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शनिवार, 17 अगस्त 2013

एस धम्‍मो सनंतनो-(भाग--01) -ओशो

एस धम्‍मो सनंतनो-(भाग--01) -ओशो 
(बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर दिए गएदस अमृत प्रवचनों का संकलन)


बुद्ध ऐसे हैं जैसे हिमाच्छादित हिमालय। पर्वत तो और भी हैं, हिमाच्छादित पर्वत और भी हैं, पर हिमालय अतुलनीय है। उसकी कोई उपमा नहीं है। हिमालय बस हिमालय जैसा है। गौतम बुद्ध बस गौतम बुद्ध जैसे। पूरी मनुष्य-जाति के इतिहास में वैसा महिमापूर्ण नाम दूसरा नहीं। गौतम बुद्ध ने जितने हृदयों की वीणा को बजाया है, उतना किसी और ने नहीं। गौतम बुद्ध के माध्यम से जितने लोग जागे और जितने लोगों ने परम- भगवत्ता उपलब्ध की है, उतनी किसी और के माध्यम से नहीं।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

ओशो के हिंदी साहित्‍य की बहार....

पिछले दिनों एक मित्र सन्‍यासी जब मुझसे मिलने के लिए आई तब बातों ही बातों में बात ओशो के हिन्‍दी साहित्‍य तक आ गई। तब उसे सन्‍यासी ने कहां की ओशो की मधुर वाणी जितनी हिन्‍दी में लगती है। उतना रसा-स्‍वाद अंग्रेजी में नहीं आता। मुझे अंदर से खुशी हुई। और गर्व भी हुआ की हिंदी या संस्‍कृत में जरूर कुछ है जो अंग्रेजी या दुनियां की दूसरी भाषाओं में नहीं है। क्‍यों हिंदी मस्‍तिष्‍क के तीन आयामों में चहली है। और संस्‍कृत तो शायद इससे भी अधिक में। जबकि अंग्रेजी दो एक ही आयाम में फंस कर रह जाती है।

शनिवार, 3 अगस्त 2013

माई डायमंड डे विद ओशो—मां प्रेम शुन्‍यों (अध्‍याय—21)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 



ओशो !   ओशो !   ओशो !


      जब ओशो के देहावसान पर मैंने एक अध्याय लिखना प्रारम्भ किया तो मुझे लगा कि यह सम्भव नहीं क्योंकि ओशो की मृत्यु नहीं हुई है। यदि उनकी मृत्यु हो गई होती तो मुझे उनका अभाव महसूस होता, परन्तु जब से वे हमें छोड़कर गए हैं मुझे कुछ खो जाने का एहसास नहीं हुआ। मेरा अभिप्राय यह नहीं कि मैं उनकी आत्मा को एक प्रेत की भांति अपने आसपास मंडराते हुए पाती हूं या बादलों में से आती उनकी आवाज़ को सुनती हूं। नहीं, केवल इतना ही है कि मैं आज भी उन्हें इतना अनुभव करती हूं जितना तब करती थी जब वे शरीर में थे । जब वे 'जीवित' थे, उनके आसपास मैं जिस ऊर्जा का अनुभव करती थी वह वही शुद्ध ऊर्जा होगी जो अमर है। क्योंकि अब भी वैसा ही लगता है जबकि उनका शरीर नहीं है। मैं उन्हें जितना वीडियो पर देखती हूं या उनके शब्द पड़ती हूं मेरी समझ और गहराती जाती है कि जब वे शरीर में थे उनकी उपस्थिति एक व्यक्ति की भांति नहीं थी।