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मंगलवार, 14 अगस्त 2018

उपासना के क्षण-(प्रवचन-08)

आठवां प्रवचन--(जीते-जी मरने की कला)  

प्रश्नः शरीर में कुछ सूक्ष्म शरीर जैसा भी है या नहीं?
एक ही रास्ता है कि जीते-जी शरीर और शरीर की चेतना अलग हो सके। मरने पर तो होती ही है। लेकिन फिर, फिर कोई, फिर कुछ हमारे पास जानने का उपाय नहीं रह जाता। हमारे पास तो एक ही उपाय है कि उसके पीछे केंद्र हैं। और कोई व्यक्ति भावुक...शरीर के बाहर होने को अनुभव कर सके। यह जो अनुभव है, बहुत बार आकस्मिक रूप से हो जाता है, और बहुत लोगों को। सामान्य अनुभव हैं ऐसे ही ये। बहुत असामान्य नहीं हैं। बहुत लोगों को कभी आकस्मिक रूप से हो जाता है--किसी गहरी बीमारी में, कभी कोई गहरी चोट लगने पर, कभी कोई एक्सीडेंट में, कभी कोई बहुत गहरे आघात में, कई बार अनायास यह घटना घट जाती है। प्रयास से भी घट सकती है। और रास्ते भी हैं उस प्रयोग को कर लेने के।
लेकिन इससे इतना ही सिद्ध होता है कि इस शरीर के भीतर ठीक इस शरीर जैसा सूक्ष्म शरीर भी है। इससे आत्मा अभी सिद्ध नहीं होती। जैसे इस शरीर के बाहर निकलने के यह अनुभव की बात है, यह भी जो दूसरा निकल जाता है, यह भी एक शरीर ही है। और ठीक इस शरीर जैसा ही, लेकिन अत्यंत सूक्ष्म कणों से निर्मित--ईथरिक। उस शरीर के बाहर भी निकलने का उपाय है, और तब जो अनुभव होता है वह अशरीरी अनुभव है, वह आत्मा का अनुभव है।

यानी यह शरीर है, इसके भीतर एक और शरीर है, और उस शरीर के भीतर जिसे हम आत्मा कहें, वह है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां-हां, बिलकुल ही। तो यह ईथरिक बाॅडी का अनुभव तो एक्सीडेंटल भी हो जाता है। लेकिन उसके बाहर का अनुभव कभी एक्सीडेंटल नहीं होता है। जो फर्क कर रहा हूं, इसके बाहर निकलने का--तो कभी तो कोई आप कार से गिर पड़े हैं एक्सीडेंट में तो भी हो सकता है। कभी-कभी रात सोने में भी हो जाता है। और कुछ स्वप्न तो निश्चित ही ईथरिक बाॅडी की यात्रा के होते हैं, सब नहीं, कुछ। कुछ स्वप्न तो ईथरिक जर्नी होती है आपकी। बाॅडी बाहर ही चली गई होती है। ये सबके सब आकस्मिक भी हो सकते हैं, या थोड़े से प्रयास से हो सकते हैं। इसमें कोई बड़े प्रयास की भी जरूरत नहीं है।
सिर्फ उन बिंदुओं को जानने की जरूरत है जहां से यह बाॅडी और ईथरिक बाॅडी जुड़ी हुई है। उन्हीं बिंदुओं का नाम चक्र है। इसलिए चक्र इस बाॅडी के हिस्से नहीं हैं। सिर्फ कांटेक्ट फील्ड हैं। इस बाॅडी और उस बाॅडी के बीच जहां कांटेक्ट हो रहा है, उन स्थानों का नाम चक्र है।
न-न, यह जो सेंटर का कांटेक्ट है इस बाॅडी और उस बाॅडी के बीच, उनको ही योग चक्र कहता है। और उन सेंटर्स को जोड़ने वाली जो जिसे फील्ड कहना चाहिए, उस फील्ड को कुंडलिनी कहता है। सामान्य मनुष्य के भीतर ये दोनों बाॅडियां कई स्थानों पर एक-दूसरे को छू रही हैं। यह समझिए कि पांच पाॅइंट पर ये दोनों बाॅडी छू रही हैं। ये जो पाॅइंट हैं, ये कहीं शरीर को काटने से पता नहीं चल सकते हैं। क्योंकि सिर्फ कांटेक्ट फील्डस हैं। कोई चीज नहीं है वहां।

