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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

गीता दर्श्‍न--भाग--01 (ओशो)

गीता दर्शन भाग—01
        
   (भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)

ओशो

शास्‍त्र की ऊंची ऊँचाई मनस है। शब्‍द की ऊंची से ऊंची संभावना मनस है। जहां तक मन है, वहां तक प्रकट हो सकता है। जहां मन नहीं है। वहां सब अप्रकट रह जाता है।
गीता ऐस मनोविज्ञान है जो मन के पार इशारा करता है। लेकिन है मनोविज्ञान ही। अध्‍यात्‍म—शास्‍त्र उसे मैं नहीं कहूंगा। और इसलिए नहीं कि कोई और अध्‍यात्‍म—शास्‍त्र है। कहीं कोई अध्‍यात्‍म का शास्‍त्र नहीं है। अध्‍यात्‍म की घोषणा ही यही है कि शास्‍त्र में संभव नहीं है। मेराहोना, शब्‍द में मैं नहीं समाऊंगा, कोई बुद्धि की सीमा—रेखा में नहीं मुझे बांधा जा सकता। जो सब सीमाओं का अतिक्रमण करा जाता है। और सब शब्‍दों को व्‍यर्थ कर जाता है—वैसी जो अनुभूति है, उसका नाम अध्‍यात्‍म है।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)--प्रवचन--06


विद्रोह के पंख—छठवां प्रवचन

छठवां प्रवचन;
दिनाक 16 मई, 1979
श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍न सार :


*भगवान! किसी अन्य आश्रम से (जैसे युग निर्माण योजना, मथुरा; रामकृष्ण आश्रम आदि)       संबंधित कुछ मित्र आपके पास आना चाहते हैं और यहां के विविध ध्यान- प्रयोगों में भाग      लेना चाहते हैं : कुछ ऐसे मित्र हैं जिनके लिये शेगाब के प्रसिद्ध संत गजानन महाराज या शिरडी   के सांईबाबा श्रद्धा-स्थान हैं; से भी आपके आश्रम के ध्यान- शिविर में भाग लेना चाहते हैं।      परंतु इस धारणा से कि किसी एक जगह श्रद्धा हो तो दूसरी ओर जाना नहीं चाहिए, वह पाप     है-इसलिए हिचकिचाते हैं। भगवान, इस पर कुछ समझाने की कृपा करें।


*भगवान! एक और तो आप आधुनिक यंत्र -विधि के पक्ष में हैं और मानते हैं कि धर्म का    फूल औद्योगिक दृष्टि से उन्नत देशों में ही खिलेगा। दूसरी तरफ आप पश्चिम की औद्योगिक   सभ्यताओं की विडंबनाओं का भी बखान करते हैं। 'या तो यंत्र बचेगा या मनुष्य' -यह आपका ही वाक्य है। उसके अलावा आप अतीत के जिन महापुरुषों, संतों और भक्तों की वाणी की     व्याख्या करते हैं, उनमें से कोई नहीं मानता था कि धर्म गरीबों के लिये नहीं है। इन सबकी    पारस्परिक संगति कैसे बिठाई जाए?


*भगवान! राजनीति क्या है?

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)--प्रवचन--05

मेरा सूत्र : विद्रोह—पांचवां

प्रवचन पांचवां प्रवचन;
दिनांक 15 मई, 1978;
श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न :

भगवान! एक बार किसी ने मुझे बतलाया था कि पूना भारत का आक्सफोर्ड है-संस्कृति का नगर और देश के विशिष्ट वर्ग का प्रतिनिधि। लेकिन यहां प्राय: हर रात अच्छी पोशाकें पहने लोग स्कूटर पर या कार पर चढ़कर कोरेगांव पार्क के इर्द -गिर्द घूमते हैं और संन्यासियों को, खासकर संन्यासिनियों को डंडे से बेरहमी से पीटते हैं। और अब तो मानो डंडे पर्याप्त नहीं रहे, इसलिए उन्होंने लोहे की चेनों का उपयोग करना शुरू किया है। भगवान, ये कैसे लोग हैं? 

