दिनांक
3 जनवरी, 1974;
संध्या।
बुडलैण्डस,
बंबई।
योगसूत्र:
दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्थ
वशीकारसंज्ञा
वैराग्यम्।।
15।।
वैराग्य, निराकांक्षा
की 'वशीकारसंज्ञा'
नामक पहली अवस्था
है—ऐंद्रिक
सुखों की
तृष्णा में, सचेतन
प्रयास
द्वारा, भोगासक्ति
की समाप्ति।
तत्पर
पुरुषख्यातेर्गुणवैतृष्ण्यम्।।
16।।
वैराग्य, निराकांक्षा
की अंतिम
अवस्था है—पुरुष
के, परम
आत्मा के
अंतरतम
स्वभाव को
जानने के कारण
समस्त
इच्छाओं का
विलीन हो जाना।