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बुधवार, 30 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-05)

 मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)


(ध्‍यान का दूसरा चरण रोना )

पूना आवास-(भाग-05)

हंसी का पहला सप्ताह जिस सहजता से गुजरा। उस से मन की  जो चालबाजी थी, वह कमजोर पड़ गई। हंसी का वो झरना अब भी अंदर सहज बह रहा था। मानो अंदर सब तरल हो गया। सच ये सात दिन पल में ही गुजर गये। मानो समय की गति अपने अलग आयाम में चली गई। ये सब लिख रहा हूं परंतु जो घटा था उसके लिए शब्‍द बहुत ही छोटे और पराये-पराये लग रहे है। क्‍योंकि इसे मैंने वहीं पूना में बैठ कर लिख लिया था इसलिए वहां की कुछ महक कुछ झलक इन शब्‍दों में बसी रह गई है। वरना तो यहां आते-न आते वो सब काफूर हो गया है। बस अब उस लिखे को टाईप भर कर रहा हूं। फिर भी टूटी फूटी तुतलाती बोली में लिखने की कोशिश कर रहा हूं। उसे ही आप अधिक समझ कर पढ़ना ही नहीं उसमें उतरने की कोशिश करना।

अगला सप्ताह शुरू हुआ रोने का। आज समाधि पर हल्के-नीले-हरे रंग के पिल्लों चादर बिछी थी। आज समाधि सब रंग रूप बदला हुआ बहुत सुंदर और ह्रदय को एक ठहराव दे रहा था। ध्‍यान करने में आपके आस पास का माहोल भी कितना महत्‍वपूर्ण होता है। एक तो समाधि दूसरा ओशो ने जैसे जो कहां था ये लोग उसी तरह से ध्‍यान को कराते हे। अपना कुछ भी उस में विलय या लिप्त नहीं करते। जो पिछले सप्ताह गुजरा था ध्‍यान में वह एक संकल्प एक साहास दे रहा था। कहीं से एक साहस एक शक्‍ति अपने आप आती सी महसूस हो रही थी। की हंस लिए तो रोना शायद इतना कठिन नहीं होगा।

रविवार, 27 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-04)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)


पूना आवास-(भाग-04)

ध्‍यान का समय तीन घंटे था। मन अब भी बार-बार अपना जाल बून रहा था कि देखा मैंने तो पहले ही कहा था की ये तुम से नहीं हो सकेगा। चले थे तीन घंटे हंसने। मन की जहां मृत्‍यु की संभावना होती है वह अपने बचाव के लिए तुरंत कोई नया नाटक शुरू कर देता है। साधक को  हमेशा इस बाता के प्रति सजग रहना चाहिए। जो मन हमारा सहयोगी हो सकता है वहीं हमारा सबसे बड़ी बाधा ही नहीं दुश्मन भी है। मन से  ही मनुष्‍य  कहलाता है और वह अंतिम समय तक अपना प्रभुत्‍व छोड़ना बिलकुल नहीं चाहेगा। 

ध्‍यान में अधिक साधक नहीं थे, और उन  में से भी कुछ  तो  लेट  कर  सो गये। क्‍योंकि हंसना  रोना एक संप्रेषण है ये फैलता है। एक दूसरे को प्रभावित  करता है, एक आदमी  हंस  रहा है या रो रहा है या उदास है तो आप पास भी उसकी तरंगे  प्रभावित कर रही होती थी। परंतु ध्‍यान कराने वाले कॉर्डिनेटर "समन्वयक" या "ताल-मेल बैठाने वाला इस विषय में तटस्थ थे। जब आप ताकत लगा कर ध्‍यान नहीं करना चाहते तो आपके साथ कोई जबरदस्‍ती नहीं है। परंतु कुछ साधक हंसने का पूर्ण प्रयास कर रहे थे। खास कर ध्‍यान कराने वाले तो अपने उपर पूरी ताकत लगा कर ध्‍यान में डूबने  की कोशिश कर रहे थे।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-03)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)
 

पूना आवास-(भाग-03 )

(उपसंहार)