'कृष्ण प्रेम!
भारत की संस्कृति एक बड़ा पाखंड है। शायद पृथ्वी पर इतना बड़ा पाखंड कोई दूसरा और नहीं। हो भी नहीं सकता, क्योंकि यह पाखंड सर्वाधिक प्राचीन है; कोई दस हजार वर्षों का लंबा इसका इतिहास है। यह रोग पुराने से पुराना रोग है इस पृथ्वी पर। इसका मुखौटा एक है, इसकी अंतरात्मा बिलकुल सड़ी-गली है। यहां बातें अच्छी हैं, विचार ईअच्छे। हैं, लेकिन वे सब बातें हैं और विचार हैं, व्यवहार बिलकुल भिन्न है। यहां खाने के दात और, दिखाने के दात और है।

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

हंसा तो मोती चूने-(लाल नाथ)--प्रवचन--04

साक्षी हरिद्वार है—चौथा प्रवचन

चौथा प्रवचन;
दिनाक 14 मई, 1976;
श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

करसूं तो बांटे नहीं, बीजं। सेती आड।
वै नर जासीं नाली, चौरासी की खाड।।

काया में कवलास, न्हाय नर हर की पैडी।
वह जमना भरपूर, नितोपती गंगा नैड़ी।।

हरख जपो हरदुवार, सुरत की सैंसरधारा।
माहे मन्न महेश अलिल का अंत फुवारा।।

टोपी धर्म दया, शील का सुरंग का चोला।
जत का जोग लंगोट, भजन का भसमी गोला।।

खमां खड़ाऊ राख, रहते का डंड कमंडल।
रैणी रह सतबोल, लोपज्या ओखा मंडल।।

खेलो नौखंड मांय, ध्यान की तापों धूणी।
सोखो सरब सुवाद, जोग की सिला अलुणी।। 

बांटों बिसवत भाग, देव थानै दसवंत छोड़ी।
अवस जोव जा हार, टेकसी नहचै गोडी।।


पीछे सूं जम घेरसी, टेकरै काल किरोई।
कुण ओरोगै घीव, जीमसी कूण रसोई।।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

हंसा तो मोती चूने-(लाल नाथ)--प्रवचन--03

अपि तो किछु नाई—तीसरा प्रवचन

 तीसरा प्रवचन;
दिनाक 13 मई, 1979;
श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्‍न सार :

*भगवान, बाबा अलाउद्दीन अपने जीवन के अंतिम दिनों में कहा करते थे: सब माटी होए       गेलो, अपि तो किछु नाई, नाद-सुर को पार न पायो। क्या उन्हें कोई सदगुरु न मिला, इसलिए      वे ऐसा कहते हुए मरे या कि नाद-सुर अनंत हैं, उसके पार होने का उपाय नहीं है इसलिए?   कृपा करके समझाएं!

*भगवान! ईश्वर -प्राप्ति में कार्य -कारण नहीं; तो फिर ध्यान का औचित्य समझाने की कृपा   करें! भगवान! स्वर सभी असमर्थ मेरे, कैसे अभिनंदन करूं?जी यही कहता, तुम्हारा मूक       अभिनंदन करूं!

*भगवान! मैं विवाह करने ही वाली थी कि मेरा होने वाला पति लापता हो गया है। मैं बहुत दुखी हूं। सांत्वना की तलाश में आपके द्वार आई हूं।

*भगवान!
आपने अपना बनाया,
मेहरबानी आपकी
हम तो इस काबिल न थे,
है कद्रदानी आपकी
आपने अपना बनाया..।

*भगवान! मैं आपका संदेश घर - घर, हृदय-हृदय में पहुंचाना चाहता हूं पर लोग बहरे हैं, मैं क्या करूं?

हंसा तो मोती चूने-(लाल नाथ)--प्रवचन--02

हीर कटोरा हो गया रीत—दूसरा प्रवचन

दूसरा प्रवचन;
दिनाक 12 मई, 1979;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।


प्रश्‍न सार :

*भगवान! कैसे पता चले कि प्रेम कितना सपना है और कितना सच?

*भगवान! अहंकार होने का कोई कारण नहीं है, फिर भी अहंकार क्यों है?

*भगवान! अहंकार होने का कोई भी कारण नहीं है, फिर भी अहंकार क्यों है?

*भगवान!
हीर कटोरा हो गया रीता
भय कैसा यह तीखा -मीठा!
तेरे लिए ही मैं सरजाई
मैं तो पर गई ओ हरजाई!
तूने बांधी महा सगाई
मैं तो पर गई ओ हरजाई!

