(सदमा - उपन्यास)
उधर ऊटी में पहुंच
कर पेंटल ने जब सोम प्रकाश का ये हाल देखा तो उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। कि उसे
ये सब क्या हो गया। नानी इसे क्या हो गया। वह तो अपने दोस्त को पहचान ही नहीं रहा
था। बेटा केवल जिंदा है एक लाश की तरह से बस श्वास ही चल रही है। इसके कोई पुण्य कर्म
है जो ये बच गया नहीं तो इस तरह के हादसे के बाद कोई भला बचता है। पर बेटा दिल की
बात तुझे कह रही हूं। मैं कल से ही तुझे बहुत याद कर रही थी। की कौन देखेगा अब इस
अभागे को। भला किया जो तू आ गया। मेरा शरीर अब इतना बलशाली नहीं रहा की इसे उठा
बैठा सकूं। तभी पेंटल ने कहां की नानी पहले तुम थोड़ा गर्म पानी कर के मुझे दे दो, मैं
इसकी स्पंजिंग कर के कपड़े पहना देता हूं। मैं इसे बहार धूप में लेकर जाता हूं।
नानी के मानो प्राण ही खिल उठे। उसे झट से एक पतीले में गर्म पानी किया और एक तोलिये
लाकर पेंटल को दे दिया। और नये धुले कपड़े लाकर वहाँ पास ही रख दिये। पेंटल ने
अच्छे से अपने दोस्त का शरीर हाथ पैर साफ किया और शरीर पर पाउडर डाल कर नये कपड़े
पहना दिये।
कई दिन से कपड़े भी नहीं बदले थे। अभी भी कहीं-कहीं तो कान आदि के पीछे खून भी जमा था। फिर नानी ने इतनी देर में खाने के लिए खिचड़ी बना दी और पेंटल से पूछा तुम्हारे लिए क्या बनाऊँ बेटा। तब पेंटल ने कहां कोई जरूरत नहीं है। मैं भी इसी में खा लूंगा श्याम को कुछ आपने हाथ का मस्त बनाना अरे वो आलू गोभी जो तुम बनाती हो और उसके साथ पूरी और अचार अभी से मेरे मुख में पानी आ रहा है।
और नानी खुशी हो गई आज कितने दिन में इस घर में खुशी लोटी है। जब से वह लड़की क्या नाम था उसका भला सा हां रेशमी आई है तब से कुछ न कुछ पचड़ा पड़ा ही रहता था।ना-ना करते भी
पेंटल ने अपने दोस्त सोम प्रकाश को आधी से अधिक खिचड़ी खिला दी। और फिर नानी को
कहा की नानी कोई दवा देनी हो तो मुझे बता दो मैं दिये देता हूं। हां बेटा क्या खूब
याद दिलाया मैं अभी लाती हूं। ये ले दवा का थैला है। इस में पैकेट पर लिखा है। दिन
में कौन सी दवा देनी है और रात को कौन सी देनी है। पेंटल ने दवा खोल कर देखी और
उसे सोम प्रकाश को दे दिया और बिस्तरे पर लिटा कर कंबल अच्छे से उसे उढ़ा दिया। और
पास बैठ कर अपने दोस्त की आंखों में देखने लगा ये मनुष्य का मस्तिष्क भी क्या है।
कितना सुलझे दिमाग का था ये सोम प्रसाद। पढ़ाई में भी कितना होशियार था हम तो इसके
सामने तो डफर नालायक,
मूर्ख थे। अभी कुछ दिन पहले भी शहर में जब मिलने के लिए आया था,
तब तो कितना सही था। मैं भी किस घड़ी में वहां इसे बाजार में ले कर
चला गया। इस सब से पेंटल के मन में एक अपराध भाव भर गया की ये सब उसके कारण ही हुआ
है। न वह उसे वहां ले कर जात और न ये सब होता। परंतु क्या ऐसा होता है। परंतु एक
घटना के बाद उस की परिणति है, जो हमें दिखलाई देती है।
परंतु ये मनुष्य का
सोचना मात्र है। वह तो केवल निमित होता है। कभी हमें घटना का परिणाम अच्छा लगता है
कभी बुरा परंतु दोनों समान्तर चलते रहते है। कोई कितना भी बुरा घटना क्यों न हो
अंत में उसमें से कुछ तो अच्छाई जरूर होगी। परंतु इस घटना में क्या अच्छाई हो सकती
है। अच्छा भला जीवन चल रहा था। कहां तक पेंटल इस विषय में सोचता रहा परंतु उसका और
छोर उसे नहीं समझ आ रहा था। वह देख रहा था सोम प्रकाश को लेटे हुए वह तो एक दम से