प्रश्नः जस्ट ए फील्ड आॅफ मैग्नेटिक।

फील्ड आॅफ कांटेक्ट दोनों के बीच का। इसीलिए कोई शरीर को काटने से वह चक्रों का कोई पता नहीं चलता है कि वे कहां हैं--वह चल भी नहीं सकता।
ये जो चार या पांच या सात जो कांटेक्ट फील्ड हैं, ये सब अगर आपस में जुड़ जाएं, यानी इनको जोड़ने वाली जो मैग्नेटिक फोर्स है, वह आपस में भी जुड़ जाए, तो कुंडलिनी का अनुभव हो जाता है। कुंडलिनी के अनुभव का कुल मतलब यह है, कि यह जो अलग-अलग कांटेक्ट हो रहा है, इनके कांटेक्ट होती जगह में जो शक्ति इकट्ठी हो गई है, पांचों में, सातों में, वह अगर जुड़ जाए, और उसके जोड़ने के मेथड्स हैं। और इन पांचों के कांटेक्ट को या सातों के कांटेक्ट को अलग करने के उपाय भी हैं। तो इन उपायों के द्वारा बहुत आसानी से दोनों शरीर अलग हो सकते हैं। अलग होते ही, इतना तो तय हो जाता है कि इस शरीर के मरने से ही सब कुछ नहीं मर जाता है।

प्रश्नः इट इ.ज जस्ट पाॅसिबल सब पीपल्स हू हैव बीन ट्राई टू...टू बाॅडी फाॅर एग्झिस टू...केन नाॅट बी यूनाइटेड।

हां, यह खतरा है कभी, यह कभी खतरा है, यह कभी खतरा है। और कई बार ऐसा हो सकता है कि इस कोशिश में इनको वापस न जोड़ा जा सके। लेकिन आमतौर से, आमतौर से ऐसा खतरा नहीं है। कुछ कारणों में यह हालत हो सकती है कि अगर बाॅडी ऐसी हालत में हो, कि उसके कुछ हिस्से अगर बिलकुल खराब हो गए हों या अब काम न कर सकते हों, और कांटेक्ट के हटते ही वे डिसइंटीग्रेट होने शुरू हो जाएं तो वापस जुड़ना मुश्किल हो जाएगा। और इसीलिए हठयोग ने शरीर पर इतना जोर दिया। शरीर को पूरा का पूरा इतना साधने की जो चेष्टा की गई, वह इसीलिए कि दूसरे शरीर के अलग हो जाने पर शरीर के अस्तव्यस्त होने का कोई डर न हो। तो वापस जुड़ जाने में अड़चन नहीं है।
और जो जान कर शरीर को अलग करता है, इस शरीर से उस शरीर को बहुत जान कर अलग करता है, उसे तो बहुत कठिनाई नहीं है। क्योंकि वह जिस माध्यम से अलग होता है, उसी के विपरीत माध्यम से जुड़ जाता है। लेकिन जब आकस्मिक कभी हो जाता है, जैसे मेरा जो अनुभव है वह आकस्मिक ही है। और तब एक...

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां, अब तो मैं, अब तो मैं बहुत प्रयोग किया, उसके बाद बहुत प्रयोग किया। अब तो कोई सवाल नहीं है। अब तो सब साफ है। न केवल मुझे साफ है, बल्कि आपको, आपके शरीर को भी जान कर साफ कह सकता हूं, कि यह करने से हो सके। तो बहुत कठिनाई का सवाल नहीं है। लेकिन पहला अनुभव जो मुझे हुआ, वह मेरे प्रयास से नहीं था। यानी उसके लिए मुझे कोई खयाल भी नहीं था। और ध्यान के गहरे प्रयोगों में कभी-कभी आकस्मिक रूप से किसी को भी हो सकता है। किसी को भी हो सकता है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न, जरा भी नहीं, जरा भी नहीं, जरा भी नहीं। इसलिए इसको मैं कोई, न तो जरूरी है और न करने का कोई मूल्य है बड़ा।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां, कुछ तथ्य इतने साफ हो जाते हैं उस अनुभव से कि काम करने में--

प्रश्नः फियर आॅफ डेथ इ.ज गान।

फियर आॅफ डेथ बिलकुल ही चला जाता है। और जैसे ही एक बार यह अनुभव हो जाए, तो आपके पुराने जन्मों में उतरने की बड़ी सुविधा हो जाती है, जो बिना इस अनुभव के नहीं हो सकती।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न, गोइंग बैक टु नहीं है, गोइंग बैक टु नहीं है। न, गोइंग बैक टु नहीं है। कोई भी मनुष्य मनुष्य से नीचे नहीं जा सकता है, ऊपर जा सकता है। लेकिन मनुष्य ही रहते हुए कई बार मुक्त हो सकता है। नीचे तो नहीं जाता, पीछे नहीं जाता।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न, जरा भी नहीं, जरा भी नहीं संभव है। बिलकुल भी संभव नहीं है।

