दिनांक; शुक्रवार, 27 जुलाई 1979;
श्री
रजनीश आश्रम, पूना।
सूत्र—
टोप—टोप
रस आनि
मक्खी मधु लाइया।
इक लै गया निकारि
सबै दुख पाइया।।
मोको
भा बैराग ओहि
को निरखिकै।
अरे
हां, पलटू
माया बुरी
बलाय तजा
मैं परिखिकै।।
फूलन सेज बिछाय महल के रंग में।
अतर
फुलेल लगाय
सुनदरी
संग में।।
सूते
छाती लाय
परम आनंद है।
अरे
हां, पलटू
खबरि पूत
को नाहिं काल
को फंद है।।
खाला
के घर नाहिं, भक्ति है
राम की।
दाल
भात है नाहिं, खाए के काम
की।।
साहब
का घर दूर, सहज ना
जानिए।
अरे
हां, पलटू
गिरे तो
चकनाचूर, बचन
कौ
मानिए।।