एक दफा ओशो ने
एक चुटकुला
सुनाया, स्वामी
स्वभाव, स्वामी
गुरुदयाल
सिंह जंगल में
भटक गए। सात
दिन के भूखे
प्यासे थे।
जंगल में एक
रेस्टोरेंट
मिला, जहां
नग्न
स्त्रियां
खाना परोसती
थीं। जब
स्वामी
स्वभाव से
पूछा कि ' आप
क्या लेंगे?' तो उन्होंने
कहा, 'मिल्क
शेक।’ तो
उस स्त्री ने
अपने स्तन से
दूध निकाल कर
दे दिया। इस
पर स्वामी गुरुदयाल
जोर—जोर से
हंसने लगे।
वाहे गुरु जी
का खालसा, वाहे
गुरु जी की
फतह। और बोले,
'मैं तो
काफी बनाने के
लिए गरम पानी
मांगने वाला
था।’ बाद
में आश्रम में
हर कोई हम से
पूछे कि 'भाई
यह
रेस्टोरेंट
कहां है?' तब
मैंने कहा, 'भाई ऐसा कोई
रेस्टोरेंट
नहीं है। यह
तो ओशो की
माया है।’
मधुबाला
का अर्थ होता
है. जो
तुम्हारा जाम
भर दे। यहां
मेरे सारे
संन्यासी इसी
काम में लगे
हुए हैं कि जो
तुम्हारी प्यालियों
को भर दें। उन्होंने
चखा है, वे तुम्हें
भी चखने का
आमंत्रण दे
रहे हैं।
उनके
निमंत्रण को
स्वीकार करो।
पीओ! पिलाओ! जीओ
और इस मुरदा
हो गए देश को जिलाओ! यह
कोई मंदिर
नहीं है। यह
कोई मस्जिद
नहीं है। यह
तो मयकदा है।
यहां धर्म कोई
पूजा—पाठ नहीं
है। यहां धर्म
तो जीवन है, नृत्य है,
संगीत है, आनंद है।
यहां उदास और
उदासीन लोगों
का काम नहीं
है। यहां तो
नर्तकों को
आमंत्रण है।
यहां तो
प्रेमियों को
बुलावा है। यह
तो रास है।
यहां तो केवल
उनकी जगह है, जो हंस सकते
हों, मुस्कुरा
सकते हों—सिर्फ
ओंठों से नहीं,
प्राणों से
भी।
यह
बिलकुल उलटी जगह
है। यह कोई
ऋषिकेश नहीं, कोई
हरिद्वार
नहीं, कोई
तीर्थराज
प्रयाग नहीं।
यह कोई काबा
नहीं, कोई
अमृतसर नहीं,
कोई गिरनार
नहीं। यह तो
वैसी जगह है, जो कभी—कभी
पृथ्वी पर
प्रकट होती है।
ही, जब
बुद्ध जिंदा
थे, तब
उनके पास इसी
तरह की
मधुशाला थी।
और जब नानक
जिंदा थे, तो
उनके पास भी
यही संगीत था,
यही स्वर थे।
और जब मोहम्मद
जिंदा थे, तो
उनके पास भी
यही गीत थे, यही गज थी।
और जब जीसस थे,
तो ऐसे ही
उनके पास भी
जाम भरे जा
रहे थे। सदगुरु
जब जीवित होता
है, तभी इस
तरह की अपूर्व
घटना घटती है।
मेरे
समझाने पर भी
समझना कठिन है।
मेरे स्पष्ट
करने पर भी
स्पष्ट नहीं
होगा। स्पष्ट
करने की फिक्र
ही छोड़ो।
पीओ। स्पष्ट
क्या करना है!
स्वाद लो।
समझना क्या है, जीओ! अनुभव करो!
आज इति।
ओशो, रहिमन
धागा प्रेम का
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