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन--01

हंसा तो मोती चुगैं (संत श्री लाल नाथ)
                    
—ओशो




और है कोई लेने हारापहला प्रवचन

पहला प्रवचन
दिनांक 11मई, 1989;
श्री रजनीश आश्रम पूना।

सूत्र :

ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्लानी सा गोरख।
ररै रमै सूं निसतिरया, कोड अठासी रिख।।
हंसा तो मोती चुगैं, बगुला गार तलाई।
हरिजन हरिसू यूं मिल्या, व्यू जल में रस भाई।।
जुरा मरण जग जलम पुनि, अै जुग दुख घणाई। 
चरण सरेवा राजस, राख लेव शरणाई।।
क्यू पकड़ो हो डालिया, नहचै पकड़ो पेड़।
गउवां सेती निसतिरो, के तारैली भेड़।।
साधां में अधवेसरा, व्यू घासी में लीप।
चल बिन जौड़े क्यूं बड़ो, पग। बिलूमै काप।।

हुलक। की। पातला, जमी सूं चौड़ा।
जोगी ऊंचा आभ सु राई सूं ल्होड़ा।।
होफा ल्यो हरनांव की, अमी अमल का दौर।
साफी कर गुरु -ज्ञान की, पियोज आठूं प्‍होर।।

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

जीवन की नाव (कविता)





कितनी छोटी नाव जीवन की, कितनी  लम्‍बी झील।
कितने सपनों को खोल रही, उलझी जीवन की रील।।

ज़र-ज़र  मिट्टी की  काया  है,   पीछे   रेगि‍स्‍तान।
कोने-कातर  से लटक रहे है,  फटे    पुराने   प्राणा।
क्‍या कर लू और क्‍या न कर लूं, दो दिन का मेहमान।
छिटक रहा नित-नित प्‍याला,  अब खाली इसको जान।
कितना चला जब पीछे देखा, कोस, फरलांग, या मील।।
कितने सपनों को खोल रही उलझी जीवन की रील...

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-28

हास्य व नृत्य की बात—(अठाईसयवां-प्रवचन)

 प्यारे ओशो,  



यहां पृथ्‍वी पर सबसे बड़ा पाप क्या रहा है? क्या यह उसका कथन नहीं थी जिसने कहा :  'धिक्कार है उनको जो हंसते हैं!'

क्या स्वयं उसने पृथ्वी पर हंसने का कोई कारण नहीं पाया? यदि ऐसा है तो उसने खोज बुरी तरह की। एक बच्चा भी कारण पा सकता है।

उसने — पर्याप्त रूप से प्रेम नहीं किया : अन्यथा उसने हमको भी प्रेम किया होता हसनेवालो को! लेकिन उसने घृणा की और हम पर ताने कसे उसने शाप दिया कि हम बिलखें व दांत

किटकिटाएं

ऐसे समस्त गैर— समझौतावादी मनुष्यों से बचो! वे दीन व रुग्ण प्रकार के हैं भीड़ वाले प्रकार के : वे इस जीवन को दुर्भावना से देखते हैं इस पृथ्वी के प्रति उनके पास कुदृष्टि है। ऐसे समस्त गैर— समझौतावादी मनुष्यों से बचो! उनके पैर बोझिल व हृदय उमसदार हैं — वे नहीं जानते कि नाचना कैसे ऐसे मनुष्यों के लिए पृथ्वी हलकी कैसे हो सकती है!...

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-27


उच्चतर मानव से मुलाकात की बात—(सताईसवां—प्रवचन)  

प्यारे ओशो,  

महीने और बीतते हैं, और जरमुस्त्र के बाल सफेद होते हैं जबकि वह प्रतीक्षा करते हैं उस संकेत की कि यही समय है नीचे उतरकर मनुष्यों तक उनके फिर से जाने का। एक दिन जबकि वह अपनी गुफा के बाहर बैठे हैं जरमुस्त्र के पास वृद्ध पैगंबर आता है जो जरमुस्त्रू को सावधान करता है कि वह उनको उनके चरम पाप के प्रति फुसलाने के लिए आया है — दया खाने का पाप
'उच्चतर मानव' के लिए दया? जरमुस्त्र इससे दहल जाते हैं लेकिन अंतत: राजी होते हैं
उच्चतर मानव की चीख का जवाब देने के लिए उसे खोज निकालने और उसकी मदद करने के लिए