प्रश्नः हाउ इट इ.ज...दैट मैन कम्स बैक ए.ज ए ह्यूमन बीइंग।

हां, उसके कारण हैं। उसके कारण हैं। असल में हमारा जो एस्ट्रल माइंड है, वह जो एस्ट्रल बाॅडी है, उसका जो माइंड है। अब इसका मतलब हुआ, दो बाॅडी हो गई। और जो इस बाॅडी के साथ जुड़ा हुआ शरीर है, ठीक ऐसा ही उस बाॅडी के साथ जुड़ा उसका माइंड है, जो इस ब्रेन के साथ कांटेक्ट फील्ड बनाए हुए है। वह जो एस्ट्रल माइंड है--हम जैसे रात को सोए हैं, आप रात को सोए हैं, भूखे सोए हैं, तो रात भर आपके माइंड में भोजन का खयाल घूमता रहेगा। सुबह उठते से जो पहला खयाल आएगा वह भोजन का आएगा। और जो पहला काम आपका शरीर करेगा वह भोजन की तलाश करेगा।
इस शरीर में रहते हुए आपके एस्ट्रल माइंड ने जो भी डिजायर नहीं पूरी कर पाया है, अनफुलफिल्ड रह गई हैं, अननोन रह गई हैं, वह डिजायर्स उसका पीछा करती रहेंगी। मरते वक्त उसे गहरी नींद से ज्यादा नहीं कोई अर्थ है मरने का, मरते क्षण में वह सारी डिजायर, जो इस माइंड ने चाही थीं और पूरी नहीं हो पाईं, वे उसके साथ खड़ी हो जाएंगी। जैसे रात सोते वक्त--दिन भर में जो चाहा था नहीं हो पाया, वह आपको साथ खड़ा हो जाता है। और वह जो डिजायर थी, वह फिर इस माइंड को, मनुष्य की बाॅडी को पकड़ाने की चेष्टा करेगी। क्योंकि वह डिजायर मनुष्य की बाॅडी में ही पूरी हो सकती है।

प्रश्नः इ.ज इफ फियर आॅफ हैल एंड हैवन...

हां, मैं बात करूंगा।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

यह जो, तो अगर मनुष्य जीवन में कुछ अतृप्त वासनाएं और तृष्णाएं रह गई हों, तो चेतना वापस मनुष्य जीवन पर लौटती रहेगी। जब तक कि या तो उन वासनाओं से छुटकारा न हो जाए, उनसे मुक्ति न हो जाए, तब तक वह वापस लौटती रहेगी। माइंड हमेशा वहीं लौट जाता है जहां डिजायर है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

बहुत दिन तक रहेगी। रहेगी। और उसका कारण, उसका सिर्फ इतना ही है कि रिलीजस एक्सपीरिएंस जो भी हैं, जो भी हैं उनको जब तक साइंटिफिक एक्सपेरिमेंटेशन सिद्ध नहीं करेगा तब तक कांफ्लिक्ट जारी रहेगी। फिर रिलीजस एक्सपीरिएंस एक बात है और रिलीजस इंटरप्रिटेशन बिलकुल दूसरी बात है।
मुझे एक अनुभव हुआ, उस अनुभव की मैं क्या व्याख्या करता हूं, वह गलत हो सकती है। और कल साइंस से सिद्ध हो सकता है कि वह व्याख्या गलत थी। और व्याख्या के गलत होते से ही मेरा अनुभव भी गलत हो जाएगा। लेकिन व्याख्या बिलकुल और बात है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

मेरा मतलब यह...हां, एक और बात, एक आदमी इस कमरे में आया, उसे एअरकंडीशंड का कोई पता नहीं है। वह इस कमरे में आया। बाहर सब गर्म था। दूसरा कमरा गर्म था। इस कमरे में आया, यह कमरा ठंडा था। उसके अनुभव में कोई झूठ नहीं है। क्योंकि उसने इस कमरे को ठंडा पाया। लेकिन उसे एअरकंडीशन का कोई पता नहीं है। और वह आदमी इसको एक चमत्कार मान कर जाता है। वह उसकी व्याख्या है। वह एक चमत्कार मानता है कि वहां एक साधु ठहरा हुआ है, कमरा इसलिए ठंडा है।

प्रश्नः यह इंटरप्रिटेशन है।

इंटरप्रिटेशन है यह। लेकिन कमरे के ठंडे होने में उसकी कोई गलती नहीं है। और कल अगर वह गलत सिद्ध होगा और वैज्ञानिक उसको गलत सिद्ध करेगा कि किसी साधु के ठहरने से कोई कमरा ठंडा नहीं हो सकता, तो वह आदमी गलत सिद्ध हो जाएगा। और गलत सिद्ध होते से ही उसके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी, क्योंकि उसका अनुभव है कि कमरा ठंडा था।
लेकिन कमरा क्यों ठंडा था, इसके बाबत उसे कुछ भी...मेरा मतलब आप समझ रहे न? इतना अनचार्टर्ड मामला है कि वहां जब एक आदमी जाकर कुछ अनुभव करता है, तो अनुभव तो है, लेकिन अनुभव को वह रिलेट करता है, इंटरप्रीट करता है, लौट कर कुछ कहता है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां-हां, यह संभावना है। यह संभावना इसीलिए, जैसे क्रिश्चियंस हैं, मोहम्मडंस हैं, वे यह बात नहीं। उनका भी अनुभव यही है, लेकिन उनकी व्याख्या बिलकुल और है। हिंदुओं और जैनों की व्याख्या भी यही है, बौद्धों की व्याख्या भी यही है, लेकिन फिर भी बौद्ध आत्मा को मानने को राजी नहीं है, उस तरह से जैसा हिंदू और जैन।

