20
सितंबर, 1976
ओशो
आश्रम,
कोरेगांव
पार्क,
पूना।
पहला
प्रश्न : आपने
कल बताया कि
तप्क्षण
संबोधि, सडन
एनलाइटेनमेंट
किसी भी
कार्य— कारण
के नियम से
बंधा हुआ नहीं
है; लेकिन
यदि अस्तित्व
में कुछ भी
अकस्मात, दुर्धटना
की तरह नहीं
घटता, तो
संबोधि जैसी
महानतम घटना
कैसे इस तरह
घट सकती है?
अस्तित्व
में कुछ भी
अकारण नहीं
घटता,
यह
सच है, लेकिन
अस्तित्व
स्वयं अकारण
है। परमात्मा
स्वयं अकारण
है, उसका
कोई कारण नहीं
है। संबोधि
यानी परमात्मा।
संबोधि यानी
अस्तित्व।
फिर और सब
घटता है, परमात्मा
घटता नहीं—है।
ऐसा कोई क्षण
न था, जब
नहीं था; ऐसा
कोई क्षण नहीं
होगा, जब
नहीं होगा। और
सब घटता
है—आदमी घटता
है, वृक्ष
घटते हैं, पशु—पक्षी
घटते हैं; परमात्मा
घटता
नहीं—परमात्मा
है। संबोधि घटती
नहीं। संबोधि
घटना नहीं है;
अन्यथा
अकारण घटती, तो दुर्घटना
हो जाती।
संबोधि घटती
नहीं है, संबोधि
तुम्हारा
स्वभाव है; संबोधि तुम
हो। इसलिए
तत्क्षण घट
सकती है, और
अकारण घट सकती
है।