जिसे हर व्यक्ति को जानना जरूरी नहीं है। इस लिए इसे गूढ़ रहस्य कहा जाता है। जो कोई व्यक्ति जब अध्यात्म जगत में प्रवेश करता है वह इस जाने तो सही है या उसे ही केवल इसे जानना चाहिए। क्योंकि संसार में इस लिंग भेद के कारण कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

पहला शरीर और लिंग विभाजन-

अगर हम गहरे से जाने तो मानव शरीर के हम तीन विभाजन कर सकते है। पहला विभाजन एक लिंगिये कहेंगे- पहले एक लिंगिये शरीर का पहला प्रकार हम देखते है तो वह बाहर भी आसानी से दिखाई देता है।  जिस शरीर के पास एक ही लिंग होता है, यानि एक ही लिंग शरीर चाहे वह पुरूष को हो या स्त्री का, वह पुरूष या स्त्री में से कोई भी हो सकता है। जिसे हम हिजड़ा या किन्नर के नाम से जानते है। अब ये कैसे और क्यों यह प्रकृति का एक गहरा विभाजन है। ऐसा शरीर मानव चेतना के विकार से मिला या प्रकृति की कोई भूल है। परंतु हम इस पर बाद में बात कर सकते है। अब इस तरह का शरीर जो एक लिंगिये होता है। वह न समाज के, न प्रकृति के, न ही अध्यात्म के जगत में प्रवेश कर सकता है।

शनिवार, 7 सितंबर 2024

08 - हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय - 08

अध्याय का शीर्षक: बुद्धि का मार्ग –(The Path of Intelligence)

दिनांक -18 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

पहला प्रश्न:

प्रश्न -01

प्रिय ओशो, क्या बुद्धि आत्मज्ञान का द्वार हो सकती है, अथवा आत्मज्ञान केवल समर्पण से ही प्राप्त होता है?

 

आत्मज्ञान हमेशा समर्पण से होता है, लेकिन समर्पण बुद्धि के माध्यम से प्राप्त होता है। केवल मूर्ख ही समर्पण नहीं कर सकते। समर्पण करने के लिए आपको महान बुद्धि की आवश्यकता होती है। समर्पण के बिंदु को देखना ही अंतर्दृष्टि का चरम है; यह देखना कि आप अस्तित्व से अलग नहीं हैं, वह सर्वोच्च है जो बुद्धि आपको दे सकती है।

बुद्धि और समर्पण के बीच कोई संघर्ष नहीं है। समर्पण बुद्धि के माध्यम से होता है, हालाँकि जब आप समर्पण करते हैं तो बुद्धि भी समर्पण हो जाती है। समर्पण के माध्यम से बुद्धि आत्महत्या करती है। खुद की व्यर्थता को देखते हुए, खुद की बेतुकियता को देखते हुए, इससे पैदा होने वाली पीड़ा को देखते हुए, यह गायब हो जाती है। लेकिन यह बुद्धि के माध्यम से होता है। और विशेष रूप से बुद्ध के संबंध में, मार्ग बुद्धि का है। बुद्ध शब्द का अर्थ ही जागृत बुद्धि है।

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

07 - हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय - 07

अध्याय का शीर्षक: पूर्ण शून्यता – (Full Emptiness)

दिनांक -17 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

  

सूत्र:   

अतः हे सारिपुत्र!

अपनी अप्राप्ति के कारण ही बोधिसत्व,

बुद्धि की पूर्णता पर भरोसा करके,

बिना विचार-आवरण के रहता है।

विचार-आवरण के अभाव में

वह कांपने के लिए नहीं बनाया गया है,

उसने उस पर विजय पा ली है जो परेशान कर सकती है,

और अंत में वह निर्वाण को प्राप्त करता है।

वे सभी जो बुद्ध के रूप में प्रकट होते हैं

समय की तीन अवधियों में

परम, सही और पूर्ण ज्ञानोदय के लिए पूरी तरह से जागृत

क्योंकि उन्होंने बुद्धि की पूर्णता पर भरोसा किया है।

 

ध्यान क्या है? -- क्योंकि यह पूरा हृदय सूत्र ध्यान के अंतरतम केंद्र के बारे में है। आइये हम इस पर विचार करें।

