ओशो
(ओशो
द्वारा कृष्ण
के बहु-आयामी
व्यक्तित्व
पर दी गई 21 र्वात्ताओं
एवं
नव-संन्यास पर
दिए गए एक
विशेष प्रवचन
का अप्रतिम
संकलन। यही वह
प्रवचनमाला
है जिसके
दौरान ओशो के
साक्षित्व
में संन्यास
ने नए शिखरों
को छूने के
लिए उत्प्रेरणा
ली और "नव
संन्यास
अंतर्राष्ट्रीय'
की
संन्यास-दीक्षा
का सूत्रपात
हुआ।)
सबसे
बड़ा कारण तो
यह है कि
कृष्ण अकेले
ही ऐसे व्यक्ति
हैं जो धर्म
की परम
गहराइयों और
ऊंचाइयों पर
होकर भी गंभीर
नहीं हैं, उदास
नहीं हैं, रोते
हुए नहीं हैं।
साधारणतः संत
का लक्षण ही
रोता हुआ होना
है। जिंदगी से
उदास, हारा
हुआ, भागा
हुआ। कृष्ण
अकेले ही
नाचते हुए वयक्ति
हैं। हंसते
हुए, गीत
गाते हुए।
अतीत का सारा
धर्म दुखवादी
था। कृष्ण को
छोड़ दें तो
अतीत का सारा
धर्म उदास, आंसुओं से
भरा हुआ था।
हंसता हुआ
धर्म मर गया है
और पुराना ईश्वर,
जिसे हम अब
तक ईश्वर
समझते थे, जो
हमारी धारणा
थी ईश्वर की, वह भी मर गई
है।
जीसस
के संबंध में
कहा जाता है
कि वह कभी
हंसे नहीं।
शायद जीसस का
यह उदास
व्यक्तित्व
और सूली पर
लटका हुआ उनका
शरीर ही हम
दुखी-चित्त लोगों
को बहुत
आकर्षण का
कारण बन गया।
महावीर या
बुद्ध बहुत
गहरे अर्थों
में इस जीवन
के विरोधी
हैं। कोई और
जीवन है परलोक
में,
कोई मोक्ष
है, उसके
पक्षपाती
हैं। समस्त
धर्मों ने दो
हिस्से कर रखे
हैं जीवन
के--एक वह जो
स्वीकार
योग्य है और
एक वह जो
इनकार के
योग्य है।
thank you guruji
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