जरयुस्त्र तेजी से आगे बढ़ते हैं और अपने समस्त अभ्यागतों को वहां एकत्र पाते हैं —
राजे— महाराजे सदसद्विवेकी भावना का व्यक्ति जादूगर खा पोप इत्यादि : क्योकि वे ही उच्चतर मानव' हैं।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-26

स्वास्थ्य— लाभ करनेवाला—छब्‍बीसवां-प्रवचन


प्यारे ओशो,  

एक प्रात: अपनी गुफ़ा में अपनी वापसी के थोड़ी देर बाद ही जरमुस्त्र सात दिनों की एक अवधि से गुजरते हैं जब वह मृतवत हैं। जब वह अंतत: अपने—आप में लौटते हैं वह पाते हैं कि वह फलों और मधुरगंधी जड़ी— बूटियों से घिरे हुए हैं जो उनके लिए उनके जानवरों द्वारा लायी गयी हैं। उन्हें जगा हुआ देखकर उनके जानवर जरमुस्त्र से पूछते हैं कि क्या वे अब बाहर दुनिया में कदम नहीं रखेगे जो उनकी प्रतीक्षा कर रही है :


'हवा भारी सुवास से बोझिल है जो आपकी अभीप्सा करती है और सारे नदी— नाले आपके पीछे— पीछे दौड़ना चाहेगे ' वे उनसे कहते हैं..
'क्योंकि देखो हे जरथुस्त्र! तुम्हारे नये गीतों के लिए नयी वीणाओं की जरूरत है। '

......ऐसा जरमुस्त्र ने कहा।

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

—जीवन (कविता)




कुछ खाली सा लगता है,
      मन आँगन के कोने में,
      जीवन के इस रमणीक मय में,
      धूप छिटकती देखा डाल पर,
      कुछ सीतल सी लगता है!
जब टीस उठी कोई प्राणों में,
और विरह वेदना फेल गई
मन मयूर मेरा मधुमास बना।
कोई विरह राग जब गाता है।
      पूर्व चाप सी  लगती है,
      छूटते सांसों के बंधन में।

इस गीत उठा है प्राणों में (कविता)




इक गीत उठा जब प्राणों में,
फिर क्‍यों उसको मैं गा न सका।
कोई टीस उठी इस  ह्रदय में,
क्‍यों मैं तुम्‍हें दिखला न सका।।
     
 1--  कोई समिीर मधुर जीवन में चली,
      फिर नाच उठा आँगन सारा?
      देखो जीवन का बोझ लिए,
      नित चल-चल कर अब मैं हारा।
      जो झूम रहा जीवत स्पंदन,
      क्‍यों मुझको वो बहला न सका।

07--दसघरा गांव की दस कहानियां--(मनसा-मोहनी)

चुन्नी चाचा चाय वाला-कहानी

(दसघरा की दस कहानियां )

गाँव की शांति में अचानक तूफ़ान आ गया, कहाँ दबी पड़ी थी यह अशांति जंगली घास की तरह चार बुंदे अषाढ़ की पड़ी नहीं की न जाने कहां से उग आई। मनुष्य, औरतें, बच्चे ही नहीं, पेड़, पौधे, पशु-पक्षी सभी आश्चर्य और शौक में भर गये थे। औरतें गली चौराहों पर खड़ी घूंघट में ही खुसर-फुसर करती हुई जगह-जगह खड़ी दिखाई दे रही थी। कैसी कुंभ करणीय नींद से एक दम जाग गया था पूरा गाँव। सबसे ज्यादा रौनक मेला गहमागहमी चाचा चुन्नी की चाय की दुकान पर थी। चाचा चुन्नी की दुकान क्या गाँव का तोरण ही समझो। जो गाँव की कथा, पटकथा, रौनक, मेला यहीं से शुरू और यहीं पर आकर खत्म भी हो जाता था। आप इसे पूरे गाँव के ब्रह्मांड का केंद्र बिन्दु समझो। चुन्नी चाचा की चुटकी में कुछ ऐसा जादू था। अगर उनके हाथ की कोई चाय पी लेता तो फिर हो जाता उनकी चाय का कायल। चाचा की चाय में न जाने ऐसा क्या जादू था या कौन ऐसा रहस्य था। जिसे न तो आज तक कोई गुन पाया और न ही उसे समझ पाया। लाख लोगों ने कोशिश की परंतु उस रहस्य को कोई खोल नहीं पाया। जो आज भी अपनी जगह अटल है। बात यहां तक सुनने में आती है, चुन्नी चाचा की शान में, किसी ने उनके हाथ की चाय न पी तो समझो जीवन बेकार, नाहक ही वह आया इस दुनियाँ में,  सर खपाई करने के लिए।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-25