पहली बात: ध्यान एकाग्रता नहीं है। एकाग्रता में एक व्यक्ति एकाग्र होता है और एक वस्तु जिस पर एकाग्र होता है। द्वैत होता है। ध्यान में न तो कोई अंदर होता है और न ही कोई बाहर। यह एकाग्रता नहीं है। भीतर और बाहर के बीच कोई विभाजन नहीं है। भीतर बाहर में बहता रहता है, बाहर भीतर में बहता रहता है। सीमांकन, सीमा, सरहद, अब मौजूद नहीं है। भीतर बाहर है, बाहर भीतर है; यह एक अद्वैत चेतना है।

रविवार, 1 सितंबर 2024

06 - हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय - 06

अध्याय का शीर्षक: बहुत समझदार मत बनो – (Don't Be Too Sane)

दिनांक -16 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

प्रश्न - 01

प्रिय भगवान, अहंकार के निर्माण के पूर्व बच्चे की शून्यता और बुद्ध की जागृत बाल सुलभता में क्या अंतर है?

 

समानता है और अंतर भी है। मूलतः बच्चा बुद्ध है, लेकिन उसका बुद्धत्व, उसकी मासूमियत, स्वाभाविक है, अर्जित नहीं। उसकी मासूमियत एक तरह की अज्ञानता है, कोई अहसास नहीं। उसकी मासूमियत अचेतन है - उसे इसका अहसास नहीं है, उसे इसका ध्यान नहीं है, उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है। यह मौजूद है, लेकिन वह बेखबर है। वह इसे खोने जा रहा है। उसे इसे खोना ही है। स्वर्ग देर-सवेर खो जाएगा; वह इसकी ओर बढ़ रहा है। हर बच्चे को सभी तरह के भ्रष्टाचार, अशुद्धता - दुनिया से गुजरना पड़ता है।

बच्चे की मासूमियत आदम की मासूमियत है, जब उसे ईडन के बगीचे से निकाला नहीं गया था, जब उसने ज्ञान का फल चखा नहीं था, जब वह सचेत नहीं हुआ था। यह जानवर जैसी है। किसी भी जानवर की आँखों में देखो - गाय, कुत्ते - और वहाँ पवित्रता है, वही पवित्रता जो बुद्ध की आँखों में है, लेकिन एक अंतर के साथ।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

अहंकार के सात द्वार-(मनसा मोहनी)

अहंकार के सात द्वार-(मनसा मोहनी)


कुछ दिन पहले हम सात द्वारों के बारे में बात कर रहे थे – कि हम अहंकार को कैसे पोषित करते है। अहंकार कैसे बनता है, अहंकार का भ्रम कैसे मजबूत होता है। इसके बारे में कुछ बातें गहराई से जानना हम सब के लिए मददगार होगा। जिस प्रकार हमारे शरीर में सात चक्र है, तो प्रत्येक चक्र का एक सूर है एक ताल है, लय है। इसी प्रकार हर चक्र का एक रंग है। ठीक इसी प्रकार हर चक्र को एक अहंकार भी है। ये सून कर आप को थोड़ा अजीब जरूर लगेगा।

तो अब एक-एक द्वार से हम अहंकार को समझने की कोशिश करते है। अहंकार से डरना नहीं चाहिए। लेकिन जिस तरह से एक तलवार आप की रक्षा कर सकती है। वह आपकी गर्दन भी काट सकती है। हर उर्जा के दो रूप होते है। इस गहरे से समझना होगा।

शनिवार, 3 अगस्त 2024

05 - हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय - 05

अध्याय का शीर्षक: शून्यता की सुगंध - (The Fragrance of Nothingness)

दिनांक -15 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

सूत्र:

अतः हे सारिपुत्र!

शून्यता में कोई आकार नहीं है,

न भावना, न बोध,

न आवेग, न चेतना;

कोई आँख, कान, नाक, जीभ, शरीर, मन नहीं;

कोई रूप, ध्वनि, गंध, स्वाद, स्पर्शनीय वस्तु नहीं

या मन की वस्तुएं;

कोई दृष्टि-अंग तत्व, इत्यादि नहीं,

जब तक हम इस स्थिति तक नहीं पहुंचते:

कोई मन-चेतना तत्व नहीं;

अज्ञान नहीं है, अज्ञान का नाश नहीं है,

और इसी प्रकार आगे बढ़ते हुए,

जब तक हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाते:

