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बुधवार, 11 दिसंबर 2013
गीता दर्श्न--भाग--01 (ओशो)
मंगलवार, 10 दिसंबर 2013
हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)--प्रवचन--06
सोमवार, 9 दिसंबर 2013
हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)--प्रवचन--05
शनिवार, 7 दिसंबर 2013
हंसा तो मोती चूने-(लाल नाथ)--प्रवचन--04
शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013
हंसा तो मोती चूने-(लाल नाथ)--प्रवचन--03
अपि तो किछु नाई—तीसरा प्रवचन
हंसा तो मोती चूने-(लाल नाथ)--प्रवचन--02
हीर कटोरा हो गया रीत—दूसरा प्रवचन
गुरुवार, 5 दिसंबर 2013
हंसा तो मोती चूने--(लाल नाथ)-प्रवचन--01
बुधवार, 4 दिसंबर 2013
जीवन की नाव (कविता)

जरथुस्थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-28
जरथुस्थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-27
जरथुस्थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-26
सोमवार, 2 दिसंबर 2013
07--दसघरा गांव की दस कहानियां--(मनसा-मोहनी)
(दसघरा की दस कहानियां )
गाँव की शांति में अचानक तूफ़ान आ गया, कहाँ दबी पड़ी थी यह अशांति जंगली घास की तरह चार बुंदे अषाढ़ की पड़ी नहीं की न जाने कहां से उग आई। मनुष्य, औरतें, बच्चे ही नहीं, पेड़, पौधे, पशु-पक्षी सभी आश्चर्य और शौक में भर गये थे। औरतें गली चौराहों पर खड़ी घूंघट में ही खुसर-फुसर करती हुई जगह-जगह खड़ी दिखाई दे रही थी। कैसी कुंभ करणीय नींद से एक दम जाग गया था पूरा गाँव। सबसे ज्यादा रौनक मेला गहमागहमी चाचा चुन्नी की चाय की दुकान पर थी। चाचा चुन्नी की दुकान क्या गाँव का तोरण ही समझो। जो गाँव की कथा, पटकथा, रौनक, मेला यहीं से शुरू और यहीं पर आकर खत्म भी हो जाता था। आप इसे पूरे गाँव के ब्रह्मांड का केंद्र बिन्दु समझो। चुन्नी चाचा की चुटकी में कुछ ऐसा जादू था। अगर उनके हाथ की कोई चाय पी लेता तो फिर हो जाता उनकी चाय का कायल। चाचा की चाय में न जाने ऐसा क्या जादू था या कौन ऐसा रहस्य था। जिसे न तो आज तक कोई गुन पाया और न ही उसे समझ पाया। लाख लोगों ने कोशिश की परंतु उस रहस्य को कोई खोल नहीं पाया। जो आज भी अपनी जगह अटल है। बात यहां तक सुनने में आती है, चुन्नी चाचा की शान में, किसी ने उनके हाथ की चाय न पी तो समझो जीवन बेकार, नाहक ही वह आया इस दुनियाँ में, सर खपाई करने के लिए।
जरथुस्थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-25
जरथुस्थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-24
रविवार, 1 दिसंबर 2013
जरथुस्थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-23
शनिवार, 30 नवंबर 2013
06--दसघरा गांव की दस कहानियां--(मनसा-मोहनी)
(दसघरा की दस कहानियां )
सेन्ट्रल पार्क में जो अंग्रेजों के जमाने का एक मात्र पुराना लैंम्प था। अब उसकी रोशनी-रोशनी न रह कर मात्र जुगनू की चमक भर रह गई थी। परंतु वह अपनी ऐतिहासिकता और कलात्मकता के कारण ही अब देखने की वस्तु बन गया था। उसको देख कर अँग्रेजों की याद आये बिन आपको नहीं रहेगी। जो युग लैंम्प पोस्ट उसने जीया था, वह भले ही आज जुगनू प्रकाश बन कर रह गया हो। लेकिन जिस जमाने में ये लगा था। ये इस गांव मोहल्ले के लिए तो ईद का चाँद था। है तो बेचारा आज भी ईद का ही चाँद। क्योंकि दोनों देखने भर के लिए सुंदर होते है परंतु मार्ग कम ही किसी को दिखा पाते है। यही हाल बेचारा लैंम्प पोस्ट था, मात्र मन का भ्रम बना रहता था कि हम प्रकाश में जा रहे है। अब ये भी एक अंग्रेजी राज की तरह इतिहास बन गया है। परंतु अंग्रेजों की कारीगरी गजब भी...सालों बाद भी न गला, न गिरा.....मध्यम ही सही जलता तो है। आस पास के लोगों को आने जाने में सुविधा और साहस देता है। सालों इस ने इस वीरान रास्ते पर लोगों को भय मुक्त किया। इस लिए लोग आज भी इसे आदर सम्मान की नजरों से देखते है। परंतु अब सरकार ने एक आधुनिक तरह की ऊंची लाईट लगा दी थी। जिसकी रोशनी पूरे पार्क को ही नहीं आस पास की सड़क तक को रोशन कर रही थी। वैसे तो स्ट्रीट लाईट सालों बाद भी जलती थी। परंतु उस विशाल रोशनी के आगे उस बेचारी की क्या बिसात, यूं कि आप सूरज के आगे दीप जलाये रहो। ये सब उन दुकान चलाने वाले के लिए प्रतीकात्मक के साथ सुविधा जनक भी बन गये थे। आज भी उसी के आस पास हाट बाजार लगता था। छोटी-छोटी दुकानों की रौनक श्याम के समय देखते ही बनती थी। उधर से आने जाने वाले ज्यादातर राहगीर वही से दैनिक इस्तेमाल का सामान खरीदते थे। फल-सब्जी वाला, एक पान वाला, एक पुराने कपड़े जो हर कपड़े 25रू दाम बोलता था। आज कल जामुन के पेड़ के पास जो कोना था, उस के पास एक जूतों वाला भी बैठने लगा है। जो जूते और चपल का ढेर लगा कर आने-जाने वालों को आवाज मार-मार कर रिझाने की कोशिश करता है। हर जूते का दाम पचास रूपये.....लुट का माल है भाइयों लुट लो। पास ही झनकूँ चाय वाला था।