पुरानी व नयी नियम— तालिकाओं की बात भाग—2—(पच्‍चीसवां-प्रवचन)

 प्यारे ओशो ,
जब पानी पर पटरे बिछा दिये जाते हैं ताकि उस पर चला जा सके जब मार्ग और हस्तावलंब (रेलिंग्स ) धारा के आरपार फैल जाते हैं : सच में उस पर कोई विश्वास नहीं करता जो कहता है :  ' सब कुछ प्रवहमान है। '
उलटे बुद्ध भी उसका प्रतिवाद करते हैं। 'क्या? : बुद्ध कहते हैं 'सब कुछ प्रवहमान? लेकिन धारा के ऊपर पटरे और हस्तावलंब लगे हुए हैं!


'धारा के ऊपर सब कुछ सुदृढ़ रूप से जड़ दिया गया है सभी बातों के मूल्य सेतु
अवधारणाएं समस्त ''अच्छाई'' और ''बुराई'' : सब कुछ सुदृढ़ रूप से जड़ दिया गया है!'

..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-24

पुरानी व नयी नियम— तालिकाओं की बात भाग-2  चौबीसवां-प्रवचन


प्यारे ओशो
यहां मैं बैठता और प्रतीक्षा करता हूं, पुरानी छिन्‍न— भिन्न नियम— तालिकाएं मेरे चारों ओर बिखरी
हुईं और नयी अर्द्धलिखित नियम— तालिकाएं भी। कब मेरी घड़ी आएगी? — मेरे नीचे जाने की
घड़ी मेरे अवरोह की : क्योकि एक बार और मैं मनुष्यों तक जाना चाहता हूं।
उसके लिए मैं अब प्रतीक्षा करता हूं : क्योंकि पहले इस बात का संकेत मुझ तक आना
आवश्यक है कि यह मेरी घड़ी है — अर्थात फाख्ताओं के झुंड से युक्त हंसता हुआ शेर।
इस दरम्यान मैं स्वयं से ही बातचीत करता हूं ऐसे व्यक्ति की भांति जिसके पास बहुत सारा
समय है। कोई भी मुझे कुछ भी नया नहीं बताता; इसलिए मैं स्वयं को ही स्वयं को बताता हूं।

रविवार, 1 दिसंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-23

भारता—मनोवृति की बात-भाग-2 (तेइसवां-प्रवचन)

प्यारे ओशो

खोजे जाने के लिए मनुष्‍य दुष्कर है, सबसे बढ़कर स्वयं के लिए; मन प्राय: आत्मा के संबंध से झूठ बोलता है

सच में, मैं उनको भी नापसंद करता हूं जो हर चीज को अच्छा कहते हैं और इस दुनिया को
सर्वोत्तम। मैं ऐसे लोगों को सर्व— तुष्ट कहता हूं।
सर्व—तुष्टता जो हर चीज का स्वाद लेना जानती है : वह सर्वोत्तम रुचि नहीं है। मैं हठीली और तुईनुकमिजाज जीभों और पेटों का सम्मान करता हूं जिन्होंने 'मैं' और 'हां' और 'ना' कहना सीखा यह बहरहाल मेरी शिक्षा है : वह व्यक्ति जो एक दिन ल्टना सीखना चाहता है पहले उसे खड़ा होना और चलना और दद्वैना और चढ़ना और नाचना सीखना जरूरी है — तुम उड़कर ही उड़ना नहीं सीख सकते!