वहाँ कोई क्षय और मृत्यु नहीं है,

क्षय एवं मृत्यु का कोई अन्त नहीं।

वहाँ कोई दुःख नहीं, कोई उत्पत्ति नहीं,

ना कोई रोक, ना कोई रास्ता।

न कोई अनुभूति है, न कोई उपलब्धि

और कोई अप्राप्ति नहीं।

 

शून्यता परे की सुगंध है। यह पारलौकिक के लिए हृदय का खुलना है। यह एक हजार पंखुड़ियों वाले कमल का खिलना है। यह मनुष्य की नियति है। मनुष्य तभी पूर्ण होता है जब वह इस सुगंध तक पहुँच जाता है, जब वह अपने अस्तित्व के भीतर इस परम शून्यता तक पहुँच जाता है, जब यह शून्यता उसके चारों ओर फैल जाती है, जब वह बस एक शुद्ध आकाश होता है, बादल रहित।

गुरुवार, 1 अगस्त 2024

28-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -28

अध्याय का शीर्षक: (यदि आप तैरते हैं, तो आप चूक जाते हैं)

दिनांक15 सितम्बर 1986 अपराह्न

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

अहंकार को समर्पित करने के लिए हम अपनी ओर से क्या कर सकते हैं, जबकि समर्पित करने की यह इच्छा ही हमारा अभिन्न अंग है?

 

लतीफा, अहंकार एक पहेली है। यह अंधकार जैसा कुछ है - जिसे आप देख सकते हैं, जिसे आप महसूस कर सकते हैं, जो आपके रास्ते में बाधा डाल सकता है लेकिन जिसका अस्तित्व नहीं है। इसमें कोई सकारात्मकता नहीं है। यह बस एक अनुपस्थिति है, प्रकाश की अनुपस्थिति।

अहंकार तो अस्तित्व में ही नहीं है - आप उसे कैसे समर्पित कर सकते हैं?

अहंकार केवल जागरूकता का अभाव है।

कमरा अंधकार से भरा है; आप चाहते हैं कि अंधकार कमरे से बाहर निकल जाए। आप अपनी शक्ति के अनुसार सब कुछ कर सकते हैं -- इसे बाहर धकेलें, इसे हराएँ -- लेकिन आप सफल नहीं होने वाले हैं। अजीब बात यह है कि आप किसी ऐसी चीज़ से हार जाएँगे जो मौजूद ही नहीं है। थककर आपका मन कहेगा कि अंधकार इतना शक्तिशाली है कि इसे दूर करना, इसे बाहर निकालना आपकी क्षमता में नहीं है। लेकिन यह निष्कर्ष सही नहीं है; यह जर्मन है, लेकिन यह सही नहीं है।

बुधवार, 31 जुलाई 2024

04- हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र – (The Heart Sutra)
का हिंदी अनुवाद


अध्याय - 04

अध्याय का शीर्षक: समझ: एकमात्र नियम-( The Only Law)

दिनांक -14 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

पहला - 01

प्रिय ओशो, मैं ऐसे परिवार से आता हूँ जहाँ मातृपक्ष से चार आत्महत्याएँ हुई हैं, जिनमें मेरी दादी भी शामिल हैं। इसका किसी की मृत्यु पर क्या प्रभाव पड़ता है? मृत्यु की इस विकृति पर काबू पाने में क्या मदद करता है जो पूरे परिवार में एक विषय के रूप में चलती है?

 

मृत्यु की घटना सबसे रहस्यमयी घटनाओं में से एक है और आत्महत्या की घटना भी। सतही तौर पर यह तय न करें कि आत्महत्या क्या है। यह कई चीजें हो सकती हैं। मेरी अपनी समझ यह है कि आत्महत्या करने वाले लोग दुनिया के सबसे संवेदनशील लोग होते हैं, बहुत बुद्धिमान। अपनी संवेदनशीलता के कारण, अपनी बुद्धिमत्ता के कारण, उन्हें इस विक्षिप्त दुनिया से निपटना मुश्किल लगता है।

समाज विक्षिप्त है। यह विक्षिप्त नींव पर ही अस्तित्व में है। इसका पूरा इतिहास पागलपन, हिंसा, युद्ध, विनाश का इतिहास है। कोई कहता है, "मेरा देश दुनिया का सबसे महान देश है" - अब यह विक्षिप्तता है। कोई कहता है, "मेरा धर्म दुनिया का सबसे महान और सर्वोच्च धर्म है" - अब यह विक्षिप्तता है। और यह विक्षिप्तता रक्त और हड्डियों तक पहुँच गई है, और लोग बहुत, बहुत सुस्त, असंवेदनशील हो गए हैं। उन्हें ऐसा होना ही था, अन्यथा जीवन असंभव हो जाता।