प्रश्नः उनका एक्सपीरिएंस बिलकुल सेम है।

हां, और उनका एक्सपीरिएंस बिलकुल एक है। बौद्धों का अनुभव बिलकुल वही है जो जैनों का है, या हिंदुओं का है। लेकिन बुद्ध आत्मा को मानने को तैयार नहीं हैं। और अनुभव में जरा भी फर्क नहीं है।
तो अब साइंस के साथ कांफ्लिक्ट तब तक बनी रहेगी जब तक कि हम उस सारी चीज का उसका पूरा का पूरा साइंटिफिक सर्वे नहीं हो जाता उस एक्सपीरिएंस का। और साइंटिफिक सर्वे हो जाने के बाद बहुत सी बातें जो हम मानते थे कि सही हैं, वे गलत होंगी। लेकिन अनुभव गलत नहीं होगा, सिर्फ अनुभव की नई व्याख्या शुरू होगी। नई व्याख्या शुरू होगी।
अब जैसे मेरा कहना, जैसे बाइबिल की बात है, बाइबिल की बात है कि बाइबिल कहती है कि पृथ्वी ही सेंटर है सारे युनिवर्स का। और मैं मानता हूं कि यह किसी गहरे अनुभव की बात है, यह झूठ नहीं है, अभी भी। यानी अभी यह तीन सौ साल में...

प्रश्नः इंटरपलेशन बाय हि.ज फाॅलोअर्स।

न,न,न, जरा भी नहीं, जरा भी नहीं। इंटरपलेशन नहीं कहता मैं।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न, यह मैं नहीं कह रहा हूं। मैं यह कह रहा हूं कि यह जो बात है, यह बात कोई और ही अर्थ रखती है। यह बात यह अर्थ नहीं रखती है कि सूरज और चांद और तारे सब इसका चक्कर लगा रहे हैं, यह अर्थपूर्ण नहीं है। यह बात बहुत मैटाफिजिकल है और कुछ और ही अर्थ रखती है। जहां तक जीवन का संबंध है, अर्थ सेंटर है। जहां तक जीवन का संबंध है, वहां अर्थ सेंटर है।

प्रश्नः मोर लाइट आन दि सरफेस।

हां, यानी जो लोग जीवन में बहुत गहरे प्रविष्ट हुए हैं, उनका जो अनुभव है वह यह है कि किसी प्लेनेट पर कोई लाइट नहीं है। और जो लोग जीवन में बहुत गहरे प्रविष्ट हुए हैं, उनका यह भी अनुभव है कि प्रत्येक प्लेनेट की भी अपनी सोल है। यह जो जैसे कि एक-एक बाॅडी की अपनी सोल है, ऐसा प्रत्येक प्लेनेटिक बाॅडी है और बाॅडी की, उस प्लेनेट की अपनी सोल है, जैसे अर्थ की अपनी सोल है।

प्रश्नः एनिमल्स सोल।

हां, एनिमल्स की तो सोल है ही। इस जमीन की, चांद की। तो जो लोग जीवन की इस दिशा में बहुत गहरे काम किए, उनका यह अनुभव है कि अर्थ की अपनी सोल है। सब प्लेनेट की अपनी सोल है। और सोल की दृष्टि से, उस लिविंग एनटायटी की दृष्टि से अर्थ सेंटर है और सूरज और चांद सब उसके आस-पास रिवाल्व हो रहे हैं। यह जो खयाल है, इस खयाल का गैलीलियो से कोई विरोध का मामला नहीं।

प्रश्नः इसका कांटेक्ट नहीं।

हां, इससे कोई कांटेक्ट ही नहीं है। लेकिन यह जो खयाल है, इसका जो इंटरप्रिटेशन होने वाला था, वह यही होने वाला था, कि यह पृथ्वी का सूरज चक्कर लगा रहा है। और जब गैलीलियो ने यह खोज की कि यह बात तो झूठ है, सूरज का चक्कर तो पृथ्वी ही लगा रही है, तो इन दोनों बातों में कांफ्लिक्ट खड़ी हो गई और धर्म का जो व्याख्याकार था वह एकदम हार गया। हार गया, क्योंकि यहां तो फैक्ट सामने थे, तुम्हारे पास तो कोई फैक्ट थे नहीं।
लेकिन कभी दो-चार सौ वर्षों में जब कि हम लिविंग एनटायटीज के बाबत हमारी दृष्टि और गहरी हो जाएगी, तो मैं यह मानता हूं कि गैलीलियो और जीसस क्राइस्ट के दृष्टिकोण में बुनियादी फर्क है और जीसस का दृष्टिकोण गैलीलियो से कहीं भी कटता नहीं है। वह बात ही और है।

