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बुधवार, 31 जुलाई 2013

माई डायमंड डे विद ओशो—मां प्रेम शुन्‍यों (अध्‍याय—20)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 
सेक्‍स और मृत्‍यु—

          मैं हैरान हो जाती हूं कि ओशो को वे लोग सेक्‍स गुरु कहते है जिन्‍होंने शायद उन्‍हें न कभी सुना ओर न कभी पढ़ा। ओशो सेक्‍स के वरना में कहते क्‍या है धर्म गुरूओं की तरह उन्‍होंने कभी भी सेक्‍स को निन्‍दित नहीं किया और यही कारण रहा है तो ऐसा लगता है कि पूरा संसार सेक्‍स से ग्रसित है और यह पक्‍का है कि समाचार-पत्र की सुर्खियों में सेक्‍स शब्‍द आ जाने से उसके पाठकों में वृद्धि तो होती ही है।
      और स्‍वच्‍छन्‍दता ओर समग्रता से ऊर्जा के बहाव को मार्ग देना—दोनों बातों में एक सूक्ष्‍म–सी तार है। ओशो में हमें इस सूक्ष्‍मता की तार पर साथ लिए चलने में एक अदम्‍य साहस व प्रज्ञा है।
      हमें सम्‍बोधि की दिशा में ले चलने के लिए ओशो के कार्य में सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण बात है कि सेक्‍स को सही दिशा मिल क्‍योंकि वह नैसर्गिक है परन्तु उनका ज़ोर इसके अतिक्रमण पर है। और अतिक्रमण दमित मन से नहीं होता। तो उसका पहला क़दम उसकी अभिव्‍यक्‍ति है। यह कितना सरल-सी बात है।

शनिवार, 27 जुलाई 2013

आत्म पूजा उपनिषद--प्रवचन-01

 उपनिषदों की परंपरा व ध्यान के रहस्य
प्रवचन--पहला 
 

 दिनांक 15 फरवरी, 1972, रात्रि 

ओशो आश्रम पूूूूना 

ओम्। तस्य निश्‍चितनं ध्यानम्।

ओम्। उसका निरंतर स्मरण ही ध्यान है।

     
 इसके पूर्व कि हम अज्ञात में उतरें, थोड़ी सी बातें समझ लेनी आवशयक हैं। अज्ञात ही उपनिषदों का संदेश। जो मूल है, जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह सदैव ही अज्ञात है। जिसको हम जानते हैं, वह बहुत ही ऊपरी है। इसलिए हमें थोड़ी सी बातें ठीक से समझ लेना चाहिए, इसके पहले कि हम अज्ञात में उतरें। ये तीन शब्द ज्ञात, अज्ञात, अज्ञेय समझ लेने जरूरी है सर्वप्रथम, क्योंकि उपनिषद अज्ञात से संबंधित हैं केवल प्रारंभ की भांति। वे समाप्त होते हैं अज्ञेय में। ज्ञात की भूमि विज्ञान बन जाती है अज्ञात दर्शनशास्त्र या तत्वमीमांसा और अज्ञेय है धर्म से संबंधित।

माई डायमंड डे विद ओशो—मां प्रेम शुन्‍यों (अध्‍याय—19)

माई डायमंड डे विद ओशो--(मां प्रेम शुन्‍यो)-आत्म कथा
अन्‍तिम स्‍पर्श—

वे कुछ सप्‍ताह ही अस्‍वस्‍थ रहे और मार्च में फिर प्रवचन के लिए आने लगे। मैने उनसे अंतिम प्रश्‍न पूछा और पहली बार हमने अपने प्रश्‍न बिना हस्‍ताक्षर के भेजे। यद्यपि मैंने पुनर्जन्‍म के सम्‍बंध में कुछ नहीं पूछा था, ओशो ने उत्‍तर दिया।
      .....पुनर्जन्‍म की धारणा जो पूर्व के सभी धर्मों में है, कहती है कि आत्‍मा एक शरीर से दूसरे में, एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश करती है। यह धारणा उन धर्मों में नहीं है जो यहूदी धर्म से निकले है। जैसे ईसाई और मुस्‍लिम धर्म। अब तो मनोवैज्ञानिकों को भी यह बात सत्‍य प्रतीत होती है, क्‍योंकि लोगों की लोगो की अपने पूर्व जन्‍म की स्‍मृति रहती है। पुनर्जन्‍म की धारणा जड़ पकड़ रही है। परंतु मैं तुम से एक बात कहना चाहूंगा: पुनर्जन्‍म की धारणा मिथ्‍या है। यह सच है कि जब व्‍यक्‍ति मरता है उसका जीवन पूर्ण का भाग हो जाता है। चाहे वह पापी हो या पुण्‍यात्‍मा इससे कोई अंतर नहीं पड़ता,परंतु उसके पास कुछ होता है उसे मन कहो या स्‍मृति। प्राचीनकाल में कोई ऐसी जानकारी उपलब्‍ध नहीं थी जो यह स्पष्ट कर सके कि स्‍मृति विचारों को, विचार तरंगों का समूह है, परंतु अब सरल है।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

माई डायमंड डे विद ओशो—मां प्रेम शुन्‍यों (अध्‍याय—17)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 
पुणे दो विश्‍लेषण: थैलीयम ज़हर (अध्‍याय—17)


     पुलिस कमिशनर ने आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया। लेकिन आश्रम के लिए आचार-प्रतिमानों के रूप में कुछ शर्तों पर उसे स्‍थापित कर देने की इच्‍छा  प्रकट की शर्तें चौदह थी। उनमें से कुछ शर्तें ऐसी थी जो यह भी निश्चित करती थी कि ओशो किस विषय पर और कितना समय प्रवचन दें। वे किसी धर्म के विरूद्ध न बोले या कोई भड़काने वाली बात न कहें। केवल एक सौ विदेशियों को ही आश्रम के द्वार के भीतर प्रवेश कर सकते है; प्रत्‍येक विदेशी का नाम पुलिस के पास होना चाहिए, हमें कितने ध्‍यान करने होंगे और ध्‍यान की समयावधि क्‍या होगी यह भी निर्धारित किया जाएगा; पुलिस को किसी भी समय आश्रम में प्रवेश करने और प्रवचन में सम्‍मिलित होने का अधिकार होगा।

    ओशो ने शेर की तरह गरजते हुए इन शर्तों का प्रतिसंवेदन किया। उनके उत्‍तर में दिए गए प्रवचनों में आग बरसी: क्‍या यह वही स्‍वतंत्रता है जिसके लिए हजारों व्‍यक्‍तियों ने अपने प्राण गवांए।