मैं हैरान हो जाती हूं कि ओशो को वे लोग ‘सेक्स गुरु’ कहते है जिन्होंने शायद उन्हें न कभी सुना ओर न कभी पढ़ा। ओशो सेक्स के वरना में कहते क्या है धर्म गुरूओं की तरह उन्होंने कभी भी सेक्स को निन्दित नहीं किया और यही कारण रहा है तो ऐसा लगता है कि पूरा संसार सेक्स से ग्रसित है और यह पक्का है कि समाचार-पत्र की सुर्खियों में सेक्स शब्द आ जाने से उसके पाठकों में वृद्धि तो होती ही है।
और स्वच्छन्दता ओर समग्रता से ऊर्जा के बहाव को मार्ग देना—दोनों बातों में एक सूक्ष्म–सी तार है। ओशो में हमें इस सूक्ष्मता की तार पर साथ लिए चलने में एक अदम्य साहस व प्रज्ञा है।
हमें सम्बोधि की दिशा में ले चलने के लिए ओशो के कार्य में सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात है कि सेक्स को सही दिशा मिल क्योंकि वह नैसर्गिक है परन्तु उनका ज़ोर इसके अतिक्रमण पर है। और अतिक्रमण दमित मन से नहीं होता। तो उसका पहला क़दम उसकी अभिव्यक्ति है। यह कितना सरल-सी बात है।