अध्याय—16
सूत्र—181
अहिंसा
सत्यमक्रोधस्त्याग:
शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं
मार्दवं ह्ररिचापलम्।।
2।।
तेज:
क्षमा धृति:
शौचमद्रोहोनातिमानिता
।
भवन्ति
संपदं
दैवीमीभिजातस्य
भारत।। 3।।
दैवी
संयदायुक्त
पुरुष के अन्य
लक्षण हैं : अहिंसा, सत्य,
अक्रोध,
त्याग, शांति
और किसी की भी
निंदादि न करना
तथा सब भूत
प्राणियों
में दया,
अलोलुपता, कोमलता
तथा लोक और
शास्त्र के
विरुद्ध आचरण
में लज्जा और
व्यर्थ
चेष्टाओं का
अभाव; तथा
तेज, क्षमा, धैर्य और
शौच अर्थात
बाहर— भीतर की
शुद्धि एवं अद्रोह
अर्थात किसी
में भी शत्रु— भाव
का न होना और
अपने में पूज्यता
के अभिमान का
अभाव— ये सब तो
हे अर्जुन,
दैवी संपदा को
प्राप्त हुए पुरूष
के लक्षण हैं।