हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा
रिश्ते—(अध्याय—16)
रिश्ते—(अध्याय—16)
ओशो के
भारत चले जाने
के बाद मैंने
लंदन में एक
माह
प्रतीक्षा
की। फिर मुझे
लगा कि भारत
में प्रवेश
करने का
प्रयत्न
सुरक्षित
होगा। विवेक
दो महीने पहले
ही चली गई थी।
उसने मुझे बताया
कि जब मेरे
भार आने की
तिथि आई तो
उसने ओशो से
कहा कि मेरे
बारे में कोई
समाचार नहीं मिला
और वह चिंतित
थी कि मैं
पहुंची हूं या
नहीं। ओशो बस
मुस्कुरा
दिए। मैं पहले
ही पहुंच चुकी
थी।
ओशो सूरज
प्रकाश के घर
में ठहरे हुए
थे। कई वर्ष
पुराने संन्यासी
है। वे
रजनीशपुरम भी
आए थे। ओशो के
भारतीय संन्यासी, जो
रजनीशपुरम
में उनके साथ
रह चुके है।
कुछ इस तरह
परिपक्व हो
गए है कि वे
भारतीयों से
सर्वथा भिन्न
लगते है। वे
पूर्व और पश्चिम
का एक आदर्श
मेल है—नया
मनुष्य
जिसकी ओशो ने
चर्चा कि है।