प्रश्नः द डाइमेंशंस आर डिफरेंस।

हां, डाइमेन्शंस अलग हैं। और तब यह कांफ्लिक्ट जारी रहेगी। अब जैसे कि अगर मैं कहूं कि चक्र हैं सात शरीर में, तो कहूंगा, शरीर में, और फौरन फिजियोलाॅजिस्ट कहता है कि हम तो शरीर को पूरा एक-एक इंच जांच चुके हैं, वहां तो कोई चक्र-वक्र कुछ भी नहीं है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां-हां, यही कह रहे हैं वे, वे यही कह रहे हैं। और जहां तक वे कह रहे हैं, जितनी दूर तक वे कह रहे हैं, कोई गलत नहीं कह रहे हैं। लेकिन उसके आगे भी कुछ हो सकता है, जो उनके कहने में नहीं आ रहा है फिलहाल। और किन्हीं विज्युलाइज के कहने में आता है, और विज्युलाइज के साथ तकलीफ यह है कि वे कुछ कोई प्रमाण नहीं दे सकते हैं।
अब जैसे कि मैं अगर कहूं कि मुझे कोई एक अनुभव हुआ। या समझ लें कि एक आदमी को किसी से प्रेम हो गया है, और वह कहता है कि मुझे प्रेम का अनुभव हो रहा है, और अगर फिजियोलाॅजिस्ट कहे कि कहां तुम्हें प्रेम का अनुभव हो रहा है? हम तुम्हारे पूरे शरीर को काट-पीट कर जांच कर लें, तो हम तुम्हारे पूरे शरीर में कहीं नहीं पाते हैं कि कहीं भी तुम्हें प्रेम का अनुभव हो रहा है। न तुम्हारे हृदय को कुछ पता चलता है, न तुम्हारे फेफड़े को कुछ पता चलता है, न कहीं पता चलता है।

प्रश्नः साइकोलाॅजी में भी नहीं?

मेरी बात आप नहीं समझे न। फिजियोलाॅजी की बात मैं कह रहा हूं। फिजियोलाॅजी, अगर आप कहें कि मुझे प्रेम अनुभव हो रहा है और मेरे भीतर कुछ घटना घट रही है, जो कल तक जब तक मुझे प्रेम नहीं हुआ था, नहीं घटी थी, तो फिजियोलाॅजी अगर आपकी जांच-पड़ताल करे, तो आप सिद्ध नहीं कर सकते कि आपको कोई प्रेम का अनुभव हो रहा है। क्योंकि वह कहेगी, जब तुम्हें प्रेम का अनुभव नहीं हो रहा था, तब जितने तत्व तुम्हारे शरीर में थे और जिस तरह का तुम्हारे शरीर का स्ट्रक्चर था, ठीक स्ट्रक्चर वही का वही है, तत्व वही के वही हैं। प्रेम के अनुभव से तुम्हारे शरीर में जब प्रेम नहीं हो रहा था, तो कोई फर्क नहीं पड़ा है। इसलिए कोई नई चीज तुम्हारे शरीर में हो रही है, यह हम नहीं मान सकते। मेरा आप मतलब समझ रहे न? फिजियोलाॅजी यह कहेगी। तो वह कहेगी कि यह तो कुछ हो नहीं रहा। तुम भ्रम में हो। या इल्युजरी है। या तुम किसी और चीज की व्याख्या कर रहे। वह और तरह से व्याख्या करेगी। वह कहेगी कि हो सकता है जिसको तुम प्रेम वगैरह कह रहे हो, वह कुछ भी नहीं है, सिर्फ तुम्हारे शरीर में कोई नये हाॅरमोन आ गए हैं और उनकी वजह से जो हलचल मच गई है, तुम समझ रहे हो कि प्रेम हो रहा है! सिर्फ नये हाॅरमोन का यह हलचल है, इसमें कुछ प्रेम-व्रेम जैसी कोई चीज नहीं है। और यह हो सकता है कि उनकी बात भी सही हो और यह भी हो सकता है कि यह बात भी सही हो कि यह जो प्रेम का अनुभव हो रहा हो, हो सकता है कि हाॅरमोन अलग करने पर यह अनुभव न हो।

प्रश्नः ...मीडियम हो।

हां, मीडियम हो, सिचुएशन हो। हाॅरमोन एक सिचुएशन पैदा कर रहे हों, जो कि हाॅरमोन के हट जाने पर न हो।
जैसे कि मैं यहां बोल रहा हूं। लेकिन मेरा बोलना एक बात है और अगर बीच में वेव क्रिएट न होने का इंतजाम कर दिया जाए, यहां वैक्यूम कर दिया जाए, तो आप तक मेरा बोलना न सुनाई पड़े, सिर्फ ओंठ हिलते रहें। तो आप कहें कि बोलना कुछ भी न था, बीच की वेव थी, तो गलती हो गई।