पत्थर के समान हो गया था। क्या हमारा मन तीनों आयामों में जीता है। तरु, वाष्प
और पत्थर। कितना रहस्य छिपा हुआ है इस जीवन में। क्या रहस्य का नाम ही जीवन है।
अगर वह समाप्त हो जाये तो क्या जीवन बचेगा। और ये वैज्ञानिक उस रहस्य को खत्म करने
में जी जान से लगे हे। मूर्ख कही के। इन सब बातों में एक-एक घटना मानो जीवन की कथा
का पूरा सार है। आज उसे समझ में आ रहा है कैसे अहिल्या पत्थर की हो गई थी। सोम
प्रकाश को सामने देख कर। उसे इतना बड़ा सदमा लगा की वह जम गई। तब भगवान राम ने
उसके जमे मन को प्रेम और संवेदना से पिघलाया। सच कथा में कितना विज्ञान है। परंतु
हम उसको केवल उपर से ही तो देखते है अंदर तक तो जाते ही नहीं।
रहस्य तो
पर्त-दर-पर्त छुपे होते है। जितनी पर्त आप उतार सकते हो उतने ही गहरे अर्थ
तुम्हारे सामने आकर खड़े हो जायेंगे। तभी नानी भी पास आ कर बैठ गई। तब पेंटल ने
कहां नानी एक बात मेरे दिमाग में चल रही है। तुम तो रामायण को कितनी बार पढ़ चूकी
हो। उसमें अहिल्या का विवरण भी पढ़ा होगा जब वह पत्थर की हो जाती है। उस पर झूठा
सच्चा इल्जाम लगाया जाता है। और फिर एक दिन भगवान राम आते है और उनके स्नेह और
प्रेम की उष्मा ने उनके मन में जमें पत्थर को पिघला दिया। और वह तरल हो बह गई आंसू
के रूप में। प्रेम में बहुत ताकत है नानी। अरे बेटा मैं तो इस बारे में कभी सोचा
ही नहीं। अरे तुम तो बहुत ही बुद्धि मान निकले। बुरा ने मानना में तो तुम्हें निरा
जोकर ही समझती थी।
ये बात सून का
पेंटल थोड़ा झेपा परंतु खुश भी हुआ। की आज एक पते की बात उसने भी की है। तब पेंटल
ने कहां नानी जब वह लड़की यहां आई तो तुम्हें कैसा लगा। अरे बेटा लगना क्या था। वह
तो बाल बुद्धि थी। शरीर से तो पूर्ण जवान थी परंतु अक्ल उसकी केवल छ:-सात साल की
ही समझो। परंतु बेटा तेरा दोस्त सच में पिछले जन्मों को काई तपस्वी है। माना की वह
तो मन से बालवत थी,
परंतु उसका तन तो जवान है। और अगर उसकी भी छोड़ दे तो तेरे दोस्त तो
तन और मन से दोनों से जवान है। किस तरह से उसके सीने पर लेट कर सो जाती थी। परंतु
मजाल है इस के मन में जरा भी वासना उठी हो। और उसका ये फल मिला है इसे आज.....। और
नानी ये सब कहते-कहते फफक पड़ी। (तब पेंटल को खड़े हो कर नानी का मुख अपने हाथों
में ले कर प्यार से कहां मेरी प्यारी और न्यारी नानी।)
पेंटल—तब नानी ये
सब हुआ कैसे। मुझे कुछ विस्तार से बतलाओगी।
नानी—अरे बेटा क्या
बतलाऊँ वह लड़की जब यहां पर आई थी। एक बार तो मैं डर गई की इसे तो अक्ल है नहीं
अगर इसके मां बाप को पता चला तब यह तो जायेगा जेल। मैंने इसे कई बार कहां की ये
लड़की खूद कुछ नहीं बतला सकती है। की यह यहां कैसे आई। परंतु उसने एक नहीं सूनी और
एक बात मेरी ध्यान से सून ले की लोग सोचते है कि वह दवा से ठीक हो गई। नहीं बेटा
वह ठीक हुई है तो तेरे इस दोस्त के अथक प्रेम के कारण प्रेम मैं बड़ी ताकत है। दवा
ने तो केवल सहारा दिया है। जैसे मुझे तुम हाथ पकड़ कर उठा दो परंतु तुम चला थोड़े
सकते हो। वह तो चलना मुझे अपने पेरो से ही होगा। हां मैं मानती हूं दवा न उसे
सहारा दिया परंतु वह ठीक हुई है तो इसके प्रेम से।
पेंटल—तब नानी वह
चली क्यों गई क्या उसने इसे पहचाना नहीं। तुम्हें कैसे पता चला की यह बीमार है।
नानी—बेटा पुलिस तो