शनिवार, 30 नवंबर 2013

06--दसघरा गांव की दस कहानियां--(मनसा-मोहनी)

अंधा कुत्‍ता-कहानी

 (दसघरा की दस कहानियां )

सेन्ट्रल पार्क में जो अंग्रेजों के जमाने का एक मात्र पुराना लैंम्प था। अब उसकी रोशनी-रोशनी न रह कर मात्र जुगनू की चमक भर रह गई थी। परंतु वह अपनी ऐतिहासिकता और कलात्मकता के कारण ही अब देखने की वस्‍तु बन गया था। उसको देख कर अँग्रेजों की याद आये बिन आपको नहीं रहेगी। जो युग लैंम्प पोस्ट उसने जीया था, वह भले ही आज जुगनू प्रकाश बन कर रह गया हो। लेकिन जिस जमाने में ये लगा था। ये इस गांव मोहल्ले के लिए तो ईद का चाँद था। है तो बेचारा आज भी ईद का ही चाँद। क्योंकि दोनों देखने भर के लिए सुंदर होते है परंतु मार्ग कम ही किसी को दिखा पाते है। यही हाल बेचारा लैंम्प पोस्ट था, मात्र मन का भ्रम बना रहता था कि हम प्रकाश में जा रहे है। अब ये भी एक अंग्रेजी राज की तरह इतिहास बन गया है। परंतु अंग्रेजों की कारीगरी गजब भी...सालों बाद भी न गला, न गिरा.....मध्यम ही सही जलता तो है। आस पास के लोगों को आने जाने में सुविधा और साहस देता है। सालों इस ने इस वीरान रास्ते पर लोगों को भय मुक्त किया। इस लिए लोग आज भी इसे आदर सम्मान की नजरों से देखते है। परंतु अब सरकार ने एक आधुनिक तरह की ऊंची लाईट लगा दी थी। जिसकी रोशनी पूरे पार्क को ही नहीं आस पास की सड़क तक को रोशन कर रही थी। वैसे तो स्‍ट्रीट लाईट सालों बाद भी जलती थी। परंतु उस विशाल रोशनी के आगे उस बेचारी की क्‍या बिसात, यूं कि आप सूरज के आगे दीप जलाये रहो। ये सब उन दुकान चलाने वाले के लिए प्रतीकात्मक के साथ सुविधा जनक भी बन गये थे। आज भी उसी के आस पास हाट बाजार लगता था। छोटी-छोटी दुकानों की रौनक श्‍याम के समय देखते ही बनती थी। उधर से आने जाने वाले ज्‍यादातर राहगीर वही से दैनिक इस्‍तेमाल का सामान खरीदते थे। फल-सब्‍जी वाला, एक पान वाला, एक पुराने कपड़े जो हर कपड़े 25रू दाम बोलता था। आज कल जामुन के पेड़ के पास जो कोना था, उस के पास एक जूतों वाला भी बैठने लगा है। जो जूते और चपल का ढेर लगा कर आने-जाने वालों को आवाज मार-मार कर रिझाने की कोशिश करता है। हर जूते का दाम पचास रूपये.....लुट का माल है भाइयों लुट लो। पास ही झनकूँ चाय वाला था।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-22

भारता— मनोवृत्ति की बात भाग—1 (बाइसवां-प्रवचन)    


प्‍यारे ओशो,

... मैं भारता की मनोवृत्ति का शत्रु हूं : और सच में घातक शत्रु महा शपूर जन्मजात शत्रु!... मैं उस संबंध में एक गीत गा सकता हूं — और मैं गाऊंगा एक यद्यपि मैं एक खाली मकान में अकेला हूं और उसे मुझे स्वयं के कानों के लिए ही गाना पड़ेगा।
अन्य गायक भी हैं ठीक से कहें तो जिनकी आवाजें मृदु हो उठती हैं जिनके हाथ
भावभंगिमायुक्त हो उठते हैं जिनकी आखें अभिव्यक्तिपूर्ण हो उठती हैं जिनके हृदय जाग उठते हैं केवल जब मकान लोगों से भरा हुआ होता है : मैं उनमें से एक नहीं हूं। वह व्यक्ति जो एक दिन मनुष्यों को उड़ना सिखाएगा समस्त सीमा— पत्थरों को हटा चुका ' होगा; समस्त सीमा— पत्थर स्वयं ही उस तक हवा में उड़ेगे वह पृथ्वी का नये सिरे से बप्तिस्मा करगे? — 'निर्भार' के रूप में।