प्रश्नः लाइफ एनर्जी।

हां, लाइफ एनर्जी। तो कठिनाई क्या है कि साइंटिफिक जो मेथड हैं अब तक, वे जो भी मैटीरियल है उसको पकड़ लेते हैं। ठीक भी है। लेकिन जो भी इम्मैटीरियल है, वह पकड़ के बारह छूट जाता है। वह किसी अनुभव में आता है, तो आज अनुभव कांफ्लिक्ट में पड़ेगा। लेकिन धीरे-धीरे साइंस विकसित होती चली जाती है, और जैसे-जैसे साइंस विकसित होती है, रिलीजस एक्सपीरिएंस को प्रकट करने की भाषा भी विकसित होती जाती है। क्योंकि हमारे पास नई भाषा का सारा उपाय होता चला जाता है। सच तो यह है कि जो भी रिलीजस अनुभव हुए हैं, दुनिया में जो बड़े रिलीजस अनुभवी लोग हुए हैं, वे सब प्रि-साइंटिफिक एज में हुए हैं। उनकी सारी लैंग्वेज पोएट्री की है। उसका कारण है कि पोएट्री की ही लैंग्वेज थी, कोई दूसरी लैंग्वेज थी नहीं दुनिया में। लैंग्वेज थी पोएट्री की और जो रिलीजस अनुभव हुए, उनको पोएट्री की लैंग्वेज का उपयोग करना पड़ा।
इधर अब एक नई लैंग्वेज मैथेमेटिक्स की प्रकट हो रही है, विकसित हो रही है। सौ, दो सौ, चार सौ वर्षों में जब मैथेमेटिक्स एक लैंग्वेज बन जाएगी, पूरी लैंग्वेज बन जाएगी, तो एक सुविधा होगी कि जो लोग रिलीजस एक्सपीरिएंस की बात करें, वे फिर गणित की भाषा में कर सकें, फिजिक्स की भाषा में कर सकें, साइकोलाॅजी की भाषा में कर सकें। आज साइकोलाॅजी की भाषा में कुछ कहना संभव हो गया है। लेकिन साइकोलाॅजी की कोई भाषा नहीं थी आज से दो सौ साल पहले।
तो मैं जो कह रहा हूं वह यह है कि अनुभव एक बात है, व्याख्या बिलकुल दूसरी बात है। हम चारों आदमी एक ही जगह जाएं और चार व्याख्याएं लेकर लौट सकते हैं, और एक ही अनुभव हुआ हो।

प्रश्नः ...आलवेज फियर इ.ज ए सोल एक्झिस्ट आॅर नाॅट।...रि-इनकारनेशन...इंटरप्रिटेशन।

रि-इनकारनेशन।


(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां, क्योंकि बुद्ध उसका ऐसा इंटरप्रिटेशन करते हैं कि सोल का एक्झिस्टेंस खतरे में पड़ जाता है। इस अर्थ में जैसा दूसरों के लिए है। बुद्ध जो कहते हैं, वे कहते हैं कि सोल जैसी कोई एनटायटी नहीं है, सिर्फ एक स्ट्रीम है, एनटायटी नहीं है। जैसे हमने रात एक दीया जलाया और सुबह हम कहते हैं, वही दीया हम बुझा रहे हैं, तो बुद्ध कहते हैं, यह झूठ है। वह दीया तो प्रतिक्षण बुझता रहा और नई ज्योति आती रही। ज्योति बदलती रही, फ्लेम बदलती चली गई। वही फ्लेम नहीं है जो आपने शाम को जलाई थी, जो सुबह आप बुझाते हैं, उसी फ्लेम की संतति है, उसी फ्लेम की संतान है। कंटिन्युुटी है उसकी, लेकिन फ्लेम यह बिलकुल दूसरी है। इस फ्लेम को पता भी नहीं है कि सांझ जो फ्लेम जली थी वह क्या थी। यह उसी की स्ट्रीम है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न-न, मेरा मतलब समझे नहीं आप। अगर हम पूछें कि वेदर फ्लेम इ.ज देयर आॅर नाॅट, तो बुद्ध कहेंगे, फ्लेम इ.ज देयर, बट फ्लेम इ.ज कांस्टेंटली चेंजिंग, फ्लेम इ.ज ए कांस्टेंट कंटिन्युटी।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न, यह हिंदू और जैन नहीं मानने को तैयार हैं।

प्रश्नः बट वेदर सोल इ.ज देयर।

न, न, न। नहीं समझे। इन दोनों में बुनियादी फर्क हो जाएगा। अगर आपने कहा कि सोल बदलती है, तो जैन और हिंदू कहेंगे, फिर सोल है ही नहीं। उनका कहना यह है कि फिर एनटायटी नहीं रही कोई, सिर्फ कंटिन्युटी रही। और कंटिन्युटी कोई एनटायटी नहीं है। यानी जैन और हिंदुओं का कहना यह है कि अगर...

