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रविवार, 31 अक्तूबर 2010

संभोग से समाधि की और-15

समाधि: अहं-शून्‍यता, समय शून्‍यता का अनुभव—4

      लेकिन जो जानते है, वे यह कहेंगे,दो व्‍यक्‍ति अनिवार्यता: दो अलग-अलग व्‍यक्‍ति है। वे जबरदस्‍ती क्षण भी को मिल सकते है। लेकिन सदा के लिए नहीं मिल सकते। यही प्रेमियों की पीड़ा और कष्‍ट है कि निरंतर एक संघर्ष खड़ा हो जाता है। जिसे प्रेम करते है, उसी से संघर्ष करते है, उसी से तनाव, अशांति और द्वेष खड़ा हो जाता है। क्‍योंकि ऐसा प्रतीत होने लगता है। जिससे मैं मिलना चाहता हूं, शायद वह मिलने को तैयार नहीं। इसलिए मिलना पूरा नहीं हो पाता।

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

संभोग से समाधि की और—14

समाधि : अहं-शून्‍यता, समय शून्‍यता का अनुभव—4

     एक बात, पहली बात स्‍पष्‍ट कर लेनी जरूरी है वह हय कि यह भ्रम छोड़ देना चाहिए कि हम पैदा हो गये है, इसलिए हमें पता है—क्‍या है काम, क्‍या है संभोग। नहीं पता नहीं है। और नहीं पता होने के कारण जीवन पूरे समय काम और सेक्‍स में उलझा रहता है और व्‍यतीत होता है।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

संभोग से समाधि की और—13

समाधि : अहं शून्‍यता, समय-शून्‍यता के अनुभव-4

     मेरे प्रिया आत्‍मन,
एक छोटा सा गांव था, उस गांव के स्‍कूल में शिक्षक राम की कथा पढ़ाता था। करीब-करीब सारे बच्‍चे सोये हुए थे।
      राम की कथा सुनते-सुनते बच्‍चे सो जाये, ये आश्चर्य नहीं। क्‍योंकि राम की कथा सुनते समय बूढे भी सोते है। इतनी बार सुनी जा चुकी है जो बात उसे जाग कर सुनने का कोई अर्थ भी नहीं रह जाता।