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शुक्रवार, 21 जून 2019

नये समाज की खोज-(प्रवचन-17)

नये परिवार का आधार:-(प्रवचन-सत्तरहवां)

विवाह नहीं, प्रेम

मेरे प्रिय आत्मन्!
एक मित्र ने पूछा है कि मैं परिवार के संबंध में कुछ कहूं।
परिवार के संबंध में पहली बात तो यह कहना चाहूंगा कि परिवार मनुष्य के द्वारा निर्मित की गई प्राचीनतम संस्था है, और इसलिए स्वभावतः सबसे ज्यादा सड़-गल गई है। परिवार मनुष्य की अधिकतम बीमारियों का उदगम-स्रोत है। और जब तक परिवार रूपांतरित नहीं होता तब तक मनुष्य के जीवन में शुभ की, सत्य की, सुंदर की संभावनाएं पूरे अर्थों में विकसित नहीं हो सकती हैं।
परिवार जैसा आज तक रहा है, उस परिवार को ठीक से समझने के लिए यह ध्यान में रख लेना जरूरी है कि परिवार का जन्म प्रेम से नहीं, बल्कि प्रेम को रोक कर हुआ है। इसीलिए सारे पुराने समाज प्रेम के पहले ही विवाह पर जोर देते रहे हैं। सारे पुराने समाजों का आग्रह रहा है कि विवाह पहले हो, प्रेम पीछे आए। विवाह पर जोर देने का अर्थ एक ही है कि परिवार एक यांत्रिक व्यवस्था बन सके। प्रेम के साथ यांत्रिक व्यवस्था का तालमेल बिठाना कठिन है।

शनिवार, 8 जून 2019

नये समाज की खोज-(प्रवचन-16)

सफलता नहीं --प्रवचन सोहलवां

सुफलता
एक मित्र पूछ रहे हैं: मेरे एक वक्तव्य में मैंने कहा है कि शादी जैसी आज है, विवाह जैसा आज है, वह विवाह इतना विकृत है कि उस विवाह से गुजर कर मनुष्य के चित्त में विकृति ही आती है, सुकृति नहीं।

यह बात सच है कि विवाह एक अति सामान्य, अति जरूरी स्थिति है। और साधारणतः अगर विवाह वैज्ञानिक हो तो व्यक्ति विवाह के बाद ज्यादा सरल, ज्यादा शांत और सुव्यवस्थित होगा। लेकिन विवाह अगर गलत हो--जैसा कि गलत है--तो विवाह के पहले से भी ज्यादा परेशानियां, अशांतियां और चित्त की रुग्णताएं बढ़ेंगी।
जैसे मेरा कहना है, जो विवाह प्रेम से फलीभूत नहीं हुआ है, ज्योतिषी से पूछ कर हुआ है, जो विवाह मां-बाप ने तय किया है, स्वयं विवाह करने वालों के प्रेम से नहीं निकला है--वह विवाह विकृत करेगा, सुकृत नहीं करेगा। वह विवाह नई परेशानियों में ले जाएगा बजाय पुरानी परेशानियां हल करने के।
और इसलिए सारी दुनिया में विवाह की पूरी की पूरी व्यवस्था रुग्ण हो गई है, बीमार हो गई है, सड़ गई है। और जब तक हम विवाह की व्यवस्था नहीं बदलते...और भी बहुत बातें हैं, समाज को जो सड़ा रही हैं और पागलपन पैदा कर रही हैं। लेकिन उनमें से बहुत बुनियादी बातों में से एक विवाह है। जब तक हम उसे नहीं बदलते, तब तक परिवार का वह रूप प्रकट नहीं हो सकेगा जो व्यक्ति को शांति देता हो, प्रेम देता हो, आनंद देता हो, गति देता हो, बल देता हो--और सबसे बड़ी बात--जो व्यक्ति के जीवन में अध्यात्म देता हो।

शुक्रवार, 7 जून 2019

नये समाज की खोज-(प्रवचन-15)

जीवन एक समग्रता है-(प्रवचन-पंद्रहवां)

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
लेकिन मजा यह है कि कम्युनिज्म अब बिलकुल क्रांतिकारी नहीं रहा है, अब वह भी एक रिएक्शनरी विचारधारा है। जब कोई विचार पैदा होता है तब तो वह क्रांतिकारी होता है, और जैसे ही वह संगठित हो जाता है, संप्रदाय बन जाता है, व्यवस्था हो जाती है, उसकी क्रांति मर जाती है। बुद्ध जब बात कहे तो वह क्रांतिकारी थी; और जैसे ही बौद्ध धर्म बना, वह खत्म हो गई क्रांति। महावीर ने जब बात कही, बड़ी क्रांतिकारी थी; जैसे ही जैनी खड़े हुए, क्रांति खत्म हो गई।

उन्होंने भी बुतपरस्ती शुरू की।

हां, वह शुरू हो जाएगी। माक्र्स ने जो बात कही, वह बड़ी क्रांतिकारी थी; लेकिन जैसे ही माक्र्ससिस्ट पैदा हुए कि वह क्रांति गई।

रविवार, 2 जून 2019

नये समाज की खोज-(प्रवचन-14)

निर्विचार अनुभव ही सनातन हो सकता है-प्रवचन चौहदवां

(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
कुछ निहित स्वार्थ पीछे नुकसान करते होंगे। लेकिन फिर भी अच्छा हुआ। बहुत लोगों को उत्सुक कर दिया। अब मैं जा रहा हूं तो ज्यादा लोग मुझे सुन रहे हैं, ज्यादा लोग पूछ रहे हैं। यह अच्छा हुआ।

गुजरात समाचार में भी, आपने तो पढ़ा होगा, दोत्तीन महीने तक बहुत अच्छी तरह से फेवर में और अगेंस्ट में चर्चाएं चलती रही हैं

बहुत अच्छा है। अच्छा है, एक लिहाज से तो अच्छा है। लोकमानस प्रबुद्ध हो तो अच्छा है।

प्रवचन में आपका इतना प्रचार नहीं हुआ, जितना यह अखबार वालों ने प्रचार कर दिया। और अभी आप जहां जाते होंगे, वहां ज्यादा आदमी न आते होंगे, उसमें से कुछ लोग ही सिर्फ आते होंगे।