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

नहीं समझे आप।

प्रश्नः...सोल इ.ज डाइनामिक।

न-न, कितनी ही डाइनामिक हो। अगर कंटीन्युटी है तो कंटीन्युटी टूट सकती है। और कंटिन्युटी, बुद्ध कहते हैं, टूट जाएगी। इसलिए निर्वाण के बाद सोल नहीं बचेगी। इसलिए बुद्ध यह कहते हैं कि निर्वाण का मतलब ही यह है, निर्वाण का मतलब यह होता हैः दीये का बुझ जाना। निर्वाण शब्द का भी यह मतलब हैः सी.जेशन।

प्रश्नः एक्झिस्टेंस हैज गाॅन।

हां, एक्झिस्टेंस हैज गाॅन।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

और ये सारी की सारी हिंदू व्याख्याएं हैं बौद्ध की। बुद्ध का जो कहना है, बुद्ध का तो कहना यह है, बुद्ध का कहना यह है, और इस अर्थों में बुद्ध का कहना बड़ा साइंटिफिक है और आने वाली साइंटिफिक एज में बुद्ध का इंटरप्रिटेशन बहुत अपील करने वाला है, और अपील कर रहा है।

प्रश्नः दिस इ.ज व्हेरी डिसअपाइटिंग।

डिसअपाइटिंग नहीं है।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

न-न, यही तो, हमारी जब धारणा पक्की हो जाती है तो डिसअपाइटिंग हो जाता है। मेरा कहना यह है, बुद्ध का कहना यह है कि यह सारी की सारी, जैसे कि हम, कोई भी एक चीज को ले लें। कंटिन्युटी का मतलब यह है कि कुछ चीजों से मिल कर बनी है, जैसे कि आक्सीजन और हाइड्रोजन से मिल कर पानी बना हुआ है। पानी कोई एनटायटी नहीं है। पानी कोई सत्ता नहीं है बुद्ध के हिसाब से, पानी सिर्फ संयोग है। और अगर हाइड्रोजन और आक्सीजन अलग हो जाएं तो पानी नहीं हो गया।

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)

हां-हां, तो इसलिए माक्र्स और बुद्ध में बहुत निकटता है, एकदम निकटता है। और चीन के माक्र्सिस्ट हो जाने के बुनियाद में बुद्धिज्म है। हिंदुस्तान के कम्युनिस्ट होने में बाधा है, भारी बाधा है, एकदम भारी बाधा है, और उसका कारण है कि हिंदू की जो व्याख्या है, जैन की जो व्याख्या है, वह बिलकुल ही और है। बुद्ध की जो व्याख्या है, वह माक्र्स के निकटतम है। अगर दुनिया में माक्र्सिज्म आया, तो जो धर्म बच सकता है उसके बाद में वह बुद्धिज्म हो सकता है, न क्रिश्चिएनिटी, न इस्लाम, न हिंदू, न जैन। माक्र्सिज्म के बाद अगर दुनिया में किसी धर्म के बचने की संभावना है तो बुद्ध की है।
मैंने तो अभी माक्र्स और बुद्ध पर एक लेक्चर दिया, तो भारी उपद्रव हुआ। एक लेक्चर दिया।

प्रश्नः कहां?

अभी जबलपुर में, एक सीरिज दिया तीन लेक्चर की--माक्र्स और बुद्ध। तो मेरा तो कहना ही यह है कि बुद्ध समय के पहले आ गए। माक्र्स के बाद बुद्ध की सार्थकता है, उसके पहले नहीं है। और जिस दिन दुनिया माक्र्स को पूरी तरह समझ ले और स्वीकार कर ले, उसके बाद तो बुद्ध की स्वीकृति अनिवार्य है। बुद्ध से फिर बचा नहीं जा सकता। क्योंकि माक्र्सिज्म की स्वीकृति के बाद जो भी खोज-बीन होगी, वह बुद्धिज्म में ले जाने वाली है। और उसका कारण यह है, उसका...

प्रश्नः बुद्धिज्म इ.ज ए एस्थेटिक व्यू आॅफ लाइफ।

न, न, न। यह और दूसरी बात है। यह और दूसरी बात है। इस संबंध में नहीं जो मैं कह रहा हूं, इस संबंध में नहीं। इस संबंध में नहीं है। पच्चीस एस्पेक्ट हैं न बुद्ध के तो। पच्चीस एस्पेक्ट हैं बुद्ध के। कुछ मामलों में बिलकुल ही मेल नहीं पड़ेगा, लेकिन बहुत बेसिक मामलों में बहुत गहरा मेल है।

प्रश्नः हि.ज व्यूज अबाउट मैरिज एण्ड लीगल पाॅथ, दिस इ.ज गोइंग टु एस्थेटिक लाइफ। एण्ड माक्र्सिज्म इग्नोर द मैरिज।