मंगलवार, 30 जुलाई 2024

27-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -28

अध्याय का शीर्षक: (यदि आप तैरते हैं, तो आप चूक जाते हैं)

दिनांक15 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

अहंकार को समर्पित करने के लिए हम अपनी ओर से क्या कर सकते हैं, जबकि समर्पित करने की यह इच्छा ही हमारा अभिन्न अंग है?

 

लतीफा, अहंकार एक पहेली है। यह अंधकार जैसा कुछ है - जिसे आप देख सकते हैं, जिसे आप महसूस कर सकते हैं, जो आपके रास्ते में बाधा डाल सकता है लेकिन जिसका अस्तित्व नहीं है। इसमें कोई सकारात्मकता नहीं है। यह बस एक अनुपस्थिति है, प्रकाश की अनुपस्थिति।

अहंकार तो अस्तित्व में ही नहीं है - आप उसे कैसे समर्पित कर सकते हैं?

अहंकार केवल जागरूकता का अभाव है।

कमरा अंधकार से भरा है; आप चाहते हैं कि अंधकार कमरे से बाहर निकल जाए। आप अपनी शक्ति के अनुसार सब कुछ कर सकते हैं -- इसे बाहर धकेलें, इसे हराएँ -- लेकिन आप सफल नहीं होने वाले हैं। अजीब बात यह है कि आप किसी ऐसी चीज़ से हार जाएँगे जो मौजूद ही नहीं है।

सोमवार, 29 जुलाई 2024

03- हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय - 03

अध्याय का शीर्षक: ज्ञान का निषेध - (Negation of Knowledge)

दिनांक-13 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

सूत्र:    

यहाँ, हे सारिपुत्र, रूप शून्यता है

और शून्यता ही रूप है;

शून्यता रूप से भिन्न नहीं है,

रूप शून्यता से भिन्न नहीं है;

जो कुछ भी रूप है, वह शून्यता है,

जो कुछ शून्यता है, वह रूप है;

यही बात भावनाओं के बारे में भी सत्य है,

धारणाएं, आवेग और चेतना।

हे सारिपुत्र!

सभी धर्म शून्यता से चिह्नित हैं;

उनका उत्पादन या रोक नहीं होती,

अपवित्र या बेदाग नहीं,

अपूर्ण या पूर्ण नहीं।

 

ज्ञान अभिशाप है, विपत्ति है, कैंसर है। ज्ञान के माध्यम से ही मनुष्य समग्रता से विभाजित हो जाता है। ज्ञान ही दूरी पैदा करता है।

आप पहाड़ों में एक जंगली फूल को देखते हैं, आप नहीं जानते कि यह क्या है, आपके मन के पास इसके बारे में कहने के लिए कुछ नहीं है, मन चुप है। आप फूल को देखते हैं, आप फूल को देखते हैं, लेकिन आपके अंदर कोई ज्ञान नहीं उठता - वहाँ आश्चर्य है, रहस्य है। फूल वहाँ है, आप वहाँ हैं। आश्चर्य के माध्यम से आप अलग नहीं हैं, आप सेतु बन जाते हैं।

रविवार, 28 जुलाई 2024

होना और न होना -(भाग- 02) - मनसा-मोहनी दसघरा

 मार्ग की अनुभूतियां-भाग-2

(होना और न होना)