जीवन काल में ओशो से जुड़ने के बाद 35 साल की यात्रा जो की है। उस का अगर निचोड़ निकाला जाये तो आज गुजरे ओशो मिस्‍टिक रोज के 35 दिन बहुत भार पड़ रहे है। जैसे पूरे जीवन के ध्‍यान में जो मक्खन निकल रहा है। ये उसी का नतीजा है। मैं ऐसा बिलकुल नहीं कहा रहा की उन 35 सालों में ध्‍यान में कुछ गति नहीं हुई। वह तो हर पल, हर दिन नया आकाश नया आयाम देती ही आ रही है। परंतु अब कुछ ऐसा मिला है जिस न तो मन समझ पा रहा है और न ही मस्‍तिष्‍क उसकी व्याख्या कर पा रहा है।

ओशो मिस्‍टिक रोज- उर्जा का कमाल है, मानव शरीर का सबसे महत्‍व पूर्ण अंग अगर कुछ है तो वह नाभि है, हम जीवन नाभि से ही प्राप्त करते है। मां के पेट में हम न तो भोजन लेते है, न ही हमारा दिल ही धड़कता है। फिर भी जीवन अपनी गति बनाये रखता है। इस लिए जीवन के बाद भी हम जो भी दबाते है, वह नाभि में ही एक भय के रूप में जमा होता चला जाता है। जिस प्रकार हमें जीवन नाभि देता है उसी प्रकार नाभि ही हमें मृत्‍यु को केन्द्र भी है।

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-02)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना भाग-02

उस रात के समय तो को तो आश्रम में कोई खास ध्‍यान नहीं हो रहा था। केवल पश्‍चात्‍य संगीत और फूहड़ नृत्य जो मुझे अधिक नहीं भाता। सो नहाने के बाद थोड़ा आश्रम में धूम पुरानी यादों में कुछ क्षण जिया। और उसके बाद थोड़ी सी खिचड़ी और दाल खाई और फिर कुछ लिखा फिर प्रवचन लगा कर सो गया। रात को मुझे जल्‍दी सोने की आदत है। क्‍योंकि फिर सुबह जल्‍दी उठना भी होता है। अकसर सुबह तीन बजे मेरी आँख खुल जाती है। उठने के बाद सबसे पहले थोड़ा पानी पिया और उसके बाद केतली में चाय बनाई और फिर बाहर घूमने के लिए निकल पड़ा। जो मेरी घर पर भी दिनचर्या थी। घर पर भी जल्‍दी उठ कर मैं और मोहनी साथ घूमने निकल पड़ते है। इस बार उमर ख्‍याम में ठहरने का मोका मिला था। सच ही उमर ख्‍याम को तो ओशो की चित्र कला की प्रदर्शनी के लिए सजाया व बना रखा था। पूरे गलियारे सीढ़ियों या कमरों में जहां भी नजर जाती थी केवल ओशो की बनी पेंटिंग ही लगी थी। कुछ तो ऐसी थी जो मैं पहली बार देख रहा था। ये अंग्रेज सच चीजों को कलात्मक से बनाने में माहिर है।

उसके बाद आकर नहाया और चोगा पहन कर ओशो की समाधि पर शांत ध्‍यान के लिए चला गया। वहां से जब तक आया, तब तक विजिटिंग सेंटर (स्‍वागत कक्ष)  खुलाने का समय हो गया था। इसलिए मैं कार्ड बनवाने के लिए चला गया। मेरे पास पुराना कार्ड था इस लिए बनने में अधिक देर नहीं लगी और फिर पैसे जमा करने के लिए अंदर जाकर जहां कार्य ध्‍यान के आफिस चला गया। तब वहां जाकर मैंने पैसे जमा करने के लिए बिल निकलवाया। वहां पर एक विदेशी लड़की बैठी थी।

ओशो मिस्टिक रोज़) पूना आवास –(भाग-01)

मधुर यादें-( ओशो मिस्टिक रोज़)




पूना आवास –(भाग-01)