आई थी घर पर ये बात जब मैंने सोम प्रकाश को बतलाई तो वह घबरा गया। और छूप गया।
लेकिन पुलिस वाले बतला रहे थे। की जब वह लड़की ठीक हो गई तब उसके माता पिता ने
कहां की वेद जी कह रहे थे की वह लड़का खूद ही इस लड़की को लेकर यहां आया था। और
इसका बहुत ख्याल रखता था। उन्होंने पुलिस को कहा की हमारी बेटी ठीक हो गई। वह भला
आदमी था। देखो हम लोगों से मिला भी नहीं। अब हम कोई मुकदमा नहीं चाहते। हमारी
लड़की ठीक हो गई। ये सब उस बेचारे के हाथों ही पुण्य होना था। अगर वह आपको मिले तो
हमारी और से धन्यवाद जरूर कहना। अगर हमारे घर आ सके तो हमें बहुत खुशी होगी।
ये बात पेंटल के मन
को थोड़ी राहत दे गई। तब तो नानी अगर पुलिस से उस लड़की का पता मांगा जाये तो हमें
मिल सकता है।
नानी—अरे फिर वहीं
आफत, क्या करेगा उसके पते का। अब वह लड़की इसे चिन्हित भी नहीं करेगी। तब हमारे
किस काम का। और एक नई मुसीबत गले में डालने का क्या शोक है हमें।
पेंटल—नहीं नानी
जिस तरह से सोम प्रकाश संग-साथ ने उसे ठीक किया है। या इसके संग साथ रह कर ठीक हुई
है। तो ये बात वह भले नहीं ही याद कर पा रही हो। परंतु उसका अचेतन तो जानता है।
जिस तरह से यहां जब आई थी। वह अपने माता-पिता को भूल गई थी। लेकिन उसका अचेतन तो
जानता था। सो हो सकता है वह यहां आये और कुछ उसके संग-साथ ऐसा घटे की हमारा सोम
प्रकाश ठीक हो जाये।
नानी—अरे बेटा क्या
ऐसा हो सकता है। परंतु मेरी समझ में वह लड़की हम गरीबों के घर आयेगी ही क्यों? उसे
कौन बतलायेगा। बाते करते हुए श्याम हो गई। सूर्य की किरणें मंद-से मंदतर होने लगी
थी। हवा में ठंडक शुरू हो गई। सोम प्रकाश केवल ये बाते सून रहा था। पता नहीं उसे
कुछ समझ आ रही थी या नहीं कहां नहीं जा सकता। अगर समझ आती तो रेशमा का नाम सून कर
वह जरूर कुछ तो प्रक्रिया देता परंतु वह तो पत्थर बना केवल टुकुर-टुकुर देखता भर
रहता था। जैसे उसके मुख में जबान ही नहीं रही। बोलना भी कितना जरूरी है मानव के
लिए। बिना बोले भी भला कोई आदमी बना रहा सकता है। कितनी देर से हम बाते कर रहे है
परंतु देख इस पर कोई असर ही नहीं पड़ रहा । परंतु वह लड़की इस तरह से बीमार नहीं
थी। वह तो बोलती थी, लड़ती थी, रूठती
थी। रोती थी खेलती थी हंसती थी। परंतु मेरा सोम प्रकाश तो एक दम से चुप हो गया है।
तब भला ये बीमारी
एक जैसी तो नहीं दिखाई देती। बेटा एक बात और मेरे दिमाग में आई उस वैद्य जी से एक
बार मिलना तो चाहिए। जिस ने उस लड़की को ठीक किया था। हां वह है दूर एक दम से तराई
में जहां इस अवस्था में तो इसे ले जाया नहीं जा सकता। पहले इसकी टांग का प्लास्टर
खुल जाये और ये चलने फिरने के लाये तो हो जाये तब इसके तन के बाद मन का इलाज किया
जा सकता है। बेटा अब हवा में ठंडक हो रही है। इसे अंदर लिटा दे बैठे -बैठे काफी
देर हो गई है। मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं। और नानी चाय बनाने के लिए चली
गई।
पेंटल ने सोम
प्रकाश को सहारा देकर उठाया और अंदर की और लेकर चलने लगा। उसके लिए इस अवस्था में
चलना भी अति कठिन था। अगर पेंटल नहीं आता तो नानी कहां इस वज़न को उठा सकती है।
भगवान भी कैसा दयालु है,
एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खोल देता है। इसी लिए भगवान बड़ा ही
करुणा वान है।

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