न होने का स्वाद जब कोई मनुष्य जानता है तो शायद उससे बढ़ कर कोई अनुभूति नहीं होती है। इसे प्रत्येक मनुष्य ने कई भिन्न-भिन्न आयामों में एक झलक के रूप में जरूर जाना होता है। खास कर प्रेम में, तो प्रत्येक ने इसकी झलका पाई होती है। इसी सब के कारण से अध्यात्म का जन्म होता है। कि इस न होने को कैसे अधिक लम्बा किया जाये। प्रेम के जिस क्षण के हजारवें हिस्से में मनुष्य इस जानता है उसे शब्दों में व्यक्ति नहीं किया जा सकता है। परंतु वहां न विचार होते है न ही विचार करने वाला। योगियों ने इस सब के अनुभव को स्थाई बनाने के लिए ध्यान की विधियों की खोज की। आज तो मनुष्य, खेल से, खतरे से, विस्मय से, रोमांच से, गति से, उंचाई से...भिन्न-भिन्न तरह से जानना चाहता है। और जानता भी है। परंतु जब  मैं कोई खेल या क्रिकेट खेलता था तब पहली बार मैंने इस न होने के आनंद को जाना था।  की इस न होना का सुस्वाद क्या होता है। जब तेज गति की बोल बैट के मिड़ल में लग कर चार-छ: रन के लिए जाती थी कुछ क्षण के लिए विचार बंद हो जाते थे। कितना आनंद आता था। शायद सभी खेलने वाले इस आनंद को अलग-अलग तरह से अनुभव करते है। परंतु क्यों शायद वह नहीं जानते की कैसे ये प्राप्त हुआ। वो इस केवल खेल का माध्यम ही जानते है।

शनिवार, 27 जुलाई 2024

27-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

 ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -27

अध्याय का शीर्षक: (आपको लगता है कि यह एक प्रवचन है। यह सिर्फ एक उपकरण है)

दिनांक 14 सितंबर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो,

क्या यह सच है कि गुरु जो कुछ भी कहता या करता है वह केवल शिष्य को बदलने का एक उपकरण है?

 

नरेंद्र, परम सत्य को इंगित करना, समझाना दुनिया की सबसे असंभव चीजों में से एक है।

अनुभव शब्दों से परे है और कठिनाई यह है कि हमारे पास संवाद करने के लिए और कुछ नहीं है; शब्द हमारे संचार का एकमात्र साधन हैं।

लेकिन परम को कहना होगा, उसकी ओर इंगित करना होगा; यह स्वयं अनुभव की एक आंतरिक आवश्यकता है। जिस क्षण आप इसे जानते हैं, उसी क्षण इसे साझा करने की तीव्र इच्छा भी उत्पन्न होती है; उन्हें अलग नहीं किया जा सकता.

एक छोटी सी कहानी मदद करेगी।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

02- हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र – (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -02

अध्याय का शीर्षक: समर्पण ही समझ है-( Surrender is Understanding)

दिनांक-12 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

प्रश्न -01

प्रिय ओशो, कभी-कभी जब मैं बैठा रहता हूँ, तो मन में यह प्रश्न उठता है: सत्य क्या है? लेकिन जब तक मैं यहाँ आता हूँ, मुझे एहसास होता है कि मैं पूछने में सक्षम नहीं हूँ। लेकिन मैं पूछ सकता हूँ कि उन क्षणों में क्या होता है जब प्रश्न इतनी प्रबलता से उठता है कि यदि आप आस-पास होते तो मैं पूछ लेता। या यदि आपने उत्तर नहीं दिया होता, तो मैं आपकी दाढ़ी या कॉलर पकड़ लेता और पूछता, "सत्य क्या है, ओशो?"

 

यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है जो किसी के भी मन में उठ सकता है, लेकिन इसका कोई उत्तर नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न, परम प्रश्न, का कोई उत्तर नहीं हो सकता; इसीलिए यह परम है।

जब पोंटियस पाईलेट ने यीशु से पूछा, "सत्य क्या है?" तो यीशु चुप रहे। इतना ही नहीं, कहानी कहती है कि जब पोंटियस पाईलेट ने पूछा, "सत्य क्या है?" तो उन्होंने जवाब सुनने के लिए इंतजार नहीं किया। वह कमरे से बाहर चले गए। यह बहुत अजीब है। पोंटियस पाईलेट भी सोचता है कि इसका कोई जवाब नहीं हो सकता, इसलिए उसने जवाब का इंतजार नहीं किया। यीशु चुप रहे क्योंकि वह भी जानते हैं कि इसका जवाब नहीं दिया जा सकता।

होना और न होना -(भाग-01) - मनसा-मोहनी दसघरा

मार्ग की अनुभूति-मनसा-मोहनी

(होना और न होना) -भाग-01

अध्यात्म जगत का अगर सरल और सिधा विभाजन करें तो होना-या-न होना सबसे आसान विभाजन है। संसार में हम केवल होने के लिए आये है। हमें कुछ करना है, होना है, नाम रोशन करना है। कुछ बन के दिखाना है। यही संसार का नियम है और यहीं जीवन है।

