मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो
सत्र--सातवां
ओ. के.। मैं तुम्हारी नोटबुक के खुलने की आवाज सुन रहा हूं। अब यह एक घंटे का समय मेरा है, और मेरे एक घंटे में साठ मिनट नहीं होते। वे कुछ भी हो सकते हैं--साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे, सौ... या संख्याओं के पार भी। यदि यह एक घंटा मेरा है तो इसे मेरे साथ संगति बिठानी होगी, इससे विपरीत नहीं हो पाएगा।पोस्टस्क्रिप्ट, पश्चलेख जारी है।
आज का जो पहला नाम है: मलूक, इस नाम को पश्चिम में किसी ने सुना भी नहीं होगा। वे भारत के अत्यंय महत्वपूर्ण रहस्यदर्शियों में से एक हैं। उनका पूरा नाम है, मलूकदास, लेकिन वे अपने को केवल मलूक कहते हैं, जैसे कि वे कोई बच्चे हों--और वे सच में ही बच्चे थे, ‘बच्चे जैसे’ नहीं।