इस बार लम्‍बे अंतराल के बाद पूना जाना का सौभाग्‍य हुआ। पिछली बार पूना 2018 में शायद सितम्बर माह में गया था। उस के बाद कुछ ऐसा घटा की पूना जाने का अवसर आया ही नहीं। ओशो से जुड़ने के बाद ये मेरे जीवन में पहली बार है, जब इतने दिनों तक पूना नहीं जा पाया। वरना तो काम करते हुए भी हर साल पूना तो जाना ही होता था। और अब तो सब कामों से मुक्‍त हूं। फिर भी जीवन में ऐसा अंतराल आना एक अनहोनी जैसा लग रहा है। असल में हमारा मन अपने को बचाने के नये-नये बहाने तलाश लेता है। क्‍योंकि पूना में इस बीच कुछ ऐसा घटा पहले तो करोना काल, फिर स्वीमिंग पूल बेचने वाली बात। जिससे मन बहुत आहत हुआ था। क्‍योंकि मेरा सबसे अच्‍छा ध्‍यान तैरना ही होता था। अब जो वहां पर नहीं था। इसलिए मैंने निर्णय लिया की जब तक तरूण ताल खुल नहीं जाता तब तक पूना नहीं जाऊंगा। परंतु अंदर से एक तड़प थी। इस सब में सहयोग दिया बेटी ने। की पापा आप को पूना जाना ही चाहिए। मैं मम्‍मी के पास हूं। इस बीमारी में आप 6-7 साल से मम्‍मी के पास हो। तो अब आप के लिए तो पूना जाना अति अनिवार्य है। अब मेरे पास इस का कोई उत्‍तर नहीं था। सच कहूं तो मैं खूद ही जाना चाहता था। क्‍योंकि बेटी ने 1999 में मिस्‍टिक रोज किया था। लेकिन हम खूद 35 साल से ओशो से जूड़े रहे फिर भी नहीं कर पाये थे। तब बेटी ने कहां की पापा सब ध्‍यान-ध्‍यान है परंतु मिस्‍टिक रोज कोई ध्‍यान नहीं है। वह अंतस के चित की गहराई में उसकी सफाई करता है। ये ध्‍यान एक प्रकार की थेरेपी है। आप को और मम्‍मी को तो इसे बहुत पहले कर लेना चाहिए था। अब आप की कोई बात नहीं सूनी जायेगी और उसने मार्च माह के लिए मेरी बुकिंग कर दी।

मिस्‍टिक रोज हर माह पूना में 11 तारीख को शुरू होता है। सच मोहनी की बीमारी ने तन मन को बहुत थका दिया था। इतने सालों से बाहर खूले में निकलने का मोका भी नहीं मिला था। जब भी बाहर जाना होता था तो मोहनी के स्‍वास्‍थ के लिए ही बाहर जाना होता था। मन में एक भय और उमंग एक साथ था। पहली बार ऐसा होगा की पूना में पूरा एकांत वास होगा। अंदर रहने का एक अलग ही अनुभव था।

ओशो मंडल ध्‍यान - (OSHO Mandala Meditation)

 OSHO Mandala Meditation-(ओशो मंडल ध्‍यान)

मंडल ध्‍यान और बुढ़ापा-  हां  कुछ सालों पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी जिस में कहां था की बुढ़ापा मनुष्‍य के पैरों से शुरू होता है और उसकी प्रक्रिया सर पर महसूस होती है। यानि की आप के मस्‍तिष्‍क  में उर्जा की गति कम से कम तर होती चली  जाती है।

मंडल ध्‍यान एक चमत्कारी ध्‍यान है। इस खास कर जिनके पैरों में या घूटनों  में दर्द रहता है जो चलने में कठिनाई महसूस करते है उन्‍हें तो जरूर करना चाहिए। मेरी समझ में ये ओशो को सम्पूर्ण  ध्‍यान है। सक्रिय ध्‍यान से शुरू करते  है, ये एक पुरूष उर्जा ध्‍यान है  जो आपकी सेक्‍स उर्जा  को  रूपांतरित करे ने में अति सहयोगी वा मददगार है, दूसरा  कुंडली  ध्‍यान ये  एक स्‍त्रेण ध्‍यान है जो आपकी नाभि  चक्र को अति संवदेनशील करने में आपको भय मुक्‍त करने में सहयोगी होगा। एक ध्‍यान है गोरी शंकर जो तीसरी आंख के लिए अति उत्तम है।