दूसरा संन्यास का मार्ग न कुछ होगा। यानि अपने अहं को मिटाना। न कुछ होना।

"कुछ भी नहीं होने से क्या प्रभाव पड़ता है?" जब हम इस मार्ग में प्रवेश करते है तो , "यह भय पैदा करता है।"

जीवन भी कैसा है और क्यों है इसे समझना कितना कठिन है। न होने की ये प्रक्रिया प्रत्येक के जीवन में प्रवेश नहीं करती। क्योंकि इसके लिए या तो आप को प्रेम में डूबना होगा या फिर ध्यान में वह कम ही लोग इस मार्ग पर चलते है। सौभाग्य से हमारे जीवन में न कुछ होने की प्रक्रिया तब से ही शुरू हो गई थी जब है दोनों मिले थे। यानि मैं और मोहनी प्रेम में उतरे थे।  मेरा और मोहनी का मिलना केवल प्रकृति की ही देन था। न वह जानती थी और न ही मैं जानता था की हम क्यों मिले है। और कल क्या होगा। बस हम दोनों ने अपने को प्रकृति के हाथों छोड़ दिया। जो भी मन की सारी चालबाजी या खेल को अपने तक नहीं आने दिया था। यही से जीवन एक रहस्य की और अग्रसर हो गया। क्योंकि प्रेम का मार्ग इतना सीधा नहीं होता। वह आपको अंधेरी अंजान कंदराओं की और ले जायेगा। जो अपने न देखी होंगी और न सूनी होगी। यानि एक अंजान डगर। केवल साथ तो एक दूसरे का प्रेम।  

बुधवार, 24 जुलाई 2024

26-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -26

अध्याय का शीर्षक: गुरु - आपकी मृत्यु और आपका पुनरुत्थान

दिनांक 13 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न - 01

प्रिय ओशो,

जितने ज़्यादा साल मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, उतना ही कम जान पाऊँगा कि मैं कौन हूँ। क्या मैं तुम्हें मिस कर रहा हूँ?

 

तुरीय, मुझे पाने का यही मार्ग है, और स्वयं को पाने का भी यही मार्ग है।

आप कुछ भी नहीं खो रहे हैं, लेकिन मन बार-बार प्रश्न उठाएगा, क्योंकि मन को सूचना की आवश्यकता होती है - अधिक सूचना का अर्थ है कि आप उसे प्राप्त कर रहे हैं, आप अधिक ज्ञानवान बन रहे हैं।

यहां हम जानकारी से बिल्कुल भी सरोकार नहीं रखते। मेरा काम परिवर्तन है।

आपके पास जितनी कम जानकारी होगी उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि आप उतने ही मासूम होंगे। जिस क्षण आप कह सकते हैं, "मैं कुछ नहीं जानता" आप बहुत करीब आ गए हैं। याद रखें, मैं कह रहा हूं कि आप बहुत करीब आ गए हैं; आपको अभी भी यह नहीं मिला है- क्योंकि "मैं कुछ नहीं जानता" कहने का मतलब है कि कम से कम आप इतना तो जानते हैं कि आप कुछ नहीं जानते; अभी भी कुछ जानकारी है।

01- हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का  हिंदी  अनुवाद

गौतम बुद्ध के प्रज्ञापारमिता हृदयम सूत्र पर वार्ता-(Talks on Prajnaparamita Hridayam Sutra of Gautama the Buddha)

11/10/77 प्रातः से 20/10/77 प्रातः तक दिए गए भाषण

अंग्रेजी प्रवचन श्रृंखला

अध्याय-10

प्रकाशन वर्ष: 1978

 

हृदय सूत्र-(The Heart Sutra) का  हिंदी  अनुवाद

अध्याय -01

अध्याय का शीर्षक: भीतर का बुद्ध-( The Buddha Within)

दिनांक -11 अक्टूबर 1977 प्रातः बुद्ध हॉल में

 

सूत्र:

ज्ञान की पूर्णता को नमन,

सुन्दर, पवित्र!

अवलोकिता, पवित्र भगवान और बोधिसत्व,

बुद्धि के गहरे मार्ग पर आगे बढ़ रहा था

जो आगे बढ़ चुका है।

उसने ऊपर से नीचे देखा,

उसने केवल पाँच ढेर देखे,

और उसने यह उनके अपने अस्तित्व में देखा

वे खाली थे!