न, न, न। पच्चीस बातों में भेद पड़ेंगे। और पच्चीस बातों में भेद पड़ने चाहिए, क्योंकि दो हजार साल का फासला है। क्योंकि जो भी बड़े से बड़ा आदमी भी जो कहता है, वह चाहे कितनी ही दूर की बात कहे, तो भी जिस समाज में वह जीता है, जिन धारणाओं में जीता है, जिन लोगों में जीता है, वह उसी के फार्म में सारी बात कहेगा। और बिलकुल स्वाभाविक है कि वे सारी बातें उसमें हावी होंगी। वह बच नहीं सकता। और फिर वह अकेला कह कर चला जाता है, फिर पीछे से ट्रेडीशन बननी शुरू होती है, वह हजार बातें जोड़ती है--जोड़ती चली जाती है।
जहां तक बुद्ध का व्यक्तित्व है, वह एस्थेटिक नहीं है, बिलकुल एंटी-एस्थेटिक है, लेकिन भारत का पूरा व्यक्तित्व एस्थेटिक है। और बुद्ध के पीछे जो लोग इकट्ठे हो रहे हैं, वे सब एस्थेटिक परंपराओं से आ रहे हैं। और बुद्ध की जो व्याख्या और शास्त्र-निर्माण करने वाले हैं, वे सब ब्राह्मण हैं। अब यह बड़े मजे की बात है। महावीर और बुद्ध का सब शास्त्र-निर्माण ब्राह्मणों ने किया है। और महावीर और बुद्ध दोनों ब्राह्मण-विरोधी हैं। लेकिन इनकी जो भी शिष्य-परंपरा है, वे सब ब्राह्मण हैं। और इसलिए अनिवार्यरूपेण गड़बड़ हो जाने वाली है। क्योंकि वह कोई आपका थोड़े ही खयाल पूरा, माइंड आता है ब्राह्मणों का पीछे से साथ में। बुद्ध की शक्ल देखें, यह आदमी एस्थेटिक नहीं मालूम पड़ता। और बुद्ध की पूरी की पूरी जो धारणा--वे एक धारा में गए थे तपश्चर्या की--लेकिन वापस लौट आए।

प्रश्नः बट दैन ही लेफ्ट हि.ज वाइफ एंड चिल्ड्रन...

हां, हां, हां। यह कोई जरूरी रूप से एस्थेटिक होना नहीं होता। यह कोई जरूरी रूप से एस्थेटिक होना नहीं होता। यह तो हमारी व्याख्या है। यही मैं कहता हूं, कि हमारी व्याख्या पर निर्भर करता है कि क्या व्याख्या होती है। हम क्या व्याख्या करते हैं। एक आदमी स्त्री को इसलिए छोड़ सकता है कि स्त्री सुखद थी और वह सुख नहीं लेना चाहता है, तब तो एस्थेटिक है। और एक आदमी इसलिए स्त्री छोड़ देता है कि सुख ले लिया गया, अब कोई सुख नहीं है, तब वह कोई एस्थेटिक नहीं है। या हालत उलटी भी हो सकती है, एक आदमी स्त्री से इतना परेशान है, इतना दुख भोग रहा है कि छोड़ दे, तो एस्थेटिक नहीं है, हैड्रोनिस्ट है। यानी स्त्री छोड़ देने से कुछ तय नहीं होता न। एक स्त्री से मैं इतना परेशान हो सकता हूं कि छोड़ने में मुझे सुख मालूम पड़े। दुनिया समझेगी कि मैंने स्त्री छोड़ कर बड़ा दुख झेला। आखिर जहां तक मेरी समझ हुई, मैं तो सुखी हुआ उसको छोड़ कर। और साथ रहता तो एस्थेटिक हो जाता। मेरा मतलब समझे न? हम क्या व्याख्या करते हैं इस पर निर्भर करे।

प्रश्नः बट मैनी फाॅलोअर्स अगेंस्ट द मैरिज।

न-न, मैरिज करना, नहीं करना, जरूरी रूप से एस्थेटिज्म नहीं है। सच बात तो यह है कि अगर कोई ठीक से देखे और कोशिश करे, तो जैसा मैरिज का फार्म चलता रहा है अब तक, वह एक तपश्चर्या है, जैसा मैरिज का फार्म चलता रहा है अब तक, वह एक तपश्चर्या है, वह एस्थेटिज्म है। शादी करनी मतलब एक भारी कष्ट से और दुख से गुजरना, जैसी मैरिज रही है अब तक। सुख-वुख नहीं है, पूरा दुख है और सतत दुख है। और हो सकता है कि कोई आदमी जो सुखी रहना चाहता है इसलिए शादी न करे कि हम क्षमा चाहते हैं। वह सिर्फ बुद्धिमानी का लक्षण हो। आप मेरी बात समझे न?
और मेरी अपनी मान्यता यह है कि अभी तक शादी सुख नहीं है। अभी तक शादी सुख नहीं है। अभी तक शादी निश्चित दुख रही है। और दुख है। हां, एक दुनिया बनानी चाहिए हमें, जहां शादी भी सुख हो, लेकिन वहां शादी का हमें पूरा रूपांतरण कर देना पड़े, पूरी शादी बदल देनी पड़े। वह फ्रेंडशिप से ज्यादा नहीं रह जाएगी, तो ही सुख हो सकती है। और जिस दिन सेक्स फन से ज्यादा नहीं होगा, तब तक सुख नहीं हो सकता।

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