मैं आपके भीतर के बुद्ध को सलाम करता हूँ। शायद आपको इसका अहसास न हो, शायद आपने कभी इसके बारे में सपना भी न देखा हो -- कि आप एक बुद्ध हैं, कि कोई भी व्यक्ति कुछ और नहीं हो सकता, कि बुद्धत्व आपके अस्तित्व का सबसे ज़रूरी केंद्र है, कि यह भविष्य में होने वाली कोई चीज़ नहीं है, कि यह पहले ही हो चुका है। यह वही स्रोत है जहाँ से आप आते हैं; यह स्रोत है और लक्ष्य भी। हम बुद्धत्व से ही आगे बढ़ते हैं, और हम बुद्धत्व की ओर ही बढ़ते हैं। इस एक शब्द, बुद्धत्व में सब कुछ समाहित है -- जीवन का पूरा चक्र, अल्फा से ओमेगा तक।

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का हिंदी अनुवाद ओशो

 हृदय सूत्र- (The Heart Sutra) का  हिंदी  अनुवाद ओशों

 11/10/77 प्रातः से 20/10/77 प्रातः तक दिए गए भाषण

अंग्रेजी प्रवचन श्रृंखला

अध्याय-10

प्रकाशन वर्ष: 1978

सूत्रों में प्रवेश करने से पहले, थोड़ा ढांचा, थोड़ी संरचना समझ लेना उपयोगी होगा।

प्राचीन बौद्ध धर्मग्रंथों में सात मंदिरों की बात की गई है। जैसे सूफी सात घाटियों की बात करते हैं, और हिंदू सात चक्रों की बात करते हैं, वैसे ही बौद्ध भी सात मंदिरों की बात करते हैं।

पहला मंदिर भौतिक है, दूसरा मंदिर मनोदैहिक है, तीसरा मंदिर मनोवैज्ञानिक है, चौथा मंदिर मनोआध्यात्मिक है, पांचवां मंदिर आध्यात्मिक है, छठा मंदिर आध्यात्मिक-पारलौकिक है, और सातवां मंदिर और परम मंदिर - मंदिरों का मंदिर - पारलौकिक है।

सूत्र सातवें से संबंधित हैं। ये किसी ऐसे व्यक्ति की घोषणाएँ हैं जो सातवें मंदिर में, पारलौकिक, परम में प्रवेश कर चुका है। यही संस्कृत शब्द, प्रज्ञापारमिता का अर्थ है - परे का ज्ञान, परे से, परे में; वह ज्ञान जो केवल तभी आता है जब आप सभी प्रकार की पहचानो से परे हो जाते हैं - निम्न या उच्च, इस सांसारिक या उस सांसारिक; जब आप सभी प्रकार की पहचानो से परे हो जाते हैं, जब आप बिल्कुल भी पहचाने नहीं जाते हैं, जब केवल जागरूकता की एक शुद्ध लौ बची होती है जिसके चारों ओर कोई धुआं नहीं होता है। इसीलिए बौद्ध इस छोटी सी पुस्तक की पूजा करते हैं, यह बहुत, बहुत छोटी सी पुस्तक; और उन्होंने इसे हृदय सूत्र कहा है - धर्म का हृदय, उसका मूल।

25-ओशो उपनिषद-(The Osho Upnishad) का हिंदी अनुवाद

ओशो उपनिषद- The Osho Upanishad

अध्याय -25

अध्याय का शीर्षक: सुनने से हृदय निर्णय लेता है

दिनांक 12 सितम्बर 1986 अपराह्न

 

प्रश्न - 01

प्रिय ओशो,

मैं आपकी बात क्यों नहीं सुन पा रहा हूँ? क्या मैं बहरा हूँ?

 

तुम बहरे नहीं हो। और तुम भी मुझे सुनते हो, लेकिन तुम सुन नहीं रहे हो। और तुम सुनने और सुनने के बीच का अंतर नहीं जानते।

जिसके पास कान हैं, वह सुन सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वह सुन भी पाएगा। सुनने के लिए कान से ज्यादा कुछ जरूरी है: एक खास तरह की शांति, एक स्थिरता, एक सुकून - कानों के पीछे दिल खड़ा हो, दिमाग नहीं।

यह मन ही है जो तुम्हें लगभग बहरा बना देता है, यद्यपि तुम बहरे नहीं हो - क्योंकि मन निरंतर बकबक करता रहता है, वह बकबक करने वाला है।